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कविता

माँ
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माँ

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विधाता तुमने छोड़ दिया है धरा पर जन्म देकर! माँ ही है जो जन्म देती है पालन भी करती है!! तुमसे बढ़कर प्रभु! नवजीवन की रचना करती है!! बन प्रथम शिक्षिका सुत को सतत् संस्कारित करती है!! रह-रह बलिहारी हो मुख-गात चुंबन से भरती है! बच्चों के हित में निज सुख मांँ न्योछावर करती है!! कर कोटि जतन माँ जीवन उपवन को सुरभित करती है! दुख की गागर करके रीती सुखों से भर देती है!! भवन को अपनी ममता से घर अलंकरण देती है! अपनी ममता की छांँव में स्वर्ग सुख भर देती है!! निज आँचल से निस्सीम नभ को छोटा कर देती है! रख दे जहांँ निज चरण! माँ तीर्थ का सृजन करती है!! माँ की छत्रछाया दिव्य कल्प वृक्ष का सृजन करती है! माँ नित नित कर कल्याण भू पर प्रभु मूरत गढ़ती है!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना...
एक स्पर्श
कविता

एक स्पर्श

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "मेरे गालों पर जब हुआ एक स्पर्श, जान गया, किसने किया, ये स्पर्श, मां की यादे, हृदय में सन्जोये, बैठे, मन में, होता है, मुझे फिर अपार, हर्ष, आशीश उनका, शीश पर सदा बना रहे, जीवन में, तभी, होता रहेगा, उत्कर्ष, ज़ब किसी परेशानी से, मैं, त्रस्त रहता, मां, देती रहती, अपना अमूल्य परामर्श, हिम्मत हार के, न कर पाता, कोई काम, मां की हौसला अफजाही से, पाता उत्कर्ष" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गी...
अनदेखी
कविता

अनदेखी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** तरसती आँखें और आस रिश्तों को पाने के लिए तलाशता मन। बिखर गए मोतियों से रिश्ते को फिर से पिरोने की चाह कापते हाथ उठ नहीं पाते देने आशीर्वाद कमजोर देह। किस्से ताजे बुजुर्गी तिरस्कार के पिंजरे में दुबकी उम्र खाना पिंजरे में पक्षी का दाना देते जैसे। कैद पक्षी से भला कौन ज्यादा बातें करता अकेलापन बहुत बुरा होता कलयुग में श्रवणकुमार भला कहा मिलेंगे। भौतिकता की चकाचौंध रिश्तों को निगलती सोच अपने अपने भाग्य की बूढ़े रिश्तों का भाग्य से क्या काम। दकियानूसी सोच मस्तिष्क -दिल को कर देती छोटा रिश्ते की राहें हो चली गुमराह। किंतु बुजुर्गी दरवाजे पर दस्तक को आज भी पहचानती बुजुर्गो की अनदेखी बहुत दूर बसे रिश्ते बरसों बाद दरवाजा थपथपा कर अपनों से दूर रह रहे दूर बसे दुबके रिश्तों को याद आने पर अब देने लगे दस्तक। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पि...
आज छत पर
कविता

आज छत पर

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आज छत पर खडी़ थी आसमान की ओर छोर की तरफ देख रही थी, चारो तरफ रंग-बिरंगी पतंगे, हवा में उड़ रही थी, दूर-दूर तक आसमान की ओर पेंगे बढा़ रही थी, अडो़स-पडो़स की छतों पर लोग हर्षोल्लास से पतंगें उडा़ रहे थे, एक अद्भूत खुशी से उनके चेहरे चमक रहें थे, जो किसी और की पतंग को काट गिराता, उसका तो आनंद ही निराला था, पर कुछ पलों में उसकी स्वयं की पतंग कट जाती तो वह खिन्न-मायुस हो जाता, याने कुछ पल की खुशी, कुछ पल का दुःख, मैं सोच रही थी कितना बडा़ है आसमान, हर एक की अपनी पतंग, अपनी डोर, क्यों न सभी पतंगे अपनी डोर के सहारे आसमान में उड़ती जाये? क्यों काटे हम किसी ओर की पतंग? क्यों उसका उल्लास मनाये? हम काटेंगे फिर वह हमारी पतंग काटेगा, इससे क्या होगा लाभ कितना अच्छा हो सबकी पतंगे आसमान में ऊँची और ऊँची उड़ती जाये, सब शिखर पर पहुँचे, सबके मन में एक द...
सन्नाटा फैला है
कविता

सन्नाटा फैला है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** महामारी खा गई साहित्य योद्धा, नजर आता यह कैसा झमेला है, अश्रु बहा रहा हैं आज जग सारा, साहित्य जगत में सन्नाटा फैला है। गीतों के राजा गये छोड़कर जग, कुंवर बेचैन नाम वो कहलाते थे, पढ़ते जिनका गम भरा काव्य तो, बस आंखों में आंसू आ जाते थे। गंगा प्रसाद विमल छोड़ गये जग, हादसे ने ले ली उनकी भी जान, रोहित सरदाना पत्रकार चल बसे, जिनकी विश्वभर में होती पहचान। नरेंद्र कोहली का निधन हो चुका, और गये जग से ही कलीम उर्फी, कुलवंत भी गये जगत को छोड़कर, कुमार विमल गये जो बने हैं सुर्खी। भगवती प्रसाद देवपुर चले गये हैं, राहत इंदौरी यूं चले गये मुख मोड़, कितने कवि लेखक चले गये अब, साहित्य जगत में अकेला ही छोड़। देते आज श्रद्धांजलि साहित्य को, या महामारी को देते हम ये दोष, कितने आंसू बह निकलते मन से , चले गये उनका हमको अफसोस। कहीं नजर उठाकर जब...
माँ
कविता

माँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** विश्वास नहीं होता है, चली गई यूं छोड़ हमें, सारी दुनियाँ दिखती है, पर तू दिखती नहीं हमें। अंर्तमन से चित्र एक पल, धुंधला कभी नहीं होता, एक बार आकर तू क्यों, गले लगाती नहीं हमें। अपने अंर्तमन की पीड़ा का, भंडार छिपाये रखा था, आकर क्यों पीड़ा की गठरी, खोल दिखाती नहीं हमें। नादान तेरे हैं ये बच्चे, तनिक तरस न आता क्या? सपने में ही आकर बस, ममता अपनी दिखला दे हमें। भूल तो बच्चे करते रहते, तू ये बात समझती है, ऐसी गुस्ताखी क्या कर दी, जो सजा असहय दे रही हमें। माफ करो हे माँ हमको, हम सब हँसना भूल गये, गुस्सा छोड़ अब आ जाओ, गले लगाओ जल्द हमें। या फिर ऐसा कर माते, हमें बुला ले वहीं हमें, ऐसी मजबूरी थी क्या, क्यों इतनी कठिन सजा दी हमें। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक...
हे मां
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हे मां

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हे मां हे मां तुझे ढुढु कहां तु थी तो था संसार मेरा हे मां हे मां गोद तेरी लगती प्यारी थक हार सो जाता गोद तेरी थकान सब दूर हो जाती हे मां हे मां इश्वर से भी कद ऊंचा तेरा वजूद मेरा नही है हे वजूद तुझसे मेरा पकड़ उॅगली चलना सीखाया पहला निवाला तुझसे पाया गीरता रहता जब भी मै उंगली पकड़ कर चलना सीखाया हे मां हे मां इतना आसां नही हे कर्ज तेरा जग मे चुकाना हूंआज जो भी मै प्यार हे ये तेरा पाया हर दम जाना मेरी चाहते तूने पर मेने नही पूछा चाहत तेरी क्या हे हे माॅ हे मां सत्य पथ तूने बताया भूखे रह कर सपने साकार कराया हूट अभागा बैठा तेरा वक्त जब मेरा आया तीन बेटो की कहानी व्रधाश्रम तुझको बताया हे माॅ हे मां जब थी तू चुभती थी बेटो को ऑखों मे आज ऑखे नम हो रही हे हे माॅ हे माॅ सो जन्म लेलूं माॅ मै न पा सकूंगा तूझको मै माॅ हे माॅ हे माॅ मैने त...
माँ
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माँ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** एक अक्षर का शब्द है माँ, जिसमें समाया सारा जहाँ। जन्मदायनी बनके सबको, अस्तित्व में लाती वो। तभी तो वो माँ कहलाती, और वंश को आगे बढ़ाती। तभी वह अपने राजधर्म को, मां बनकर निभाती है।। माँ की लीला है न्यारी, जिसे न समझे दुनियाँ सारी। ९ माह तक कोख में रखती, हर पीड़ा को वो है सहती। सुनने को व्याकुल वो रहती, अपने बच्चे की किलकारी।। सर्दी गर्मी या हो बरसात, हर मौसम में लूटती प्यार। कभी न कम होने देती, अपनी ममता का एहसास। खुद भूखी रहती पर वो, आँचल से दूध पिलाती है। और अपने बच्चे का, पेट भर देती है।। बलिदानों की वो है जननी। जब भी आये कोई विपत्ति, बन जाती तब वो चण्डी। कभी नहीं वो पीछे हटती, चाहे घर हो या रण भूमि। पर बच्चों पर कभी भी, कोई आंच न आने देती।। माँ तेरे रूप अनेक, कभी सरस्वती कभी लक्ष्मी। माँ देती शिक्षा और संस्कार, तभी बच्चों का होता बेड़ाप...
आज तुम याद आयी बहुत
कविता

आज तुम याद आयी बहुत

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** माँ आज तुम याद आयी बहुत बताती नही मै जताती नही मै कई साल पहले जो बोला था हँसके पराया मै धन हूँ सभी बोलते है अभी भी है, मन मे वही  गाँठ भारी यही बात अभी तक भूलाई नही है हूँ प्रतिबिम्ब तेरी, मै हूँ तेरे जैसी सभी बोलते है हमशक्ल तेरी जैसी मगर मौन तू है "मै हूँ वाचल" तटस्था, जीवन मे लायी नही मै सभी माँ को कहते है, कमजोर हूँ मै मगर मै कभी जताती नही हूँ कभी मन होता तेरे पास आऊँ छोटी से तेरी माँ गुडिया बन जाऊँ छिपा ले मुझे, फिर से गोदी मे अपने व्यथित है ह्रदय माँ, बताती नही  मै परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो क...
माँ सम्बोधन
कविता

माँ सम्बोधन

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** माँ सम्बोधन में मिठास है, इसीलिए प्यारी लगती है। माँ तो है ममता की मूरत, बच्चों के सब दुःख हरती है। माँ सम्बोधन... प्रतिपल बस बच्चों की चिंता, इसमें ही माँ को सुख मिलता। बच्चा खा ले, बच्चा पढ़ ले, माँ इसमें खपती रहती है। माँ सम्बोधन... माँ बच्चों की प्रथम गुरु है, जन्म साथ सब काम शुरू है। बच्चों के भविष्य के खातिर, निज सुख त्याग किया करती है। माँ संबोधन... मेरी माँ मुझको प्यारी है, गुस्से में लगती न्यारी है। घर की खुशहाली के मित ही, वो हर कार्य किया करती है। माँ सम्बोधन... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
माँ की पहचान
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माँ की पहचान

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** जिस से पूर्ण होती हर आशा वो है निस्वार्थ प्रेम की परिभाषा उसकी दुआ है अचूक दवा स्पर्श उसका गर्म मौसम में ठंडी हवा मुसीबतों में बन के रहती है ढाल गिरने से पहले लेती वो सँभाल दूर से भी लेती हर दर्द पहचान उसकी ममता से बड़ा नहीं कोई दान यह है सिर्फ एक माँ की पहचान जितना कहूँ उतना कम है माँ की हर एक बात में दम है परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
डॉक्टर पिता
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डॉक्टर पिता

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** डॉक्टर पिता से बेटी बोली, पापा में भी संग आउंगी। आपके साथ घूम-घूम के, कोरोना को मार भगाऊंगी। माथा चूमा पिता ने तब बोले मुस्कुराकर बिटिया। बड़ी हिम्मत वाली तू है पर, नंन्ही सी तू जान है गुड़िया। प्यारी बेटी हाथ पकड़ कर, पूछती एक सवाल है। कोरोना से हार पाना पापा क्यों इतना मुश्किल है। दवा है आई वेक्शन भी आई आए कई इलाज भी है फिर कोरोना ने फेल कर ऐसे, अपने पैर पसारे है। पापा ने फिर गोद बिठा कर बेटी को समझाया था। लोगो की लापरवाही से कोरोना लोट के आया था। एक बात और जान लो बेटा जो ओर बीमारी का कारक है। लोगो मे कम हो गई रोग प्रतिकारक क्षमता है। खान पाँन ओर व्यस्तता ने ऐसा नाता जोडा है। योगा, कसरत ओर स्वच्छ भोजन से बिल्कुल नाता तोडा है। यही वजह है कम उम्र में लोग बीमारी के शिकायती है। थकान और अनिंद्रा से अब इनकी दोस्ती है। राज की सारी बा...
प्रकृति मेरी गजलें
कविता

प्रकृति मेरी गजलें

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** इस तरह प्रकृति को हलाल होते देखा है, मानो सुबह सोया रात होते देखा है, यूं लम्हों में लम्हे गुजार जाते हैं लोग, सुबह होते ही पता नहीं कहां चले जाते हैं लोग, यूं पानी की बूंदों को टकराना, मानो गुलाब को हवा की तरह सब पर बरसाना, ये यूं ही चला जाता है मानो सुबह सोया रात को उठ जाना, वे पेड़ों की सांसो को दब से दबाना, मानो सुबह खाया रात को भूल जाना, और कहते हैं कि हमारे हक से कभी न रुलाना, ये तुम्हारा पुत्र नहीं पित्र है, प्रकृति संतुलन में आए तो तुम हिल जाते हो, मानों खाना खाया खुद और दूसरों को लड़ाये जाते हो, इसलिए प्रकृति की निस्वार्थ से जैसा लीजिएगा वैसा दीजिएगा। परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अप...
आशा
कविता

आशा

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** आशा जीवन है आशा उमंग है। आशा तरंग है आशा रंग है। आशा उत्साह है आशा सक्ती है आशा तेज है। आशा भक्ति है। आशा प्रण है आशा प्राण हैं। आशा संस्कार है। आशा संस्कृति है। परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये ...
मेरी माँ … प्यारी माँ …
कविता

मेरी माँ … प्यारी माँ …

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मेरी प्यारी माँ ... दिल में हमेशा तुम रहती हो, बता न पाती, तुम्हें कितना चाहती मैं यादें बचपन की अक्सर आ आ कर गुदगुदी कर जाती जीवन में।। वो हँसना-हँसाना खेलना और व्यंजनों का स्वाद तुम्हीं हो जो हर पल रखती सबका ध्यान मुझे साथ रखती, हर काम में निपुण बनाती मेरी हर इच्छा पुरी करती छत पर धनिया पोदीना सुखाती गोभी व मौसमी सब्ज़ी बनाती मैं काम न करती तो रुठ जाती घर का कोई काम न आता मेरी बहन भतीजी हर काम में निपुण पापा से जा कर मेरी शिकायत करती मैं भी तुम्हें मनाना जानती हंस कर इधर-उधर भाग जाती तुम भी हँस कर चुप्पी साध लेती आज भी उम्र के इस पड़ाव पर पहुँच कर कितना ध्यान रखती हो हम सबका अस्वस्थ किसी का सुन कर परेशान हो जाती घरेलू इलाज का पिटारा खोल देती कितने नुस्ख़े सुना जाती कहती अपना ध्यान रखो खाने की शौक़ीन पाक प्रणाली की किताब रोज़ पढ़तीं जै...
उपकार
कविता

उपकार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घट-घट मिलता प्रेम तुम्हारा सुखा नुभव के साथ कैसे भूलू कैसे त्यागु मां तेरा उपकार उदर दरी से आया मैं तो अंधकूप का वासी जन्म प्राप्त कर मैंने पाई तेरे प्रकाश की लाली ममता मोह की मूर्ति माता देखिए दिव्य दृष्टि भी प्रेम स्नेह की अविरल धारा मैंने बहती देखी स्नेहा त्याग की प्रतिमा देखी माता के इन दृगोमे आओ रक्षा मां की शांति देखी माता के इन दृगोमे रूप कठोर भी तेरा देखा और सही झिड़कियां भी उन्हें में पाई माता मैने जीवन की चिंगारियां कैसे भूलू कैसे त्यागु मां तेरा उपकार परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निम...
हमारा कोई राम नही
कविता

हमारा कोई राम नही

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोई काम नही कोई धाम नही हम है तजे हुए हमारा कोई राम नही हमारा कोई राम नही क्या जिये हम क्या मरे हम पड़ता किसी को फर्क नही हमारा कोई राम नही हमारा कोई राम नही जैसे धरा का भार ऊपर किस्मत की मार हाथों को काम नही हमारा कोई राम नही हमारा कोई राम नही पीठ से चिपके पेट सभी कर रहे आखेट आंसू में भी खार नही हमारा कोई राम नही हमारा कोई राम नही दया का पाखंड है स्वार्थ उनका अखंड है आता सामदाम नही हमारा कोई राम नही हमारा कोई राम नही तुच्छ है हम बेमोल है हम हमारा कोई दाम नही हमारा कोई राम नही हमारा कोई राम नही बड़ी-बड़ी बातों से आती आवाज़ आँतो से बातें होती रोटी नही हमारा कोई राम नही हमारा कोई राम नही हम घिरे है दर्दो से है जिंदा मुर्दो से पर सांसे जाम नही हमारा कोई राम नही हमारा कोई राम नही हम आम है आम ही हमे रहना है किसी के खास नही हमारा कोई र...
परिवर्तन
कविता

परिवर्तन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** संसार में परिवर्तन अकाट्य सत्य है, जीवन है तो मृत्यु भी है निर्माण है तो विनाश भी दिन है तो रात भी राजा है तो रंक भी जो बनेगा बिगड़ेगा भी जन्मेगा तो मरेगा भी। परिवर्तन सतत चलने वाली अविचलित प्रक्रिया है, संसार के कण कण के साथ कभी न कभी परिवर्तन होगा ही। ये प्रकृति का नियम है, सजीव हो या निर्जीव यही सबके साथ है। इसमें बदलाव असंभव है चाहे तो सर्वशक्तिमान ईश्वर भी इसे बदल नहीं सकता। आज हंस रहे हैं कल को रोयेंगे भी अच्छे बुरे पल भी आते जाते रहेंगे। परिवर्तन प्रकृति का शास्वत सत्य है, ऐसा हो ही न ये तो नामुमकिन है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : सं...
माँ
कविता

माँ

प्रीति नेमा भैंसा, (नरसिंहपुर) ******************** कितने देवी और देवता की चौकी पर माथा टेका तुझे दिखाने घर की चौखट दर्द बहुत है माँ ने देखा माँ ही यतन-जतन से तेरे तन का मैल छुटाती है तन व धन के साथ ही बच्चों पर जान लुटाती है रात रात भर वो जागी है तुझको बैठे गोद लिए ख़ुद ना खाकर तुझे खिलाया कितने व्रत उपवास किये तुम कितने मचले थे रोये कितनी बार बीमार पड़े माँ ने सब कुछ वारा तुझ पर फिर भी उससे ही झगड़े गीले बिस्तर पर बच्चों संग अनगिनती रातें सोई तेरी हँसी देखने को वो अंदर से है बहुत रोई सभी देवताओं पर भारी माँ की प्यारी एक मुस्कान तेरी एक मुस्कान देखने उसने त्यागी कई मुस्कान माँ के वृद्धापन में उसको प्यार खूब तुम दे देना याद रहें जो उसने दिया है ब्याज सहित लौटा देना माँ के उपकारों का कर्जा जिसने चुका दिया दिल से तैर के पार निकल जायेगा भवसागर के दलदल से एक और माँ है ध्यान रहें यह वह हम सबकी ...
पुरुष
कविता

पुरुष

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** यादों की इस किताब में मैं किताब खोल कर बैठ गई। कुछ सोचने लगी, कुछ लिखने लगी। नारी की सब बातें करते, ममता त्याग को लखते। नर है तो नारायणी वह, ऐसा सुंदर भाव हे रखते। पुरुष तुम्हारा कांधा पाकर, मैं सशक्त हो जाती हूं। पिता बनके प्यार लुटाते, अपनी ना सोच बच्चों की सोच जाते। तब भी तुम संबल हो जाते। लालन-पालन में बच्चों के, अपनी सुध बुध तुम बिसराते। भाई रूप में तुमको पाकर धन्य धन्य हो जाती हूं। हर समय चिडा चिडाकर कर मुझको सबसे ज्यादा ध्यान रखते। पल में झगड़ा पल मे प्यार, सबसे मेरे लिए झगड़ते‌। रखते हो तुम मेरा ध्यान छोटे होने पर भी मुझ पर खूब रोब जमाते हो, भाई तुम अपना फर्ज खूब निभाते हो। पति रूप में साथ तुम्हारा, मुझे भावविभोर कर जाता। सुख दुख के साथी बन मेरे, हर बात को तुम समझाते हो। प्यार तुम्हारा इतना पाकर धन्य धन्य में हो जाती। बेटा रूप में...
मौन
कविता

मौन

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** बोलने में ऊर्जा का क्षरण होता, शक्ति जाती। मौन रहने से है, जल जाती तेरे अंतर की बाती। मौन रहने.... मौन रहकर झांक अंदर, तुझको प्रभु दर्शन मिलेगा। प्रभु के सुमिरन में रमा तो, मन कमल तेरा खिलेगा। भक्ति में यदि डूब पाया, ये बनेगी तेरी थाती। मौन रहने........... ऊर्जा संचित रही तो, जग की माया से बचेगा। माँ सरस्वती को रिझा पाया तो, गीतों को रचेगा। मीरा डूबी कृष्ण में ऐसी, की दुनिया उसको गाती। मौन रहने........ यदि है पानी प्रभ की भक्ति, तो तनिक एकांत पाले। माया के पीछे ही भागा, पड़ेंगे पावों में छाले। डूब जा प्रभु नाम मे, इससे ही जग से मुक्ति होती। मौन रहने .......... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
कहां हो आ जाओ तुम
कविता

कहां हो आ जाओ तुम

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** जगत के बिगड़े सारे काम कहां हो आ जाओ तुम राम। बड़ा अंधेरा छाया इस जग में है विपदा आन पड़ी पग-पग में। जीना सबका ही है हराम। जगत के बिगड़े सारे काम कहाँ हो आ जाओ तुम राम। छोड़ मानवता अभी तो प्राणी बोल रहा है स्वारथ की वाणी भुला दाम से न लौटे जान। जगत के बिगड़े सारे काम कहाँ हो आ जाओ तुम राम। देख कैसी घड़ी आ गयी आज हैं लाशें कंधों को मोहताज। फिर भी लगा मेला शमशान। जगत के बिगड़े सारे काम कहाँ हो आ जाओ तुम राम। परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
हर्षोल्लास
कविता

हर्षोल्लास

कु.चन्दा देवी स्वर्णकार जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी चिरैया सोन चिरैया मनभावन है वह पर्यावरण की प्यारी चिरैया पर्यावरण में नैसर्गिक ताकि न होती तो तो तुम गौरैया कहाँ से आती आज प्रदूषण में कहां चली गई तेरी कूक से ही तो कोयल कूक तेरी कोख से ही तो सरगम बना तेरी ची्ची की आवाज में ही तो वैज्ञानिक को वैज्ञानिकता दी और तेरी ही कूक से गायकों का अवतरण हुआ. आज ही केदिन अलका याग्निक का भी "हुआ तेरी "दिवस पर है वैज्ञानिक का भी दिवदिवस न्यूटन का पुन्यतिथि का दिवस शायद वह भी आज अचंभित है शायद वह भी इस प्रदूषित संसार से दुखी होकर चला गया भौतिकवादी इस दुनिया ने तुझे ७०% मार दिया और विश्व पटल पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह दिया आखिर क्यों आखिर क्यों? छत पर आंगन पर ,घर के अंदर बाहर, राज्य था हमारा तेरे साथ साथ होली खेलते तुम हमारे साथ से दाना चुगती बचपनमें हम तुम एक साथ थे अलमस्त इस जीवन की शै...
मौत का निमंत्रण
कविता

मौत का निमंत्रण

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी का कोई भरोसा नहीं इस सुखद वातावरण में मुस्कुराकर मुझे अलविदा कहना कोई ग़म न करना और न ही आंसू बहाना अगर आ जाये निमंत्रण मौत का शुक्रिया अदा करना उस ईश्वर का एक खुशहाल जिंदगी जीये इस लॉकडाउन महामारी में। जीओ और जीने दो सफल हो सभी की जिंदगी मानवता जिन्दा रहे हर इंसान में सुख दुःख में खड़ा रहें, एक दूसरे की भावनाओं को समझे व अपनी जिम्मेदारी को न लाये गगन कभी मलाल अपने मन में जीये स्वतंत्रता लिए इस लॉकडाउन महामारी में। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४ साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य प्रदेश लेखक संघ मंहू इकाई, महफ़िल ए साहित्य कोद...
प्रलय
कविता

प्रलय

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सुधरो मानव सुधरो अब भी प्रलय बाकी है, गूँज रहा है जो नाद महाकाली का, उसमें काल का अब भी नृत्य करना बाकी है। बहुत तोड़ी है अहम में लोगो की नसें, अभी काल के द्वारा तुम्हें तोड़ना बाकी है। समझते थे तुमको सब मानव, मगर बनकर रह गए तुम एक दानव। तभी रण चंडी का हुंकार भर संहार करना अभी बाकी है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कवि...