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कविता

झुकाव कलम का
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झुकाव कलम का

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है। जिंदगी का हाल यही जो, मंजिल तय करवाती है। खड़ी कलम का लेखन, लिखावट बेढंगा दिखता खड़ी तीखी बोली तो, अकुलाहट ही बढ़ा सकता हालातों के चक्कर में, घबराहट बढ़ती जाती है कलम निःसंकोच लिखे, अनुकूलता बन जाती है कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है अति झुकना भी महज, कायरता युक्त निशानी यथा स्थित कलम से ही, रचनाकार रचे कहानी कुछ ज्यादा झुकने पर, कलम ताल बहकती है जीवन में यदि हरदम हो, कदम चाल खटकती है कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है कमियां, सुविधा साधन के, सब बदल गए पैमाने तकनीक ज्ञान आजादी, अब आये नवीन जमाने दूध, सूप, चाय जल भी, नमन भाव दिखाती है आदर अभिवादन नमन, पान आग्रह झुकाती है कलम चले जब झुककर,...
सात जन्मों का साथ
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सात जन्मों का साथ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मौत से पहले मैं देख लू जन्नत को। ऐसी मेरी दिलकी आरजू है। तेरे मेरी मोहब्बत को देखकर। जीने का अंदाज देख पाएंगे। और मोहब्बत को जान पाएंगे। दिलको दिल में तभी बसायेंगे।। जात पात ऊँच नीच का इसमें। कोई चक्कर कभी होता ही नहीं। क्योंकि होता है मोहब्बत में नशा। जिस को चढ़ता है ये नशा। हलचले बहुत दिलमें होने लगती है। इसलिए तो जन्नत दिखती है हमें।। मोहब्बत में जीने वाले वो जन। सात जन्मो का करते है वादा। जब भी लेंगे जन्म इस जहाँ में हम। साथ तेरे ही जीना मरना चाहेंगे। और अपनी मोहब्बत को हम। निभायेंगे सात जन्मों तक।। जैसे राधा कृष्ण की मोहब्बत को लोग आज भी याद करते है। ऐसे ही हम अपनी मोहब्बत को। यादगार बनाकर जहाँ से जायेंगे।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। कर...
आगाज़
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आगाज़

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** इन अंधेरों को बोलिए रोशनी का आगाज़ करें। इन नफरतों को बोलिए मोहब्बत का इजहार करें इन दुखों को बोलिए सुखों का आगाज़ करें। इन ग़मो को बोलिए इश्क का थोड़ा इजहार करें। इन तारों को बोलिए हमारे चांद का आगाज़ करें। इन परवानों को बोलिए जलने से पहले आपने राग को अनुराग करें। इन मुर्दों को बोलिए जलने से पहले नफरत को छोड़कर मोहब्बत का आगाज़ करें। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
महँगाई
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महँगाई

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** महँगाई में आम आदमी हो जाता हक्का -बक्का खुशियों में नहीं बाँट पाता मिठाई। जब होती ख़ुशी की खबर बस अपनों से कह देता तुम्हारे मुंह में घी शक्कर दुःख के आंसू पोछने के लिए कहाँ से लाता रुमाल ? दूसरों के कंधे पर सर रखकर ढुलका देता अपने आँसू। सरपट दोड़ती जिंदगी और बढती महंगाई में खुद को बोना समझने लगा और आंसू भी छोटे पड़ने लगे। वो पार नहीं कर पाता सड़क जहाँ उसे पीना है निशुल्क प्याऊ से ठंडा पानी। शुष्क कंठ लिए इंतजार करता जब थमेगी रप्तार तो तर कर लूंगा शुष्क कंठ अब उसे सड़क पार करने का इंतजार नहीं इंतजार है मंहगाई कम होने का ताकि बांट सके खुशियों में अपनों को मिठाई। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभ...
सबकी इक दिन इति होती है
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सबकी इक दिन इति होती है

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** सबकी इक दिन इति होती हैं। निश्चित सबकी मिती होती हैं।। आसमान पर उड़ने वाले। इतिश्री क्षिति पर होती हैं।। सबकी इक... अरे तुझे समझाऊँ मैं क्या। जाने सब बतलाऊं मैं क्या।। स्थिर की भी गति होती हैं।। सबकी इक... जब जिसके दुर्ददिन आते हैं। उसको अपने कब भाते हैं।। उलटी उसकी मति होती हैं।। सबकी इक... परोपकार के काम करो तो। धर्म नीति का मान करो तो।। जीवनी उसकी कृति होती हैं।। सबकी इक... दस इंद्री पर विजय करो यदि। सत्य वचन पर अडिग रहो यदि।। राम की सी संतति होती हैं।। सबकी इक... जो अपने को मानें सब कुछ। सब जिसकी नजरों में न कुछ।। प्रतिफल में दुर्गति होती हैं। सबकी इक दिन इति होती हैं।। सबकी इक... परिचय :-राम स्वरूप राव "गम्भीर" (तबला शिक्षक) निवासी : सिरोंज जिला- विदिशा घोषणा पत...
चंचल धरा
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चंचल धरा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छाई धुंधली सी चादर अंबर से अवनी तक या पहनी है नीलाभ चुनरी प्रकृति ने आकृतियां ढक-ढक सी जाती धुंध की गहरी सिलवटों से मानू करती हो नाच फेर लेकर आंगन में लहराते चंचल तरु पल्लव विकसित कालिका मुस्काती। एक स्वयं को नील पीत में प्रकृति आपलजाती छा जाती मृदु मुस्कान मुकुल पर छितरातीइत उत सौरभ करती स्वागत अवनी पर रक्ताभ गगन उत्साहित होता देकर रवि रश्मी को मार्ग दुवा अंकुर पर रविरश्मि की देख पहल धरा भी चंचल हो उठी पल-पल परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धा...
ऐ! चांद…
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ऐ! चांद…

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐ! चांद तू किसका है...!!! भ्रांति है चंद्रिका को तू बस उसका है !!! कभी किसी अटारी पर कभी वन-उपवन में कभी किसी के आंगन में कभी किसी के मन में कभी सरिता के जल में कभी कवि की कल्पना में चुपके-चुपके जा बसता है गर मनमीत पास हो तो शीतल अहसास देता है कभी शीतल चंद्रिका संग भी पावक-सा तन-मन धधकाता है ऐ ! चांद तू किसका है !!! भ्रांति है चंद्रिका को तू बस उसका है !!! परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहा...
पेड़ की व्यथा
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पेड़ की व्यथा

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** समय का रूख देखकर जिंदगी के रंगों का रंग और बदल जाते हैं हालात सभी। इन पत्तों की क्या विसात बड़ी टहनियां भी टूटकर और जड़े भी उखड़ जाती हैं कभी। एक हवा का झोका ही काफी हैं पत्ते उड़ाकर ले जाने को। तूफान में भी वजूद जिनका बना रहे ऐसे पत्ते संभालों आईना दिखाने को । पत्तों, फूलों और टहनियों का प्रश्न हैं सहज सी जिंदगी व दुखभरा हश्र हैं हरे रंगों की चादर में रंगबिरंगे सितारे हैं आंखों को सुकून दे ऐसे पत्ते हमारे हैं मन को महका दे फूलों की खुशबू हैं तपन को भूला दे शीतल परछाई हैं क्यों काटते पेड़ ये कैसी बेहरूमाई हैं? ऐसे लाखों प्रश्न हैं पर जिंदगी कम हैं हवा के सहारे ही जीवन का मर्म हैं दर्द किसे बयां करें किस्मत का रोना हैं तूफानों को सहने का हौंसला अपना हैं पत्तियां बिखर गई पर कोई गम नहीं हैं फूल म...
ये चांद भी
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ये चांद भी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** ये चांद भी बहुत खूब है ना पर्दा ना घूँघट ना चेहरे की चिंता ना चमक की फिकर कभी करवा चौथ में चमकता, इठलाता कभी ईद में अपनी सुंदरता बिखेरता कभी खुले आसमान की गोद में गर्व से मुस्कुराता कभी ग्रहण में छुप जाता कभी बादलों से अठखेलियां करता सदियों से सुंदरता की परिभाषा बनता वो आज भी निर्मल है, उज्जवल है, मासूम सा है भूल से अगर कही धरती पर आया होता, ना जाने कितने विवादों में फंसता बहुत पहले ही टूट कर बिखर गया होता अदालतों के चक्कर लगा रहा होता वर्ण और जाति के चक्कर में फंस के रह जाता सामाजिक विकृतियों में उलझ कर, बूढ़ा, लाचार झुर्रियों भरा चेहरा बन गया होता शुक्र है वो जमीं पर नहीं है तभी तो सुरक्षित है कविताओं, कहानियों और दादी नानी की लोरियो में ईश्वर रूपी वरदान है इंसान पर "ये चां...
देशभक्ति
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देशभक्ति

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** परिभाषा अज्ञात देशभक्ति की, देशभक्ति को कैसे पढ़ाएंगे? अवधारणा नहीं राष्ट्रोत्थान की, देशभक्ति को कैसे पढ़ाएंगे? प्रमाण मांगेंगे पराक्रम का श्रीमान् , देशभक्ति को कैसे पढ़ाएंगे? बोल नहीं सकते "वंदे-मातरम्" तो देश भक्ति को कैसे पढ़ाएंगे? करतल ध्वनि ना की राष्ट्र क्रीडकों के लिए, क्या देशभक्ति पढ़ाएंगे ? प्रतिपल स्व-स्वरूप बदलने वाले, क्या देशभक्ति को पढ़ाएंगे? समाप्त छात्रानुशासन कराने वाले, देश भक्ति को कैसे पढ़ाएंगे ? शिष्यों से गुरु हत्याएं करवाने वाले, देशभक्ति को कैसे पढ़ाएंगे ? कर शोषण गुरु संप्रदाय का, सफल देशभक्ति कर पाएंगे ? जिसको स्वयं न ज्ञान देशभक्ति का, वे क्या देश भक्ति पढवाएंगे ? शिक्षा लें गुरु सम्मान की श्रीमान् , देश भक्ति गुरु से समझ पाएंगे | बिना गुरु ज्ञान के तो श्रीमान् , देशद्रोही ही...
ख्याल
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ख्याल

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** पलकों पर ठहरे तुम्हारे ख्याल रह-रहकर दस्तक दे जाते हैं ख्वाबों की दहलीज पर! और एक बारगी उफन पड़ते हैं चांँदनी रात में ज्वार भाटा की तरह...!! वर्जनाओं के सारे कूल-कगारे तोड़!!! तब कितना डरता है मन! अंतस् में पलते दिव्य प्रेम की चिंता में!! कहीं लग ना जाए इसे दुनिया की नजर!! और हर रात दबे पांँव जो सिरहाने आ कर सो जाते हैं तुम्हारे ख्याल! वो कहीं इस रौशनी की चकाचौंध में खो न जाएँ!! फिर कहांँ से लाया जाएगा जेठ की दुपहरी भरी तपिश में शीतल मृदुल बने रहने का माद्दा!?! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
ओस की बूंदे…
कविता

ओस की बूंदे…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! ...मेरी जिंदगी हो तुम वर्षों की मेरी तलाश हो तुम बारिश की बूंदों में तुम हो कुदरत की करिश्मा हो तुम खुशी की आँसू हो तुम तिनकों में चमकती ओस की बूंदे हो तुम मनकों में दमकती हीर हो तुम फूलों की परागकण हो तुम नव पल्लवित नव कोपल हो तुम आसमां से बरसती तुषार हो तुम मेरे अपने रिश्ते में तुम हो पल पल हर पल में हो तुम मेरे कल में आज में सब में हो तुम मैं सशरीर में निहित पंचतत्व हो तुम मैं जीव मेरी आत्मा हो तुम मैं आत्मा मेरी परमात्मा हो तुम मैं प्रस्तर हुँ मेरी स्वरूप हो तुम कविता की तरह सरस मधुर हो तुम रब की सबसे खूबसूरत हो तुम खूबसूरती की कयामत हो तुम सच में मेरी इनायत की इबादत हो तुम मेरे जीवन की अमूल्य अमानत हो तुम तन-मन और दिल पे करती हुकूमत हो तुम मेरे हृदय रूपी राज्य की महारानी हो तुम मन...
दशहरा
कविता

दशहरा

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** असत्य पर सत्य की विजय का बुराई पर अच्छाई की जीत का असुरों पर सुरों की जय का पर्व है दशहरा।। नारी शक्ति की आराधना का, उसके नव रूपों की साधना का, शक्ति और भक्ति के संतुलन का, पर्व है दशहरा।। भीतर की बुराई के अंत का, खुद की शक्ति के संचार का, एक नई शुरुआत का, पर्व है दशहरा।। मन के अंधकार को मिटाने का, ज्ञान का दीप जलाने का, सुख शान्ति से जीवन का, पर्व है दशहरा।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
दिल मेरा ही छला गया
कविता

दिल मेरा ही छला गया

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** क्यूँ शब्दों के जादूगर से, दिल मेरा ही छला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।। तड़प रही थी एक बूंद को, सागर चलकर आया था, प्यासे मन से ये मत पूछो, कितना तुमको भाया था। सीने में इक आग धधकती, वो मेरे क्यूँ जला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। तार जुड़े फिर टूट गये भी, गीत अधूरे मेरे हैं, साँसों की सरगम में मेरी, सुर सारे ही तेरे हैं। बिन रदीफ़ के भला काफ़िया, कैसे यूँ वो मिला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। अक्सर ऐसा होते देखा, जो जाते कब आते हैं, इंतजार में दिन कट जाते, आँख बरसती रातें हैं। मीठी मीठी बातें करके, घूँट जहर का पिला गया उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। परिचय :- शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' (विद्यावाचस्पति) जन्मदिन एवं जन्मस्थान : २६ ...
रावण है दुष्कृत्य
कविता

रावण है दुष्कृत्य

प्रकाश सिंह लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दशहरा का तात्पर्य, सदा सत्य की जीत। गढ़ टूटेगा झूठ का, करें सत्य से प्रीत।। सच्चाई की राह पर, लाख बिछे हों शूल। बिना रुके चलते रहें, शूल बनेंगे फूल।। राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य। रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य।। परिचय :-  प्रकाश सिंह निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्प्रति : संयुक्त निर्देशक मैटेरियल्स मैनेजमेंट संजय गाँधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज लखनऊ घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
मैं स्त्री हूँ…
कविता

मैं स्त्री हूँ…

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** स्त्री हूँ सब सह लुंगी बस इतना वचन दे देना डांट देना हजार दफा सुनो जी....... इतना कर देना उपकार लाल चुनरियां में तुम्हारे साथ मनाऊँ जीवन भर करवा चौथ का ये त्यौहार !! नही जाऊंगी देहरी लांघ बिना पूछे कही मेरे तुम ही हो हमसफर सुनो जी....... इतना कर देना उपकार लाल बिंदी मैं मनाऊँ जीवन भर करवा चौथ का ये त्यौहार !! दिन रात भाग दौड़ कर कर लुंगी मैं सब कार्य सुनो जी....... इतना कर देना उपकार मंगल सूत्र पहन मैं मनाऊँ जीवन भर करवा चौथ का ये त्यौहार !! भूखे प्यासे रहकर करूँगी मैं सारे व्रत और त्यौहार सुनो जी....... इतना कर देना उपकार लाल चूड़ियों में मनाऊँ मैं जीवन भर करवा चौथ का ये त्यौहार !! नही माँगूँगी नई साड़ी कभी स्त्री हूँ सब सह लुंगी सुनो जी....... इतना कर देना उपकार पायल बिछिया पहन मैं मनाऊँ ...
सावन
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सावन

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** रिमझिम-रिमझिम बरसे बादल। झिलमिल-झिलमिल दामिनी ये। सर-सर-सर-सर झोंका हवा का दर=दर नहा रही यामिनी ये। टपक=टपक कर टपका पानी। झन-झन झरनों की झनकार। टिटुर-टिटुर कर मेंढक बोले, आयी‌ सावन की बौछार।। गड-गड-गड-गड करता अम्बर, घिर-घिर-घिर-घिर जाते मेघ। दिखे दिशाऐ चांवर जैसी, मोर मगन है मोरनी देख। चहल-पहल कलियों मन में, छन-छन घुंघरू की छनकार। चूं-चूं-चूं-चूं बोली चिडिया, आयी सावन की बौछार।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशि...
तुम्हारे दिये दर्द
कविता

तुम्हारे दिये दर्द

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** तुम्हारे दिये दर्द तुम्हारी याद दिलाते हैं मेरे दिल के घावों को और ताजा कर जाते हैं जब दर्द ही देना था तो तुमने प्यार क्यों किया अपने साथ ही मेरा जीवन भी बर्बाद क्यों किया सच्चे प्रेमी प्यार मैं दर्द नहीं देते हैं वो तो हर दर्द को अपना समझ कर सहते हैं उफ़ भी नहीं करते दर्द पाकर रोते रहते हैं चेहरा छुपाकर ऐसी क्या मजबूरी थी कि मुझे धोका दिया प्यार की जगह दर्द ही दर्द दिया अब तुम्हारे दर्द ही अमानत है मेरे पास जिंदगी भर रहेगें वो मेरे खास तुम्हें कोई दर्द न दे मेरी यही दुआ है मत करना किसी से छल‌ जो मेरे साथ हुआ है परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
मां
कविता

मां

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां कामों में उलझा रहता, और याद करता मां आंखों में सपने भरे, पर सपने तुमसे है तुम मुझमें कुछ यूं बसीं, सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने में, तुम साथ देना मां तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां रात को सर पे तेरी थापे, याद आती है आंगन की वो किलकारी, भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूं, तुम याद आती मां तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है मां अंधियारा होने पर मां, तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के, मेरा सर सहलाती थी उन लम्हों मैं में फिर से जीना चाहता हूं मां तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां शाम को घर वापस आता, बस ताला मिलता है पूरा दिन तुमने क्या किया, न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच कर, सब सह लेता हूं मां तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है मां पर...
बिटियाएँ ओझल
कविता

बिटियाएँ ओझल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक तारा टुटा आँसमा से धरती पर आते ही हो गया ओझल ये वैसा ही लगा जेसे गर्भ से संसार में आने के पहले हो जाती है बिटियाँ ओझल । तारा स्वत:टूटता इसमे किसी का दोष नहीं मगर गर्भ में ही कन्या भ्रूण तोड़ने पर इन्सान होता ही है दोषी । भ्रूण हत्या होगी जब बंद तो बिटियाएँ भी धरती पर से हमें निहार पायेगी चाँद -तारों सा नाम पाकर संग जग को भी रोशन कर पायेगी । ये बात बाद में समझ में आई टुटा तारा लाया था एक संदेशा - भ्रूण हत्या रोकने का उससे नहीं देखी गई ऊपर से ये क्रूरता । वो अपने साथी तारों को भी ये कह कर आया- तुम भी एक -एक करके मेरी तरह भ्रूण हत्या रोकने का संदेशा लेते आओ । कब तक नहीं रोकेगें क्रूर इन्सान भ्रूण हत्याए संदेशा पहुँचे या न पहुँचे पर रोकने हेतु ये हमारा आत्मदाह है हमारा बलिदान है देख...
अंतर्मन का रावण जलाओ
कविता

अंतर्मन का रावण जलाओ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** घर-घर में रावण बन बैठा, तो राम कहाँ से आएगा, कुसंस्कारी दिशा गमन करें, तो राम कहाँ से पाएगा। मनुज चरित ही धर्म-कर्महीन है, तो राम कहाँ लाएगा... कामी, क्रोधी, लोभी, हिंसा, स्वार्थी असूरी गुणी समाया है, अहंकारी, चोरी, व्यभिचारी को दैत्य कारज बताया है। छोड़ो, त्यागो, दफन करो ये सब, तब तो राम मिल पाएगा.. सोकर सपना देखोगे तो सोना कहाँ से मिल पाता है, जाग कर अपने को देखो तो सोना हीरा बन जाता है। घट-घट में जो राम बसा है वहीं तो सबको जगाएगा... दशानन दसगुणी रहा इसलिए वेदों का ज्ञान पाया है, रावण ब्राह्मण कुल लंकेश अधिपति वह कहलाया है। विद्वान होकर भी पाखंडी बना तो राम कहाँ से आएगा .. ब्राह्मण रूप धर छल कपटकर परनारी सीता को लाये हैं, मंदोदरी सखी सहेली मिल, पति रावण को समझाये हैं। पर नारी हरण हिंसाकारी...
सबसे मुश्किल होता है
कविता

सबसे मुश्किल होता है

प्रीति धामा दिल्ली ******************** सबसे मुश्किल होता है, हाँ बहुत मुश्किल होता है, उस सफलता को बस छूते-छूते रह जाना, जिसके लिए आपने जी तोड़ मेहनत की हो, जिसके सपने देखने के लिए, नींदों से बगावत की हो। जिसको पाने के न जाने कितने ख़्वाब देखे हो, जिसकी उम्मीद आपने अपने से, आपके अपनो ने तुमसे बांधी हो, सच में बड़ा मुश्किल होता है, सफलता के आखिरी पायदान पर जाकर नीचे लुढ़कना फिर से नई शुरुआत जब मैंने जीरो से सीखा था, सच में बहुत मुश्किल है, फिर से हिम्मत को बांधे रखना, कि अब फिर से कमर कस कर उस सफलता को एक बार फिर हासिल करना। बस इसी ज़द्दोज़हद में अब कट रही ज़िन्दगी है, कि आखिर कहां रह गयी वो कमी है। परिचय :-  प्रीति धामा निवासी :  दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
विजय दशमी
कविता

विजय दशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अंधकार में दीप जलाने,सत्य विजय भव कहने को। शुद्ध चरित्र करने मेरा, मैं आहूत कर दशहरे को। लंका विजय की भांति, हरलो काम क्रोध मद लोभ को। मन है पापी कपटी वंचक, हे प्रभु दूर करों इस रोग को। धर्म पथ पर गमन करूं, नमन सीता के सम्मान को। मैं कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, प्रभु दोहरा दो इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता, अवध बना दो मेरे हिंदुस्तान को। घर-घर दीप जला दो, रावण भूल गए भगवान को। भारत को बधाई, वंदन अभिनंदन पावन त्योहार को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षि...
विजयदशमी और नीलकंठ
कविता

विजयदशमी और नीलकंठ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारे बाबा महाबीर प्रसाद हमें अपने साथ ले जाकर विजय दशमी पर हमें बताया करते थे नीलकंठ पक्षी के दर्शन भी कराते थे, समुद्र मंथन से निकले विष का पान भोले शंकर ने किया था इसीलिए कंठ उनका नीला पड़ गया था तब से वे नीलकंठ भी कहलाने लगे। शायद तभी से विजयदशमी पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन की परंपरा बन गई, शुभता के विचार के साथ नीलकंठ में भोलेनाथ की मूर्ति लोगों में घर कर गई। इसीलिए विजयदशमी के दिन नीलकंठ पक्षी देखना शुभ माना जाता है, नीलकंठ तो बस एक बहाना है असल में भोलेनाथ के नीले कंठ का दर्शन पाना है अपना जीवन धन्य बनाना है। मगर अफसोस अब बाबा महाबीर भी नहीं रहे, हमारी कारस्तानियों से नीलकंठ भी जैसे रुठ गये हमारी आधुनिकता से जैसे वे भी खीझ से गये, या फिर तकनीक के बढ़ते दुष्प्रभाव की भेंट चढ़त...
माँ
कविता

माँ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** एक अक्षर का शब्द है माँ, जिसमें समाया सारा जहाँ। जन्मदायनी बनके सबको, अस्तित्व में लाती वो। तभी तो वो माँ कहलाती, और वंश को आगे बढ़ाती। तभी वह अपने राजधर्म को, मां बनकर निभाती है।। माँ की लीला है न्यारी, जिसे न समझे दुनियाँ सारी। नौ माह तक कोख में रखती, हर पीड़ा को वो है सहती। सुनने को व्याकुल वो रहती, अपने बच्चे की किलकारी।। सर्दी गर्मी या हो बरसात, हर मौसम में लूटती प्यार। कभी न कम होने देती, अपनी ममता का एहसास। खुद भूखी रहती पर वो, आँचल से दूध पिलाती है। और अपने बच्चे का, पेट भर देती है।। बलिदानों की वो है जननी। जब भी आये कोई विपत्ति, बन जाती तब वो चण्डी। कभी नहीं वो पीछे हटती, चाहे घर हो या रण भूमि। पर बच्चों पर कभी भी, कोई आंच न आने देती।। माँ तेरे रूप अनेक, कभी सरस्वती कभी लक्ष्मी। माँ देती श...