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कविता

कोहरा
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कोहरा

मनवीन कौर पाहवा ‘वीना’ पलावा (महाराष्ट्र) ******************** चाँदनी बिखरी पड़ी थी, कुछ शांत निखरी पड़ी थी। चाँद गुमसुम गुनगुनाता, गगन सुनता झूम जाता। ढाँप कर प्रत्येक छोर को, कोहरा बढ़ता ही जाता। मार्तण्ड भी कैसे उदित हों , गया कहीं छिप, वह सोचती। कमलनीय उदास बैठी, रवि किरण को खोजती। धुआँ-धुआँ हुआ प्रभात, प्राण हीन से सभी गात, भयभीत लहर से कांपते, स्थिर हुए सब जलाशय शाख़-पात चुप चाप खड़े, इस विपत्ति को भाँप रहे। कब छटेगा कोहरा, ताकि
मैं नीड़ से निकल सकूँ। नदी पर्वत चीर कर पुनः 
भ्रमण को फिर चलूँ। अंत होगा कोहरे का, नव भोर, फिर से आएगी। पा कर सुनहरा सूर्य प्रकाश, फिर से दुनिया हर्षाएगी। परिचय :-मनवीन कौर पाहवा ‘वीना’ निवासी : पलावा (महाराष्ट्र) शिक्षा : राजस्थान विश्विद्यालय जयपुर से, समाज शास्त्र और राजनीति शास्त्र मै स्नातकोत्तर व बी.एड सम्प्रति : सेवानिवृत...
द्रोपदी का सवाल
कविता

द्रोपदी का सवाल

बबिता अग्रवाल "कँवल" सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) ******************** मैं द्रोपदसुता द्रोपदी करतीं रही सवाल। मिला नहीं जवाब मुझे, दुखित मन विकराल। पांडव वंश की कुलवधु, हस्तिनापुर की आन। दास बनें रक्षक मेरे, धूमिल हो गई शान। राजा का धर्म भुला गये, जुएं में लगाया राज। प्रजा का सेवक था फिर, निभाया कौन सा अधिकार। स्वयं को हार दास बना, थी नीची जब नार। हस्तिनापुर की रानी को, कैसे लगाया दांव। दुर्योधन जंघा पीट रहा, कर्ण करें अट्टहास, भरी सभा में करें दुस्साहसन, चीरहरण का दुस्साहस। अटा पड़ा था महल सारा, ज्ञानी और विद्वान से। मौन खड़े थे सभी मुर्दे, जैसे खड़े हो शमशान । धर्म के राजा युधिष्ठिर, भीम सा बलसाली वर, पत्नी की रक्षा हेतु, क्यों हो गए आज निर्बल। तीरंदाज अर्जुन भी है, नकुल और सहदेव ज्ञाणी तुम। बिलख रही पांचाली फिर भी, चुप्पी साधे तुम। धर्मराज का भाई कृष्ण, अर...
तुम्हारे चले जाने से
कविता

तुम्हारे चले जाने से

मुकेश शर्मा कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम्हारे चले जाने से, उदास है घर, उदास है आँगन, उदास हैं साँसें, उदास है मन। मुरझाने लगी है आँगन की तुलसी, खिलती थी जो तुम्हारे स्नेह से। अस्त-व्यस्त से रहते हैं अब कमरे, दीवारें सभी घर की उदास हो रोती हैं। उदासियाँ और वीरानियाँ ही अब, फैली हुई हैं चारों तरफ। घर भी जैसे काट खाने को दौड़ता है, तुम्हारे चले जाने से। परिचय :- मुकेश शर्मा पिता : स्व. श्री रामदयाल शर्मा माता : श्रीमती किस्मती देवी जन्म तिथि : १५/९/१९९८ शैक्षिक योग्यता : स्नातक निवासी : ग्राम- डुमरी, पडरौना जनपद- कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
बचपन
कविता

बचपन

विनीता मोटलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राह अपनी में बनाने लगी हूं मंज़िल को भी पाने लगी हूं अपने हिस्से का आसमान चुनकर सुनो बचपन में बड़ी होने लगी हूं गुड्डे गुड़ियों का ब्याह रचाना कभी रूठना सभी मनाना खेल खेल में कुछ सीखने लगी हूं सुनो बचपन में बड़ी होने लगी है तुम से जुड़ी है मीठी सी यादें चुलबुली चंचल जाने कितनी बातें यादों की पोटली बनाने लगी हूं सुनो बचपन में बड़ी होने लगी हूं तुम मेरे साथ ताउम्र रहना कभी भी मेरा दामन न छोड़ना इसी वादे के साथ जीने लगी हूं सुनो बचपन में बड़ी होने लगी हूं राह अपनी में बनाने लगी हूं मंजिल को भी पाने लगी हूं अपने हिस्से का आसमान चुनकर सुनो बचपन में बड़ी होने लगी हो... परिचय :-  विनीता मोटलानी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) प्रकाशन : दो सिंधी पुस्तकें प्रकाशित हैं। जिसमें से एक लघुकथा संग्रह है एवं दुसरी कहानी...
गर खुद पर है विश्वास तो
कविता

गर खुद पर है विश्वास तो

हरप्रीत कौर शाहदरा (दिल्ली) ******************** गर खुद पर है विश्वास तो अड़े रहो। विश्वास वो ताकत है जो, उजड़ी हुई दुनिया में, प्रकाश जगा देती है इसलिए तुम चट्टान बनकर डटे रहो। उदार बनो पर इस्तेमाल मत होने दो, बस खुद पर रखो विश्वास, तो अड़े रहो। गर खुद पर हो विश्वास तो ताकत बनती है, गर दूसरों पर हो विश्वास तो कमजोरी बनती है। इसलिए खुद पर रखो विश्वास, अड़े रहो। खुद पर हो विश्वास तो चढ़ता जा, सफलता की सीढ़ियां, न हिम्मत हार, बनाएं रख तू हौंसला, विश्वास का दीप जलाकर रख, और बढ़ता जा तू प्रगति पथ पर, अडिग है जीवन की धार तुम, अड़े रहो, अड़े रहो, अड़े रहो। परिचय :- हरप्रीत कौर निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक...
दस्तक सुन दरवाजों में
कविता

दस्तक सुन दरवाजों में

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में। कदम रुकते थे बचपन में, बुजुर्गों की कुछबातों में गुजरी यादों के अतीत अब, कहर बने दिनरातों में बिना गुनाह के सजा पाती, ये जनता बेचारी है आस्तिक हो अथवा नास्तिक, बराबरी लाचारी है कुली दास किसान श्रमिक या, घरानों महाराजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में बेलगाम अश्व के मानिंद, भीड़ तंत्र से जो हारा मदिरा से जब सरकार चले, ठंडा होता है पारा मंथरा बुद्धि से लोग हुए, सियासत करम जारी है सकते में जब परिवार देश, गलती की बीमारी है कितने स्वजन खोये सबने, आशा जगी रिवाजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में बेबसी और लूटमार क...
कटाक्ष, व्यथा और संकेत
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कटाक्ष, व्यथा और संकेत

नारायण दोगाया राहड़कोट-खरगोन, (मध्य प्रदेश) ******************** देखो-देखो विकल मानव को प्राणवायु को तरसे जी, और विकट हो गई घटाएं अंबर दुख का बरसे जी... देव समझ बैठा खुद को ये विलासी मानव समुदाय, कुछ क्षण में ही देख लिया अपना स्तर है निरुपाय, स्वार्थ पूर्ति को प्रकृति में रेखाएं खींचे तुमने ही, अब क्या खट्टे क्या मीठे जो बोए, सीचे तुमने ही, हे! भारत के धीर वीर ना भटको लोभी माया में, परोपकार का भाव लिए बस चलो ईश्वर की छाया में, जो तुमने भाई¹ मारे है उन्हें बचालो अब एक बार, तर जाओगे जीवन से मां² रास्ता देख रही उस पार दुःख पीड़ा के दिन बीतेंगे सुखद समय भी आयेगा पतझड़ का मौसम निश्चित ही बरसती ऋतुएं लायेगा.... दो चार दिनों में फिर से आयेगा एक अभिराम, जब तक केवल नाम जपो जय घनश्याम, जय घनश्याम ।। {¹भाई~ प्राकृतिक संसाधनों के लिए} {²मां~ प्रकृति के लिए...
बूंद
कविता

बूंद

जयश्री सिंह बैसवारा सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) ******************** सहसा ही तूं जब गिरती है, धरती की सुखी छाती पर मस्त मलंग होकर तूं लहराती पेड़ों की डाली पर चारों तरफ है मौसम छाया, है तेरी मनमानी से खिल उठे चितवन में फूल बस तेरी मेहरबानी से चारों तरफ है फैली खूशबू, बस तेरे ही आने से है छायी हरियाली तेरे यूँ इठलाने से अनायास ही मन उठ कहता लिख जाऊँ कुछ तेरे कहने से छायी है जो ये हरियाली, तेरे जख्मों के भरने से परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा निवासी : सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवा...
जीवन चक्र
कविता

जीवन चक्र

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** विधाता ने श्रृष्टि बनाई और उसके नियम बनाये। जिन्हें पृथ्वीवासियों को मानना सबका कर्तव्य है। अब हम माने या न माने ये सब पर निर्भर करता है। क्योंकि विधाता ने तो सब कुछ आपको दिया।। भावनाओं से ही भाव बनतें है। भावों से ही भावनाएं चलती हैं। जीवन चक्र यूँ ही चलता रहता है। बस दिलमें आस्थायें बनाये रखो।। जीवन बहुत अनमोल है। हर पल को जीना जरूरी है। मूल सिध्दांत ये कहता है। खुद जीओ औरों को जीने दो।। स्नेह प्यार से मिलाकर रहो। ऐसी वैसी बाते मत बोलो। जिससे पीड़ा हो दोनों को। मधुर वाणी से मुंह खोलो।। हमने जितना समझ है बस उतना ही लिखा। बाकी पाठकों पर छोड़ दिया। अब इसे सराहे या ठुकरायें। इस कविता का भविष्य आपके हाथ में हैं। हमें अपनी प्रतिक्रिया आप जरूर ही दें। ताकि आगे भी मैं और लिखा सकू।। ये ही सुख शांति का एक ...
मौन संवाद
कविता

मौन संवाद

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँदनी ने चाँद से, यूँ पूछ ही लिया आज। बुझे-बुझे से तुम, क्यों रहने लगे हो उदास। चाँद ने चाँदनी को, दिया न कोई जवाब। नजरों को झुकाकर, और हो गया उदास। देख चाँदनी ने फिर, प्रश्न किया दूजी बार। मेरी धूमिल होती छटा, तुम्हे पसंद है मेहताब? चाँद ने हो सजल, चाँदनी को देखा इस बार। खिन्नता का लिए आभास, वो चिंतित, उदास। फिर बोली चाँदनी, मुस्कुराओ ना एक बार। कोई तो कारण होगा, जो इतने हो उदास। गम्भीर होकर चाँद ने, कही मन की बात। धरा बहन के दर्द से, मुझे होता रोज विषाद। जिंदा रहने के लिए वहॉं होते रोज फसाद। प्रतिदिन चीत्कारों से, हृदयविदारक निनाद। मुस्कुराकर बोली चाँदनी, ऐसा हुआ है कई बार। ये समय भी कभी, न रुका था, न रुकेगा इस बार। जो वक्त बुरा बीत रहा है, जल्द बीत ही जायेगा। सृष्टि का हर ...
इजा (मातृ) शतकम्
कविता

इजा (मातृ) शतकम्

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** उत्तराखंड राज्य में, पिथौरागढ़ नामका जनपद था। वहाँ पुल्लाके समीप मेंं, गजना नामक गाँव था ।।१।। ऋषिभरद्वाज के वंशज, जोशी कुल में उत्पन्न हैं। महाविप्र इन्द्रदेव जी, बृद्धप्रमातामह भूषण हैं ।।२।। लालमणी प्रमातामह तो, मातामह ईश्वरीदत्त हैं। मातामह पत्नी मातामही, विख्यात भवानी देवी हैं।।३।। लालमणी भवानी के घर में, सुकर्मफलों से कन्या हुई। वह कन्या इसलोक मेंं, पार्वती नाम से ख्यात हुई ।।४।। होकर स्वकुलभूषण भी, माता पिता से हेय हुई । ब्रणकष्ट अति सहकर भी, दक्षिणहस्त से पीडित हुई ।।५।। मातापिता का दुर्भाग्य था उनको, न सुता महत्व का भान हुआ। उनके अकरणीय कर्म से, निष्क्रिय दाहिना हाथ हुआ ।।६।। मौनसगोत्र शिरोमणि, दुन्याँ गाँव में निवासी हुए। बलभद्र जोशी नाम से, प्रसिद्ध प्रपितामह हमारे हुए।।७।। बलभद्र...
पृथ्वीराज चौहान
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पृथ्वीराज चौहान

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** हिन्द देश के परमवीर, आर्यावर्त के शान की, ये गौरवमयी गाथा है, पृथ्वीराज चौहान की। बारहवीं सदी में हिन्द ने, ऐसे वीर को पाया था। बिना अस्त्र-शस्त्र जिसने, सिंह को मार गिराया था। शब्दभेदी विद्या में कुशल, वह हिन्द का अभिमान था। वो बुद्धिमान और थे चतुर, उन्हें छः भाषाओं का ज्ञान था। संयोगिता थी संगिनी और मित्र थे कवि चंद्रबरदाई। दोनों मित्र थे साथ चाहे, कितनी भी विपदा आई। शत्रु सेना का शासक, मुहम्मद गौरी, अफगानी था। पृथ्वीराज ने युद्ध में, पिला दिया उसे पानी था। अपनी युद्ध कुशलता से, शत्रु को धूल चटाया था। इनके सामने गजनी का, सुल्तान भी थर्राया था। किया वार पर वार और हर बार मुँह की खाया था। पृथ्वीराज ने गौरी को, सत्रह बार हराया था। जब माफ किया उसे सत्रह बार, फिर से किया उसने वार। अबकी पृथ्वीरा...
जगतगुरू आदि शंकराचार्य
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जगतगुरू आदि शंकराचार्य

बिसे लाल खड़गवां (छत्तीसगढ़) ******************** धर्म और संप्रदाय पर जब था अंधकार का साया, तब केरल के कालडी़ मैं जन्मे महान संत। ८ वर्ष की उम्र में सन्यासी बने सबको दिया ज्ञान, कई ग्रंथ रचकर दिया सबको परम ज्ञान। सनातन धर्म स्थापित किया, अद्वैत चिंतन को पुनर्जीवित करके सनातन हिंदू धर्म का निर्माण किया। बिखरे भारतवर्ष को अध्यात्म मार्ग पर जोड़ा, पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण को चार मठों में जोड़ा। कई ग्रंथ लिखकर समाज को जागृत किया, सभी को अद्वैत वेदांत का दर्शन कराया। कम आयु में महान कार्य किए, धर्म सनातन का उत्थान किया। धन्य हुई धरती धन्य हुआ भारतवर्ष, भारतवासी कृतार्थ हूँ। परिचय :- बिसे लाल सम्प्रति : सहायक शिक्षक शासकीय प्राथमिक शाला मेंड्रा विकासखंड खड़गवां निवासी : खड़गवां जिला कोरिया (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं म...
मेरी वसीयत
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मेरी वसीयत

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** आज मैने मेरी वसीयत लिखी है मेरी वसीयत में कुछ डायरियां, कुछ कलम और मेरे जीवन भर के संस्कार लिखे हैं। वसीयत में मेरी इन्ही संस्कारों का बंटवारा किया है, मैंने प्यार, और खुशियों को जीवों में बांटा है। वसीयत का अर्थ एक है, भले ही पन्ने अनेक हैं, किसी में खुशी तो किसी में थोड़ा दर्द भी बांटा है। किसी पन्ने पर अपनेपन की परिभाषा तो किसी कागज पर मन की व्यथा मेरी वसीयत ही मेरी धरोहर है। इसे रिश्तों में ना बांट कर मासूम "जीवों" के नाम लिखी है, सुना है वसीयत के लिए लोग लड़ते झगड़ते हैं। मेरी वसीयत मासूम जीवों की तरह ही पाक साफ, और निर्मल है, ना झगड़े की जगह ना कुछ खोने का डर। मेरी वसीयत जीवों को जीव से प्यार के बंधन में बांधती है, परिभाषित करती है इस सत्य को कि खाली हाथ आए ...
आज़माना ठीक नही
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आज़माना ठीक नही

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** दोस्ती में दोस्तों को आज़माना ठीक नही बेवजह की बातों पे तैश खाना ठीक नही। कोई शिकवा, शिकायत हो तो हमसे कहिए यूँ सबसे मन की व्यथा सुनाना ठीक नही। हर समस्या का है हल आज नही तो कल छोटी-छोटी बातों पर घबराना ठीक नही। मुश्किल से ही गुंथते हैं रिश्तों के ताने बाने स्वारथ की बेदी पे रिश्तों को चढ़ाना ठीक नही। तुम सच्चे थे सच्चे हो ये भ्रम भी हो सकता है भ्रम में पड़कर औरों को झुठलाना ठीक नही। भूल किए हो भारी माफ़ी मांग भी सकते हो बरसों से निभते रिश्तों को दफ़नाना ठीक नही। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन म...
विश्वास का आधार
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विश्वास का आधार

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मात पिता एक बार मिले, होते विश्वास का आधार, निज बच्चे पर कुर्बान हो, लुटा देते हैं पल में प्यार। सृष्टि के हम साथ जी रहे, वो है विश्वास का आधार, बेशक कोई लाख दुख दे, जगत में मिले सुख हजार। विश्वास का आधार होते, भाई बहन का जग प्यार, भाई मिलता हर विपत्ति, जान देने को बहन तैयार। विश्वास का आधार कहे, शिक्षा दीक्षा देते जो गुरु, हर कदम पर देते साथ, होता है नव जीवन शुरू। विश्वास का आधार कहो, दोस्त, दोस्ती और संसार, भ्राता से कम नहीं दोस्त, जग का अमूल्य हो प्यार। लेन देन जब जन से हो, कहलाए विश्वास आधार, कहीं न कहीं झलकता है, गहन दोस्ती रूपी प्यार। विश्वास का आधार कहो, आपस में संबंधों का दौर, संबंध विच्छेद अगर होता, मच जाता है जग में शोर। रिश्तों नातों में छुपा हुआ, विश्वास का एक आधार, सं...
मृत्यु
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मृत्यु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मृत्यु क्षण-क्षण घूम रही दिखाकर ख़ौफ़ न जाने क्यों ? इस धरा को चूम रही। न जात देख रही है न धर्म देख रही है, बस हर किसी को अपनी क्रूर नज़रों से चूर कर रही है। किसी बिगड़े हुए आशिक की तरह, न किसी की सुनती है न किसी की मानती हैं। अपनी ही निगाहों से अपनी ही मर्जी से हर किसी को घूर रही हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
बेटियां होगी सुरक्षित
कविता

बेटियां होगी सुरक्षित

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक अख़बार में निविदा विज्ञापन दहेज़ के दानव के विनाश हेतु चाहिए एक बाण ऐसी निविदा पढने के बाद दिल को हुआ आराम। पूर्व परिदृश्य में बहुए उत्पीड़न का शिकार होती थी ऐसे हादसों के कारण गावों के कुएं की चरखियां, घट्टीयों की आवाजें ख़त्म होती थी। अब बहुए दहेज उत्पीड़न से जली या जलाई जा रही है ऐसे हादसों के कारण शहरों के मोबाइल संदेश, उत्पीड़न रोकने की आवाजें समाधान हेतु पहुँच नही पा रही। बाजारों में फ्रेमों के और कब्र के पत्थरों के दाम यकायक बढ़ते जा रहे सूने घर और आँचल में बच्चे छुपे कैसे छुपा-छाई का खेल वो भी खोते जा रहे रिश्तों में कड़वाहट, लालची युग का विष घुलता जा रहा। लगने लगा जैसे दहेज़ के लालची दानवों का दायरा बढ़ता जा रहा बढ़ते हुए दायरों को न रोक पाने का कारण यह भी हो सकता कलयुग में बाण चला...
दो वक़्त की रोटी
कविता

दो वक़्त की रोटी

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** किसानों की मेहनत भी क्या खूब रंग बिखेरती है, लहू पसीना बनकर उनके रगों से जब निकलती हैं,, किसानों की मेहनत भी क्या खूब रंग बिखेरती है, लहू पसीना बनकर उनके रगों से जब निकलती हैं,, जब नंगे बदन किसानों की उस कड़ी धूप में तपती है, तब जाकर इन महलों में दो वक्त की रोटी बनती है ।। दो वक्त की रोटी बनती हैं ।। करके मेहनत खेतों में, वो फसलें भी खूब उगाते है, बंजर भूमि जो सोया है, उसको उपजाऊ बनाते हैं। खेतों से अन्न ले जाकर, हर शहर मे वो पहुँचाते है, इसीलिए इस जग में वो एक अन्न दाता कहलाते है। उनकी ही तो श्रेय से हर घर दीप-दीवाली मनती है तब जाकर इन महलों में दो वक्त की रोटी बनती है ।। दो वक्त की रोटी बनती हैं ।। खेतों में जब जब फसलें उपजाऊ हो जाती है, अन्नदाता के मन मे खूब खुशियां लहलहाती है । हुवे भोर तो खेतों में कोयल भी ...
आज का भारत
कविता

आज का भारत

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** जहाँ कभी पुष्प वाटिका हुआ करती थी, वहाँ आज लाशों का अंबार लगा हुआ है , जो जमीन कभी सोने की चिड़िया होती थी, वहाँ आज लाशों का विछावन बिछा है , जो कभी विश्व का भाग्य विधाता हुआ करता था, वो आज भिखारी बना घुमाता है, जहाँ कभी मंदिरो मे मेले लगते थे, आज वहाँ शमशानों पर मेले लगते है, जहाँ कभी सभी धर्मो का सम्मान हुआ करता था, आज वहाँ धार्मिक कट्टरता हुआ करती है, जो कभी साधु-संतों की नगरी हुआ करती थी, आज वहाँ आज बाजार बना बैठा है, जहाँ कभी ईमानदारी की आवाजें गूँजती थी, आज वहाँ बेईमानों का अड्डा हुआ करता है, जहाँ के ज्ञान व विज्ञान की कभी विश्व पूजा करता था, आज वहा अज्ञानता का पर्याय बना बैठा है, जहाँ कभी दानी ज्ञानी महाराजाओं का राज हुआ करता था, आज वहाँ अनपढ़ बेईमानों का राज हुआ करता है, जहाँ क...
जिंदगी का फ़लसफ़ा
कविता

जिंदगी का फ़लसफ़ा

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** जिंदगी का फ़लसफ़ा आओ तुम्हें मैं जिंदगी का फलसफा समझाऊ़ँ कुछ एहसास भरे अच्छे पल याद दिलाऊं। भरोसे वाले चाहत भरे दोस्त बनाऊं, इंतजार करूं वक्त का मै फैसला कोई ना सुनाऊं। गम में ना होऊं परेशान, हिम्मत रख‌ में मुस्कुराऊ़ँ इंसानियत कीजरूरत है को‌रोना काल चल रहा है, ख्याल रखें सभी का, लम्हे तो गुजर जाएंगे। मेहनत, मोहब्बत से अपना बना मास्क लगा, थोड़ी दूरी बना ले। नाराजगी ना मन में लाइए, ओम नाम उचारिये। प्यार भरे गीत गाइए किस्मत पर भरोसा रख मेहनत की चाबी घुमाइए। रिश्ते अनमोल है थोड़ा, निभकर संभालिये। समझौता प्यारा है, जिंदगी का एहसास हमारा है तमन्नाओं को यूं ना मारिए। उम्मीद, विश्वास की डोर से पूरा करते जाइए। वादा है परमपिता का आपसे, जिंदगी प्यार भरा गीत है प्यार से गाइए। एक्सप्रेशंस, यादें, जबरदस्त जिंदगी इन स...
मुट्ठी भर धूप
कविता

मुट्ठी भर धूप

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ ******************** किसने कहा तुमसे अपराध मेरे रगों मे बहता है मेरे खून का रंग सफेद है तुम्हारे आन्तरिक दुर्बलता को महिमा मंडित करती हैं ये संकीर्ण भावनाएं अपने स्वयं के कल्मशो से प्रेरित तुम चच्छुहीन चिंतन करने के अभ्यस्त हो अत:सोच भी नही सकते की मेरे भी खून का रंग लाल है मेरी भी अस्थियां तुम जैसी हैं फिर भी मैं तुम्हारी संवेदनाओं का अभिनंदन करता हूँ , जिसमे मेरे लिये अपावन ही सही स्थान तो है हमारे बीच विभाजक हैं अन्शुमाली की दस्यू किरणें जो तुम्हारे जन्म के साथ संचित हो जाती हैं तुम्हारे खातों मे किन्तु मेरे जन्म पर गुमनाम पिता की याद मे आँसू बहाती माँ, तड़प उठती है और मुझे पहचान नही देती गौरव से शीष उठाने का अधिकार नही देती धरती मुझे बिछौना देती है परन्तु संदेहों के शहर मे रोटी नही देती। दुनियाँ के कोलाहल मे 'मुट्ठी भर...
सेवादार बनिए
कविता

सेवादार बनिए

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए आज हम सब अपनी संस्कृति और परंपरा का एक नया अध्याय लिखें, सेवाधर्म का नया आयाम गढ़ें पुरातन व्यवस्था को ध्यान में रखकर ही सही सेवाधर्म का नया पाठ पढ़ें । कोरोना महामारी की जब हर ओर दहशत है, सेवाभाव से आओ मिलकर इसका प्रतिकार करें। दो गज दूरी का संदेश फैलाएं मास्क, सेनेटाइजर कितना जरूरी है ये सबको बताएं, समझाएं,। रोजी रोजगार की समस्या बहुत कठिन है लेकिन, कोई भूखा न रहे आसपास हमारे हम सब की जिम्मेदारी है कि उसके खाने का प्रबंध कराएं। सबका टीकाकरण हो ये सुनिश्चित कराएं, कोरोना पीड़ितों का मनोबल बढ़ायें। अफवाह, भ्रम, दहशत न फैलने पाये जनमानस को इससे हम सब बचाएं। कोरोना रोग है महामारी है, हौसला रखें, डरें नहीं, इलाज कराएं ठीक हो जायेंगे विश्वास दिलाएं, ये दौर भी गुजर जायेगा सबके मन मे...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** मनुज हे, प्रकृति अपरंपार! प्रकृति की शक्ति निहित हैं, वायु ऊर्जा जल थल अकास! और अनंत हैं सूक्ष्म शक्तियां, सबमे समाहित इनकी उजास! जगत में जीवन का आधार! मनुज हे, प्रकृति अपरंपार! जगति ने हैं दिया मनुज को, आनंद का अक्षय वरदान! पर भौतिक तृष्णा ने इसको हैं बना दिया दुखो की खान! न कर खुशियो को तार-तार! मनुज हे, प्रकृति अपरंपार! कुदरत से मिली जो शक्ति, उससे अक्षयपात्र को भरले! स्वयं विकास के हेतु मनवा, प्रकृति से बस प्रीत तू कर ले! न कर इस शक्ति का व्यापार! मनुज हे, प्रकृति अपरंपार! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
प्रकृति और हम।
कविता

प्रकृति और हम।

स्वरा त्रिपाठी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ प्रकृति से प्रेम करे हम। आओ प्रकृति से प्रेम करे हम।। जिसको भूल गये हैं हम। आओ प्रकृति से...........।। वृक्ष लगायें बरगद, पीपल और नीम। ये हमको आक्सीजन देगें, इससे जीवन पाएँगे हम।। आओ प्रकृति से... पेड़ नहीं तो जीवन नहीं। पेड़ नहीं तो आक्सीजन नहीं। पेड़ों से मिलता आक्सीजन।। आओ प्रकृति से... ईश्वर हमसे लेते नहीं आक्सीजन की कीमत। इसके लिए कीमत क्यों चुकाएँ हम ? आओ पेड़ लगाएँ हम।। आओ प्रकृति से प्रेम करें हम। आओ प्रकृति से प्रेम करें हम।। परिचय :-स्वरा त्रिपाठी उम्र : ७वर्ष कक्षा : ३ निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...