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कविता

मैं क्या हूँ …?
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मैं क्या हूँ …?

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं क्या हूँ ? स्वयं का अहम हूँ, कौन हूँ? पानी का एक बुलबुला हूँ, फिर भी इठला रहा हूँ । क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अपने जीवन और अस्तित्व से भली भांति परिभाषित हूँ , किंतु अहम के आवरण से ढका हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अस्तित्व में आने के लिए सदैव कसमसाता हूँ, किंतु काल के गाल में कब समा जाऊं ! यह जानने के लिए, नियति को प्रतिपल मनाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। सहसा क्या देखता हूं ! काल के सम्मुख स्वयं को पाता हूँ संभलना चाहता हूँ, नादानियों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ, किंतु संभल ही नहीं पाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। फिर भी सौभाग्यशाली हूँ, अहम को छोड़कर पाप-पुण्य को त्याग कर, जीवन-चक्र को भूलकर, मुक्ति के आगोश में चला जाता हूँ। क्योंकि मैं अब "मैं" नहीं हूँ, पानी का बुलबुला हूँ। कर...
विजयदशमी
कविता

विजयदशमी

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** हर साल की तरह इस साल भी रावण का पुतला जलाएंगे बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाएंगे। पर क्या इस तरह हम अपने भीतर के रावण को मार पाएंगे बुराइयों और समस्याओं को दफन कर पाएंगे। क्या मात्र रावण का पुतला जलाने से हमारी असुरी प्रवृत्तियां खत्म हो जाएंगी घटनाएं अपहरण हत्या बलात्कार की रुक जाएंगी? त्रेता युग के एक दशानन को तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने खत्म कर दिया था पर कलयुग में तो हमारे सामने समस्या रूपी दशाननों की फौज है क्या मात्र पुतला जलाकर हम इन दशाननों को खत्म कर पाएंगे या इनसे मुक्ति का कोई और रास्ता निकाल पाएंगे विजयदशमी पर्व की खुशियां मनाने से पहले हमें सोचना होगा रावण दहन का तरीका नया खोजना होगा। तभी देश की समृद्धि और विकास में बाधक समस्याओं और बुराइयों रूपी आधुनिक दशाननों को हम खत्म कर ...
स्वदेशी अपनाइए
कविता

स्वदेशी अपनाइए

निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद (झारखंड) ******************** स्वदेशी अपनाइए स्वदेशी अपनाइए देश की शान बढ़ाइए देश का मान बढ़ाइए राष्ट्र भक्ति जगाइए जन जन कॊ समझाइए स्वदेशी अपनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ स्वाभिमान दिखा इए स्वदेशी अपनाइए आत्म सम्मान बचाइए स्वदेशी अपनाइए देश का मान बढ़ाइए स्वदेशी अपनाइए आत्म निर्भर बनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ देश का विकाश होगा हर हाथ रोजगार होगा आर्थिक सुधार होगा देश खुशहाल होगा छोड़िए मेड इन फ्रांस इंग्लैड चाईना जापान मूँछें ऐंठीये और अपनाइये मेड इन हिंदुस्तान ॥ शान से तिरंगा फहराए दुनियाँ कॊ दिखलाइए जन जन कॊ समझाइए स्वदेशी अपनाइए शुद्ध स्वच्छ स्वस्थ रहिये स्वदेशी अपनाइए "लक्ष्य" यही बनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ परिचय :- राजीव निर्दोष लक्ष्य जैन निवासी - धनबाद (झारखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचन...
मेरे प्रभु
कविता

मेरे प्रभु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं स्वर्ग में गमन करूं या फिर नर्क कुंड की अग्नि में भस्म होता रहू मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। मैं सिंहासन पर बैठा हुआ राज्य करू या फिर रंक बन भिक्षा मांगू मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। मैं जीवन के प्रारंभिक दौर में खड़ा हूं या फिर मृत्य के अंतिम छोर में खड़ा हूं मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
संघर्ष लिखूं
कविता

संघर्ष लिखूं

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जीवन का उत्कर्ष लिखूं। टप-टप बहता जिसमें श्रम है, जीवन का वो दर्श लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जहां पाऊं कांटों से छलनी। जहां बिखरी अमा की हो रजनी। जहां पग दो पग बढना दुष्कर, जहां दूर-दूर तक न हो पुष्कर।। जहां काल खड़ा हो अभिमुख प्रतिपल, उन पल पल का मैं वर्ष लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जहां पथिक एक हो, पथ अनेक। जहां पूंजी, उमंग,धीरज, विवेक। जहां हस के टाले मुश्किल को, जहां आंखें प्यासी मंजिल को। जहां भूख प्यास या थक नहीं, उस जीवन का निष्कर्ष लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
बेटी और पिता
कविता

बेटी और पिता

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** एक बेटी के लिए दुनिया उसका पिता होता है पिता के लिए बेटी उसकी पूरी कायनात होती है बेटी के लिए पिता हिम्मत और गर्व होता है पिता के लिए बेटी उसकी जिन्दगी की साँसे होती है बेटे से अधिक प्यार पिता अपने बेटी से करता है कोई गलती हो बेटी से झूठी डाँट दिखाते पिता बेटी जब कुछ मांगे तो पिता आसमां से तारे तोड़ लाये बेटी घर में जब होती है पिता को बड़ा गुरुर होता है लूट जाए धन दौलत चाहे सारा जहांन बिक जाए बेटी की आंखों में आंसू भी ना देख सके वो पिता है विदा होती है बेटी घर से पिता बड़ी पीड़ा होती पिता को आंख में आंसू छिपाकर बेटी को कमजोर नही होने देता पिता कहीं किसी कोने में फूट-फूट कर रोता है वो पिता है बेटी के विदा होने से टूट-टूटकर बिखरने लगता है पिता पिता का साया जब होता सिर पर बेटी नही घबराती कभी ...
अपनी बस्ती में…
कविता

अपनी बस्ती में…

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** रहते थे जब अपनी बस्ती में हर पल गुजरता था मस्ती में दिल खोल कर हँसने का शोर आत्मविश्वास की थी मजबूत ड़ोर रोके से भी न रूकना,थकना सबको खुश करने से न चूकना पहचान थी चमकता सितारा तारीफें लुटाता ज़माना सारा सबका भरोसा ही था सच्ची सुलझन तो रिश्तों में न थी कोई भी उलझन डाँट में भी होती थी एक प्यारी परवाह तो भटकने पर भी मिल जाती एक राह बेवजह खुशियाँ मिलती थी सस्ती में रहते थे जब अपनी बस्ती में....... परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
गंगा माँ और इजा
कविता, स्मृति

गंगा माँ और इजा

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** अविरल प्रवाहित जगत जननी की, अद्भुत धारा और गति आज देखी। इंदिरा एकादशी के अवसर इजा , जनसमूह अद्भुत भीड़ आज देखी।। पितर मुक्ति प्रदायिनी एकादशी, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बतलाई। पितर मुक्ति और आत्म शांति की, इंदिरा एकादशी परम बतलाई।। कर नमन जगज्जननी गंगा को माँ, जन्म दात्री इजा चरणों का ध्यान किया। तेरी कृपा से ही तेरे निरमित्त इजा, पाँचवां गंगा स्नान किया।। किया था प्रथम जब हे इजा, तेरी अस्थि विसर्जन करवाने आया। किया था द्वितीय इजा हे जब, त्रिमासी केस समर्पित करने आया।। छमासी तृतीय स्नान इजा, वासंतिक अवसर पर तूने करवाया। बाज्यू की पुण्यतिथि पर इजू तूने, वर्षा का स्नान चतुर्थ करवाया।। इजा तेरे पुण्य प्रताप-प्रसाद की, फलश्रुति जो तूने पंचम भी करवाया। शब्द नहीं इजा तेरी कृपा के लिए, स्नान जो तूने पंचम भी करवा...
मैं पुस्तक हूँ
कविता

मैं पुस्तक हूँ

डोमन निषाद डेविल डुंडा, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) ******************** कैसे बताऊँ क्या समझाऊँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। शब्दो में मिला हूँ, और इसी से खिला हूँ। मैं कोई कागज नहीं, मै पुस्तक हूँ। वाक्यों से समाहित हूँ, पर वर्तनी में विभाजित हूँ। मैं कोई कागज नहीं, मैं पुस्तक हूँ। सब से परिचित हूँ, फिर भी चिंतित हूँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। भावों से स्मरण हूँ, शब्दों में व्याकरण हूँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। परिचय :- डोमन निषाद डेविल निवासी : डुंडा जिला बेमेतरा (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कव...
ख्वाब
कविता

ख्वाब

सत्यम पांडेय राजीव नगर (गुरुग्राम) ******************** जिंदगी से तन्हा हूँ, ख्वाबो में जिये जा रहा हूँ, कुछ राज़ दिल के किये बयाँ, कुछ करने जा रहा हूँ, दे ताकत मेरे ईश्वर तु मुझको इतनी, जो कहने थे लफ्ज़ उससे सभी, उनको छोड़ और सब कुछ कहे जा रहा हूँ। कुछ बातें सिर्फ कही नही जाती, महसूस की जाती है, अक्सर ये बताती नहीं लेकिन फिक्र जताती है, शायद कदर उसको भी होगी मेरे इन अफसानों की, जुबां से न कहे फिर भी इशारों में बताती है। अगर जान भी माँगोगे तो मना फिर भी नही करेंगे, मगर जीने के बहाने हम ढूढ़ते जरूर रहेंगे, क्योंकि जुदा तुझसे तो रह न पाएँगे कही भी, "जा जीले उसके संग" मेरे रब भी मुझसे कहेंगे। की देख तेरा नूर, चमन में उतरा चांद है, काश तू मेरे साथ होता, बस इतनी सी फरियाद है, जैसे वो तारा रहता हैं चाँद संग हरदम, वैसे ही तेरे बिना, मेरी जिंदगी बर्बाद ह...
शाम की धूप
कविता

शाम की धूप

काजल स्वरूप नगर (नई दिल्ली) ******************** शाम की वो छलती धूप, दीप से थोड़ी कम लगती है पर कुछ अच्छी सी लगती हैं। छूती है जब तन को ठंडे पवन के साथ, शरारत सी करती है पर कुछ अच्छी सी लगती हैं। ढलते सूरज को देख ऐसा लगता है कोई किताब बस्ते में रखता है, छुट्टी होने की खुशी झलकती है इसलिए अच्छी सी लगती है। शाम की वो छलती धूप बड़ी प्यारी सी लगती है गलियों में सब निकल कर आते है बच्चे शोर मचाए चले जाते है उनपर वो छलती धूप, प्यार बरसाती है, इसीलिए सोने की छलनी सी लगती है, पर कुछ अच्छी सी लगती है। धूप के बिछड़ते ही चांद आता है रोशनी चांदनी में बदलती है, थोड़ी और शीतल होकर, जुबां पर हँसी सी खिलती है, पर कुछ अच्छी सी लगती है। पक्षियों का चहकना, हवाओं के साथ उड़ना बिना रुकावट के मन के पंखों को उड़ान देती है, इसीलिए अच्छा सी लगती है। परिचय :-  काजल पिता : सोहन सिं...
बाँटते जो रहे…
कविता

बाँटते जो रहे…

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** जो जेबों में छिपा, सूरज रखते रहे हैं- उन्हें क्या पता, स्वयं जलते रहे हैं । बाँटते जो रहे, उजालों को जितना- उनसे अंधेरे स्वयं दूर, चलते रहे हैं । अरे आंधियो, हमको धमकी नहीं दो- इस हृदय में कई, तूफां पालते रहे हैं । अपराध, क्यों ना करें, वह बताओ- सजा तो नहीं, सम्मान मिलते रहे हैं । होता राजा वही, रोक दे रुख हवा का- वरना मौसम यूँ ही चाल चलते रहे हैं । परीक्षाएँ, माना कठिन थी तुम्हारी- पर परिणाम भी अच्छे मिलते रहे हैं । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, व...
आगरम सागरम
कविता

आगरम सागरम

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** आगरम सागरम बुद्धि के नागरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम हर समय लीन तुझमे सदा मैं रहूं अपनी विपदा कभी ना किसी से कहूं हो एके करम करते जाएं धरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम है तुममें सब सब तुममें है पर्वत सागर सब तुममें है कोई कुछ भी कहे ना कोई भरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम ओंकार कहता हे दिव्य दया निधिम ना क्षमता मेरी कहूं मैं केही विधिम हुई उसकी कृपा पहुंचा शिखरे चरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम आगरम सागरम बुद्धि के नागरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम परिचय :-  ओंकार नाथ सिंह निवासी : गोशंदेपुर (गाजीपुर) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** हूँ परेशान मगर, नाराज़ नहीं हूँ ! झूठे सपनों की, मोहताज़ नहीं हूँ ! जी हूँ ग़मों में भी मज़े के साथ, मैं बिगड़े सुरों का, साज़ नहीं हूँ ! देख लिए सभी ने सितम ढा कर, मैं उनकी तरह, दगाबाज़ नहीं हूँ ! रिश्तों को निभाया जतन से मैंने, पर चुप रहूँ मैं, वो आवाज़ नहीं हूँ ! ईमान से जीने की आदी हूँ, मैं कोई दिल में छुपा, राज़ नहीं हूँ ! शान से जियो मुझे ,मै जिंदगी हू कोई पापों की सजा नही हू! परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
कागज पर लिखे
कविता

कागज पर लिखे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कोरे कागज पर लिखने को लोग। अपनी कहानीयां छोड़ जाते है। तभी तो लेखक कुछ लिख पाते है। और लोगों को जिंदगी के मायने बताते है।। प्यार मोहब्बत से, जीना चाहता हूँ। आपकी बाहों में, झूलना चाहता हूँ। जब से दिल, तुमसे लगा है। जिंदगी जीने का, अर्थ समझ आया है।। न उम्मीद होकर भी, उम्मीद से जिया हूँ। प्यार मोहब्बत के लिए, हर दिन तरसा हूँ। पर अपनी उम्मीदों, पर कायम रहा हूँ। तभी तेरा प्यार, हमें मिल पाया है।। टूट जाते है सपने तब, जब आत्मविश्वास न हो। देख कर हालात तब, छोड़कर चले जाते है। और बीच मझधार में, अकेला छोड़ देते है। और हमारी जिंदगी में, अंधेरा कर देते है।। और लेखक को कोरे कागज पर, लिखने को छोड़ देते है। और कवि लेखक को एक अच्छा सा विषय लिखने को दे देते है। और लेखक अपनी भावनाओं को कागज पर उतार देता है।। परिच...
यह जीवन है
कविता

यह जीवन है

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** रेल की दो पटरियाँ विछी हैं ज्यों दो क्यारियाँ साथ चलती हैं अनवरत बढती रहती हैं सतत रिश्तों की भी होती हैं संग बढने वाली पटरियाँ एक दूसरे पर जब चढ जाती हैं लिपट जाती हैं प्रेम वश ईर्ष्या वश कटुता वश तब भूचाल होता है संकट विशाल होता है। आहत होता है क्षत-विक्षत होता है तन-मन भी और आत्मा भी। बढने दो जीने दो अपने सुलक्ष्य पर यही प्रशांत मन है यही जीवन है परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वा...
खुशियाँ कहाँ है
कविता

खुशियाँ कहाँ है

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** खुशियों की कोई दुकान नहीं हैं कोई हाट बाजार नहीं हैं खुशियाँ कहाँ हैं ये हमारे देखने, समझने महसूस करने पर निर्भर है। बस नजरिए की बात है अपना नजरिया बड़ा कीजिए अपने आप में,अपने आसपास अपने परिवार, समाज में अपने माहौल में देखिये खुशियाँ हर कहीं हैं, आप देखने की कोशिश तो कीजिए अपने आंतरिक मन से बस महसूस तो कीजिए। हर ओर खुशियाँ बिखरी पड़ी हैं, जितना चाहें समेट लीजिये, अपनी सीमित खुशियों को हजार गुना कर लीजिए। कौन कहता है कि आप दुःखों से याराना करिए जब लेना ही है तो खुशियों को ही क्यों न लीजिए, दुःखों से दूरी बनाकर चलिए। बस एक बार खुशियों को देखने का नजरिया बदलिए, दु:खों को पीछे ढकेलना सीखिए, फिर कभी आपको सोचना नहीं पड़ेगा कि खुशियाँ कहाँ हैं, क्योंकि हर जगह खुशियों का बड़ा बड़ा अंबार लग...
बचपन
कविता

बचपन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नन्हें बच्चों के पाँव में बँधी पायल ठुमकने से जब बजती कानों को दे जाती सुकून । दादा-दादी की पीठ पर नरम नरम पाँवों से चलाने का चलन अब कहा जिससे कभी दिनभर की थकान हो जाती थी छूमंतर। नन्हे बच्चों से बिस्किट, चॉकलेट की पन्नियां घरों में बिखरती। टूटे बिस्किट के कणों को दोस्त बनकर चुगने आजाती चिड़िया। दादी के तोतले मुख से मीठी लोरियों की आवाज सपनों की दुनिया में परियों के देश ले जाती कभी। अब कोलाहल में सपने गुम। सुबह नींद में आँखे मलते बच्चों के मुस्कुराते चेहरे सारे दिन घर मे रौनक भर देते। बचपन होता ही अनोखा बचपन को हर कोई खिलाना चाहता। एक गोदी से दूसरी गोदी हर एक के साथ फोटो पूरा मोहल्ला दीवाना बचपन होता ही जादू भरा। बेफिक्री आँखों में नन्हें खिलौने नन्हें दोस्त नन्ही जिद्ध नन्हें आँसू बचपन में...
एक कसक बाकी है
कविता

एक कसक बाकी है

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** आज भी अधूरा सा है जिंदगी कि यह सफर तुम्हारे बिना- दिल तो तन्हाइयों में पागल सा ढूंढता है आज भी तेरे निंशां- ये बेकरारी आज भी दिल की धड़कनो में देती है एक आहट सी- दिल के मुंडेरों पर उग आती है अक्सर हरी दूब जिसमें एक छुपाई हुई चाहत सी- अभी भी दिल के हवादानों पर ठहरी हुई श्वासों को तेरी गंध मन को बहला जाती है- नदी के पानी में डुबोये तेरे पैरों की वह छपछप और दूर दिशा से आती हुई पुरवाई तेरे यादों की बयार से नहला जाती है- यूं तो मुस्कराता हूं छुपा कर दर्द-ओ-ग़म दिल में आज भी भला कहां है सुकून-ए-जिंदगी तेरे बिना- इंतजार-ए-इश्क और बेकरारी आज भी कायम है दीदार-ए-यार को तेरे बिना- चल रहा हूं सफर-ए-जिंदगी में लिए तेरे अहसासों को मुंतजिर सा मगर- कर गया बेनूर सा मोहब्बत में चलने का यह हमारा सफर- तुम छुड़ा कर अ...
शुक्ल पक्ष में
कविता

शुक्ल पक्ष में

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** श्राद्ध पक्ष क्वाँर मास के शुक्ल पक्ष में जब आता है पितरों को तर्पण देकर तब हर नर सुख पाता है।। मात-पिता जो देवतुल्य हैं सदा स्नेह बरसातें हैं जीवन की हर कठिन घड़ी में हम उनसे आशीष पाते हैं।। भागवत पुराण में यमराज पूज्य श्राद्धदेव कहलाते हैं प्रसन्न हुए गर श्राद्ध से तो पितर मुक्त हो जाते हैं।। मृत्यु एक अटल सत्य है यह श्राद्धपक्ष बतलाता है सेवा प्रेम समर्पण ही पुण्य है जीवन का सबक सिखलाता है।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, ...
हादसा हिज्र का
कविता

हादसा हिज्र का

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कैसी कश्मक़श है ज़िंदगानी में। क्यूँ लगी फ़िर आग पानी में।। दीदार ए यार की हसरत नहीं थी। इश्क़ रूठा है उनसे जवानी में।। हिज्र का हादसा भी लिखा था। मेरे अरमानों की कहानी में।। तुम बेवफ़ाई का मुजस्समा हो। क्या कह दिया मैंने नादानी में।। सोचकर अब तलक़ हैरां हूँ "काज़ी"। क्या मोती जड़े थे उस दीवानी में।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
कर्मभूमि के पथ पर
कविता

कर्मभूमि के पथ पर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** कर्मभूमि के पथ पर चलते-चलते जीवन की इस यात्रा में थक जाऊंँ तो साथ मेरा तुम छोड़ न देना।। सत्कर्म के कठिन मार्ग पर चलते-चलते ठोकर खाकर गिर जाऊंँ तो हाथ मेरा तुम छोड़ न देना।। जीवन संघर्षों से लड़ते-लड़ते लड़खड़ा जाऊँ तो मनोबल मेरा तोड़ न देना।। असत्य, अधर्म, अनीति के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की भांँति घिर जाऊँ तो जीवन रण में एकाकी छोड़ न देना।। श्री चरणों में भक्ति करते-करते राह यदि भटक जाऊँ तो शरण में अपनी ले लेना।। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर...
मैं नारी हुँ
कविता

मैं नारी हुँ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मैं नारी हुँ मेरे अंदर भी एक नरम दिल है एक प्यारा प्यारा सा एहसास है मैंने भी कुछ सुनहरे ख्वाब देखा है पंक्षियों की तरह आसमां में उड़ना चाहती हूँ आज समाज में नारी सम्मान विडंबना है पुरुष प्रधान समाज से नारी मन आहत है आज नारी ही नारी के कारण सबसे असुरक्षित है कारण नारी ही नारी की शत्रु बन गई है बेवजह ही नारी को आरोपित किया जाता है जबरदस्ती झूठे लांछन लगाया जाता है अपनी कोख से असह्य पीड़ा सह जन्म देती है सीने को चीरकर दुग्ध की धारा बहाती है सारा कष्ट सहनकर भी वो मरहम लगाती है नारी है तो क्या गर्त में डाल दोगे सारा समाज नारी को बोझ समझता है गर्भ में ही मारकर दुनिया में आने से रोकता है पुरुष के संरक्षण में प्रताड़ित पल्लवित होती है मंदिर में नारी शक्ति की पूजा करता है घर की नारी शक्ति को प्रताड़ित करता ह...
तुझसे शीघ्र मिलन होगा
कविता

तुझसे शीघ्र मिलन होगा

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा। दे रही है सांसारिक स्थिति संकेत, इजा तुझ से मिलन शीघ्र होगा।। खान-पान,रहन-सहन सभी का, अंतिम निष्कर्ष सामने शीघ्र होगा। दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझ से मिलन शीघ्र होगा।। हस्त, पाद, अक्षि, कर्ण, कटि, आदि का, यदि इस तरह ह्रास-गमन होगा। दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा।। शुष्क-कर्ण,हस्त-पाद को अब तो, आवश्यक न तो तेल लेपन होगा। दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा।। न होंगे सौभाग्य नियम फिर, न हाथ पर एक ही कंगन होगा। दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा।। तनाव न भोजन का रहेगा, न नियम कोई भाग शयन का होगा। वाम-दक्षिण त्याग शयन अब तो, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा।। खंडित न सिद्धां...
उड़ता यौवन
कविता

उड़ता यौवन

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नशे के साये में देखो छूट रहा है आज का बचपन, सिगरेट के छल्लों में दिखता, नजर आ रहा उड़ता यौवन।। न संस्कार दिखते हैं, न ही दिखता है अब बड़प्पन, बस मोबाइल और इंटरनेट पर बीत रहा है अब यौवन।। हर शख्स उलझा उलझा सा, नहीं समझता क्या है जीवन, बस झूठे आडम्बरों में फंसकर खो रहा है अपना यौवन।। लगता है गुजर जाएगा बर्बादी में अब ऐसे ही ये जीवन, वक़्त है अब भी सम्भल जाओ, नहीं तो उड़ जाएगा ऐसे यौवन।। चार दिन की है जिंदगी, निकल न जाये व्यर्थ ही जीवन,, अपनी सँस्कृति को पहचानकर, सवाँर लो अपना यौवन।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : म...