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कविता

सांवरे की सूरत आज भी
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सांवरे की सूरत आज भी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सांवरे की सूरत आज भी, भक्तों को बड़ी सुहाती है, गोपाल के खेल देख लो, गोपिका बहुत लुभाती है। सांवरे की सूरत आज भी, हर जन मन बस जाती है, कान्हा की मुरली देख लो, ग्वालों को बहुत सुहाती है। सांवरे की सूरत आज भी, सुंदर सा पैगाम दे जाती है, लाख प्रयास बेशक कर ले, ये मौत अटल बन जाती है। सांवरे की सूरत आज भी, गोकुल में तुम्हें बुलाती है, सूनी हो चुकी जो गलियां, वो कहानी स्पष्ट सुनाती हैं। कहीं धाम राधा कृष्ण के, कहीं द्वापर नगरी प्यारी है, कहीं बृज की होली खेलों, कहीं मटकी तोड़ तैयारी है। सांवरे की सूरत आज भी, गोवर्धन पर्वत में मिलती, अंगुली पर उठा लिया था, मानव की खुशियां खिलती। गोपियों संग में रास रसाते, ऋषि मुनियों को वो बचाते, सत्य का वो साथ देते सदा, सोये हुये को वो ही जगाते। विष्णु के...
हम ही आज है, कल भी हम ही है
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हम ही आज है, कल भी हम ही है

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हम ही आज है, कल भी हम ही है......! हम ही रीत है, रिवाज भी हम ही है......!! हम ही आजादी है, बेडियां भी हम ही है......! हम ही पंछी है, पिजरा भी हम ही है.....!! हम ही अभिमन्यु है, चक्रव्यूह भी हम ही है.....! हम ही मोहन है, बाँसुरी भी हम ही है.....!! हम ही पेड़ है, कुल्हाड़ी भी हम ही है......! हम ही नफ़रत है, प्रेम का प्रतीक भी हम ही है......!! हम ही तो आशा है, निराशा भी हम ही है......! हम ही तो पाप है, पून्य भी हम ही है......!! हम ही नदियों की कलकल है, अशुध्दियाँ भी हम ही है......! हम ही आस्तिक है, नास्तिक भी हम ही है......!! हम ही छल है, निच्छल भी हम ही है......! हम ही विध्या है, अनपढ़ भी हम ही है......!! हम ही धूप है, छाँव भी हम ही है......! हम ही शहर है, गाँव भी हम ही है......!! हम ही गीता है, कुरान ...
कान्हा की सीख
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कान्हा की सीख

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** छूटने का दर्द जानते हो??? कितना पीड़ा दायक! कितनी टीस भरी !! कितना टभकता हुआ!!! क्या जीवन में कुछ छूटने के बाद भी मुस्कुरा सकते हो??? एक बार देखो कान्हा को! सबसे पहले गर्भ छूटा माँ का! (जन्म से पहले ही) फिर माँ बाप!! फिर छूटे पालक माता-पिता! बचपन का आंगन छूटा!! संगी साथी छूटे!!! छूट गए सब ग्वाल-बाल ! छूटा पास-पड़ोस सारा !! छूटी यमुना अति प्यारी !!! और छूटे सरस सघन लता-कुंज सारे ! भरी जिनमें जीवन की प्याली!! छूट गईं... गोकुल की भोरी गोपियां! गोकुल का मिश्री-माखन!! और छूटी.... आत्मा की संगी! प्रिय राधा रानी!! आह! "चिर बिछोह"!!! क्रीड़ा भूमि गोकुल छूटा! कर्म भूमि मथुरा छूटी!! सबको आह्लाद की सरिता में अंतरात्मा तक डुबोती! जीवनदायी मुरली!! भी छूट गई हाय!!! कान्हा! जाने कितनी पीड़ा तुमने झेली...
नारी का बदलता स्वरूप
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नारी का बदलता स्वरूप

हेमी सिंह पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** टूटने लगे जब सदियों के बन्धन, दिल उड़ान भरने लगा, नारी तेरे अरमानों को तब, नया आसमां मिलने लगा। कभी ख़्वाब देखे और भुला दिये, लबों पे न कोई ज़िक्र आया, आज हर ज़िक्र ख़्वाब से शुरू ख़्वाबों पे ख़त्म होने लगा। अब चेहरा न कोई चांद सा, न हिरनी जैसी चाल है, अब चांद मुठ्ठी में लिये, सितारों पे दिल आने लगा। कल हर क़दम था दायरे में, दहलीज़ का पाबन्द बना, आज लांघकर सीमा वो, सीने दुश्मन के दलने लगा। पहले भीड़ में दूर तक कहीं, तेरी न कोई शुमार थी, आज सिर पर सजा हर ताज तेरा, पहचान एक बनने लगा। परिचय :- हेमी सिंह निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र) विशेष : चालीस‌ वर्षों का गद्य एवं पद्य लेखन अनुभव । शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) बी.एड घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
मेरी सहेली
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मेरी सहेली

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** मेरी माँ मेरी सहेली है, वो एक जादुई पहेली है, मेरी हर ज़रूरत, मेरी हर इच्छा का ध्यान रखने वाली मेरी माँ है। दुःखी होने पर मेरे आँसू पोछने वाली, गिरने पर मुझे उठाने वाली मेरी माँ है, वो मुझे जन्म देने वाली देवी हैं, मेरी प्यारी दोस्त है, मेरी माँ मेरा सम्मान है, वो इंसान नहीं भगवान है। मेरी हर बात को सुनने वाली, मुझे समझने वाली मेरी माँ है, अंजानों की दुनिया में अपनी-सी, एक अप्सरा-सी मेरी माँ है। मुझे सिखाने वाली मुझे उड़ाने वाली मेरी माँ है, उनके स्पर्श में एक जादू है, सारी परेशानी एकदम गायब हो जाती है, उदास मन फूल की भाँति, खिलखिला उठता है, दिल पंछी की तरह उड़ने लगता है। माँ केवल त्याग, प्रेम, समर्पण की नहीं, ख्वाबों, उम्मीदों, हौसले, अपनेपन की भी मूरत है, वो एक अद्भुत सूरत है। वो मेरी गुरु मेरी द...
जब उनसे बात हुई
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जब उनसे बात हुई

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कल जब उनसे बात हुई, ऐसा लगा मानो जिंदगी से मुलाकात हुई, तपते रेगिस्तान में बरसात हुई l उनसे बात करने की खुशियां मेरे द्वार थी, मेरे जीवन के पतझड़ में प्रकृति की बहार थी l ईश्वर करे यह बहार, यह खुशियां सदा मुझसे मिलती रहे, उनकी मधुर, सुरीली वाणी मेरे कानों में जीवन अमृत घोलती रहे l मेरा खुदा जानता है मुझे उनके तन की नहीं, पवित्र मन के चाह है, यह जानते हुए भी वह अनजान है, मेरे जीवन में इसी बात की आह है ल अब तो बस वह मेरे भावों को पढ़ ले, मेरे पवित्र मन को स्वीकार कर ले l अब तो ईश्वर कुछ ऐसे संयोग बनाए, मेरी जिंदगी, मेरी खुशियों से मुझे मिलाऐ l तमन्ना है जब उनसे मेरी मुलाकात हो, तब जुबान से नही मन से मन की बात हो l डरता हूं मेरी इन बातों से वह नाराज ना हो जाए, उनसे आसरूपी जो खुशी है, कही व...
कृष्ण मय हो जाए जीवन
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कृष्ण मय हो जाए जीवन

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** शब्दों तक न होकर सीमित कृष्ण सा साकार कर जाए निश्छल प्रेम उदगार कर समूचे परिवेश को संदेशा दे जाए अनुकरणी है उनकी वाणी वैसे ही उनका जीवन है समूचा जीवन संकट का है संघर्ष और नेक इरादों में जीवन को सफल बनाएं प्रतिकूल परिस्थितियां आए गर जीवन में कृष्ण सा मुस्कुराते हुए ही जवाब दे जाए अग्रणी रहे परोपकारी बने एक दूजे में परस्पर भाईचारे की भावना विकसित कर जाएं स्वार्थ कभी हावी न होने दें निस्वार्थ भाव के बंधन में ऐसा बंध जाएं सामर्थ नजरिए को समझकर विश्वास जमा कर जीवन पथ पर आगे बढ़ जाएं... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
घरौंदा सपनों का
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घरौंदा सपनों का

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! अपनी चाहत को शब्दों में कैसे बयां करूँ मेरी हर यादें तुमसे जुदा नहीं है मेरी हर बात तुमसे जुदा नहीं है तेरी यादों से तेरी बातों से कभी जुदा नहीं हूं मेरे उन एहसासों को मेरे उन जज्बातों को शब्दों पिरो सकूँ ये क्षमता नही मुझ में अपने जज्बातों को काबू कर सकूँ अपने मोहब्बत को जुबाँ से बयाँ कर सकूँ अपने एहसासों को कलम से लिख सकूँ मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं है बस जिंदगी को समझना चाहता हूं जो जिंदगी मुझे समझाना चाहती है कभी शिकवा नही कभी गीला नहीं ऐ जिंदगी तुम माध्यम हो मेरी मोहब्बत की ऐसा क्या तुम जतला गई मुझे हो गमों की बस्ती में भी खुशियां तलाश लेता हूँ जिंदगी के किसी मोड़ पर कभी मिलोगी ऐ मेरी जिंदगी तो पूछुंगा जरूर तुमसे अब और क्या सिखलाना चाहती हो तुम मुझे तेरे होने का एहसास क्य...
समय
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समय

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** नहीँ पता होगा क्या कल करता समय सदा ही छल रौंद रहा सारे जग को बाँध रख सबके पग को बहुत सनही मित्र बना शत्रु भाव आपूर्ण घना इससे सदा डरो तुम मन समय कहे मैं हूँ भगवन कौन कहाँ गति पहचाने समय मुदित कैसे जानें आगे ताक लगाता है बीती बात बताता है इसका पहिया चलता जाये कभी अच्छे कभी बुरे दिन लाये जो करता इसका अपमान वह भी खो देता है मान होता है ये बड़ा बलवान न देखे मानस कोइ महान हिन्दु हो या हो मुसलमान यही कराता है पहचान जीवन में है यदि कुछ पाना नहीं व्यर्थ तुम इसे गँवाना नहीं पता होगा क्या कल परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर "निधि" निवासी : बडौदा (गुजरात) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
बेटी हूं
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बेटी हूं

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी हूं दो कुल को लेकर चलना है तो खुद के अधिकार के लिए रुक जाती हूं खुद की इच्छा को दफना देती हूं गलत ना होकर खुद को गलत पा लेती हूं खुले आसमान में तो मैं भी घूमना चाहती हूं पर चार दीवारी में ही खुद को पाती हूं खिलते फूलों और उड़ते पंछियों से मैं पूछती हूं जरा मेरा कसूर तो बता दो मैं भी तुम जैसा बनना चाहती हूं ना चाह कर भी अपनी इच्छाओं मार देती हूं मैं एक बेटी हूं यही मेरा कसूर है यही सोच कर मैं रुक जाती हूं परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
यूँ  ही खुद को मिटा दिया
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यूँ ही खुद को मिटा दिया

कल्पना चौधरी बुलंदशहर, (उत्तर प्रदेश) ******************** यूॅं ही सब कुछ समेटते-समेटते, खुद को जाने कब कहाॅं मिटा दिया, किसी ने पूछा अगर अपना हाल, यूॅं ही बस आहिस्ता से मुस्कुरा दिया, बचा ही क्या था जलती लकड़ियों में, हृदय तिनका मात्र था वो भी जला दिया, यूॅं ही सुलगते-सुलगते एक अग्निकण ने, देखते ही देखते मन श्मशान बना दिया, मिल भी जाएं अगर सितारे अब मुट्ठी भर, चमकेंगे किस तरह जब आसमाॅं ही भिगो दिया, वक़्त रहते सम्भल जाना ही सबसे भला है, लकीर पीटने से क्या होगा, जब सब कुछ लुटा दिया, क्या कर लोगे गर भर भी लिया चाॅंद मुट्ठी में, चाॅंदनी तो तब बिखेरेगा जब, उसको आजाद करा दिया ! परिचय :- कल्पना चौधरी निवासी : बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
विश्व गुरु भारत
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विश्व गुरु भारत

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** जहाँ वेद उपनिषद का अद्वितीय ज्ञान। और मिलते हैं पुराण, आरण्यक और आख्यान। तुलसी का रामचरित व वाल्मीकि जी की रामायण। समझाया है सबको, नर में ही बसते हैं नारायण। सांख्य-योग, न्याय-वैशेषिक आदि से, जीवन का मर्म है जिसने समझाया। चार्वाक ने भौतिकवाद है पनपाया। गीता ने निष्काम कर्म है सिखलाया। जो भगवान श्रीराम जैसा आदर्श जग को देता है। सीता माँ जैसी पतिव्रता पर गर्व सभी को होता है। जहाँ रामायण, गीता और है महाभारत। ये है हमारा भारत विश्वगुरु भारत। आर्यों की इस पावन धरा से, ज्ञान का शाश्वत प्रकाश हुआ। शून्य के आविष्कार को, सम्पूर्ण जगत ने मान लिया। गुरुकुल प्रणाली द्वारा शिक्षा का प्रसार किया। व्यवहारिक शिक्षा का भी यहीं से सूत्रपात हुआ। विश्व ने माना लोहा भारत का, विश्व गुरु तब कहलाया। ...
कहीं दूर…
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कहीं दूर…

उदयसिंह बरी ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर कहीं र्पवतों के क्षितिज पर ठिठका है चाँद चाँदनी के लिए। घोर अंधकार में, छिटक रही चाँदनी नव कोंपलों पर शनैःशनैः। पथ की पगडंडियों पर अंकित हैं, पथिक के पदों के निशान ढूँढ रही है चाँदनी चाँद के पद निशान कहीं अंकित मिलें, प्रीतम के पांव चिन्ह तारे विस्मित, देख मुस्कुरा रहे शनैःशनैः। जीव जंतर मधुर गुंजनगान अलाप रहे शनैःशनैः। एक पैर पर उकडूं वैठा उल्लू देख रहा चाँदनी को देखते चकोर को एक टक। रात पर्वतों के क्षितिज से उतर दरख्तों के क्षितिज पर अलसायी सी भोर के सौर में पैरो में अरुणोदय का महावर लगाये, चली जा रही है उस पार.... शनैःशनैः। परिचय :- उदयसिंह बरी (साहित्यक नाम) पिता : श्री वी.एल.कुशवाह पत्नी : आ. अंजली जी निवासी : ग्वालियर, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : डवल एम.ए.(अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्...
वो लम्हे
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वो लम्हे

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमा कर लूँ मैं उन लम्हातों को जो तेरे आने का पैग़ाम लाते थे। तुझसे पहले किसी से कोई वास्ता न था तेरे बाद भी किसी से कोई वास्ता नहीं। बस वो लम्हे ही हैं जो मेरी आँखों में आज भी चमक रहे हैं। बस वो लम्हे ही तो हैं जो तेरे इंतज़ार में अब भी दिल में धड़क रहे हैं। तेरे आने की आहट आज भी कानों को सुकून देती है तेरे आने की आहट जैसे फ़िज़ा में ख़ुशबुओं को घोल देती है। मरकज़ मेरे इश्क़ का तू ही तो है मुक़द्दर मेरे इश्क़ का तू ही तो है। बेपनाह तेरी मोहब्बत और शोख़ी तेरी और बेइंतिहा वो बातें तेरी। जमा कर लूँ मैं उन तमाम लम्हातों को जो तेरे आने का पैग़ाम लाते थे। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...
नीरज पर नाज
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नीरज पर नाज

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* है मान बढ़ाया तिरंगे का, लाल देश के नीरज ने। खूब दिखाया बाजुए जोर, होनहार वीर के धीरज ने।। देश की माताओं को सदा, रहेगा गर्व इस सुपुत्र पर। दुलार करती भारत की बहनें, स्वर्ण पदक लाए भाई पर।। देख नीरज के पौरुष को, युवाओं में साहस है भरा। दिखा दी बाजुए ताकत, भारत का रक्त देख जरा।। भारत का मान हमारा तिरंगा, गगन में ऊंचा कर दिखाया। हे हिंदुस्तान की शान नीरज, देश के भाल तिलक सजाया।। पग पग पर उड़ी रज ने, घर-घर में संदेश सुनाया। चमकता सोने का तमगा, सोने की चिड़िया के घर आया।। दे रही आशीर्वाद मेरी लेखनी, मिली प्रगति पल-पल आपको। तत्पर सदा है तैयार कलम, शौर्यता की कहानी लिखने को।। परिचय :- गीता देवी पिता : श्री धीरज सिंह निवासी : याकूबपुर औरैया (उत्तर प्रदेश) रुचि : कविता लेखन, चित्रकला करना शैक्षणिक योग्यता : ए...
बहिन ने मांगा तोहफा
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बहिन ने मांगा तोहफा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इस राखी पर भैया मुझे, बस यही तोहफा देना तुम। रखोगे ख्याल माँ-बाप का, बस यही एक वचन देना तुम , बेटी हूँ मैं शायद ससुराल से रोज़ न आ पाऊंगी। जब भी पीहर आऊंगी, इक मेहमान बनकर आऊंगी। पर वादा है ससुराल में संस्कारों से, पीहर की शोभा बढाऊंगी। तुम तो बेटे हो इस बात को न भुला देना तुम। रखोगे ख्याल माँ बाप का बस यही वचन देना तुम। मुझे नहीं चाहिये सोना-चांदी, न चाहिये हीरे-मोती। मैं इन सब चीजों से कहां सुःख पाऊंगी। देखूंगी जब माँ बाप को पीहर में खुश। तो ससुराल में चैन से मैं भी जी पाऊंगी। अनमोल हैं ये रिश्ते, इन्हें यूं ही न गंवा देना तुम। रखोगे ख्याल माँ बाप का, बस यही वचन देना तुम। वो कभी तुम पर या भाभी पर गुस्सा हो जायेंगे। कभी चिड़चिड़ाहट में कुछ कह भी जायेंगे। न गुस्सा करना न पलट के कुछ कहना तुम। उम्र का तकाजा...
जीना सीख लो
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जीना सीख लो

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** जिंदगी बहुत छोटी है उसे हर हाल में जीना सीख लो, आयें कितने भी आंधी तूफान जिंदगी जीने का तरीका सीख लो। यदि कोई पास में हो तो उसकी आवाज में जीना सीख लो, रूठ गया हो यदि कोई उसके इस अंदाज में रहना सीख लो। जो कभी लौट के ना आने वाले हैं उसकी यादों में जीना सीख लो, हर वक्त नहीं रहता कोई साथ अपने आप में खुश रहना सीख लो। खुशी की लहरें कभी गम के साए सुख-दुख की कश्ती में तैरना सीख लो, जिंदगी बहुत छोटी है उसे हर हाल में जीना सीख लो। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्द...
बिटियाँ नहीं जान पाती
कविता

बिटियाँ नहीं जान पाती

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ अब मेरे लिए काजल नहीं बनाती ये सब बचपन की बातें थी कि मुझको नजर ना लगे | लेकिन मै तो अभी छोटी हूँ माँ की नज़रों मे भाग दौड़ की जिन्दगी मे मेरा लाड-दुलार भी खो सा गया है | मै सुनना चाहती हूँ मेरे बचपन के नाम की मुझे बुलाने के लिए माँ की मीठी पुकार और गरमा गरम रोटी रात दूध पिया की नहीं माँ की फिक्र को। किंतु अब दीवार पर माला डली है मेरे टपकते आंसुओं को देख कर मेरी माँ मुझसे जैसे कह रही हो छुप हो जा मेरी बिटियाँ | वही फिक्र के साथ मै ख्याल रखने वाला बचपन वापस पाना चाहती हूँ इसलिए माँ की तस्वीर से मन ही मन बातें किया करती हूँ आज भी | मै सोचती हूँ कि क्रूर इन्सान अब क्यों करने लगा है भ्रूण-हत्याए अचरज होता है की मै जाने कैसे बच गई माँ की ममता क्या होती ये मै कभी भी नहीं जान पाती यदि मेरी भ...
भागदौड़ की दुनिया
कविता

भागदौड़ की दुनिया

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** आकर इस धरती पर मानव कब सुख का पल तूने पाया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया। रोटी-रोटी करता मानव दिन-दिन भर फिरता रहता है। पाने को वह सुख की रोटी, भरपूर मेहनत करता है। भूख और माया चश्मे ने, मानव को है खूब थकाया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया। सूरज की किरणों संग सदा चिंता का पहाड़ है आता। क्या करना किसको पूरे दिन सब विधान वही तो बताता । अर्थ-अर्थ की दुनिया सारी, भूख अर्थ की है इक माया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय...
रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं
कविता

रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ग्यारह मास बिताये मातु बिना तो पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं | वर्ष-वर्षी तक मातृ शोक का तो, पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं || नहीं नियम पर्व कुछ भी मनाने का, सात्विकता अब्द यह बिताता मैं | आहार को आशीष से चला रहा, तो पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं || रहे दिन छियालीस अब वर्षी के, स्मृति पटल से नहीं बिसराऊं मैं | सिर पर सदैव ही जननी आशीष, तो पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं || रक्षित जीवन तेरे आशीष से, रक्षाबंधन को कैसे मनाऊँगा मैं | तेरी अनुकम्पा होगी जननी तो, पर्व रक्षाबंधन को आगे मनाऊँगा मैं || दिया लेखनी को आशीष तूने, इसे आजीवन अब चलाऊंगा मैं | तेरे आशीष से ही तेरे आदर्श हे जननी, लेखनी से आगे अब बढाऊँगा मैं || वर्ष वर्षी तक मातृ-शोक का तो, पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं | ग्यारह मास बीते मातु बिना तो, पर्व रक्...
रक्षा का बंधन
कविता

रक्षा का बंधन

नंदिता माजी शर्मा मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** एक दिन का त्यौहार नहीं ये, अनंतकाल तक का नाता है, भाई-बहनों का अद्भुत दर्पण, इस बंधन में बंधकर आता है, नहीं बंधन ये, निज स्वार्थ का , ना है कोई दबाव है, अंतर्मन का, भावनाएं बंधती है, बनकर प्रेममंजरी , नाता है ये निष्छल समर्पण का, बंधन नहीं कोई, इस रिश्तें में, ना तनाव है, बेगैरत उम्मीदों की, रिश्ता ये गंगाजल सा पवित्र है होता, जगह नहीं इसमे मतलबी ख़रीदो की परिचय :- नंदिता माजी शर्मा सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी : मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हि...
जीवनसंगिनी
कविता

जीवनसंगिनी

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** साथ तुम्हारा देता है मन को बड़ा सुकून, दूर मत होना कभी मेरी जीवन संगिनी.....!! कह नही पाया जो बात दोस्तो से, उन्हें तुमने लफ्जो से समझ कर हल कर दिया.......!! दुःख में भी साथ थी परछाई की तरह, सच कहूँ तो जीवन का सार तुम्ही हो.....!! बच्चो को बड़ा किया दिया माँ का प्यार ऑफिस भी गई, साथ मे संभाला किचिन का सारा काम......!! पूजा,व्रत ढेर रखे दिया ना खुद पर ध्यान, परिवार कि खातिर छोडा ना कोई मंदिर का द्वार..…!! कपल डे पर यही करता हूं पुकार, सात जन्मों तक बंधा रहे हमारा इस जनम का प्यार....!!!! परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस...
मैं देश के प्रहरी को राखी बांधूगी
कविता

मैं देश के प्रहरी को राखी बांधूगी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आया रक्षा बंधन पर्व। मैं तो सर्वप्रथम अपने भारत। देश के समस्त प्रहरियों को राखी। बांधूगी, मेरा रक्षा बंधन पर्व तभी। पूर्ण होवेगा। जब मैं थल, जल और वायु तीनों। सेनाओ के सैनिकों को जो। भारत के प्रहरी बन हमारी। रक्षा करते हैं, मैं उन्हें राखी बांधूगी। भारत देश के प्रहरियों के कारण ही। हम सब भारतवासी अपने देश में। अपने घरों में सुरक्षित हैं। देश के प्रहरी हमारी रक्षा। दिन और रात जाग कर माइनस। डिग्री तापमान में खड़े रहकर। हमारी रक्षा करते हैं। अपने परिवार को छोड़। भारत देशवासियों की रक्षा रखते। सर्वोपरि, इसलिए मैं उन सब। प्रहरी भाईयों को सर्वप्रथम। रक्षाबंधन पर्व पर राखी बांधूगी। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि ...
जिसकी रज चंदन सम है
कविता

जिसकी रज चंदन सम है

श्रीमती विजया गुप्ता मुजफ्फरनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** जिसकी रज चंदन सम है, कण-कण हीरे मोती माटी उगले सोना, शस्य श्यामला है धरती ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। बेकार न होगी कुर्बानी जलियां वाले बाग की चिंगारी नहीं बुझेगी अब देश प्रेम की आग की ले तिरंगा हाथों में हुई शहीद वीरों की टोली कभी खेली न किसी ने, ऐसी खेली खून की होली ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। "भारत छोडो़ " नारा ले बापू आए समरांगण में असहयोग के अस्त्र से कांपे अंग्रेज़ अपने मन में आजा़द कराया भारत, भारत मां के तोडे बंधन देश है ऋणी बापू का, करते हम उनका वंदन ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। शहीदों ने खून से सींचा, आज़ादी के पौधे को व्यर्थ न जाये बलिदान, सूखने देंगे न इसको याद रखेंगे सब कुर्बानी, जन-गण के हर मन में अमर असीम त्याग की गाथा, महके कण-कण में ...
बलिदान वीरों का
कविता

बलिदान वीरों का

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** बलिदान उन वीरों का याद हमें रखना होगा न्योछावर किए वो प्राण एहसास हमें रखना होगा मातृभूमि के चरणों में मस्तक अपना चढ़ा दिए देश-प्रेम की खातिर काँटों पर खुद को बिछा दिए माँ भारती के सपूतों का इतिहास हमें पढना होगा न्योछावर किए वो प्राण एहसास हमें रखना होगा भगत सिंह के जज़्बे को नमन व सलाम है आजाद के हौसले से आजाद हिंदुस्तान है गद्दारों से लड़ते-लड़ते मातृभूमि वो छोड़ गए बलिदान देकर वो इतिहास तक को मोड़ गए इनकी देशभक्ति की वंदना करना होगा न्योछावर किये वो प्राण एहसास हमें रखना होगा भारत की, ये आजादी उस मंजिल तक पहुंचना होगा जाति-पाति के भेदभाव को जड़ से हमें मिटाना होगा राष्ट्रपिता के अल्फाजों को अभिनंदन करना होगा न्योछावर किए वो, प्राण एहसास हमें रखना होगा !! परिचय : दुर्गादत्त पाण्डेय सम्प्रति : परास्नातक ...