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कविता

प्रायश्चित्त
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प्रायश्चित्त

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हो सुधार असत्य इतिहास का, राष्ट्रीय, प्रायश्चित हो अब तो | जो अधिकारी सम्मान के, वे सम्मानित राष्ट्र में हों अब तो || तिरंगा पहला सुभाष ने, लहराया जाने सब अब तो | हो इतिहास में नेहरू से पहले, सम्मान सुभाष बोस का अब तो || झूले सहर्ष मृत्यु के झूले पर, जानें उनकी सत्यता राष्ट्र अब तो | भगत सिंह-राजगुरु-सहदेव का, हो सम्मान प्रतीक राष्ट्र का अब तो || योगदान सभी क्रांतिकारियों का, करें राष्ट्र अवश्य स्वीकार अब तो | नहीं हुए हम स्वतंत्र बिना अहिंसा से, करे आभास राष्ट्र अवश्य अब तो || टैगोर-तिलक-सावरकर आदि, क्यों सीमित पंक्तियों में अब तो | जागो मनीषियो-शिक्षाविदो, प्रसारित ग्रंथों में करो अब तो || था न विशेष योगदान जिनका, लिखवाया इतिहास उन्हीं पर तो | करें सुधार अब-भूलों का | लिखाओ इतिहास सही अब तो || हो इतिहा...
तेरी बांसुरी
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तेरी बांसुरी

पूजा त्रिवेदी रावल 'स्मित' अहमदाबाद (गुजरात) ******************** कान्हा तेरी बांसुरी की धुन सुनी पड़ रही है, आकर देख, राधा और द्रौपदी दोनों पीस रही है। कोई नहीं अब सुलझाने वाला यहां कोई, उलझनें सब और बढ़ रही है। भगवद्गीता के भी मतलब नीकलते इन्सानी मर्ज़ी से, हम सब की अर्जियां तेरे पास कबसे पड़ी है। जेहाद चल रही है पर कारण पता नहीं है, यहां सबकी खुद की अक्कल बिक रही है। ना उतरने दिया था सम्मान द्रौपदी का तुमने भरे दरबार में पर, हर मोड़ हर चौराहे पर द्रौपदी बिक रही है। भूल चुकी है वह ताकत अपनी और शस्त्र की, तुझे बुलाते हुए चूपचाप बैठी है। भरोसा नहीं इस पूरी दुनिया में किसी पर फिर भी, सिर्फ़ तुझपर भरोसा टिकाये बैठी है। एक बार आकर याद दिला दे मुरलीधर, 'स्मित' अपनी मुठ्ठी में बांधकर बैठी है। खोलना मुठ्ठी उसकी ताकत की सिखा जा बंसीधर, अपने सीने में हिम्मत बे...
मर्यादा
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मर्यादा

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम सीता हो, इस समाज में स्थापित हर मर्यादित राम की देती रहोगी परीक्षा यहाँ हर निर्धारित काम की। प्रिय हो तुम भी अपनी सीता के बिल्कुल राम की तरह पर राम की तरह सहना भी पड़ेगा अपनी सीता से विरह। बैर उन दोनों के बीच था ही कहाँ बस किया दोनों ने वही जो समाज ने कहा। रघुकुल के स्थापित मूल्य भला समाज ने भी कहाँ माने हैं पर तुम्हें वो सारे नियम व संस्कार निभाने हैं। अछूते तो वो भी नहीं रहे जो ख़ुद मर्यादा की सूरत थे सहना पड़ा अपमान उन्हें भी जो ख़ुद ईश्वर की मूरत थे। संस्कारों की बलिबेदी पर तुम्हें ख़ुद की आहुति देना है लोगों के मन की ज़ंग लगी ज़ंजीरों में जकड़े रहना है। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
अखंड भारत
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अखंड भारत

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नही चलेगा यहा पाखंड भारत था, है, रहे अखंड पावन भूमि है ये राम की नंदलाल के कर्मधाम की करते ऋषि मुनि यहाँ तपस्या हो क्षण में दूर हर समस्या अधम को नही है स्थान यहाँ चूर-चूर हो उसका घमंड नही चलेगा यहाँ पाखंड भारत था, है, रहे अखंड।। भूमि है ये कर्मवीरों की शिवा प्रताप जैसे विरो की अधर्म पर उठाए जो शस्त्र दूजे हाथ रखते वो शास्त्र समर्थ है ज्ञान विज्ञान में कला संस्कृति का है ये खंड नही चलेगा यहाँ पाखंड भारत था, है, रहे अखंड।। गुरु महावीर बुद्ध वाणी है त्याग अहिंसा निर्वाणी कर्मयोग में रमने वाले जिओ और जीने दो वाले चले साथ है धर्म पताका जो रखे हाथ मे न्याय दंड नही चलेगा यहाँ पाखंड भारत था, है, रहे अखंड।। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म...
मन के स्वप्न
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मन के स्वप्न

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक धुंध भरी शाम उदास थी किसी ने पूछा क्यों उदास हो मुरझाए फूल ने कहा मन मरुस्थल हो चुका है वह देखो मेरी इच्छाओं की चिता जल रही है क्या मैं जिवित हूं कहा मन प्राण आधार ने आओ मैं तुम्हें समेट लूं अपनी बाहों में तुम्हारे उजड़े मन को महका दूं स्नेह से अनगिनत फूल खिला दूं एक बार अधिकार दे दो ले लो मेरा दूलार रखूंगी तुम्हें प्राण समझ कर मन कैसा भीग गया देखा मैंने उसे अ विश्वास से किंतु वहां था गहरा सागर मन डूब गया मधु जल में एक का एक किसी ने मधुर स्वर घोल दियेे कानों में मैंने जाना सुबह हो चुकी स्पनभंग हो गए मन के परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित ...
स्नेह के बंधन
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स्नेह के बंधन

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** सावन की रिमझिम फुहारें हरियाली मौसम में, खिल उठे पुष्प सारे.. भाई-बहन के अटूट प्रेम पवित्रता का बंधन है भैया की कलाई पर बहना का रक्षाबन्धन है बड़े स्नेह से बहन ने भाई को मंगल-तिलक लगाए अटूट-प्रेम, व स्नेह की रखी भाई के हाथों में भाए बहना की ख्वाहिश है, ये ज़ब कभी रोऊँ मैं, तो भैया मेरे मुझे मनाएं नहीं मोल इस प्रीति का इस प्रीति को नमन व वंदन है भैया की कलाई पर बहना का रक्षाबन्धन है बहना इस राखी के संग बहोत से आस लगाए हुए है भाई की ख़ुशी की खातिर गमों को हमेशा छुपाए हुए है अगर भैया हो परदेश उनकी वापसी में पलकें बिछाए हुए है, इस पावन प्रेम के धागों का सादर, आभार व नमन है भैया की कलाई पर बहना का रक्षाबंधन है इस प्यार-स्नेह के बदले भैया का जवाब है बहना हर मुश्किल समय में तेरा भाई तेरे साथ है सागर सा उमड़ते अट...
हरसिंगार
कविता

हरसिंगार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** हरसिंगार की खुश्बू रातों को महकाती निगाहे ढूंढती फूलों को जो रात भर खुश्बू बाटते रहे बन दानकर्ता गिरे फूल बिछ जाते कालीन की तरह छाले ना पड़ जाए मेरे चाहने वालों के पावों में मौसम के संग कुछ समय रहेंगे दिन में हो जाएंगे बेघर मासूम हरसिंगार खुश्बू का उपहार देते रातों को मोहब्बत करने वालों के लिए जिन्हें है सिर्फ मोहब्बत खुश्बूओं से अनजान भोरे भी सो गए दिन के उजालो में वे खुश्बुओं का पता पूछ रहे डाली -डाली पत्तों से बेचारे भ्रम में पड़े,भ्रमर सोचते हरसिंगार की खुश्बू क्या रातों से ही प्यार करती। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व ...
पधारे हैं नंदलाला
कविता, भजन

पधारे हैं नंदलाला

नंदिता माजी शर्मा मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** मुक्त करने जननी को, पावन करने अष्टमी को, जोड़ने कर्ता से करनी को, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... यशोदा के चंचल लला, बांधे मोर, मुकुट, छल्ला, गोकुल में मचाने हो-हल्ला, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... हाथ में बिराजे हैं बंसी, हर्षित हो झूमे पशु पंछी, अधरो में मुस्कान यदुवंशी, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... धेनूओं के निशदिन रखवाले‌, गोपियों के नटखट ग्वाले, नित नव लीला धरने निराले, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... राधिका के सखा मुरलीधर, रुक्मिणी के पति परमेश्वर, मीरा के इष्ट देव गिरिधर, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... सिखाने जग को प्रेम का रास, भरने जन-जन में उल्लास, सबको रंगने प्रेम, दया,विश्वास, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... परिचय :- नंदिता माजी शर्मा सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी :...
तुम हो अपरिभाषित
कविता, भजन

तुम हो अपरिभाषित

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कारागार में जन्म लिया, गोकुल का ललना बनकर, देवकी मां की गोद मिली, यशोदा मां का मिला दुलार, वासुदेव के तनय बने तुम, नंद के गोपाल कैसे लिखूं!! क्या लिखूं!! तुम तो हो अपरिभाषित, चाहे मैं जितना लिखूं ।। हे नंद के लाल ।। गोपियों के प्रिय बने, राधा के प्रियतम , रुक्मिणी के श्री हो, सत्यभामा के श्रीतम, राक्षसों का वध किया, संसार को निर्मल किया, हर जन जन को मोहित किया, अपना सबकुछ त्याग दिया, कैसे लिखूं !! कितना लिखूं!! तुम रहोगे अपरिभाषित चाहे मैं जितना लिखूं ।। हे नंद के लाल ।। आत्म तत्व के चिंतन तुम, परमेश्वर परमात्मा तुम स्थिर चित्त योगी तुम्हीं, परमार्थ का अर्थ तुम्हीं। नभ जल अग्नि वायु, बनकर प्राण तुम्हीं बन जाते हो, पंचतत्व में विलीन हो, अजर अमर कहलाते हो, क्या लिखूं, कितना लिखूं त...
कृष्ण जन्माष्टमी
कविता

कृष्ण जन्माष्टमी

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** भाद्रपद कृष्ण अष्टमी जन्में कृष्ण कन्हाई। नन्द घर आनन्द भयों घर - घर बजे बधाई।..... आततायी कंस ने ऐसा मचाया अत्याचार। द्वापरयुग मथुरा नगरी में छायी चहुंदिशा हाहाकार। पिता उग्रसेन को राजगद्दी से दिया उतार। बहन देवकी-वसुदेव को बंदी किया कारागार। हो व्यथित नर-नार ने प्रभु को पुकार लगाई। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी.....। श्रीविष्णु के अष्टम रूप में अवतरित हुए मदन मुरार। दुश्वार घड़ी में रक्षा खातिर था श्यामसुंदर का इन्तजार। घनघोर घटाटोप मध्यरात्रि सर्वपालक ने अवतार लिया। नवजात शिशु रूप में अथाह यमुना को पार किया। वृंदावन में यशोदा आँगन बजे ढ़ोल शहनाई। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी......। नटखट नटवर नागर ने बालपन में लीला रचाई। बालसुलभ स्तनपान मस्ती में पूतना राक्षसी मार गिराई। बाल सखाओं के संग माखन मिश्री...
निर्धनता
कविता

निर्धनता

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** गरीबी में गरीब बेहाल कोरोना ने किया लाचार, कमाने कहाँ जाए बाजार यही है, गरीब का हाल !!.. कमाते थे जो हाथ हजारो अब घर बैठ गए है, राशन पानी सारा खत्म सरकार की तरफ मुँह देख रहे !!.. सब्जी भाजी बेचकर पेट पाला बच्चो को किताब कॉपी दिलाया, बेटी का ब्याह भी एक साड़ी में किया हर गरीब की यही है, आत्मकथा !!.. आओ हम सब शपथ खाये कोई भी खाली पेट न सोएं, नही मारेंगे उसका हक गरीब भी है, समाज का अंग !!.. परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक्षा : स्नातक भाषा : हिंदी, बुंदेली विशेष : स्वरचित रचना, विचारो हेतु विभाग उत्तरदायी नही है, इनका संबंध स...
दीवाना हो गया
कविता

दीवाना हो गया

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** पंछी देखा सोंचा मन में कुछ तो ख्याल करुं इसे ही पुरी कविताओं में सोलह श्रृंगार करूं मन की कई सवालों के पिछे मैं खुद गुंथता चला जो था मन में बातें वो सारी मैं भुलता चला देख दिवाना हो गया मानो की मैं कान्हा बना पहली दफा जो देखी राधा बांवरा कान्हा हुआ नीले नीले चमक थी उसकी मानो गगन तर आयी हो गिरने को खुब बारिश घनघोर बिजली छायी हो कल तलक जो ख्वाब थे हकिकत में वैसा आ गया देख दिवाना हो गया देख दिवाना हो गया करूं क्या तारिफ उसकी शब्द भी फीकी लगे इस कारवां में फना़ हो जाने को मन मेरा मचलने लगे ढलती सुरज की रक्त किरण उसके वस्त्र पर पड़ने लगे नील वस्त्र धारण वो कन्या मोती सा चमकन लगे लगे आईने कपड़ों पे उसके तर-बदर अर्चि चलने लगे अचानक वो अर्चि आंखों के मेरे सामने कहीं खो गया जैसा सोंचा ना था वैसा संग म...
सांवरे की सूरत आज भी
कविता

सांवरे की सूरत आज भी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सांवरे की सूरत आज भी, भक्तों को बड़ी सुहाती है, गोपाल के खेल देख लो, गोपिका बहुत लुभाती है। सांवरे की सूरत आज भी, हर जन मन बस जाती है, कान्हा की मुरली देख लो, ग्वालों को बहुत सुहाती है। सांवरे की सूरत आज भी, सुंदर सा पैगाम दे जाती है, लाख प्रयास बेशक कर ले, ये मौत अटल बन जाती है। सांवरे की सूरत आज भी, गोकुल में तुम्हें बुलाती है, सूनी हो चुकी जो गलियां, वो कहानी स्पष्ट सुनाती हैं। कहीं धाम राधा कृष्ण के, कहीं द्वापर नगरी प्यारी है, कहीं बृज की होली खेलों, कहीं मटकी तोड़ तैयारी है। सांवरे की सूरत आज भी, गोवर्धन पर्वत में मिलती, अंगुली पर उठा लिया था, मानव की खुशियां खिलती। गोपियों संग में रास रसाते, ऋषि मुनियों को वो बचाते, सत्य का वो साथ देते सदा, सोये हुये को वो ही जगाते। विष्णु के...
हम ही आज है, कल भी हम ही है
कविता

हम ही आज है, कल भी हम ही है

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हम ही आज है, कल भी हम ही है......! हम ही रीत है, रिवाज भी हम ही है......!! हम ही आजादी है, बेडियां भी हम ही है......! हम ही पंछी है, पिजरा भी हम ही है.....!! हम ही अभिमन्यु है, चक्रव्यूह भी हम ही है.....! हम ही मोहन है, बाँसुरी भी हम ही है.....!! हम ही पेड़ है, कुल्हाड़ी भी हम ही है......! हम ही नफ़रत है, प्रेम का प्रतीक भी हम ही है......!! हम ही तो आशा है, निराशा भी हम ही है......! हम ही तो पाप है, पून्य भी हम ही है......!! हम ही नदियों की कलकल है, अशुध्दियाँ भी हम ही है......! हम ही आस्तिक है, नास्तिक भी हम ही है......!! हम ही छल है, निच्छल भी हम ही है......! हम ही विध्या है, अनपढ़ भी हम ही है......!! हम ही धूप है, छाँव भी हम ही है......! हम ही शहर है, गाँव भी हम ही है......!! हम ही गीता है, कुरान ...
कान्हा की सीख
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कान्हा की सीख

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** छूटने का दर्द जानते हो??? कितना पीड़ा दायक! कितनी टीस भरी !! कितना टभकता हुआ!!! क्या जीवन में कुछ छूटने के बाद भी मुस्कुरा सकते हो??? एक बार देखो कान्हा को! सबसे पहले गर्भ छूटा माँ का! (जन्म से पहले ही) फिर माँ बाप!! फिर छूटे पालक माता-पिता! बचपन का आंगन छूटा!! संगी साथी छूटे!!! छूट गए सब ग्वाल-बाल ! छूटा पास-पड़ोस सारा !! छूटी यमुना अति प्यारी !!! और छूटे सरस सघन लता-कुंज सारे ! भरी जिनमें जीवन की प्याली!! छूट गईं... गोकुल की भोरी गोपियां! गोकुल का मिश्री-माखन!! और छूटी.... आत्मा की संगी! प्रिय राधा रानी!! आह! "चिर बिछोह"!!! क्रीड़ा भूमि गोकुल छूटा! कर्म भूमि मथुरा छूटी!! सबको आह्लाद की सरिता में अंतरात्मा तक डुबोती! जीवनदायी मुरली!! भी छूट गई हाय!!! कान्हा! जाने कितनी पीड़ा तुमने झेली...
नारी का बदलता स्वरूप
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नारी का बदलता स्वरूप

हेमी सिंह पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** टूटने लगे जब सदियों के बन्धन, दिल उड़ान भरने लगा, नारी तेरे अरमानों को तब, नया आसमां मिलने लगा। कभी ख़्वाब देखे और भुला दिये, लबों पे न कोई ज़िक्र आया, आज हर ज़िक्र ख़्वाब से शुरू ख़्वाबों पे ख़त्म होने लगा। अब चेहरा न कोई चांद सा, न हिरनी जैसी चाल है, अब चांद मुठ्ठी में लिये, सितारों पे दिल आने लगा। कल हर क़दम था दायरे में, दहलीज़ का पाबन्द बना, आज लांघकर सीमा वो, सीने दुश्मन के दलने लगा। पहले भीड़ में दूर तक कहीं, तेरी न कोई शुमार थी, आज सिर पर सजा हर ताज तेरा, पहचान एक बनने लगा। परिचय :- हेमी सिंह निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र) विशेष : चालीस‌ वर्षों का गद्य एवं पद्य लेखन अनुभव । शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) बी.एड घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
मेरी सहेली
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मेरी सहेली

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** मेरी माँ मेरी सहेली है, वो एक जादुई पहेली है, मेरी हर ज़रूरत, मेरी हर इच्छा का ध्यान रखने वाली मेरी माँ है। दुःखी होने पर मेरे आँसू पोछने वाली, गिरने पर मुझे उठाने वाली मेरी माँ है, वो मुझे जन्म देने वाली देवी हैं, मेरी प्यारी दोस्त है, मेरी माँ मेरा सम्मान है, वो इंसान नहीं भगवान है। मेरी हर बात को सुनने वाली, मुझे समझने वाली मेरी माँ है, अंजानों की दुनिया में अपनी-सी, एक अप्सरा-सी मेरी माँ है। मुझे सिखाने वाली मुझे उड़ाने वाली मेरी माँ है, उनके स्पर्श में एक जादू है, सारी परेशानी एकदम गायब हो जाती है, उदास मन फूल की भाँति, खिलखिला उठता है, दिल पंछी की तरह उड़ने लगता है। माँ केवल त्याग, प्रेम, समर्पण की नहीं, ख्वाबों, उम्मीदों, हौसले, अपनेपन की भी मूरत है, वो एक अद्भुत सूरत है। वो मेरी गुरु मेरी द...
जब उनसे बात हुई
कविता

जब उनसे बात हुई

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कल जब उनसे बात हुई, ऐसा लगा मानो जिंदगी से मुलाकात हुई, तपते रेगिस्तान में बरसात हुई l उनसे बात करने की खुशियां मेरे द्वार थी, मेरे जीवन के पतझड़ में प्रकृति की बहार थी l ईश्वर करे यह बहार, यह खुशियां सदा मुझसे मिलती रहे, उनकी मधुर, सुरीली वाणी मेरे कानों में जीवन अमृत घोलती रहे l मेरा खुदा जानता है मुझे उनके तन की नहीं, पवित्र मन के चाह है, यह जानते हुए भी वह अनजान है, मेरे जीवन में इसी बात की आह है ल अब तो बस वह मेरे भावों को पढ़ ले, मेरे पवित्र मन को स्वीकार कर ले l अब तो ईश्वर कुछ ऐसे संयोग बनाए, मेरी जिंदगी, मेरी खुशियों से मुझे मिलाऐ l तमन्ना है जब उनसे मेरी मुलाकात हो, तब जुबान से नही मन से मन की बात हो l डरता हूं मेरी इन बातों से वह नाराज ना हो जाए, उनसे आसरूपी जो खुशी है, कही व...
कृष्ण मय हो जाए जीवन
कविता

कृष्ण मय हो जाए जीवन

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** शब्दों तक न होकर सीमित कृष्ण सा साकार कर जाए निश्छल प्रेम उदगार कर समूचे परिवेश को संदेशा दे जाए अनुकरणी है उनकी वाणी वैसे ही उनका जीवन है समूचा जीवन संकट का है संघर्ष और नेक इरादों में जीवन को सफल बनाएं प्रतिकूल परिस्थितियां आए गर जीवन में कृष्ण सा मुस्कुराते हुए ही जवाब दे जाए अग्रणी रहे परोपकारी बने एक दूजे में परस्पर भाईचारे की भावना विकसित कर जाएं स्वार्थ कभी हावी न होने दें निस्वार्थ भाव के बंधन में ऐसा बंध जाएं सामर्थ नजरिए को समझकर विश्वास जमा कर जीवन पथ पर आगे बढ़ जाएं... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
घरौंदा सपनों का
कविता

घरौंदा सपनों का

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! अपनी चाहत को शब्दों में कैसे बयां करूँ मेरी हर यादें तुमसे जुदा नहीं है मेरी हर बात तुमसे जुदा नहीं है तेरी यादों से तेरी बातों से कभी जुदा नहीं हूं मेरे उन एहसासों को मेरे उन जज्बातों को शब्दों पिरो सकूँ ये क्षमता नही मुझ में अपने जज्बातों को काबू कर सकूँ अपने मोहब्बत को जुबाँ से बयाँ कर सकूँ अपने एहसासों को कलम से लिख सकूँ मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं है बस जिंदगी को समझना चाहता हूं जो जिंदगी मुझे समझाना चाहती है कभी शिकवा नही कभी गीला नहीं ऐ जिंदगी तुम माध्यम हो मेरी मोहब्बत की ऐसा क्या तुम जतला गई मुझे हो गमों की बस्ती में भी खुशियां तलाश लेता हूँ जिंदगी के किसी मोड़ पर कभी मिलोगी ऐ मेरी जिंदगी तो पूछुंगा जरूर तुमसे अब और क्या सिखलाना चाहती हो तुम मुझे तेरे होने का एहसास क्य...
समय
कविता

समय

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** नहीँ पता होगा क्या कल करता समय सदा ही छल रौंद रहा सारे जग को बाँध रख सबके पग को बहुत सनही मित्र बना शत्रु भाव आपूर्ण घना इससे सदा डरो तुम मन समय कहे मैं हूँ भगवन कौन कहाँ गति पहचाने समय मुदित कैसे जानें आगे ताक लगाता है बीती बात बताता है इसका पहिया चलता जाये कभी अच्छे कभी बुरे दिन लाये जो करता इसका अपमान वह भी खो देता है मान होता है ये बड़ा बलवान न देखे मानस कोइ महान हिन्दु हो या हो मुसलमान यही कराता है पहचान जीवन में है यदि कुछ पाना नहीं व्यर्थ तुम इसे गँवाना नहीं पता होगा क्या कल परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर "निधि" निवासी : बडौदा (गुजरात) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
बेटी हूं
कविता

बेटी हूं

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी हूं दो कुल को लेकर चलना है तो खुद के अधिकार के लिए रुक जाती हूं खुद की इच्छा को दफना देती हूं गलत ना होकर खुद को गलत पा लेती हूं खुले आसमान में तो मैं भी घूमना चाहती हूं पर चार दीवारी में ही खुद को पाती हूं खिलते फूलों और उड़ते पंछियों से मैं पूछती हूं जरा मेरा कसूर तो बता दो मैं भी तुम जैसा बनना चाहती हूं ना चाह कर भी अपनी इच्छाओं मार देती हूं मैं एक बेटी हूं यही मेरा कसूर है यही सोच कर मैं रुक जाती हूं परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
यूँ  ही खुद को मिटा दिया
कविता

यूँ ही खुद को मिटा दिया

कल्पना चौधरी बुलंदशहर, (उत्तर प्रदेश) ******************** यूॅं ही सब कुछ समेटते-समेटते, खुद को जाने कब कहाॅं मिटा दिया, किसी ने पूछा अगर अपना हाल, यूॅं ही बस आहिस्ता से मुस्कुरा दिया, बचा ही क्या था जलती लकड़ियों में, हृदय तिनका मात्र था वो भी जला दिया, यूॅं ही सुलगते-सुलगते एक अग्निकण ने, देखते ही देखते मन श्मशान बना दिया, मिल भी जाएं अगर सितारे अब मुट्ठी भर, चमकेंगे किस तरह जब आसमाॅं ही भिगो दिया, वक़्त रहते सम्भल जाना ही सबसे भला है, लकीर पीटने से क्या होगा, जब सब कुछ लुटा दिया, क्या कर लोगे गर भर भी लिया चाॅंद मुट्ठी में, चाॅंदनी तो तब बिखेरेगा जब, उसको आजाद करा दिया ! परिचय :- कल्पना चौधरी निवासी : बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
विश्व गुरु भारत
कविता

विश्व गुरु भारत

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** जहाँ वेद उपनिषद का अद्वितीय ज्ञान। और मिलते हैं पुराण, आरण्यक और आख्यान। तुलसी का रामचरित व वाल्मीकि जी की रामायण। समझाया है सबको, नर में ही बसते हैं नारायण। सांख्य-योग, न्याय-वैशेषिक आदि से, जीवन का मर्म है जिसने समझाया। चार्वाक ने भौतिकवाद है पनपाया। गीता ने निष्काम कर्म है सिखलाया। जो भगवान श्रीराम जैसा आदर्श जग को देता है। सीता माँ जैसी पतिव्रता पर गर्व सभी को होता है। जहाँ रामायण, गीता और है महाभारत। ये है हमारा भारत विश्वगुरु भारत। आर्यों की इस पावन धरा से, ज्ञान का शाश्वत प्रकाश हुआ। शून्य के आविष्कार को, सम्पूर्ण जगत ने मान लिया। गुरुकुल प्रणाली द्वारा शिक्षा का प्रसार किया। व्यवहारिक शिक्षा का भी यहीं से सूत्रपात हुआ। विश्व ने माना लोहा भारत का, विश्व गुरु तब कहलाया। ...
कहीं दूर…
कविता

कहीं दूर…

उदयसिंह बरी ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर कहीं र्पवतों के क्षितिज पर ठिठका है चाँद चाँदनी के लिए। घोर अंधकार में, छिटक रही चाँदनी नव कोंपलों पर शनैःशनैः। पथ की पगडंडियों पर अंकित हैं, पथिक के पदों के निशान ढूँढ रही है चाँदनी चाँद के पद निशान कहीं अंकित मिलें, प्रीतम के पांव चिन्ह तारे विस्मित, देख मुस्कुरा रहे शनैःशनैः। जीव जंतर मधुर गुंजनगान अलाप रहे शनैःशनैः। एक पैर पर उकडूं वैठा उल्लू देख रहा चाँदनी को देखते चकोर को एक टक। रात पर्वतों के क्षितिज से उतर दरख्तों के क्षितिज पर अलसायी सी भोर के सौर में पैरो में अरुणोदय का महावर लगाये, चली जा रही है उस पार.... शनैःशनैः। परिचय :- उदयसिंह बरी (साहित्यक नाम) पिता : श्री वी.एल.कुशवाह पत्नी : आ. अंजली जी निवासी : ग्वालियर, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : डवल एम.ए.(अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्...