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कविता

कविता ऐसे जन्मी है
कविता, छंद

कविता ऐसे जन्मी है

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** प्रदोष छंद कविता प्रदोष छंद विधान :- यह १३ मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- अठकल+त्रिकल+द्विकल =१३ मात्रायें अठकल यानी ८ में दो चौकल (४+४) या ३-३-२ हो सकते हैं। (चौकल और अठकल के नियम अनुपालनीय हैं।) त्रिकल २१, १२, १११ हो सकता है तथा द्विकल २ या ११ हो सकता है। मन एकाग्रित कर लिया। चयन विषय का फिर किया।। समिधा भावों की जली। तब ऐसे कविता पली।। नौ रस की धारा बहे। अनुभव अपना सब कहे।। लेकिन जो हिय छू रहा। कविमन उस रस में बहा।। सुमधुर सरगम ताल पर। समुचित लय मन ठान कर।। शब्द सजाये परख के। गा-गा देखा हरख के।। अलंकार श्रृंगार से। काव्य तत्व की धार से।। पा नव जीवन खिल गयी। पूर्ण हुई कविता नयी।। परिचय :- शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' ...
माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं
कविता

माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं

गौरव हिन्दुस्तानी बरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी देह का बढ़ता ताप जब कभी ज्वर का रूप धारण करता माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। तुम्हारी कोमल हथेलियाँ स्पर्श करती तपते माथे को तुम जान लेतीं मेरे देह के उच्च-निम्न ताप को, थर्मामीटर की आवश्यकता फिर कहाँ रहती माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। औषधियाँ भी हार जाती दहकती देह से, वैध होते जब संदेह में, तब ठण्डे पानी में डूबा तुम्हारा साड़ी का पल्लू जैसे संजीवनी बूटी हो जाता, कितना आराम पहुँचाता। कभी मेरा कुह्म्लाया चेहरा कभी मेरी देह को पोछती, तुम अपनी ममता के आँचल से, तुम्हारी आँखों से गिरतीं पानी की बूँदें, देह के उच्च ताप को निम्न कर देतीं माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। मैं डूब जाता जब कभी निराशा के भँवर में तैरता, डोलता, उदासीनता की तरंगों में, हतोत्साह से घिर जाता थक कर बैठ जाता किसी भटकते पथिक की भांत...
बैचेन मन…
कविता

बैचेन मन…

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दिल की आह से- खोजती हैं नजरें किसे सूनी निगाह से- अतृप्त सी अभिलाषा मिलन की उत्कंठा लिए कौंधती सी आशा- निस्तब्ध सा खड़ा समय भी विचित्र है- दिल के कैनवास पर उभरता सा चित्र है- बांदलों की ओट से झांकता चांद सा- मन का मयूर भी हर आहट पर नाचता- अधर भी कांपते न जाने क्यों मौन हैं- तू भी चुप, मैं भी चुप, आहिस्ता दिल मे फिर बोलता सा कौन है- न जाने क्यों छिन गया दिल का सुकून है- किसी की चाहत का कैसा ये जूनून है- दिल की दिल से कैसी यह अनुरक्ति है- चाहत की धार भी रौके नहीं रूकती है- दिल के मिलन की अजीब सी ये रीति है- दिल तो अपना है पर दूसरे की प्रीति है- धड़कनें धड़कती, चलती जो श्वांस है- उनको भी किसी के आने की आस है- अपना भी अपने पर रहता कहां अधिकार है- शायद यही कहलाता शास्वत् प्यार है- बारिश की बूंदे ह...
प्रीत में डूबी
कविता

प्रीत में डूबी

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** नटनी नटखट आज बनी, बंजारन रूप । राह चलते तकती, उसी गुलाब का फूल ।। जीवन पथ में मिलता, सदा सदा यह हुक । रातों में रचती सपने, प्रेम यह पहली भूख ।। मन मंदिर में यह पूजा प्रीत लगाई आज । कल्पना में बह कर, भूल गई राह काज ।। बात बातों से ही रातें, करती रंगीन भोर । इन यादों के राह में रोड़े पढ़ता बैठा मोर ।। उड़ान भरी मन ने, जा पहुंचा बाजार । प्रीत में डूबी बंजारन, खरीदे गले हार ।। राधा जैसा रूप उसका, मन की लाग । गाती चिड़िया देखो, उसी वन में राग ।। जान है पहचान की, यह मन डोले मीत । देकर पुष्प आया हूं, उसी तीर नदी नीर ।। चला हूं उस पथ पर चले ना राग विचार । बंजारन को सांसों की सौप दी पतवार ।। मिलना - मिलाना चाहिए जीवन की धार । कर्म करुणा के काज में उल्टा गर्ग अपार ।। परिचय :- भारमल गर्ग निवासी ...
फिर से
कविता

फिर से

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुमको जीवन की मर्यादा के लिए उठना होगा। तुमको मानवता की उदारता के लिए फिर से उस ईश्वर के आगे झुकना होगा। तुम्हें असत्य को हराने के लिए फिर से सत्य से जुड़ना होगा। तुमको मानवता की रक्षा के लिए फिर से हार कर भी जीतना होगा। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ...
भारत माता
कविता

भारत माता

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** राम की स्वर्ग भूमि है, महाभारत की युद्ध भूमि है वीरों की जन्मभूमि है, संतों की यज्ञ भूमि है देवों की पूज्य भूमि है, भरत की मातृभूमि है प्रकृति के सौंदर्य भूमि है, वायु की प्रवाह भूमि है सूर्य की प्रकाश भूमि है, मनुष्यों की दात्री भूमि है गुरुवों की ज्ञान भूमि है, शिष्यों की भक्ति भूमि है महिलाओं की कर्मभूमि है, पशुओं की संचरण भूमि है नदियों के उद्गम भूमि है, हिमालय की दृढ़ भूमि है परिचय :-  भुवनेश नौडियाल पिता : स्व. श्री जवाहर नौडियाल माता : मधु देवी निवासी : पालसैण, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
हिंदी मेरी भाषा
कविता

हिंदी मेरी भाषा

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** प्यारी - प्यारी सबसे न्यारी मेरी भाषा । हिंदी पर बिन्दी हिंदी प्यारी मेरी भाषा ।। देश - विदेशों मे है जिसका गुणगान । सब से अच्छी सबसे प्यारी मेरी भाषा ।। ज्ञान - विज्ञान का अखूट भण्डार है ये । इसलिए सब जन-जन पढते मेरी भाषा ।। हिंदी पढेगा गर भारत का बच्चा - बच्चा। सम्प्रेषण में भी उपयोगी होगी मेरी भाषा ।। खेल - सिनेमा जगत ने जिसको अपनाया । एकता का पाठ हमें पढ़ाने वाली मेरी भाषा ।। सब भाषाओं के संग जिसने मेल बिठाया । भाषायी-ज्ञान जन-जन तक लाई मेरी भाषा ।। राष्ट्र-भाषा का मान-सम्मान जिसको मिला । देव नागरी लिपि जिसकी वो वैज्ञानिक भाषा ।। सूफ़ी-संत - साहित्यकारों ने जिससे यश पाया । जाति, धर्म-पंथ सब के मुख शोभित मेरी भाषा ।। सविंधान ने जिस भाषा को गौरवान्वित किया । हिंदी दिवस के रुप में जिसे मनाते वो मेरी भाषा ।। ...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** कबो ना हिंसा करन कहय ना शोषण को भरन कहय जो अय सच्ची बातें वाही हरदम ओही करन कहय कदै ना झुठी बात बताई सच्चाई की राह ले जायी मानो खुद वो नईयां होयी जो पथिक को दरिया पार करायी उस गुरु को मैं याद किया करता हूं पग बंदन मैं करता हूं पग बंदन मैं करता है बिन शिक्षक मनु जीवन नाही लागत है वो पशु समानी जो चर चारा वन से आये पशु मनु मे फर्क ना आयी शिक्षा बिन जीवन अधुरायी जबै शिक्षक मनु जीवन आये तबै सबै मे समझ ओ आये कि होनो संतब मिठू वाणी कि होनो ढोंगी अनुनायी उस गुरु को मैं याद किया करता हूं पग बंदन मैं करता हूं पग बंदन मैं करता हूं परिचय :-  मनीष कुमार सिहारे पिता : श्री झग्गर सिंह निवासी : पटेली, जिला बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्व...
घर का भेदी लंका ढाए
कविता

घर का भेदी लंका ढाए

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** बहुत सुना था बहुत हो गया किंतु अब ना सहा जाए पहले भी सत्य था अब भी सत्य है कि घर का भेदी लंका ढाए। धोखा देना परंपरा है तेरी फिर तुझ पर भरोसा कैसे किया जाए पहले भी सत्य था अब भी सत्य है कि घर का भेदी लंका ढाए। कलंक है तू विश्वास पर फिर तुझसे क्यों मित्रता की जाए पहले भी सत्य था आज भी सत्य है कि घर का भेदी लंका ढाए। विश्वासघाती की पहचान हो कैसे इस पर विचार विमर्श किया जाए पहले भी सत्य था आज भी सत्य है कि घर का भेदी लंका ढाए। परिचय :- अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गाजियाबाद घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
मेरा प्रेम
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मेरा प्रेम

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बिकने नहीं दूँगा कुछ। पर हम बेच देंगे सब। यही बात में सब को। हर समय कहता रहूँगा।। क्यों न बेचे हम अब। जब आन पड़ है संकट। क्यों ढूँढ़े हम समाधान। मिला है संपत्तियों का अभयदान।। जबतक रहेगी तब तक। उसे बेचते जायेंगें हम। अपना और अपनों का पेट। बिना परेशानी के भर देंगे।। बहुत नसीब लेकर आया हूँ। इसलिए इतनी संपदा मिली। भले बनाया हो औरों ने पर। भोगने का सुख मिला हमें।। पूत कपूत तो क्यों धन का संचय करना। और पूत सपूत तो क्यों धन का संचय करना। करना आता अगर प्रबंध तो नहीं होती कोई परेशानी। और कर लेते समस्याओं का अपने प्रबंधन से समाधान।। अल्ला दे खाने को तो क्यों जाए कमाने को। मिला है सब कुछ हमें बिना हाथ पाव चलायें। तो क्यों जोर दे दिल दिमाग और अपने हाथ पावों पर। इतना तो मिला है विरासत में कि हमारा समय निकल...
वक़्त और मैं’
कविता

वक़्त और मैं’

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज और कल में मेरा सब बीत गया जो कभी पीछे मुझसे था वो भी मुझसे जीत गया। हार का दंश मुझे अंदर से निचोड़ रहा था मेरे सपनों का महल फिर भी आगे खड़ा था। एक पल को सोचा हार मान लूँ पर जब गुज़रे रास्ते की दूरी देखी तो लगा कि ख़ुद में थोड़ी और जान डाल दूँ। फिर शुरू किया है मैंने सफ़र एक और बार इस बार मंज़िल ख़ुद कर रही है मेरा इंतज़ार। वक़्त के इम्तिहान भी क्या लाजवाब हैं तब वक़्त की कद्र न की हमने और आज वक़्त के साथ साथ मेरे पाँव हैं। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
हमारी पाठशाला
कविता

हमारी पाठशाला

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** स्कूल के वो दिन याद आते है हाफ पैंट पहनकर स्कूल जाना, सफेद शर्ट पर टाई लगाना छोटे बड़े गुरुजी कहकर बुलाना.. लघुशंका के लिए दोस्त साथ चल देना लंच टाइम का इन्तजार करना राष्ट्रीय शोक की छुट्टी की खुशी १५ अगस्त और २६ जनवरी के लड्डू.. होमवर्क न करके लाना फिर कॉपी गुमने का बहाना, सचमुच बहुत याद आते है दुबारा स्कूल मुझे जाना है.. ठंड में सोते रहना लेट होने पर पेट दर्द का बहाना, इंग्लिश ओर मैथ का वो डर आज के गम से बहुत कम था.. परीक्षा के पहले वाला डर रिजल्ट का इंतजार करना, अब सब मामूली लगता है दुनियादारी से स्कूल जाना अच्छा लगता है.. बारिश में भीगते हुए स्कूल जाना और आकर सर्दी हो जाना, आज के पीड़ा से कम था सचमुच स्कूल का टाइम मस्त था.. टूशन की वो मस्तिया स्कूल के बाहर खट्टा-मीठा चूर्ण खाना, आज के प...
हां, मैं शिक्षक हूं!
कविता

हां, मैं शिक्षक हूं!

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षक एक ऐसा दीपक है, खुद अंधकार में रहता है। करता आलोकित पथ सबका, तिल - तिल करके खुद जलता है।। हो विकट परिस्थिति कितनी भी, मेहनत का पाठ पढ़ाते हैं। मन का विज्ञान समझकर ही शिक्षण में रुचि जगाते हैं।। होते हैं ज्ञान पिपासु स्वयं, संस्कारों का करते विकास। बच्चों के स्तर पर जाकर, सिखलाते हर संभव प्रयास।। अपनाते नवाचार शिक्षण, शिक्षा गुणवत्ता में सुधार। अगणित गतिविधियां अपनाकर, करते हैं शिक्षा का प्रसार।। कर सहन प्रहार कोराेना का, दायित्व निर्वहन में डटे रहे। ऑनलाइन पद्धति अपनाकर, निर्बाध शिक्षण करते रहे।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
हिंदी
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हिंदी

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** हिंदी है ही इतनी प्यारी, जितना जानो कम है, इसमे इतना दम है, क्योंकि हिंदी से ही हम है। हिंदी ने ही मुझे बनाया बढ़ाया, मुझे सिखाया सवारा सुधारा, हिंदी है अनुपम माया, इसकी है शीतल छाया। हिंदी न मेरी न तेरी वो है सबकी, हिंदी में कुछ बात है हिंदी हमारे साथ है, हिंदी है ज्ञान का भंडार इसमें है अनेक विचार, हिंदी को बनाओ प्यार हिंदी है मेरी यार। हिंदी को बनाओ प्यार हिंदी है मेरी यार। परिचय :- ज्योति लूथरा संस्थान : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : लोधी रोड, (नई दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
मन की आँखे खोल
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मन की आँखे खोल

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** चहरे का तो रंग उड़ा है नस नस में है कपट भरा। चला ठाट से तीरथ करने घरमें है अंधकार पड़ा॥ चार जीव का दिल जलता हैं चला है शान दिखाने को। यारों के संग मौज मनाता घर में नही हैं खाने को॥ घर की परवाह उसे कहाँ सिर्फ दिखावा प्यारा है। जब पैसे की खनक बड़े तब हो जाता न्यारा है॥ लगा सके न जहा रुपईया तंग हाल में, वो घर प्यारा हैं। सिर छुपाने जगह नही तो तब होता वहीं गुज़ारा है॥ कटे विधुत खंडहर हो घर उसकी आँख नही झुकती। नाक कटे दुनिया भर में पर डिन्गा फांक नही रुकती॥ दिल दुखते हो लोगों के तो खुद खुशहाल नही होते। तीरथ कर लेने से केवल खुश भगवान नही होते॥ दुराचार की संगत से तो यज्ञ भी नष्ट हो जाते हैं। मन मे छल हो तीरथ से क्या दूर कष्ट हो जाते हैं॥ जितना कष्ट देता सब को तेरा परिवार भी झेल रहा। ईश्वर खेल ...
देश के राज्यों की विशेषता
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देश के राज्यों की विशेषता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सुनों सुनता हूँ तुमको देश की कहानी। जिसमें हैं २९ राज्यों का समावेश। राज्यों कि भी है अपनी अपनी कहानी। कोई विकसित है तो कोई है जंगल। पर सभी का ह्रदय है तो भारत। परंतु एकबात समान है सभी राज्यों में। अलग अलग राज्यों की भाषाएँ हैं। खाने और पहाने का तरीका भी अलग है। रीति रिवाजो का तरीका भी अलग है। परंतु तिरंगा के प्रति बहुत सम्मान है। तभी तो एक सूत्र में सभी राज्य बंधे हैं। और सभी का है एक ही संविधान। जो हर धर्म जातियों को समानता देता है। अनेकता में एकता जिसकी सबसे बड़ी विशेषता है। चलो आज प्रदेश के अनुसार सुनता हूँ। आपको देश के प्रदेशों की कहानी। तभी जान पाओंगे राज्यों को तुम। प्रथम में हम बात करते है कश्मीर की। जहाँ रहते है कश्मीरी पंडित। और वहां पर बहुत पैदा होती है केशर। बात करते है अब हिमाचल प्रदेश की। जहाँ के पू...
चलो तो सही
कविता

चलो तो सही

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** मत बैठना थक कर के वरना कहोगे मंजिल मिली ही नही अपने सपनों को पंख देकर उड़ान के अब तुम चलो तो सही। कौन भला क्या जीत पाया है यहाँ खुद के मन को यूं मार के रखो यकीन सब जीत जाओगे इक दिन सब कुछ हार के। हों यदि हौसले बुलंद तो क्या डरना किसी आंधी या तूफान से पर दिल न दुखे किसी का, खाली हाथ लौटना भी है जहाँन से। हो यदि मीठी जुबान तो मनुष्य का हर जगह गुणगान होता है वाणी ही बोध कराती सदा नेह का इससे ही सम्मान होता है। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच ...
आँसुओं के मोती
कविता

आँसुओं के मोती

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! तुमने जो प्यार दिया मेरे इस दिल को वो प्यार कहीं ना अब तलक मुझे मिला जिंदगी का कोई अर्थ नही था अब तक तेरे प्यार ने मुझे नई जिंदगी का अर्थ दे दिया मेरी सोनू! तूने जब से थामा है मेरा हाथ मेरा हर लम्हा-लम्हा सुलझा-सुलझा रहता है बेअदबी इल्जाम लगाया दुनिया ने मुझ पे तुम्हारे प्यार पाकर रिहा हुआ इल्जामों से अब तो तेरे प्यार पे ही भरोसा है मुझको बिना सोचे समझे एतबार किया है मुझे मैंने आँसुओं से मोती की माला पिरोया मैंने अपने गले का तुझको हार बनाया है तेरे खूबसूरती के सागर में जब से खोया फिर खुद को खुद से कभी मिल नही पाया किस्मत भी खफा हो तो कोई गम नहीं अपने प्यार से कभी भी कोई शिकवा नहीं पर सोनू तेरा हर इल्जाम का गंवारा है मुझे फिर भी मैं तूझसे ही प्यार करता रहूंगा जब-जब भी मैंने आईना को देखता हूँ ...
शिक्षक है दीपक
कविता

शिक्षक है दीपक

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** शिक्षक है दीपक की छवि जो जलकर दे दूसरों को रवि वही तो राष्ट्र निर्माता कहलाता है.... तन-मन-वचन से कर्तव्य निभायें जो प्रतिभा की आभा बिखरायें वही तो ज्ञानदाता गुरू कहलाता है.... ईश्वर से महान तो गुरू बतलाये जीवन शैली की तो गुर सिखलाये वही तो भाग्य विधाता कहलाता है.... शिक्षक सद्ज्ञान की ज्योति है वो प्रकाश पुंज की मोती है वही तो दिव्यदाता कहलाता है... सत्-असत् पथ पर चलना सिखायें विद्यार्थी जीवन का मार्ग बतलायें वही तो सुविधादाता कहलाता है ... शैक्षिक सह-शैक्षिक पाठ पढ़ाये सबक सिखाकर आगे बढ़ाये वही तो सीख प्रदाता कहलाता है.... सर्वांगीण विकास कर धन्य बनाये पढ़ा लिखाकर नागरिक बनाये वही तो जीवनदाता कहलाता है .... हर कला क्षेत्र में पारंगत बनाये प्रशंसनीय प्रयास अनुसरण कराये वही तो स...
पहली शिक्षक माँ होती है।
कविता

पहली शिक्षक माँ होती है।

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** पहली शिक्षक माँ होती है। प्रारम्भिक पाठशाला माँ होती है फिर, पिता और घर-परिवार वाले अडोस पड़ोस और सब दुनियाँ वाले सब होते हैं शिक्षक जिन्दगी को समझाने वाले शिक्षक कल -कल बहती नदिया चलते रहना सिखाती सखियाँ पत्थरों से टकराते झरने सिखाते गिर कर उठने ऊपर फैला विस्तीर्ण आकाश कहता ऊँचे उठो, भर लो मन में उजास ऊँचे कठोर पर्वत बनाते संकल्प मजबूत यह विशाल धरती सँभाले है जगती लहराती कोमल पत्तियाँ आशाओं की जगाती लहरियाँ शिक्षा का अनुदान सर्वत्र फैला है निधान प्रकृति अखिल शिक्षक है जीवन सदा नत मस्तक है। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ...
मैं शिक्षक हूं
कविता

मैं शिक्षक हूं

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* मैं शिक्षक हूँ मैं शिक्षक हूँ, नई पीढ़ी को सजाता हूँ। भरूँ मैं ज्ञान का सागर, नई गागर बनाता हूं।। बनाऊँ देश का भविष्य, मैं अनुभव पढ़ाता हूँ। रहेगी दूर अब हर बुराई, मैं नेक इंसान बनाता हूँ।। पढ़े मेरे देश के बच्चे, यही स्वप्न सजाता हूँ। करें हर क्षेत्र में नाम, ऐसा पथ दिखाता हूँ।। ना हो विचलित उनका, लक्ष्य मैं अर्जुन बनाता हूं बनूँ में स्वयं द्रोणाचार्य, मैं कर्तव्य सिखाता हूँ।। चलूँ साथ साथ हर कदम, छात्र के डर को भगाता हूं । उलझन हो अगर जीवन में, तो उसको सुलझाता हूँ।। आए जो रास्ते में जो शूल, उन्हें में फूल बनाता हूं। मेरे छात्रों के पग में न, चुभे कंकड़ हटाता हूँ।। चाहे हो गर्मी या वर्षा, सभी की मार सहता हूँ। करें आज्ञा मेरा विभाग, मैं वह काम करता हूं।। मैं शिक्षक हूँ मैं शिक्षक हूँ, छात्र के म...
शिक्षक क्या है?
कविता

शिक्षक क्या है?

गाज़ी आचार्य 'गाज़ी' मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** शिक्षक निराकार है शिक्षक का नाम संस्कार है शिक्षक फ़ज़ल है शिक्षक कोरे कागज़ को ज्ञान रूपी शब्दो से सवारनें वाली एक कलम है शिक्षक जीवन की उम्मीद अच्छे भविष्य की आस है शिक्षक चिराग है शिक्षक संगतराश है शिक्षक जलते दिये की लॉ जीवन को उज्ज्वल करती मशाल है शिक्षक अदब की पहचान है शिक्षक कोई इन्सान नहीं इन्सान रूपी भगवान है परिचय :- गाज़ी आचार्य 'गाज़ी' निवासी : मेरठ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी...
राष्ट्र निर्माता
कविता

राष्ट्र निर्माता

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** शिक्षक होता शीतल नीर समान। देता हमें जीवन जीने का ज्ञान । कैसे? करें हम उसकी महिमा बखान। माँ के बाद जग में दर्जा सबसे महान। सही राह पर चलना सीखाता। शिष्यों को लोहे से स्वर्ण बनाता। सकारात्मक नजरिया अपनाता। ज्ञान आभा से अस्तित्व चमकाता। नित चहरे पर रहती मुस्कान। शिक्षक होता शीतल नीर....। निस्वार्थ भाव से सेवा करता। कर्तव्यपरायणता से फ़र्ज़ निभाता। कार्य चाहे सीधा हो या जटिल जैसा। आदर्श छवि का इनका पेशा। पाता जग में सदा गौरव मान। शिक्षक होता शीतल नीर.....। राष्ट्र निर्माता ज्ञान प्रदाता। अंतर्मन में उजियारा लाता। अनुशासन की अलख जगाता। गुरु शिष्यों का भाग्य विधाता। हृदयपट से करें उनका सम्मान। शिक्षक होता शीतल नीर....। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** उन शिक्षको मैं प्रणाम करती हूं उन शिक्षकों में शुक्रिया करती हूं जिन्होंने जीवन का मार्गदर्शन करवाया दीपक की तरह जीवन को रोशन बनाया संसार रूपी दुनिया से कुछ ऐसे रूबरू कराया जैसे नादान परिंदो को उड़ान भरना सिखाया कभी नारियल तो कभी फूल जैसा समझाया आत्मबल स्वाभिमान के साथ जीना सिखाया किताबी ज्ञान एवं अनुभव का पाठ पढ़ाया हर मुसीबत से निकालने का मार्ग बताया उस शिक्षक को कैसे भूल जाऊं जिससे मुझे हर पल जीना सिखाया परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
अनुभव ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक
कविता

अनुभव ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक

नंदिता माजी शर्मा मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** शिक्षक की है परिभाषा अनेक, एक शिक्षक अनुभव में भी देख, स्कूलो में पढ़ते हैं पठन-पाठन, कालेज में दिखता प्रत्यक्ष उदाहरण, किताबों ज्ञानसे अलंकृत होता मन, असल शिक्षा तो देती है यह जीवन, ज्ञान का भी है खेल, अजब निराला, अज्ञानी यहां जपते हैं, ज्ञान की माला, असफलताएं देती है बहुमूल्य अनुभव, संघर्ष है सफलता का स्वर्णिम सौरभ, आजीवन यह अनुभव रहता है संग, निरंतर प्रयत्नों से ही जीत जाते है जंग, जीवन के कठिनाईयां होती है, असल समीक्षक, अनुभव ही होता है, हमारा सर्वश्रेष्ठ शिक्षक। परिचय :- नंदिता माजी शर्मा सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी : मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...