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कविता

सिसकियां
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सिसकियां

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** हर तरफ अंतहीन तबाहियों का दौर है, लेकिन यहां चारों ओर अजीब शोर है, परमात्मा को टुकड़ों-टुकड़ों में बांट कर, धर्म के ठेकेदार एक दूसरे को बताते चोर हैं, इंसानियत से जिनका कोई नहीं वास्ता, ऐसे ही सिरफिरों का हर जगह जोर है, मजहब की दीवारें खड़ी कर दी जिन लोगों ने, वही बताते रहे, कौन चौकीदार और कौन चोर है... तुम्हारी ताकत से हमें कोई शिकवा नहीं, हमारी मोहब्बत में फिर जहर क्यों घोलते हो, कुर्सी की लड़ाई में तुम सिरफिरे बनकर, खतरे में हमारा धर्म, क्या खूब बोलते हो, फिरंगियों की दास्तां से ज्यादा दर्द अब होता है, राजा रहते महलों में, आम इंसान भूखा सोता है, तकलीफ हमारी दूर करने का वादा खूब होता है, बाबा पर उठती अंगुली, बापू नोटों में छप रोता है, परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार...
बरखा का स्वागत
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बरखा का स्वागत

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** सांवर-सांवर रहे हैं मेघ सज धज के खड़े हैं, नव के आंगन में ढेर। समीर अब नाच रही है लेकर बयार की बारात, गली-गली थिरकने लगी, धरा के आंगन की, खड़कने लगे खिड़कियों के द्वार, कपाट। सांवर-सांवर रहे हैं मेघ... तरु इठलाने लगे, शाखाओं के झंडे लहराने लगे, सौंधी बयार के साथ। मेघ उमड़-घुमड़ रहे हैं, धरा का जल अभिषेक करने को, आंधी चल रही है जैसे अल्हड़ चंचल जवानी। तपीश अब भाग रही है, सरपट सिर पर पैर रख। नदी की लहरें अब घूंघट उठा रही हैं, इशारों इशारों में बरखा को बुला रही है। दूर क्षितिज किनारे दामिनी कर रही है तड़िता का नाच देखो प्रकृति सुंदर गीत गा रही उज्जवल सी बरखा आ गई। परिचय :-  अन्नू अस्थाना निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश प्रेरणा :- कवि संगोष्ठीयों में भाग लेते थे एवं कवियो...
बजरंगबली का गुणगान
कविता

बजरंगबली का गुणगान

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** हमारे वीर महाबली बजरंगबली की है यही पहिचान, लाय संजीवनी बचाये श्री राम के प्यारे लखन की जान। ये इस दुनियाँ में है बुद्धिमान, बलवान और महान, मेरे इस महाबली बजरंगबली को पूजे सारा जहाँन। हिमालय पर जाकर जिसको संहारे वह था माल्यवान, नदी में मगरमच्छ का करके संहार उसे गये जान। हमारे हिंदु, हिंदी और हिंदुस्तान की है ये शान, इनको पूजे सदा हिन्दुस्तान की सारी नर-नारी, ये बजरंगी संकट में हमेशा रक्षा करे हमारी। बजरंगबली सीता जी की खोज करके श्रीराम को बतलाये, प्रभु श्री राम ने हनुमंत को अपने सह्रदय गले लगाये। ये बजरंगली सीता जी लंका से लाने की कसम खाये, बानरी सेना हनुमान जी व श्रीराम का जयकारा लगाये। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह ...
प्यारी मां
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प्यारी मां

सपना दिल्ली ************* आपके होने से ही वजूद है मेरा नौ महीने कोख में रख मेरे लिए ही तो हर दर्द सहा आपने... आपके हाथों में ही पाया मैंने पहला स्पर्श आपकी ऊंगली पकड़ कर चलना मैंने सीखा हर बुरी नज़र से बचाकर आपने आंचल में छिपाया .. हालात से नहीं डरना मुकाबला करो डटकर आपने  मुझे सिखाया.... गलती करने पर मुझे डांटा कभी प्यार से गले लगाया कभी मां बनकर कभी दोस्त बनकर परेशानियों  को आपने सुलझाया... आगे चलकर ठोकर न खाऊँ बिना सहारा लिए मुझे बढ़ना सिखाया इसलिए... हिम्मत जब हारने लगी कभी हौंसला बढ़ाकर साहस दिया.. मंजिल छू लूं मुझे उस काबिल बनाया । परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्...
प्रेम
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प्रेम

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** प्रेम की न कोई भाषा है न कोई होता संवाद, यह है केवल अनुपम, सुखद एहसास, न होता कोई अनुबंधन न होता कोई इकरार , यह तो है बस अनुभूतियों का पावन ज्वार, मौन का है यह अद्भुत संसार, वात्सल्य का है अनुपम संचार, प्रेम जीवन सागर में लहरों सा उमड़ा है, प्रकृति के अणु अणु में रचा बसा है सब में अन्तर्हित रह, यह भाव चरम है परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
कवच समान है पिता
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कवच समान है पिता

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बच्चे की माता गर है प्रथम शिक्षिका तो कवच समान है पिता भी उसी का तभी तो नाम के आगे उसके जुड़ा ही रहता है नाम पिता का ll१ll माता होती गर धरती उसकी पिता होता आकाश उसी का संस्कार यद्यपि देती माता संघर्ष उसे पिता सिखाता ll२ll कभी आग का गोला बनता श्रीफल-सा कभी कोमल लगता संवेदनाओं के बंधन बांधे होता रिश्ता पिता-पुत्र का ll३ll उंगली पकड़कर उसे पिता बाहरी दुनिया परिचित कराता प्रसंग विशेषी सख्त और कठोर बनने की सीख ही देता ll४ll तपा-तपा कर कुंदन जैसा पिता स्वयं प्रकाशी उसे बनाता अपने से भी आगे निकलता पुत्र देखने की ख्वाहिश रखता ll५ll परिचय :- माधवी तारे निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकत...
योग और जीवन
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योग और जीवन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** संत विकसित ध्यान की एक पारंपरिक पद्धति! योग नियंत्रित करने का साधन तन मन गतिविधि!! पतंजलि ऋषि ने किया शुभ योग का आविष्कार! स्वस्थ रखे तन को योग, मन को दे शुभ्र विचार!! योग है तन मन चेतना आत्मा का संतुलन! करे मानसिक भावनात्मक व्याधियों का शमन!! इडा पिंगला सुषुम्ना शक्तिशाली ऊर्जा स्रोत! ये नाड़ी जो साधा, हुआ परमात्मा- संयोग!! ऋषि-मुनियों ने किया बहुत सदा जीवन में योग! कलि-युग में उपयोगी बड़ी, प्राणायाम सुभोग!! तन मन को यह जोड़ता परमात्मा से संयोग! तन मन को देता ताजगी और भगाता रोग!! नित समय पर कर इसे, सुंदर स्वास्थ्य पाएंँ! नित योग अति लाभकारी, सभी इसे अपनाएँ!! प्राणायाम और आसन योग के प्रमुख अंग! इन्हें अपनाकर जीतेंगे जीवन की हर जंग!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमरा...
योग गीत
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योग गीत

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** योगासन अपने जीवन में लाएँगे, जीवन अब सबका सुखमय बनाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। पतंजलि के योग से हो रोग की मुक्ति, सूर्य नमस्कार से हो चित्त की शुद्धि। सर्वेभवन्तु सुखिनः का गीत गाएँगे, धरती को देखने गगन के देव आएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। कपल भाँति, भ्रामरी, अनुलोम और विलोम, बहिर-अंग योग आसन के ये यम नियम। प्रत्याहार-ध्यान से आरोग्य पाएँगे, स्वस्थ तन-मन पुष्ट काया पाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। मुनियों ने भारत में योग सिखाया, योग से प्रथम सुख निरोगी काया। स्वस्थ योगी शांति-दूत जग जगाएँगे। कल्याणकारी विश्व धरोहर बनाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर ...
फिर दहक उठे हैं पलाश वन ….
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फिर दहक उठे हैं पलाश वन ….

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** फिर पलाश-वन दहक उठे हैं, नयी आग के।। धधक उठे हैं बहुत दिनों के बाद दबे शोले, स्वेद, रक्त बनकर मचले फिर फिर बाजू तोले; सघन तमिस्रा से भिड़ते पल-पल चिराग के।। धरती-सी धानी चूनर में श्रमसीकर के बोल, अपने हाथों तय करने अपनी मेहनत का मोल; निकल पड़े मजबूत इरादे, नये, जाग के।। चट्टानों से टकराने को ये आतुर सीने, निकल पड़े हैं अपने हिस्से की दुनियाँ जीने; फन पर चढ़कर नाचेंगे कालिया नाग के।। फिर पलाश-वन...... परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
अमृत
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अमृत

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अमृत अगर पाना है, तो विष भी पीना ही है l धन्य धरा हो जाती है, जब जन पुरुषार्थी आते है l माना जीवन दुःसहय है, नहीं वह विष से कम है l नीलकंठ बन बढ़ना है, कठिन को सरल बनाना है l l तपता सोना, तपता लोहा, तपता सूरज देव है l तप तप कर ही ऋषि मुनि ने, पाया जीवन का धैय है l l अमृत अमृत अगर पाना है, तो विष भी पीना ही है l धन्य धरा हो जाती है, जब जन पुरुषार्थी आते है l माना जीवन दुःसहय है, नहीं वह विष से कम है l नीलकंठ बन बढ़ना है, कठिन को सरल बनाना है l l तपता सोना, तपता लोहा, तपता सूरज देव है l तप तप कर ही ऋषि मुनि ने, पाया जीवन का धैय है l l परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री मा...
दस योगासन
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दस योगासन

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** सूर्य की पहली किरण से पहले उठ जाइये सिधे प्रकृति के बीच किसी हरे मैदान में जाइये थोड़ा टहलकर सूर्य नमस्कार करिये लगभग सभी कष्टों को स्वयं हरिये हरि घास पर पदमासन में बैठे जाइये ध्यान लगा समस्त चक्रों को जगाइये मन को एकाग्र व शांतिमय बनाइये प्राणायाम कर नसों को जगाइये पैरों को फैला भुजंगासन लगाइये रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाइये सुन्दर चेहरा युवा रूप कब्ज व अपच से छुटकारा पाइये पैरों को ऊपर उठा सर्वांगासन लगाइये दमा और हॄदय रोग भगाइये कोशिकाओं का पोषण कर स्वर्गीय सुख कि अनूभुति पाइये फिर शीर्ष आसन लगाइये सर्वांगासन आसन सा ही लाभ पाइये सिधे खड़े होकर हाथों को ऊपर उठाइये तुरन्त अपनी मुद्रा ताडासन में लाइये मोटापे के शिकार चरबी घटाइये बच्चों से करा उनकी लम्बाई बढाइये हाथो को पीछे जमीन पर टिकाइ...
अबहू से
कविता

अबहू से

संजय सिंह मुरलीछापरा बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** संजय नाहके बितवल जनमवा, अबहू से हो अबहू से! कुछ करना जतनवा अबहू से हो अबहू से! स्वारथ लागि करम सब कइल, दिन दुःखिअन के काम ना अइल, धरम करम नाहि भइल एह तनवा अबहू से हो अबहू से! कुछ करना जतनवा अबहू से हो अबहू से! लख चौरासी जीव जगत मे, सबसे सुन्दर मानुष जग मे, परमारथ मे लगाई ल तू मनवा अबहू से हो अबहू से, कुछ करना जतनवा अबहू से हो अबहू से! नाश्वर जड़ चेतन बा इहवा, मुक्ति के साधन मानुष तनवा, स्वारथ तजी कर हरि के भजनवा अबहू से हो अबहू से कुछ करना भजनवा अबहू से हो अबहू से संजय नाहके बितवल जनमवा अबहू से हो अबहू से, कुछ करना जतनवा अबहू से हो अबहू से! परिचय :- संजय सिंह पिता : स्व. लाल साहब सिंह निवासी : ग्राम माधो सिंह नगर मुरलीछपरा जिला बलिया उत्तर प्रदेश सम्प्रति : प्रधानाध्यापक कम्पोजिट विद्...
दर्द को भीतर छुपाकर
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दर्द को भीतर छुपाकर

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** दर्द को भीतर छुपाकर, बच्चों संग मुसकाते। कभी डाँट फटकार लगाते, कभी-कभी तुतलाते। हँस हँसकर मुँहभोज कराते, भूखे रहते हैं फिर भी। स्वच्छ जल पीकर सो जाते, गोद में लेकर सिर भी। आँधी तूफाँ आये लाखों, चाहे सिर पर कितने। विशाल वक्ष में समा लेते हैं, दर्द हो चाहे जितने। बच्चों की खुशियाँ और, माँ की बिंदी टीका। पड़ने देते किसी मौसम में, कभी न इनको फीका। पर कुछ पिता ऐसे जो, मानव विष पी जाते। बुरी आदतों में आकर, अपनों का गला दबाते। माँ की अन्तरपीड़ा और, बच्चों की अंतः चीत्कार। जो न सुनता है पिता, समाज में जीना है धिक्कार। माँ तो है सृष्टिकर्ता पर, पिता है जीवन का आधार। अपनी महिमा बनाये रखना, हे! जग के पालनहार।। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
एक पिता
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एक पिता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** अंदर ही अंदर घुटता है, पर ख्यासे पूरा करता है। दिखता ऊपर से कठोर। पर अंदर नरम दिल होता है। ऐसा एक पिता हो सकता है।। कितना वो संघर्ष है करता पर उफ किसी से नही करता। लड़ता है खुद जंग हमेशा। पर शामिल किसी को नही करता। जीत पर खुश सबको करता है। पर हार किसी से शेयर न करता। ऐसा ही इंसान हमारा पिता होता है।। खुद रहे दुखी पर, घरवालों को खुश रखता है। छोटी बड़ी हर ख्यासे, घरवालों की पूरी करता है। फिर भी वो बीबी बच्चो की, सदैव बाते सुनता है। कभी रुठ जाते मां बाप, कभी रुठ जाती है पत्नी। दोनों के बीच मे बिना, वजह वो पिसता है। इतना सहन शील, पिता ही हो सकते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यर...
धन्यवाद पापा
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धन्यवाद पापा

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** हमारे पापा तेज़ स्वभाव एवं स्वाभिमान वाले हैं एक बार जो बोल दे वो पत्थर में लिखें के समान है कभी नहीं करते उपवास पर इनके कर्म उपवास से बड़े होते हैं रोज जाते मंदिर और मंदिर में कभी कुछ दान ही करते पापा कभी ऐसा हो नहीं सकता बिना रोटी गाय को दिए गए हो दुकान पापा कभी ऐसा हो नहीं सकता किसी ने कुछ मांगा हो तो उसको दिए ना हो किसी की खुशी में कभी नहीं जाते मां भाई को भेज देते पापा पर दुख हो या विपत्ति मैं सबसे आगे होते हो आप पापा बेटा-बेटी में कभी भेद तो करते हम नहीं देखे आपको पापा फिर बेटी हो गई सुनकर क्यों परेशान हो जाते हो आप पापा पूरे परिवार को एक डोर में बांध रखे हो आप पापा सब जानते हैं इस बात को पूरा परिवार आप ने संभाला है पापा आपकी बेटी में भी बहुत कुछ सीखा है आपसे पापा स्वभाव, स्वाभिमान ,सच्चाई ...
मेरा गांव
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मेरा गांव

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ********************  दृश्य एक कितना सुंदर मेरा गाँव....... हर आँगन में तुलसी खिलती, और चूल्हों पर गाकड़ सिकती! कुछ ही बड़ो के घर हैं पक्के, शेष सभी के कच्चे ठावँ!.... कितना सुंदर मेरा गांव........ भोर सवेरे सब उठ जाते, कृषक मजदूर खेतो में जाते! दिनभर सब करते है मेहनत, नही देखते धूप और छावं!... कितना सुंदर मेरा गांव........ चौपालों पर सत्संग हैं होता, तबला ताल मृदंग भी होता! सुबह सुबह दिंडी में जाने, भक्त निकलते नंगे पावँ,! कितना सुंदर मेरा गांव......... सर पर दिखती टोपी गांधी, यहां नही फैशन की आंधी! सदियो से चल आ रहा, धोती बंडी कृषक पहनाव! कितना सुंदर मेरा गांव..... घर घर शिक्षा अलख जल रही, नारी हर क्षेत्र आगे बढ़ रही! जीवन के हर पहलू में अब वे, कमा रही हैं अपना ना! कितना सुंदर मेरा गांव..... यह दौर एक सघन विस्...
अपनी धुन में जीलो
कविता

अपनी धुन में जीलो

बृजेश कुमार सिंह करण्डा, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कहते है सब लोग, समय बङा बलवान.. मन मे आया एकदिन विचार अति महान्.. क्यूँ न मै भी समय का साथी बनजाऊॅ.. उसके साथ-साथ चलकर बलवान क्यूँ न कहलाऊॅ.? फिर क्या था जीवन में..? उठना चलना 'समय' के संग मे.. 'समय' संग चलने के चक्कर मे, कितनी खुशियों को खोया मैं.. जीवन को गमों मे डुबोया मैं.. चलते-चलते थक हार गया.. व्यर्थ मे ये जीवन गुजार गया.. आगे बढता 'समय' यह ताङ गया.. मेरा हमराही अब तो हार गया.. 'समय' ने मुझको यह समझाया, "मेरे साथ-साथ क्यूँ चलता आया.. मेरी नियति तो चलना है .. पर तुमको तो एकदिन मरना है.. मेरा साथ पकङने से सोचो तुम क्या पा जाओगे ? जो कुछ कमाया तूने सब छोड़ यहीं पर जाओगे.. अपनी धुन में जीलो प्यारे.. ये जीवन न दुबारा पाओगे..!!" परिचय :-  बृजेश कुमार सिंह निवासी : करण्डा, गाजीपुर...
बेटी की चिठ्ठी
कविता

बेटी की चिठ्ठी

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** कितना तड़पी थी तू माँ, जब तूने मूझे जन्म दिया। कोई मर्द न सह पाये दर्द इतना तूने सहन किया। आई जब इस दुनिया मे माँ तूने मुझको थामा था। भर कर अपनी बांहो में प्यार मुझ पर वारा था। सीने मुझे लगा के अपने, अपना दूध पिलाया था। चुम के मुझको झूला बांहो में, चैन से मुझे सुलाया था। पर ये दुनिया समझ न पाई, तेरे मेरे रिश्ते को। हुई क्या गलती तुझसे मां, जो जना तूने एक बेटी को। छीन को तुझसे मुझको मां, जब कूड़े में मुझे फेंक दिया। वो निर्दयी ओर कोई नही, मेरा अपना पिता बना। रो-रो जब मैंने आंखे खोली, चींटिया मुझे खा रही। कोई न था मुझे उठाने वाला, चीखें दबती जा रही। भुख ओर दर्द ने मुझे कुछ देर में, गहरी नींद में सुला दिया। सुबह जो आई में इस दुनिया मे, शाम तक फिर मुझे विदा किया। जानती हूं मां तू आज भी मुझको, याद करके रोती...
कुछ हो गया
कविता

कुछ हो गया

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नयनों से निकला अंजन ध्यान नहीं, बस धीरे से लगा कुछ खो गया वाकपटुता व्यवहार से व्यतीत वर्ष बदलाव के बेगैरत बीज बो गया टीस चोट स्नेह अंतहीन विवाद भाव प्रभाव सजल नयन रो गया उत्सव भी पाये उडते पक्षी सदृश्य उत्साही हृदय-व्यथा रुदन, वो गया कल आज कल का वक़्त पुष्प देखते, सूंघते, समझते ही खो गया सोचा नहीं कभी कुछ जीवन में आहुति नीति पुरुषार्थ सब धो गया साहस मंजर कभी सैलाब सा था अंतर्मन उड़ान को रोग हो गया परस्पर भाव बोधगम्य जीवन भी यादों की ताकत देकर सो गया। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता...
घड़ी भर ही सही
कविता

घड़ी भर ही सही

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** घड़ी भर ही सही, मिले दोस्त कही, यादें हो जाये ताजा, लगे जमाना सही, बहने लगे आंखों से, कीमती वो आंसू, सच्ची दोस्ती इस, जमाने ने यह कही। घड़ी भर ही सही, आये वीरों की याद, गोली उन पर चलाई, वो सारे जल्लाद, वीरों ने खून बहाया, नहीं की फरियाद, नाम रहेगा जहां में, सदियों के भी बाद। घड़ी भर ही सही, दिखाये दरियादिली, हर जन कह उठे, सुख की घड़ी मिली, हर देशभक्तों की, होती है इच्छा दिली, खुशियां देखकर, हर फूल कली खिली। घड़ी भर ही सही, मिले हर जन खुशी, दर्द मिटे पल में, कोई नहीं रहेगा दुखी, मालिक की नजरें, हर जन रहे इनायत, ईश्वर के सदा सामने, नजरें रहे यूं झुकी। घड़ी भर ही सही, प्रभु मिल जाये आज, उस घड़ी पर ताउम्र ही, मुझको हो नाज, खुशियां नहीं समा पाये, यह दिल मेरा, उस दाता का रहा है, इस जहां में राज। घड़ी...
रंग रसिया
कविता

रंग रसिया

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** तुमसे प्यार किया रंग रसिया, बसे हो मेरे मन बसिया। दिल, धड़कन, आत्मा में तुम हो, जित देखूं ‌उत ओर तुम हो। ओ मुरारी ओ त्रिपुरारी, तुम बिन सुनी-सुनी गलियां कहां छुपे हो आओ मोहन, नजरों से अपना बना लो मोहन। तुमसे प्यार किया रंग रसिया, तेरी मुरलिया की धुन खींचे। अपने प्यार में पागल कर दे, मैं बावरिया घर छोड़ के आई। दूध उफनता छोड़ के आई, रंगरसिया तू न समझे। तेरी छवि मोहे पागल कर दे। मन में मेरे आकर्षण भर दे। खींची आऊं मैं ‌दर पर तेरे, प्यार का मीठा रंग‌‌ वो भर दे। रंग रसिया मेरे मन बसिया, तेरी छवि मोहे दीवाना कर दे।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
पिता का घना साया
कविता

पिता का घना साया

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जीवन की उजली धूप में, पिता का घना साया पीपल की घनी छांव, कड़ी धूप में शीतल छाया दुख के बादलों में गर, कभी तुम घिर जाओ डगमग डगर जीवन की, राह चलते तुम गिर जाओ उंगली थाम के तुम्हारे पिता ने ही मंजिल तक पहुंचाया दिन रात करके मेहनत, करते वो हर जिद्द पूरी चाहे कुछ भी हो फरमाइश, तुम्हारी ख्वाहिश ना रहे अधूरी पेट औलाद का भर के, खुद भूखे पेट है सोया हर पिता चाहे अपने बच्चों का भविष्य संवारना जिंदगी के हर सुख दुख से बच्चों को रूबरू कराना गोद में बिठा प्यार से, जीवन का गणित समझाया नरम दिल रखते सीने में, ऊपर से वो है सख्त पिता ही मजबूत आधार, चाहे समझो कड़वा नीम का दरख़्त मिठास भर दे जीवन में, बरगद सी वो विशाल काया आज तलक दुनिया में सिर्फ मां की ही होती महिमा गीत गजल कविताओं में, ना कभी बखाणी पिता की गरिमा ...
क्षणिक आवेश
कविता

क्षणिक आवेश

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** क्षणिक आवेश था वह, मगर उस आवेश के कारण वर्षों से बनाए रिश्ते टूट गए। शब्द बाण से आहत हो संबंधों के पंछी घायल हो गए। शायद बचें, शायद न भी बच पाएँ। क्यों लोग आ जाते हैं क्षणिक आवेश के चक्कर में। क्यों बोलते हैं ऐसे शब्द चुन-चुन कर जो छेद डाले मन। क्या अहंकार रिश्तों से अधिक ऊपर होता है? शायद होता है। तभी तो उनके तरकस में इतने जहरीले तीर होते हैं। और बखूबी वे उन्हें चुन-चुन कर चलाते हैं। शायद रिश्तों को स्वाभाविक मृत्यु देना उन्हें गँवारा नहीं, वे उसे भी सड़ते-रिसते तड़प-तड़प कर मरते देखना चाहते हैं। तभी तो चुन-चुन कर आवेश में आकर मारक शब्द बाण चलाते हैं। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र) ...
हृदयहीनता की कामना
कविता

हृदयहीनता की कामना

डॉ. उपासना दीक्षित गाजियाबाद उ.प्र. ******************** काश! मैं हृदयहीन हो जाऊँ । क्यों न मैं हृदयहीन हो जाऊँ ।। न हो मुझे किसी की निष्ठुरता का अहसास और न हो मुझे किसी की आत्मीयता का आभास किसी की मार्मिक तकलीफों में न हो शामिल मेरा चेहरा न देखूँ चिंता ग्रस्त माथे की लकीरों का डेरा न सुनूँ किसी की व्यथा का सफर न हो द्रवित देख टूटती बिजलियों का कहर मैं हर हलचल के प्रति उदासीन हो जाऊँ काश! मैं हृदयहीन हो जाऊँ । क्यों न मैं हृदयहीन हो जाऊँ ।। संवेदना से परे हो मुझमें कठोरता का डेरा मेरी प्रवृत्ति में बस जाए गिरगिट का चेहरा चुप रहूँ, न बोलूँ देख मानवता पर चोट जार-जार रोए कोई सोचूँ, होगी आंसुओं में खोट अनाचार की पराकाष्ठा पर मूंद लूँ अपनी आँखें प्रश्न न करूं चाहे घुट जाएं किसी की साँसें मैं अपने दायित्व के प्रति भावशून्य हो जाऊँ काश! मै...
सुखद एहसास
कविता

सुखद एहसास

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** क्षणिक ही लेकिन यह सुखद एहसास अच्छा है। पहली बार ससुराल से मायका आना मां की ममता, पिता का लाड़, क्षणिक ही लेकिन अच्छा है फिर लौटना ससुराल अच्छा है भाई बहन की तकरार, फिर ढेर सारा प्यार, अच्छा है फिर यहां से न जाने की ख्वाहिश का दब जाना अच्छा है। क्षणिक ही लेकिन यह सुखद अहसास अच्छा है। यह घर अपना, वो घर अपना लड़कियों के साथ किया छलावा अच्छा है। दम घुट रहा, दिल टूट रहा ना आंसू बहाना अच्छा है अपनी दिल की बातें ना यहाँ बताना, न वहां बताना, अच्छा है। दिल के अंदर दफनाना अच्छा है। क्षणिक ही लेकिन यह सुखद अहसास अच्छा है। परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम : गंगापीपर जिला :पूर्वी चंपारण (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...