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कविता

जनसंख्या नियंत्रण
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जनसंख्या नियंत्रण

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सुनो सुनाता हूँ देश की कहानी। जिस में सबसे बड़ी समस्या है जनसंख्या बृध्दि। जिसके कारण देश की व्यवस्था लड़ खड़ा जाती है। बचानी है अर्थ व्यवस्था तो जनसंख्या पर नियंत्रण करना पड़ेगा।। करो पालन परिवार नियोजन के तरीको का। और पहला बच्चा लोगो जल्दी नहीं। और दूसरे में अंतर रखो तीन साल का। इस मंत्रको अपनाओगें तो जनसंख्या पर नियंत्रण पाओगें।। जिस तरह से हुआ देश का विकास। रुक गई अकाल मृत्युएं इसे कहते है देश की प्रगति। पर इसके कारण ही बड़ गई देश की जनसंख्या बृध्दि। तो परिवार नियोजन को जीवन में अपनाना पड़ेगा।। साथ एक और सुझाव जनसंख्या नियंत्रण का है। करो निर्माण देश में एक शिक्षित समाज का। जो देश की प्रगति में भी अपनी भूमिका निभायेगा। और शिक्षित होने के कारण स्वयं इस पर नियंत्रण हो जायेगा।। परिचय...
आज के युवा और आज के वृद्ध
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आज के युवा और आज के वृद्ध

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** युवा सुबह में भी सोये हैं चादर तान पार्क में, वृद्धों की स्फूर्ति देख हूँ हैरान ।।१।। सुबह जागते जल्दी, लगाते दण्ड व बैठक ऊर्जा ओज दिखाते और लगाते ध्यान।।२।। जाग कर जगाते सबको, ललक दिखाते सारे कर्म झट करते, इनकी पुलक महान।।३।। सोकर आँख मलते, उठते घिसटाते बढते ब्रश मंजन करते ये, युवा हैं बड़े खिसियान।।४।। आलस में डूबे, उनींदे देख युवा को लगता युवा हो गये हैं बूढ़े और बूढ़े हुये हैं जवान।।५।। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भा...
एक चिकित्सक की कहानी उनकी जुबानी
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एक चिकित्सक की कहानी उनकी जुबानी

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक मामूली सा डॉक्टर हूं बेशक कोई भगवान नही डॉक्टर का डॉक्टर होना मगर इतना भी आसान नहीं इस दर्जे की खातिर मैने बचपन खोया हैं मैं वो हूं जो एक एक मार्क्स को रोया हूं सुकून की जिंदगी को कुर्बान करता हैं डॉक्टर कभी किताब तो कभी, इमरजेंसी टेबल पे सोया है जाने कब होली बीती, जाने कब दिवाली गई जाने कितने रक्षाबंधन, मेरी कलाई खाली गई परीक्षाओं की लड़ी ने, नही छोड़ा साथ अब तक मेरे हजारों दिन खा गई उतनी ही राते काली गई फिर भी तुम्हे हर वक्त जो खुश दिखे परेशान नहीं उस डॉक्टर का डॉक्टर होना इतना भी आसान नहीं मैंने क्रिकेट का बैट छोड़ा, टीवी का रिमोट छोड़ा सफेद एप्रन की खातिर मैंने जैकेट कोट छोड़ा स्कूल का टॉपर मेडिकल में आने पर फेल होने से डरा हैं जब भी कोई शॉर्ट नोट छोड़ा मेरी कोई संडे नही छुट्टी की गुजारिश ...
कोहिनूर सी चमक है मेरी बेटी में।
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कोहिनूर सी चमक है मेरी बेटी में।

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** कोहिनूर सी चमक है मेरी बेटी में की दर्पण भी देख आश्चर्य चकित हो जाता हैं। मन मेरा उसे देख व दिल मेरा ख़ुशी से बाग़ बाग़ हो जाता हैं। मधुबन की बेला भी शर्मा जाती हैं। मौसम भी सुहाना होकर उसका अभिनन्दन करता है। प्रभाकर अपनी प्रभात किरणों से कोहिनूर सी अभा देकर उसे देख मुस्कुराती शबनम भी पीघल जाती हैं। अठखेलियां खेलती हवाओं और कोयल, मोर, पपीह भी झुमने लगते हैं। खुशहाली मन की मेरी नूरे नज़र कोहिनूर सी चमक मेरी बेटी हैं। दर्पण भी दैख आश्चर्य चकित हो जाता हैं तोहफा है, मेरे लिए वह कोहिनूर सा, दिल मेरा ख़ुशी से बाग़ बाग़ हो जाता हैं। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी ...
सजल
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सजल

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वसुन्धरा के हर कोने में होता इसका मान है। कहीं नहीं दुनिया में अपने जैसा हिन्दुस्तान है। अखिल विश्व में भारत की महिलाओं का सम्मान है। महा पुरुष भी जो जन्मे होता उनका गुणगान है। नहीं युद्ध हो अब धरती पर सब मानव यह ठान लें सकल जगत में भारत ही ने छेड़ा यह अभियान है। सभी युगों में हमने अविरल रचा नया इतिहास शुभ जहाँ कहीं भी जाएँ अपने भारत की पहचान है। महा शक्तियों ने भी माना भारत के अवदान को गर्व हमारे अंतर में है अधरों पर मुस्कान है। बहुत हुई है अपनी भू पर गतिविधियाँ विज्ञान की, नहीं शत्रुओं को भारत की क्षमता का अनुमान है। 'रशीद' ऐसे यत्न करें हम देश अधिक बलवान हो, धरा हमारी प्रतिक्षण अपनी आन बान है शान है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ...
तन्हाइयों देखकर
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तन्हाइयों देखकर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तन्हाइयों देखकर जी ने वाले क्यों गिला करते हैं अपनों से मासूम तबस्सुम से आपके राजे दिल बयां होता है जुनून में बसे हुए का कोई इंतिहान भी लेता है क्या सोच लिया दिल ने खुदा इन्तिहाईहै कसमें वादेू से इंतिहान नहीं होते इंतिहान होते हैं दिलों जान से जुनून में बसी तस्वीर गर बदल दे तक़दीर तो मैं खुदा को भी दे दूं जा अपनी वक्त होता समा होता ना छोड़ते दामन बांध लेते साथ तकदीर कुछ न कुछ तजबिर कर परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के स...
बेखौफ परिंदा
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बेखौफ परिंदा

अभिजीत आनंद बक्सर, (बिहार) ******************** मैं उन्मुक्त गगन का बेखौफ परिंदा हूँ, हौसलों, अरमानों, जज्बातों का पुलिंदा हूँ... कर्म को साक्षी मानकर कर लिया है प्रण, जीवन के संघर्षों से अनवरत रहेगा रण... स्वच्छंद उड़ान के सहारे आसमाँ तक जाना है, विपरित हवा के उड़कर मंजिल हमें पाना है... संघर्षों के महासमर में खड़े हुए हैं सब कुछ हारे, समाहित हैं कई उम्मीदें और शेष हैं सपने सारे... माना समीर तीव्र है फिर भी क्यूँ लौट जाऊँ मैं, समयचक्र की परिधि में उलझे सपने यूं ना छोड़ जाऊँ मैं... आपदा में अवसर तराशने को जिंदा हूँ, मैं उन्मुक्त गगन का बेखौफ परिंदा हूँ... परिचय :- अभिजीत आनंद आयु : २५ वर्ष निवासी : बक्सर, (बिहार) शिक्षा : स्नातक (आईटी)  घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय...
चाय पर चर्चा
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चाय पर चर्चा

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** शुरू चाय से बात करे, आओ सब आज बात करे। मित्र सारे चौराहे पर ठहरे, चाय के नाम से समय निकालें। गिले शिकवे मिटा देगी, अपनो से मिला देगी। चाय पर बुलाकर देखो, मित्र ढेरो बना देगी। ऑफिस की थकान सारी, एक कप चाय मिटा देगी। गर्मी, जाड़े, बरसात में, सदाबहार कहलाती चाय। रिश्ते की शुरुवात भी, एक कप चाय से होगी। कितने पेय बाजार में आये, चाय से टक्कर नही ले पाए। सुबह-सुबह आती है,याद, मन को बहुत भाती है,चाय। घूंट-घूंट का मजा लीजिये, दोस्तो के साथ पीकर देखिये। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी,ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक्षा : स्नातक भाषा : हिंदी, बुंदेली विशेष : स्व...
कितना खोखला हो जाता है इंसान
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कितना खोखला हो जाता है इंसान

रिंकी कनोड़िया सदर बाजार दिल्ली ******************** कितना खोखला हो जाता है इंसान मुँह पर कुछ पीठ पीछे कुछ हो जाता है इंसान, कभी नफरत भरी याद तो कभी सुहाना पल हो जाता है इंसान, उम्मीदों से जुड़ा खिलौना बन जाता है तो कभी हार कर किस्मत से, रो कर सो जाता है इंसान कभी किसी शख्सियत को अपना वजूद बना लेता है... तो कभी सबका साथ छोड़ अकेला रह लेता है इंसान आखिर कितना बदलता रहता है इंसान? कभी संतुष्ट है निज सुख में कभी टटोलता रहता है हर सुख, दिल को भारी कर लेता है छोटी-छोटी बातों से सोच को बना लेता है निरंतर एक तूफान तो कभी भगा कौन है, क्या है और सब उलझा लेता है इंसान, आखिर कितना खोखला होता है इंसान? कभी इंसान ही इंसान का दुश्मन बन जाता है तो कभी दोस्ती में जान भी गवा देता है इंसान, हर पल बदलते भावों से लड़ता है तो कभी यादों को संजो चलता है इंसान, कभी सुख की चाह में अंतर...
श्री ईशावास्योपनिषद्
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श्री ईशावास्योपनिषद्

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** श्री ईशावास्योपनिषद् सरल काव्य प्रस्तुति ॐ ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते. पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते... प्रणव पूर्ण है, सम्पूर्ण है, उनसे उत्पन्न जगत पूर्ण है। उद्भूत इकाई लेने पर भी, ईश्वर रहता परिपूर्ण है।। ..१.. ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्. तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विध्दनम् सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का जड़ चेतन, सब सम्पदा प्रभु आपकी। मानव भोगे जो हो नियति में, त्याग करे जो नहीं है उसकी।। ..२.. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः. एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे निज कर्म हो उन्नत इस संसार में, शत वर्ष जीने की यही हो साधना। यदि देहधारी का पथ ईश हो, फिर नहीं बांधेगी फल की कामना।। ..३.. असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः. तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्...
नदी
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नदी

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कल-कल ध्वनि की गूंज झर रही है मेरु पर्वत से श्वेत जलधारा । अरुणोदय की लालिमा ने रंग भर दिये उसमें। बलखाती लहराती ना जाने कहाँ जा रही है तेज वेग से चल कर आ मिली है धरा से।। हुई कई नामों से सुशोभित गंगा जमुना सरस्वती अपनी ही मौज में चली जा रही है कंकरीले पत्थरों को भी साथ ले उन्हें तराशती हुई तेज वेग से बह रही है एक ध्येय एक लक्ष्य राह की हर कठिनाई को पार करते हुए जा मिलने समुद्र से।। जीवन भी तो एक नदी है निरन्तर चलता रहता है अपने ही वेग से आँधी हो तुफान हो अच्छाई बुराई को साथ ले प्रभु मिलन की आस में चलता रहता है।। परिचय :- प्रभा लोढ़ा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और पठन में रुचि बचपन से थी। आपने दिल्ली से बी.ए. मुम्बई से जैन फ़िलोसफी की परीक्षा पास की। आ...
दिल की गहराई
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दिल की गहराई

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** दिल की गहराइयों में तुम्हें छुपा रखा, अपने चेहरे की मुस्कराहट में तुमको जमा रखा है। सोचता हूं तुमको भूल जाऊं, मगर प्रकृति के कण-कण में फैली खुशबू में तुमको समा रखा है। सोचता हूं तुमको छोड़ दूं, मगर अंतर्मन की बिखरी सिमटी गहरी यादों में तुमको छुपा रखा है। सोचता हूं मैं काफ़िर हो जाऊं, मगर तेरी यादों की गहराई ने आज भी मुझे आशिक बनाए रखा। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा स...
नेता बनाम नेतृत्व
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नेता बनाम नेतृत्व

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जैसे विद्या और विद्यार्थी का सहज सरल है रास्ता, विकास कदम ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का वास्ता। शिक्षा संस्कार का प्रारंभिक दौर भ्रामकता दूर करे कथनी करनी का अंतर प्रयासों से ही पूर्ण करे वर्ष-दर-वर्ष व्यक्ति अपना व्यक्तित्व ही पालता। विकास कदम ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का वास्ता। कर्म जगत में मानव अपना करम ही तो करता है निज कृतत्वों से समाज, संस्था चिन्हित करता है कृतत्व निहित नेतृत्व कला को समाज पहचानता विकास कदम ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का वास्ता। संगठन और विधान परिभाषा बहुधा ही गुमनाम है नेतृत्व क्षमतावान और नेता कभी नहीं सह- नाव हैं नेता बनके इर्द-गिर्द बस चमचों को ही पालता, विकास कदम ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का वास्ता। नेतृत्व गुण सिखलाये समान भाव नीतिगत निर्णय चाटुकार फ़ौज के दम से नेता निष्क्रिय और निर्भय...
आधुनिक जीवन में विज्ञान
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आधुनिक जीवन में विज्ञान

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** आधुनिक जीवन में विज्ञान कर रहा है बड़ा कमाल रोटी-कपड़ा या हो मकान हर जगह पहुंच गया विज्ञान। बना मोटरगाड़ी-रेल-विमान आवागमन कर दिया आसान शिक्षा-चिकित्सा और सुरक्षा सबमें है इसका योगदान आधुनिक जीवन में विज्ञान कर रहा है बड़ा कमाल। उन्नत कृषि उपकरणों ने कृषि कार्य किया आसान बड़े-बड़े कामों को भी पल भर में दे रहा अंजाम आधुनिक जीवन में विज्ञान कर रहा है बड़ा कमाल। विद्युतबल्ब-ट्यूबलाइट से रौशन हुआ जग- संसार रेडियो-टीवी और मोबाइल कराते हैं मनोरंजन अपार आधुनिक जीवन में विज्ञान कर रहा है बड़ा कमाल। टेलीफोन-मोबाइल ने बात-चीत किया आसान कंप्यूटर-लैपटॉप से निपटा रहा है अब काम आधुनिक जीवन में विज्ञान कर रहा है बड़ा कमाल। संदेश भेजना हुआ आसान फैला जब से अंतराजाल विज्ञान ने खोले उन्नति के द्वार चांद पर जा पहुंचा इं...
महीना सावन का
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महीना सावन का

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* भरे दिखे हैं ताल-तलैया, मनभावन वाले सावन में। बोले मोर और पपीहा, अब हर घर केआंगन में।। लिए खड़ी हल्दी- कुमकुम- थाल, राह देख रही बहन कलाई की। भई हम जाएंगे पीहर अपने, याद आई हमें अब भाई की।। टर्र-टर्र करते मेंढक भी, बोले सुहाने सावन में। चले नाव कागज की, बच्चों की प्यारे सावन में।। सावन में याद सताती है, जिनके गए परदेस पिया। कोयल गाये गान मीठा जब, अब धड़के विरह में जिया।। हरे-भरे चहुँ दिशि देखे, बाग- बगीचे और खलियान। अनजान नहीं है कोई यहां, धान रोपने चले किसान।। हम सब झूला झूले, बच्चे बूढ़े और जवान। शिव को पूजे इसी महीने, जो देते मनचाहा वरदान।। परिचय :- गीता देवी पिता : श्री धीरज सिंह निवासी : याकूबपुर औरैया (उत्तर प्रदेश) रुचि : कविता लेखन, चित्रकला करना शैक्षणिक योग्यता : एम.ए. संस्कृत बीटीसी, सम्प्रत...
जन-मन का राजा
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जन-मन का राजा

सपना दिल्ली ************* सौभाग्य है देवभूमि का जिसने राजा वीरभद्र सिंह सा नेता पाया... समझ जनता को जो अपनी ही संतान प्रेम, स्नेह उन पर लुटाते अदम्य साहस पूर्ण व्यक्तित्व जिया जीवन स्वाभिमान से मन में न था उनके कोई वैर जिससे मिलते उसे अपना बना लेते न झुके न दिया झुकने औरों को जिसने सबको प्रेमभाव से गले लगाया.... राजनीति के थे सच्चे सिपाही देश प्रेम रहा सदा जिनके पहले बाकी सब बाद में इनके नेतृत्व में हर क्षेत्र में, हिमाचल ने शिखर छुएं कई-कई.... गाँव- गाँव का किया विकास दीन-दुखियो की सेवा में समर्पित रहे हमेशा एक ऐसा नेता जो जनता की समस्याओं को सुनने खुद जाते उनके बीच सुन उनकी यूँ समस्याएँ कोशिश सदा रहती उनकी निर्वहन हो हर समस्या का.. देखो कैसा सन्नाटा आज यहाँ छाया क्या विपक्षी, क्या प्रतिद्वंद्वी शोक मना रहा आज समस्त हिमाचल अपने प्रिय नेता को खोकर विशाल ...
भीष्म पितामह
कविता

भीष्म पितामह

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** भीष्म सरीखा योद्धा कोई हुआ कभी न होगा धीर वीर निष्णात युद्ध में दूजा नहीं सुना होगा गंगा पुत्र भीष्म सम्मुख़ नतमस्तक रहे नरेश सभी दृढ़ प्रतिज्ञ आसक्ति मुक्त न घेरा वैभव मोह कभी इच्छा मृत्यु वरदान प्राप्त हर योद्धा से वे श्रेष्ठ रहे हर विद्या में थे प्रवीण पर जाने कितने क्लेश सहे दिया वचन रक्षार्थ हस्तिनापुर सिंहासन का पर भूल गए अभिप्राय निभाये साथ कौरवों का चीर हरण कर रहा दुर्योधन रहे पितामह मूक व्यर्थ प्रतिज्ञा में उलझे थे कर गए भारी चूक चक्रव्यूह में घेर लिए जब अभिमन्यु को अन्यायी बहुत दिखे लाचार पितामह फिर भी बुद्धि न आयी भूल गए थे राज धर्म वह वरना युद्ध न होता लाल न होता कुरुक्षेत्र औ न विनाश ही होता भीष्म प्रतिज्ञा से मिलती है अति उत्तम एक सीख चुप रहना अपराध है यदि मची कह...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** आओं मिल राष्ट्र का मान बढ़ाएं, हर क्षेत्र में भाषा हिन्दी अपनाएं। जनचेतना का आधार है हिन्दी, वालिदैन के वात्सल्य सी है हिन्दी।..... हिंदोस्तां की ज़ुबां है हिन्दी, वतन की आन बान शान है हिन्दी। हमारी असली पहचान है हिन्दी, भारतवंशी का अभिमान है हिन्दी। जनचेतना का आधार है हिन्दी।.... हिन्द राष्ट्र की आशा हिन्दी, जन जन की मातृभाषा हिन्दी। जात-पात के बंधन को तोड़ती हिन्दी, एकता सूत्र में सब को जोड़ती हिन्दी। जनचेतना का आधार है हिन्दी।..... गणराज्य की आधिकारिक भाषा है हिन्दी, हमारी संस्कृति-समृद्धता का प्रतीक है हिन्दी। राष्ट्रभक्ति भावना को प्रेरित करती हिन्दी, धाराप्रवाह से बोलने वाली मातृभाषा हिन्दी। जनचेतना का आधार है हिन्दी।..... दुनिया में सम्मान व स्वाभिमान दिलाती हिन्दी, हमारे प्रांतों की क्षे...
विश्वास
कविता

विश्वास

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** हमें यकीन इतना है, कि तुम हमारी आत्मा की आवाज़ हो। घरौन्दा कहीं भी रहे ये धडकनें उड़ती तुम्हारे लिए ही हैं, कभी इस डाली पे कभी उस डाली पे बसेरा मेरा मगर ये साँसों की उड़ान तुम्हारे दर पे ही हो।। आस्था से भरी ये आहें खुशबू की तरह बिखरती रहे, पर श्रद्धा के सुमन तुम्हारे चरणों में ही हों। यादों के शिलशिले घनघोर सावन की घटाएँ कहीं भी बरसे, मगर निष्ठा की बूँदों का अहसास तुम ही हो।। ये मेरा समर्पण मेरी साधना तुम्हें महसूस करती हैं, मगर मेरी साधना के साधक तुम ही तो हो। हृदय की डोर लहरों से गुज़र रही है, इतना यकीन है! कि मेरी डगमगाती कश्ती की बागडोर तुम ही तो हो।। मन की श्रद्धा तन की निष्ठा समय की धारा इस धरा पे विश्वास का वो तिनका तुम ही तो हो।। लड़खड़ा जायें ये पग कभी सहारा तुम्हारी पग डंडी ...
लिखने आऊंगा
कविता

लिखने आऊंगा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** जो मोहब्बत को दूर से देखता है। उसे ये बहुत अच्छी लगती है। और जो मोहब्बत करता है उसे ये जन्नत लगती है।। जिंदगी का सफर यूँ ही कट जायेगा। जीवन का उतार चढ़ाव भी पुरुषार्थ से निकल जायेगा। पढ़ना है यदि खुदको तो दर्पण के समाने खड़े होना। और स्वयं की मंजिल को अपने अंदर बार बार देखना।। आज के दौर में सबको राम श्याम चाहिए। पर खुद सीता राधा और मीरा बनने को तैयार नहीं। वाह री दुनियां और इसे लोग कुर्बानी सामने वाले से चाहिए। और यश आराम खुद को बिना परिश्रम के चाहिए।। मेरी दिलकी पीड़ा को कभी पढ़कर देखो। दिलकी गहाराइयों में तुम उतरकर देखो। तुम्हें प्यार की जन्नत और बिछी हुई चांदनी। हरेभरे बाग में खिले हुये गुलाब नजर आयेंगे।। किसी दिल वाले से दिल लगाकर देखो। अपनी भावनाओं को उसे बताकर तुम देखो। वो प्यार के सागर में ...
बारिश की बूँदें
कविता

बारिश की बूँदें

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** अक्सर कोई न कोई कहानी लेकर बरसती हैं। कभी आँखों में आँसू बन कभी भावनाओं के तूफान ले कभी तिरस्कार पाकर कभी क्रोध की अधिकता से आँखों से घुमड़-घुमड़ बरसती हैं। बारिश की ये बूँदें जब भी बरसती हैं कई जख़्म हरे कर जाती हैं। और कई बार आँखों के कोरों को भीगा कर आँसूओं का सैलाब लेकर पुराने मन के मैल को भी धो जाती हैं। बारिश की बूंदें हमेशा कोई न कोई कहानी लेकर ही बरसती हैं। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र) विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं । घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बरखा रानी
कविता

बरखा रानी

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** अमृत-सा जल लाकर बादल, पहले नभ में छाते हैं। उमड़-घुमड़कर करते बारिश, नदियों से प्रलय मचाते हैं। हरी-भरी धरती हो जाती, वो फूला नहीं समाते हैं। सज जाती खेतों में फसलें, ऐसा रंग चढ़ाते हैं। पड़ जाते डालों पे झूले, दादुर शोर मचाते हैं। पानी की लहरों पे बच्चे, कागज की नाव चलाते हैं। कभी-कभी बादल भी नभ में, खुद पक्षी बन जाते हैं। हिरन, बाघ, हाथी बनकर, बच्चों का मन वो लुभाते हैं। वन-उपवन के होंठों पे तब, हँसी की रेखा खिंचती है। कुदरत की बाँहों में देखो, दुनिया कितनी खिलती है। पत्थर, पहाड़, पठार सभी, पानी की संतानें हैं। पानी देखो! कहीं न बनता, हम कितने अनजाने हैं। सब ऋतुओं की रानी बरखा, जीवन नया ये बोती है। जन-जन की धड़कन है यही, ना समझो तो भी मोती है। जल संरक्षण करके ही हम, जल स्तर को बढ़ायेंगे...
मनमीत
कविता

मनमीत

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर पल साथ हो तुम, हमेशा मेरे पास हो, कैसे कहू कि तुम एक खूबसूरत अहसास हो। अतृप्त से मन को तुम प्रेम का पावन दरिया जो पास हो, डूबकर भी जो न बुझे, वो अधूरी सी प्यास हो।। तिमिर को जो दूर करे, वो मन का रोशन चिराग हो।। कह नही सकती क्या हो तुम मेरे लिये, मगर सबसे खास हो।। मनमीत कहु या प्रीतम तुम्हें, हर बन्धन तुमसे आबाद हो।। जन्मों जन्मों का मेरे, तुम पुण्यों का उजास हो।। इस दिल की तमन्नाओं का तुम ही आखिरी पड़ाव हो। पाकर तुम्हें मुक़म्मल हुए हम, इस जिंदगी का अलौकिक प्रकाश हो।। कहने को तो मनमीत हो, पर ईश्वर का दिया खूबसूरत उपहार हो।। यही दुआ है दिल से, हमेशा मेरे हाथों में बस तुम्हारा हाथ हो।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है ...
मां का बटवारा
कविता

मां का बटवारा

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** ये जिंदगी ना तेरी हैं ना मेरी हैं वक्त के इन कांटों में उलझी सी कभी हंसाती कभी रूलाती सुख दुखों में बंटी ये जिदंगी अंधेरों उजालों से लड़ती ये काया जीते जी अब तुम ही बताओं मां से मिला तो कैसे मां को ठुकराएं। बचपन की तस्वीरें सब बदल चुकी कोमल मन की यादें निकल चुकी दुलार कम आक्रोश से लड़ने लगा मां की ममता को पुत्र मोह खलने लगा सयानी औलादों से मां को डर लगने लगा कहीं टूट ना जाए मिट्टी का ये घरोंदा मां का दिल ये सोचकर रोज रोने लगा वक्त बड़ा बलवान है ये समझना चाहिए पुराने इतिहास से सबको सींखना चाहिए मां व जमीं को ही अबतक बाटा गया हैं मोह और लालच में रक्त को ही काटा गया हैं देती थी दुहाई मां सब पुत्र साथ रहेगें जब नजर लगी जमाने की तो क्या कहेगें भाई ही भाई के खून का प्यासा हो गये बटवारें को लेकर देखों सब अं...
बारिश
कविता

बारिश

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सभी के अपनी-अपनी, पसंद के मौसम होते हैं, किसी को गर्मी तो किसी को सर्दी भाती है, लेकिन बारिश का मौसम हर दिल, अजीज होता है। इंसान-धरती-नदियां-आकाश सभी इस, रुत की प्रतिक्षा दामन फैलाए करते हैं। घुमड़-घुमड़ कर जब बादल गरजते हैं, दामिनी चमकती हैं, बिजली कड़कती हैं, घनघोर घटाएं छा जाती हैं, बरस-बरस कर धरती के हृदय को, तृप्त करती है, मोर नाच उठते हैं, पपीहे की पिहू-पिहू की पुकार से, वातावरण गूंज उठता हैं। पग-पग हरियाली बिछने लगती हैं, घर आंगन ताल-तलैया-सम्पूर्ण प्रकृति, बूंदो की थाप पर, मानो नृत्य करने लगती है। पहली बारिश की बूंदो से, माटी की सोंधी-सोंधी खुश्बू से, मन आंगन गुलजार होने लगते है, खुली बांहे आसमान की ओर मुंह उठाए, हम स्वागत करते हैं, ऋतुओं की रानी बरखा का, आओ आषाढ़, आओ बरखा तुम्हारा अभिनंदन है़। धरा के ...