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कविता

मास्क बनाओ ढा़ल।
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मास्क बनाओ ढा़ल।

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** उड़ती हुई धूल कण से, छोटे कोरोना कण हैं। हैं सुगंध कण जैसे लेकिन, गंध हीनता गुण है।। गोल गोल आकृति पाई है, गोल गोल ही सिर हैं। धूल कणों के साथ तैरते, चलें कभी स्थिर हैं।। कोरोना मरीज के तन से, उड़ते बन गुब्बारे। मानव तन से भूख मिटाने, फिरते मारे मारे।। स्वांसों से कर मेल, नासिका से प्रवेश वे पाते। स्वांस नली से तैर वायरस, फैंफडों में बस जाते।। ऑक्सीजन को हटा, छेद में अपने पैर जमाते। पल-पल में अपने जैसे, लाखों वायरस उपजाते।। साहस का है काम यहां, अपना एकांत बनाना। प्रभु है मेरे साथ स्वयं को, बार-बार समझाना।। जाना आना मास्क लगा, मत पास किसी के जाना। समय बुरा है कुछ दिन तक, घर में भी मास्क लगाना।। कोरोना अदृश्य वायरस है, शत्रु वत आ जाए। ढाल मास्क की धारण करना, ये ही जान बचाए।। विश्व युद्ध यह लड़ना ह...
कितनी उदास सुबह है
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कितनी उदास सुबह है

प्रेक्षा सक्सेना भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कितनी उदास सुबह है क्या इसी की प्रतीक्षा में काटी थो वो स्याह रात नहीं देखा कोई स्वप्न क्या इसी यथार्थ के भोग हेतु? पूर्ण नहीं होते कुछ स्वप्न दुराग्रह होती हैं कुछ आकांक्षाएँ अभेद्य होता है मोह का चक्रव्यूह प्रतिक्षण अटल होता निर्मम सत्य क्यों फिर अपने निकृष्टतम रूप में भी जीवन होता है मृत्यु से श्रेष्ठ? नयनों की कोर पर बनाकर बाँध समुद्र को सीमित करने के प्रयास किंतु दुस्साहसी लहरों का कोलाहल हृदय की गहराईयों तक गूँजता है क्यों रुदन पीड़ा की अभिव्यक्ति है जब रुदन से ही होता है जीवन प्रारंभ ? अनकहे शब्दों के अनुभूत स्पंदन और हृदय पर लिखा शिलालेख सा प्रेम जीवित हैं समर्पण की पराकाष्ठा पर स्वार्थ नहीं सींच पाता कभी शुद्ध प्रेम क्यों सदैव होना है अभिव्यक्त स्पर्श से जबकि सीप में छुपा अनछुआ मोती है प्रेम? ...
व्यथा
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व्यथा

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम में मिले आँसू, नहीं होते अभिशाप! जब बहते हैं किसी प्रेमिका की आँख से तो उस बहाव में, अठखेलियाँ करती हैं, मधुर स्मृतियाँ.... जिनमें होते है प्रेम में बीते वे अनगिनत क्षण वो हाथों का स्पर्श!!!! जिनमें था साथ निभाने का वचन! वो माथे पर अंकित चुम्बन,... जो द्योतक था आत्मा के स्पर्श का वो विरह के क्षण,..... जिनमें था सदैव राह तकने का समर्पण प्रेम में मिले आँसू "सौगात" है उम्र भर की प्रतीक्षा की!!! ये प्रतीक्षा है, सच्चे प्रेम में पगे व्यथित हृदय की जो सदियों से करती आई है, एक स्त्री प्रेमिका के रूप में.... ओर पाती आयी है "सौगात" सदा के लिए प्रतीक्षा की.... परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समा...
श्राद्ध दिवस
कविता

श्राद्ध दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! फिर इस बार भी श्राद्ध दिवस की दिखावटी ही सही औपचारिकता निभाते हैं, सामाजिक प्राणी होने का कर्तव्य निभाते हैं। जीते जी जिन पूर्वजों को कभी सम्मान तक नहीं दिया बेटा, नाती, पोता होने का आभास तक महसूस न किया, अपने पद प्रतिष्ठा और सम्मान की खातिर, बिना माँ बाप के खुद के अनाथ होन का प्रचार तक कर दिया। जिनकी मौत पर मैं नहीं रोया उनकी लाश तक को अपने कँधों पर नहीं ढोया, क्रिया कर्म को भी ढकोसला और फिजूलखर्ची के सिवा कुछ भी नहीं समझा। पर आज जाने क्यों मन बड़ा उदास है, एक अजीब सी बेचैनी है जैसे पुरखों की आत्मा धिक्कार रही है, लगता है श्राद्ध का भोजन माँग रही है। आखिर श्राद्ध का भोज मैं किस-किस को और क्यों कराऊँ? जब औपचारिकता ही निभानी है तो भूखे असहायों को खिलाऊँ मेरे मन का बो...
रुकना तेरा काम नहीं
कविता

रुकना तेरा काम नहीं

सविता वर्मा "ग़जल" मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) ******************** रुके ना तू, झुके ना तू रुकना तेरा काम नहीं हाँ,झुकना तेरा काम नहीं तू धरा बन, धैर्य धीरज ह्रदय बीच समाहित कर। तू हवा बन बहती जा रुकना तेरा काम नहीं अडिग हिमालय सी, दृढ़ निश्चयी बन हर मुश्किल के आगे, शीश उठाकर खड़ी रहे तू नदियां सी बहती जा रुकना तेरा काम नहीं कठिन परीक्षा की घड़ी में न किंचित तू घबरा जाना वक्त पड़े तो मनु बन दुश्मन से टकरा जाना तू समय की धारा बन रुकना तेरा काम नही।। परिचय :- सविता वर्मा "ग़जल" निवासी : मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) जन्म : १ जुलाई पति : श्री कृष्ण गोपाल वर्मा जन्म-स्थान : कस्बा छपार जनपद मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) संस्थापक अध्यक्ष : शब्द संसार साहित्यिक मंच, मुज़फ्फरनगर" प्रकाशित पुस्तक : "पीड़ा अंतर्मन की" काव्य संग्रह २०१२, "एक थी महुआ" कहानी संग्...
इम्तिहान
कविता

इम्तिहान

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** नारी जन्मते ही देने लगती है इम्तिहान, जिसे देने में उसे लग जाती पूरी जिन्दगी, जिसमें वह कभी भी पास नहीं होती, उसकी कॉपी भरी रहती है लाल-लाल निशानों से, जो उसके जिस्म को, दिल को करते रहते हैं लहुलुहान पिता, पति, फिर बेटा और समाज बारी-बारी से बनते रहते परीक्षक, कड़े पहरे में लेते रहते हैं इम्तिहान परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
गुरु शिष्य
कविता

गुरु शिष्य

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** गुरु शिष्य का रिश्ता है प्रेम भाव से निभता है, गुरु ज्ञान रत्नों का भंडार है देकर शिष्य को, दिलवाता समाज में प्रतिष्ठा मान-सम्मान है। शिष्य गुरु चरणों में जब झुकता है, तभी तो उसको ज्ञान अमृत फल मिलता है। आओ, गुरुओं का मान करें मिलकर दिल से उनका सम्मान करें। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
हवा से एक मुलाकात
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हवा से एक मुलाकात

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** हवा से एक मुलाकात हुई, उसने अपनी व्यथा सुनाई। जो बहता था मंद सुगंध, कहते हैं हवा में वायरस समाई।। मुझसे जीवन मुझमें आश, कौन बुझाएगा मेरी प्यास। वृक्ष कटी हुआ प्रदूषित, वायुमंडल हुई अव्यवस्थित।। धरा प्रकृति हो रही धराशाई, भूतल पर ये विपदा आई। कैसे हो रही राम तेरी गंगा मैली, जल संरक्षण की मैली मैली।। चारों ओर आवाजों की शोर, डी जे जैसे हृदय झंकृत शोर। ध्वनि प्रदुषित का है आलम, मेरी ब्यथा कैसे होगा अंतिम।। हवा की बातें सुन हुआ सशंकित, राम तेरे राज में कैसे खिलेंगे पुष्पित। चारों ओर न कोलाहाल होंगा, प्रेम,अमन,शांति का आलम होंगा। वृक्ष लगाएंगे होगी वर्षा, सुख के बादल बरसेंगे। प्रकृति की श्रृंगार होगी, फिर जीवन हर्षित होंगे।। हरे भरे होंगे वन उपवन, प्रसन्न रहेगा मानव मन। मनु प्रगति के नई सोपान, श...
स्कूल का ताला
कविता

स्कूल का ताला

प्रीति धामा दिल्ली ******************** आज स्कूल से गुजरते वक़्त ताले ने आवाज़ लगाई,सुनों! मैं भी ठिठक कर रुक गई। कहने लगा कहो कब तक मुझें यहां से आज़ाद करवाओगे? कब से फिर बच्चों की चहलक़दमी से स्कूल सज़वाओगे। बड़ा दुःखी मेरा स्कूल पड़ा है, अब ये व्यथा कही नहीं जाती। रोते-बिलखते दोस्तों की पीड़ा सही नहीं जाती। आश्चर्य से देखकर मैं बोली दोस्त? कौन से भई? मेरा दोस्त "ग्राउंड" उसका वो सूनापन मुझसे देखा नहीं जाता, क्यों कोई बच्चा उसपे अब खेलने नहीं आता मेरा दोस्त "ढ़ोल" कब से मौन बैठा है कब से न कोई मीठी तान बजी, न बच्चों की प्रार्थनाओं की लाइनें ही सजी। मेरा दोस्त डेस्क न जाने क्यों उदास है, कह रहा था नींद आने पर बच्चा संजू कब मुझ पे फ़िर सिर टेक कर सोयेगा? "टंकी" का तो हाल बुरा है, रोते-रोते मंजू को याद बहुत वो करती है, टीचर की डांट डपट सुन वो यहाँ जब मुँह ध...
हिंदी
कविता

हिंदी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** स्वर व्यंजन की वर्णमाला जिसने शब्दों का शिखर है ढ़ाला शब्दानुशासन का व्याकरण से है नम्रता भरा आचरण रस, छंद और अलंकार से सजा साहित्य का सर्वोत्तम श्रृंगार हृदय में समेटे विशाल शब्दकोष मुहावरे और लोकोक्तियाँ जगा दे जोश साहित्य की जान सभ्यता की शान और राष्ट्र की पहचान "हिंदी" से सुशोभित हिंदुस्तान परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
तीक्ष्ण प्रखर दिनकर
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तीक्ष्ण प्रखर दिनकर

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सिमरिया के सरोवर में... प्रस्फुटित एक अद्भुत कमल! सौम्य तेजस्वी दिनकर!! मार्तंड सा था भास्वर! काव्य के दिव्य गगन में... दिनकर की वाणी प्रखर!! आजीवन गाते रहे मानवीय चेतना के उन्नायक: गायन अमर! कभी सिंधु गर्जन को ही दे दी चुनौती और बने युगधर्म के विकट हुंकार! रस में डुबो रसवंती रचा काव्य सरस सुंदर! उर्वशी का अद्भुत श्रृंगार!! आमजन के न्याय के हित रहे ललकारते ही सदा हारे न कोई जीवन समर। विद्रोह ओज के कवि तुम रश्मिरथी कुरुक्षेत्र में भर उठे प्रचंड हुंकार! पद्य के साथ गद्य में भी लिख डाले अध्याय चार! भारत संस्कृति के सुंदर!! राष्ट्रीय चेतना जाग्रत... कर जन-गण के अंतस में... बने राष्ट्रकवि दिनकर! रवि सम तेजोदीप्त छवि ! राग के संग आग का कवि !! विमल यश फैला संसार !!! ...
वो कुमकुम वाले पैर
कविता

वो कुमकुम वाले पैर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो कुमकुम वाले पैर, कलश गिरा कर जब आँगन में आते हैं न जाने कितनों के जीवन में वो ख़ुशियाँ ले आते हैं मेहंदी वाले हाथ जब बड़ों के पग लग जाते हैं न जाने कितनों के मन को वो हर्षित कर जाते हैं लालायित मन होता उसका भी अब ये घर मेरा होगा मायके रात आख़िरी बिता के आयी पिया के घर नया सवेरा होगा डोली में सज के आयी हूँ अर्थी में तुम ले जाना फ़र्ज़ करूँगी अपना पूरा बस तुम सच्चे साथी बन जाना। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवित...
गांव की मिट्टी
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गांव की मिट्टी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** गांव की मिट्टी पावन चंदन लगती है। लहलहाती फसलें शत्-शत् वंदन करती है। पीपल की शीतल छांव तले, झीने घूंघट में पनिहारी स्वागत करती है। रुनझुन घुंघरू बजते पग बैलों की जोड़ी, नाचे मोर पपिया कोयल गीत सुनाती है। खेतों में निपजे हीरे मोती, मीठी-मीठी खुशबू रोटी बाजरे की आती है। सूरजमुखी शर्मिली, नवयौवना सरसों, चंचल गैंहू की बाली झुक झुक नर्तन करती है। बालू के टीले नदी किनारे अन्नदाता की जननी, मेहनत कश गांव की मिट्टी अभिनंदन करती है। नन्हे गोपालक संग धेनु चलती खेतों में, कृषक बाला गुड्डियों का ब्याह रचाती है। घनीभूत भ्रमर का गुंजन खग कल्लोल करते, गांव की मिट्टी सब का आलिंगन कर लेती है। अनजान पथिक भी पाता यहां ठिकाना, ममता का सागर उमड़े प्रेम की गंगा बहती है। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान...
हिंदी भाषा निराली
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हिंदी भाषा निराली

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** हिंदी भाषा सबसे अच्छी, लगती हमको प्यारी हैं। सारे जग में देख लिया, यह सबसे बड़ी निराली हैं।... हिन्दोस्तां की ज़ुबान है, भारतवंशी का अभिमान है। प्यारें वतन की शान है, हम सबकी पहचान है। हिंद राष्ट्र की आशा हिंदी, हम सब मातृभाषी है। सारे जग में बोली जाये, बस इसके अभिलाषी है। हिन्दी भाषा सबसे अच्छी....। गणराज्य की अधिकारिक भाषा, हमारी संस्कृति का प्रतीक है। राष्ट्रभक्ति को प्रेरित करती, धारा प्रवाह में बड़ी सटीक है। दुनिया में सम्मान है इसका, हमें स्वाभिमान दिलाती है। गौरव भाव जगाती सब में, निम्न उच्च का भेद मिटाती है। हिन्दी भाषा सबसे अच्छी....। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
बिखरती पंखुड़ियों की आह!
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बिखरती पंखुड़ियों की आह!

रजनी झा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कली-सी कोमल कन्या थी वो, खिल भी अभी ना पाई थी, हाय रे! तेरा पापी मन जिसमें हैवानियत छाई थी, कैसे तेरे हाथ ना कापें, उस कोमल कपोल को तोड़ने में, हैवानियत की हद पार कर दी तूने, अपने चित्त को भरने में, था कसूर उस किशोरी का क्या, ये आज बड़ा सवाल है, क्या बेटी बनकर जन्मी थी इसलिए हुआ उसका ये हाल है? क्यों हिय पे वश नही था तेरे, क्यों राक्षस बन उजाड़ा, उस कन्या का उज्ज्वल सवेरा, दिया है जख्म उसे जो तूने, कभी ना भर पाएगी, दुनिया की कोई दवा उस पे असर ना दिखलाएगी, तुझको फांसी मिलने पर भी हमें तरस ना आएगी, उस बाला की बदहाली पर ये, उठता बड़ा सवाल है, क्या बेटी बनकर जन्मी थी इसलिए हुआ उसका ये हाल है....??? परिचय :  रजनी झा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलि...
हिन्दी है भारत की पहचान
कविता

हिन्दी है भारत की पहचान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** (१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता प्रतियोगिता विषय हिंदी और हम में तृतीय स्थान प्राप्त कविता।) पंक्तियाँ - १९ हिंदी है गौरव गान की भाषा ... हिंदी है हिदुस्तान की आशा ... वाचन में बेहद सरल हैं, लेखन में बहुत आसान हैं ... पठन में सहज सुबोध हैं, हिंदी ही मेरी पहचान हैं ... हिंदी है जन-संपर्क की भाषा.... हिंदी हमारी मान है, हिन्दी में ही राष्ट्रीय गान है ... हिंदी हमारी शान हैं, हिन्दी ही मानस वरदान हैं ... हिंदी है जन-संपर्क की भाषा.... हिंदी हमारी आत्मा है जो भावनाओं की साज़ है ... हिंदी विचारों की माला हैं जो अंतर्मन की आवाज़ है ... हिंदी है जन-संपर्क की भाषा.... हिंदी ही हमारी सहारा हैं, जो प्राणों में बहती धारा हैं ...
हिंदी की महत्ता
कविता

हिंदी की महत्ता

डॉ. उमेश पटसारिया डबरा, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** १४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता प्रतियोगिता विषय हिंदी और हम में द्वितीय स्थान प्राप्त कविता। पंक्तियाँ - १२ विधा - मुक्तक मापनी - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सनातन और है सबसे पुरातन सभ्यता हिंदी। धरा पर बह रही बनके त्रिपथगा और कालिंदी। करे मां भारती के भाल को ऐसे सुशोभित ये, चमकती नववधू के भाल पर जैसे लगी बिंदी। रखे जो जोड़कर सबको वही इक डोर है हिंदी। मिटा दे जो तमस को वो सुहानी भोर है हिंदी। बहे हर भाव को लेकर धरा पर इस तरह से ये, जहां साहिल मिले सबको कि पावन छोर है हिंदी। जहां तुलसी कबीरा ने बढ़ाया मान हिंदी का। वहीं पर आज क्यूं धूमिल हुआ सम्मान हिंदी का। उठाएं आज हम मिलकर कसम ये देश के वासी, करेंगे हम सभी मिलकर सदा उत्थान ...
हिन्दी और हम
कविता

हिन्दी और हम

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** (१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता विषय हिंदी और हम में प्रथम स्थान प्राप्त कविता।) पंक्तियाँ - १२ गोमुख से जैसे आकर गंगा निर्मल निकली देवभाषा संस्कृत से पावन हिन्दी प्रबल निकली।।१।। धरा को सरस सुहावन, पतित पावन बनाती सुरसरी सरकती सचल निकली।।२।। भाव-भाषा, ज्ञान-विज्ञान को संग लेकर हिन्दी प्रमुदित, हर्षित, चहुँदिश सजल निकली।।३।। जन-मन को हरषाती, अति पुलक बढाती देश-विदेश बढती, सरसाती सकल निकली।।४।। गद्य-पद्य में कवि व लेखकों को अपनाती गौरव-गान गाती, गीतों में मचल निकली।।५।। गाय, गंगा, गीता सी परम पावनी हिन्दी जन-मन भाती हिन्दी, सर्वत्र सबल निकली।।६।। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखन...
मेरा प्यारा घर
कविता

मेरा प्यारा घर

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक प्यारा सा है घर मेरा, जहाँ है मेरे अपनों का बसेरा।। यहाँ महकते हैं रिश्ते, धड़कता है दिल मेरा, खिड़की पर है चिड़ियों की गुंजन, आँगन में तुलसी की छाया।। सर्दी, गर्मी, बारिश, हर मौसम की मार से, यही है बचाता, त्योहारों की गरिमा को भी, हर बार यह बखूबी निभाता।। कभी लहराता तिरंगा ऊपर, कभी दीवाली के दीपों से जगमगाता, कभी गूंजता शंखनाद, तो बच्चों की हँसी से खिलखिलाता।। मिलता है जो सुक़ून घर पर, उसे न कोई कहीं ओर है पाता, ईंट, पत्थरों, सीमेंट का मकान नहीं, यह हमारा प्यारा घर है कहलाता।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं...
सिद्धि विनायक
कविता

सिद्धि विनायक

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालन कर्ता, सिद्ध सबके काज कराते मूस की सवारी करते ..!! जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालनकर्ता ..!! मात-पिता के आप सेवक बुद्धि के आप हो प्रेरक, लड्डू को जो भोग लगावे रिद्धि-सिद्धि संग पधारे ..!! जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालनकर्ता ..!! घर-घर मे पूजन होवे बप्पा की सब जय जय गावे, पिता महादेव और माता पार्वती संग पधारो जल्दी मेरे अविनाशी ..!! जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालनकर्ता ..!! प्रथम आपका पूजन होवे बाद आपके इष्ट बुलावे, जो भी द्वार तुम्हारे आता खाली हाथ कभी ना जाता जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालनकर्ता ..!! देवलोक के तुम सरताज सुन ले गजानन मेरी पुकार, मनोकामना पूर्ण करो दुःखो से नैया पार करो ..!! जय जय जय गणपति बप्पा त...
आज की हिन्दी
कविता

आज की हिन्दी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा, पुल बनी राजधानी है। तब बचपन का चंदा मामा, अब चन्द्रलोक यात्रा है। शोधपरक हिन्दी वृत्तांत में, भाव शब्द की मात्रा है। आजादी रण के सहयोगी साहित्य पात्र पात्रा है। पुरातन ज्ञान सभ्यता रीति, बहुत प्रखर निशानी है। कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा, पुल बनी राजधानी है। गति प्रगति चाल सदा दिखती, वांछित जगह निराली है। अनेक राज्य संघ क्षेत्र में, हिन्दी छटा हरियाली है। अंग्रेजी वर्चस्व के साथ, हिन्दी प्रेम तो आली है। जीवन-मूल्य संस्कारों की, सच पहचान करानी है। कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा पुल बनी राजधानी है। जो यौगिक मौलिक भौतिक है, सारी दुनिया गूंजा ह...
मुहब्बत
कविता

मुहब्बत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** आंखों में थी आरज़ू मुलाकात की। सागर जानता है बेबसी बरसात की। न सही मैं बनूं हमसफ़र आपका, क्यों हुई यूं बेदखली जज़्बात की। याद आपकी आई नदी बाढ़ सी, भूलने का तरीका बता ख्यालात की। लौट के सो गए परिंदे शाम के, मैयखाने से खबर नहीं रात की। सुना हूं दीवारों के कान होते हैं, करूं किससे चर्चें इस बात की। इतनी बेगैरत नहीं मुहब्बत हमारी, चांद से पूछ्ते है तारें औकात की। रिश्तों के अदब की नजीर रह गई, नहीं दुनिया देती दाद मेरी बिसात की। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
मेरे साथ
कविता

मेरे साथ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब योवन पर आती नदियाँ मछलियाँ तब नदी के प्रवाह के विपरीत प्रवाह पर तेरती छोटी-छोटी धाराओं पर चढ़ जाती सीधे नदियाँ मिलना चाहती समुद्र से मछलियाँ देखना चाहती नदियों का उदगम सागर से मिलती जब नदियाँ लाती साथ में कूड़ा करकट सागर को बताने ऐसे हो जाती है दूषित प्रदूषण फ़ैलाने वालों इंसानों से जल को स्वच्छ बनाने के लिए बहकर जाती नदियाँ मछलियों से कहती बस तुम ही तो हो मुझे स्वच्छ बनाने वाली और तुम्हारे सहारे ही मै रहूंगी भी कुछ समय जीवित तब तक जब तक तुम रहोगी मेरे जल में मेरे साथ परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों मे...
चांद पर पग
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चांद पर पग

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** करने वाले कर गये। चांद पर पग धर गये। थी विफलता अनगिनत, पर अंततः,उतर गये। चांद पर पग धर गये। क्या भला उनका नहीं, ऊंचाईयों से मन कांपा होगा? जब धरा के सब समंदर, पर्वतों को लांघा होगा। पर संभाला उर को निज, नित नया कुछ कर गये। चांद पर पग धर गये।। जब आसमां की गोद ने, उनका पथ, भटकाया होगा। क्या उमडते, मेघों से, मन उनका न, घवराया होगा? पर धरा धीरज हृदय में, धीर होकर चल गये। चांद पर पग धर गये।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
जीवन
कविता

जीवन

नीलू कानू प्रसाद उदलाबारी (पश्चिम बंगाल) ******************** जीवन है हमारा इंसान का पर अहंकार है समुंद्र सा बड़ा! "मैं" कुछ ऐसे भी गरीबी देखी हूं! जिसके पास पैसे के सिवा कुछ नहीं है! किसी को इज्जत यह देखकर मत करो! कि वह कितना बड़ा महान पुरुष है ! बल्कि यह देखकर करो कि वह उसके काबिल है या नहीं यह नहीं होना चाहिए कि रास्ता सही हो! "बल्कि हमारे साथ कुछ ऐसा हो जहां पांव रखे वो रास्ता सही हो जाए" परिचय :- श्रीमती नीलू कानू प्रसाद निवासी : उदलाबारी (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताए...