मां का बटवारा
डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज'
नागपुर (महाराष्ट्र)
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ये जिंदगी ना तेरी हैं ना मेरी हैं
वक्त के इन कांटों में उलझी सी
कभी हंसाती कभी रूलाती
सुख दुखों में बंटी ये जिदंगी
अंधेरों उजालों से लड़ती ये काया
जीते जी अब तुम ही बताओं
मां से मिला तो कैसे मां को ठुकराएं।
बचपन की तस्वीरें सब बदल चुकी
कोमल मन की यादें निकल चुकी
दुलार कम आक्रोश से लड़ने लगा
मां की ममता को पुत्र मोह खलने लगा
सयानी औलादों से मां को डर लगने लगा
कहीं टूट ना जाए मिट्टी का ये घरोंदा
मां का दिल ये सोचकर रोज रोने लगा
वक्त बड़ा बलवान है ये समझना चाहिए
पुराने इतिहास से सबको सींखना चाहिए
मां व जमीं को ही अबतक बाटा गया हैं
मोह और लालच में रक्त को ही काटा गया हैं
देती थी दुहाई मां सब पुत्र साथ रहेगें
जब नजर लगी जमाने की तो क्या कहेगें
भाई ही भाई के खून का प्यासा हो गये
बटवारें को लेकर देखों सब अं...