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कविता

सत्य पथ को आजमा ले
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सत्य पथ को आजमा ले

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** तू रात दिन रोता फिरे, निज़ पाप का परिणाम है। प्रारब्ध को भी समझ तू, जो पाप तेरे नाम है। तू न समझेगा अभागे, मति तेरी मारी गई। कुपथ ही अपना लिया तब, अक्ल भी सारी गई। भटकता फिरता सदा ही, छोड़कर सद्कर्म तू। जिंदगी का भी समझ ले, फल सफा और मर्म तू। जब तलक ए जिंदगी है, तू भटकता ही फिरेगा। जो ना समझेगा प्रभू को, पा पतन नीचे गिरेगा। वक्त है अब भी संभल जा, सत्य पथ को आजमा ले। जो बचा है शेष जीवन, कर दे तू प्रभु के हवाले। दौड़ कर बाहों में लेंगे, तुझको प्यारे राम जी। भुलाकर अपराध तेरे, देंगे अपना धाम भी।। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम…!
कविता

अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम…!

लव कुमार सिंह "आरव" बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** सभी के ह्रदय में स्नेह-प्रीत जगाना प्रेम में भीगी बाती से नव दीप जलाना सभी चेहरों पर चमकती मुस्कान लाना भूल कर ही सही हर एक बुराई भूल जाना तुम मिटे हर तम... अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम ll कुछ उदास आंखों के आँसु मोती कर जाना किसी अन्जान सूने घर का अंधेरा हर लाना कहीं रूठकर बैठे किसी बच्चे को हँसी दे जाना जो मन को मन से जोड़े ऐसी लड़ी लगाना तुम मिटे हर तम... अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम।l नव लय, नव ताल ले नव रसों से नव गीत बनाना सद्भावना की खुशबू से महके ऐसे फूल खिलाना मिट्टी से जुड़ी हो डोर ऐसे उनमुक्त पतंग लहराना जड़ से मन के भेद मिटादे ऐसी लहर उठाना तुम मिटे हर तम... अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम।l परिचय :- लव कुमार सिंह "आरव" निवासी : बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्व...
शिक्षा
कविता

शिक्षा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** किसी को माध्यम बनाकर सड़कों पर भीख मांगते बच्चे कभी कटोरों या खुले हाथों में भीख मांगने पर मिल जाते कुछ सिक्के जिनसे आज की महंगाई में कुछ भी नहीं आता उन सिक्कों में कुछ खोटे भी है इनकी किस्मत की तरह जो चल नहीं पाते उन सिक्कों पर छपे चिन्ह मौन भी है किन्तु संकेत सभी को देते नई राह शिक्षा प्राप्त करने का ताकि ज्ञान प्राप्त कर भीख मांगने के अवैध व्यवसाय से उभर सके और शिक्षा के बल पर नाम रोशन कर सके। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्...
मेरे देश की पावन मिट्टी
कविता

मेरे देश की पावन मिट्टी

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे देश की पावन मिट्टी, तुझको शत-शत प्रणाम है। तुझको मेरा तनमन अर्पण ये जीवन बस तेरे नाम है। तू मेरा आस विश्वास है, तू ही मेरा स्वाभिमान है। तुझमे ही मेरी आस्था है, तू ही तो जग में महान है। तू ही तो त्याग की मूरत है, तू ही धैर्यता की मिशाल है। तुझमे ही सहनशीलता है, तू अद्वितीय है बेमिशाल है। साश्वत तेरा अस्तित्त्व है सत्ता को तेरा आभार है। तू ही सबका पालनहार है तू ही तो सबका आधार है। तेरी महिमा बड़ी महान है तेरी कृपा सभी को समान है हम करे सब यही आभार है तेरा सब पर रहे उपकार है। मैं तेरा ऋण क्या चुकाऊंगा, ये सामर्थ्य मैं नही ला पाऊंगा। तुझमे बस ये तनमन अर्पित है, ये धृष्टता बस मैं कर जाऊंगा। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मै...
सलोना बचपन
कविता, बाल कविताएं

सलोना बचपन

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** याद है मुझे आज भी बचपन की वो अठखेलियाँ बारिश के पानी नाचते कूदते भीगना संग साथियाँ सबका साथ साथ रहना खाना पीना सोना बैठना दादा दादी नाना नानी से सुनते हुए हम कहानियाँ भाई बहनों और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना कभी खेतों में कभी तालाब कभी जाते अमरईयाँ पेड़ों पर चढ़ करके दीवारें फांदना तोड़ने को आमियां कभी तितली के पीछे कभी पकड़ते पतंग की डोरियां पढ़ना लिखना खेलना कूदना कांटे या चुभे कंचियाँ सायकिल के टायरों को चलाते रेस लगाते साथियाँ चिल्लमचों से भरी हुई जिंदगी भी सुकून देती रुशवाईयां नीले आसमां के तले निहारते उड़ते पतंग संग पुरवइयां गांव में शादी हो व्याह हो या कोई अन्य कोई भी अठखेलियाँ सब साथी मिलकर झूमते नाचते गाते नाचे संग गवईयाँ खूब लड़ते झगड़ते हम फिर मिल जाते बिन रागियाँ गुल्ली डंडा भौंरा...
शिव-संकल्प
कविता

शिव-संकल्प

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** सादर कोटि वंदन पिताश्री आपको, शारदोपासना का संकल्प लिया | बनाएंगे स्नातक पुत्र एक को, गृहस्थोपासना का संकल्प लिया || पुत्र तीनों ही स्नातक बने, संकल्प ने ऐसा स्वरूप लिया | स्नातकोत्तर प्रथम मथुरा दत्त बने, व्याकरण विषय का ज्ञान लिया || स्नातकोत्तर द्वितीय सुरेश चन्द्र बने, साहित्य-व्याकरण उभय में किया | किया अध्ययन ज्योतिर्विज्ञान का, पितृ प्रतिद्वंद्वियों को लपक लिया || छूटा स्नातकोत्तर तीसरा हिंदी का, आत्मजा "शिवानी" ने पूर्ण किया | संकल्प तप:प्रभाव" बाज्यू इजा" का, पंच शतक प्रधानमंत्री पर पूर्ण किया || परम आशीष मिला इजा का, "इजा-शतकम्" द्वि भाषाओं में लिख दिया | प्रेरणाशीष डॉ भोलादत्त अग्रज का, "मोदी पंचशतकम्" लिख दिया || पिताश्री के शुभ संकल्प ने मुझे , नहीं अतिशयोक्ति का ज्ञान दिया | देकर सुदृढ़ अडिग ...
बूंद जल की
कविता

बूंद जल की

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम रुक गए अविरल चलने वाले क्या मोती सा दिखने के लिए या सुमन सौरभ भा गई तूम्हे यह सुमन पंखुड़ी का आलिंगन भा गया तुम्हें तुम तो अबाध गति हो विरल हो अनवरत पाषाण को खंड-खंड करते हो खंड-खंड पाषाण पूछता है तुमसे क्या तुम्हें कलि की कमनियता भा गई या रंग सुगंध मखमली पंखुड़ी की सेज तुम्हें लुभा गई या तुम स्वयं को मोती समझने की होड़ में चमक-चमक कर चहेतों कामन लुभा रहे हो दूर बहुत दूर की सोचते हो पर जानते हो इतना इतराना ठीक नहींं क्षणिक है हां क्षणिक है क्योंकि पंखुरी मुरझा कर गिर जावेगी उसकी ही सजीली नरम मखमली सतह पर जिस पर तुम बैठे हो तुम भी नीचे बह जाओगे पुनः धरा पर अपने अस्तित्व को लेकर क्या फिर नहीं जाओगे अवनी में या सरिता में या किसी प्यासे के कंठ में उसकी प्यास बुझाने उसे तृप्त करने जो तुम्हारा ध्य...
जाड़ा आया
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जाड़ा आया

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो मम्मी-जाड़ा आया, इसने नोजी को, चलवाया। जाड़े से पड़ गया है पाला- कोट मंगा दो बढ़िया वाला। मेरा मफलर लेकर आओ- मेरे कानों को ढक जाओ। किटकिट दाँत गीत सुनाएँ, सब बच्चे, बादाम हैं खाएँ। मुझको पहले चाय पिलाओ फिर थोड़े बादाम खिलाओ। मम्मी, पापा से यह कह देना- मूंगफली-लाकर, रख लें ना। अब मुझको पाँच रुपैया लाओ- और भैया से टिफिन दिलाओ। भैया जब भी जिदपर आता, झट से मेरा टिफिन छिपाता। बस अब पढ़ने को जाती हूँ- पढ़कर वापिस घर आती हूँ। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण,...
वृक्ष
कविता

वृक्ष

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पेड़ केवल, पेड़ नहीं होता, जीवन और संस्कृति भी है। पेड़ में हवा छाँव उर्जा है, सूरज का मित्र, जंगल का आधार, सृष्टी का संवाहक है। पेड़ से प्रकृति, प्रकृति से जीवन और जीवन संस्कृति का प्राण है। पेड़ में जड़ मिट्टी, वायु मंड़ल जीवन रस, जीव अजीव सभी हैं। पेड़ जमीन में, पेड़ आकाश में, पेड़ भोतिक वस्तुओं में है पेड़ में बीज, बीज में जीव आत्मा और जीव आत्मा में स्वपन अनिवार्य है। पेड़ से प्यार, प्यार में मनुहार, और लालित्व में, सत्य शिव की, सुन्दर परिकल्पना है अतः विचारों में पेड़ और पेड़ पर विचार जरूरी है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इ...
बचपन की कहानी
कविता

बचपन की कहानी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आओ तुम्हें सुनाता हूं बचपन की कहानी, वहां भी होती थी दिल्लगी और साथ ही होती थी हर दिन एक नई कहानी। रूठना मनाना आए दिन ही चलता था। पर नहीं थी मन में कोई छल कपट की कहानी। हर रोज़ हम सब लड़ते और झगड़ते थे पर नहीं थी दिल में कोई खूनी दरिंदों जैसी दुश्मनी की कोई कहानी। मां की गोद थी जिसपे रखकर सिर मिलती थी नित्य ही सुने को एक प्यारी सी कहानी। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
काश लौट आता बचपन …
कविता

काश लौट आता बचपन …

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** याद है मुझे आज भी बचपन की वो अठखेलियाँ बारिश के पानी नाचते कूदते भीगना संग साथियाँ सबका साथ साथ रहना खाना पीना सोना बैठना दादा दादी नाना नानी से सुनते हुए हम कहानियाँ भाई बहनों और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना कभी खेतों में कभी तालाब कभी जाते अमरईयाँ पेड़ों पर चढ़ करके दीवारें फांदना तोड़ने को आमियां कभी तितली के पीछे कभी पकड़ते पतंग की डोरियां पढ़ना लिखना खेलना कूदना कांटे या चुभे कंचियाँ सायकिल के टायरों को चलाते रेस लगाते साथियाँ चिल्लमचों से भरी हुई जिंदगी भी सुकून देती रुशवाईयां नीले आसमां के तले निहारते उड़ते पतंग संग पुरवइयां गांव में शादी हो व्याह हो या कोई अन्य कोई भी अठखेलियाँ सब साथी मिलकर झूमते नाचते गाते नाचे संग गवईयाँ खूब लड़ते झगड़ते हम फिर मिल जाते बिन रागियाँ गुल्ली डंडा भौंरा...
जज्बा ये जोश बाक़ी है।
कविता

जज्बा ये जोश बाक़ी है।

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अभी भी हमारे दिलों में जज्बा ये जोश बाक़ी है। मेरे देश को आंच न आये अभी होशो-हवास बाकी है। अपने वतन के लिए ये जिस्मो-जान बाकी है। कुछ काम आ सके हम वक्त पर ये जज्बात बाकी है मिट्टी का रखो ध्यान इस मिट्टी का एहसान बाकी है। मिट्टी के बिना हम कुछ नही इसका मोल चुकाना बाकी है। वतन के राह जो फना हुए उनके लिए जीना बाकी है। उनकी शहादत जाया न हो उनके लिए इबादत बाकी है। उनकी शहादत को सलाम है अभी हमारी खिदमत बाकी है। उन्होंने जो समर्पण किया है उसका कीमत चुकाना बाकी है। ओ आसमा से जमी को देखते होंगे अभी भी हम में कुछ कमी बाकी है। जीते जी कुछ अच्छा करलो यारों अभी भी वक्त और जज्बा बाकी है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता...
बाल दिवस
कविता

बाल दिवस

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । देश के आत्मसम्मान को सींचा जिसने । अमर जवाहर चाचा नेहरू की ऐसी गाथा है। १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । कहा था...... जिसने आज के बच्चे कल का भारत बनाएंगे । स्वतंत्र भारत का दिया है सपना । वह स्वर्णिम भारत बनाएंगे ।। सपना देखा सजी बाल-बगिया का जिसने । अमर जवाहर चाचा नेहरू की ऐसी गाथा है । १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । बाल दिवस के मूल उद्देश्य को सार्थक भी बनाना है। बच्चों की शिक्षा, संस्कार का बीड़ा भी हमें उठाना है। हर शोषण से बचें बालमन । नेहरू के भारत को बच्चों की बगिया से सजाना जाना है । परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हू...
हाड़ी रानी का त्याग (काव्यखंड)
कविता

हाड़ी रानी का त्याग (काव्यखंड)

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** ये कथा हैं एक जौहर की एक केशरिये पानी की समरखेत में शीश छौंपने* वाली हाड़ी रानी की एक निशा न बीती बंधन ये कुदरत की अठखेली थी मेहंदी का रंग तर पड़ा था हाड़ी अभी नवेली थी सुनते जाओ रजपूती को तुम्हें सुनाने आया हूँ और हाड़ी वाली क्षत्राणी के बलिदान को गाने आया हूँ एक समय जब काल के बादल मेवाड़ धरा पर मंडराए कम्पित हुई जनता सारी स्वयं महाराणा घबराए औरंग की सेना ने कूचा मेवाड़ी प्राचीरों को राजसिंह घबराए और पत्र भेजे उन वीरों को शीघ्र बुलाओ चुंडावत को वो औरंग को रोकेगा समरांगण में वही मात्र हैं जो प्राणों को झोंकेगा सुनते जाओ अभी शेष हैं स्वाभिमानी लहू पड़ा हाथ ध्वज ले चुण्डा विजय को क़िले के आगे जूझ खड़ा सुनते जाओ रजपूती को तुम्हें सुनाने आया हूँ और हाड़ी वाली क्षत्राणी के बलिदान को गाने आया हूँ ...
नेतृत्व की फतह
कविता

नेतृत्व की फतह

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह बने वजह। राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाए फतह। निःस्वार्थ समर्पित नेतृत्व, समय दान में मस्त रहे। छोटा सुंदर जीवन क्यों, बाधाओं से अभिशप्त रहे। लेकर चलने की उत्कंठा, बाधित नहीं किसी तरह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह। राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाये फतह। शब्द आंदोलन कटुता, लकीर गिराना उचित नहीं निज बल से होते सफल, नेतृत्व कमल खिले सही अपनी लकीर बढ़ाना है, छोड़ो जलन स्वार्थ कलह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह । राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाये फतह। अकेले बीज की ताकत से, प्रचुर मात्रा सब पा जाते साथियों की उर्वरक फसल, समाज को दिशा दिखाते भावी पीढ़ी पाए प्रेरणा, रहे विलग ही व्यर्थ जिरह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह राग द्वेष पद मो...
करम धरम ल पहचानव
कविता

करम धरम ल पहचानव

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अपन करम ल सुधार संगी अपन धरम ल पुकार गँ.. जिनगी के नइय ठिकाना हो जाही बेड़ापार गँ ... जइसे करनी वइसे भरनी सब ल मनसे जानत हे ... कथनी करनी मँ भेद होगे त पाछु ल पछतावत हे ... बदले गे संगी अब जमाना सब ल तैंहा उबार गँ .... अपन करम ल सुधार संगी अपन धरम ल पुकार गँ.. संस्कार के बीज ल रोपो पीढ़ी ल बताना हे ... नैतिक अऊ अनैतिक भेद ल युवा जवाँ ल सिखाना हे .. धरम संस्कृति हमर खजाना जिनगी ल सँवार गँ... अपन करम ल सुधार संगी अपन धरम ल पुकार गँ.. आवत-जावत , हांसत-रोवत , इही जीवन के खेल हे .. मिलत-जुलत अऊ ह बिछुड़त , दुनिया ह एक मेल हे .. ऐके जीव सब मँ बसे हे कर ले तैहा उपकार गँ ... अपन करम ल सुधार संगी अपन धरम ल पुकार गँ.. मानव धरम एक हे भाई समाज ल परखाना हे.. जात-पांत के भेद ल छोड़ो भाई...
सोशल मीडिया की गलियों में
कविता

सोशल मीडिया की गलियों में

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार (म.प्र.) ******************** सोशल मीडिया की गलियों में ढूंढ रहे हम ऐसा मित्र जो हमे लगे अपना सा, देख के प्रोफाइल उसकी यह है सीधा-सादा और कलीन है इसका चरित्र, पर किस्मत कई बार दे जाती है धोखा, जो दिख रहा था राम हमें वह तो निकला रावण सा, इस भूल-भूलैया सोशल मीडिया की गलियों में बहुत मुश्किल है पाना अच्छा मित्र मित्र तो स्कूल के समय के ही अच्छे थे, जिसके मन में ना था कपट ना लालच। जिसे हम नजदीक से देखते थे, मिलते थे और झगडते भी थे, दूसरे दिन सब भूल भूला के वापस वही उमंग से मिलते थे। सोशल मीडिया की गलियों कौंन मित्र अच्छा कौंन बुरा है क्या पता जीवन इसी सोच में लगा है, भरोसा ना अब होता है, इसलिये सोशल मीडिया की गलियों में जाने से भी दिल अब डरता है। किस राहों में कोई अपनेपन का चोला ओढ़े हमें ठग जाए, इस गलियों में गन्दगी हो ना भले सही लेकिन...
मधुमक्खी और चिड़ियारानी
कविता

मधुमक्खी और चिड़ियारानी

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हुआ सामना मधुमक्खी का, इक दिन चिड़िया रानी से। चूं-चूं कर बोली मक्खी से मीठी, मधुरम वाणी से।। बड़े परिश्रम और लगन से छत्ता सखी बनाया तुमने। चुन-चुन फूलों का मधुरस मीठा शहद जुटाया तुमने।। वृक्ष शाख बैठी थी मैंl देख रही थी इधर उधर। आते देखा इक मानव को पहुंच गया वह छत्ते पर।। शहद तुम्हारा चुरा लिया, छत्ता भी लेकर चला गया। सभी मक्खियां बिखर गईं, मानों सबको वह रुला गया।। बोली रानी मक्खी- और कर भी क्या सकता मानव है? रहम नहीं है तनिक उसे, वह सचमुच पूरा दानव है।। खुली चुनौती मेरी उसको, शहद बनाकर दिखलाए। हुनर हमारा शहद बनाना, कोई उसे ना सिखलाए।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
तेरी यों ही गुजर जायेगी
कविता

तेरी यों ही गुजर जायेगी

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** मत कर निज प्रसन्नता की बात, तेरी आत्मा बिखर जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || भाव-भावना रौंदी अब तक, आगे भी रोंदी जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || भुलाना जीवन अनुभवों को, तेरी मूर्खता ही कहलायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || करेगा स्व- सुख की बात तो, परछाई भी दूर हो जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || बदला यदि तू नहीं अब तक, तो दुनियाँ क्यों बदल जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || कटुता भरे तेरे जीवन में, अब मधुरता नहीं चल पायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || चली है सृष्टि शिव-शक्ति कृपा से, आगे भी शक्ति ही चलायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ह...
मैं भारत हूं
कविता

मैं भारत हूं

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** मैं भारत हूं मैं भारत हूं… मैं भारत हूं… मैं मार पालथी बैठा हूं…. कहीं सड़कों पर, कहीं मंदिरों में, कहीं चौराहे पर तो, कहीं अनाथालयों में, बस दो जून की रोटी को… मैं दर दर हाथ फैलाता हूं। मैं भारत हूं… मैं भारत हूं… मैं मिलूंगा बर्तन धोते हुए.. मैं मिलूंगा ठेला उठाते हुए। मैं हूं लावारिस हालत में, कहीं किस्मत को आजमाते हुए। है मृदुल सा मेरा बदन, मैं रूखी-सूखी खाता हूं। मैं भारत हूं.. मैं भारत हूं.. मैं सर्कस का हूं बंदर, मुझे अमीर मदारी नचाते हैं। करके मेरा अपहरण कुछ, अकर्म भी करवाते हैं। मेरी जठराग्नि बनती अभिशाप, हर चंगुल में फंसता जाता हूं। मैं भारत हूं.. मैं भारत हूं.. मैं मिलूंगा कहीं झाड़ियों में, ज़ख्म से रोते बिलखते हुए। मैं मिलूंगा बीच बाजार तुम्हें, गर्म लोहे को पीटते हुए। म...
निज कर्मों से निखरूंगा
कविता

निज कर्मों से निखरूंगा

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** आशा के कुछ क्षणभर लेकर, साहस भरे कदमों से चलकर आँधी और तूफ़ानों से लड़ना शत्रु से शत्रु बन भिड़ना प्रखरता के चरम क्षणों में पत्थर बनकर न बिखरूँगा निज कर्मों से निखरूँगा यश-अपयश और क्षमा-याचना, सुख-दुःख में कर पाप-प्रार्थना ध्येय के पथ से न बिसरूँगा निज कर्मों से निखरूँगा कुंठा, व्यथा, चित कामना धूमिल भाव की द्वेग भावना परपीड़क आनंदित होकर कर्मसाधना को मंदित कर-कर, ऐसा सार ना रचूँगा निज कर्मों से निखरूँगा निज कर्मों से निखरूँगा परिचय :- तनेंद्रसिंह "खिरजा" निवासी : ग्राम- खिरजा आशा, जोधपुर प्रांत, (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक (विज्ञान वर्ग) जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर रुचि : साहित्य, संगीत, प्रशासनिक सेवा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
नज़र
कविता

नज़र

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** नजरों से नजर तुम मिलाते रहो, कुछ सुन लो वचन कुछ सुनाते रहो। अपनों से मिली नफ़रतें है बहुत, गैरों से हस्त भी मिलाते रहो। आया काम नहीं जो कठिन राह में, उनसे भी रिश्तों को निभाते रहो। झुकने दे न मानव कभी शान को, खुद के भी अहम को गिराते रहो। मिटता ही नहीं है अहम पर सदा, तुम मन से वहम को मिटाते रहो। देखो तो उन्हें जो भटकते रहे, भटकों को दिशा सी दिखाते रहो। मिले जो न हो सो सका, गहरी नींद में तुम सुलाते रहो। कभी आप गुनगुनाते रहो, कभी हम मुस्कराते रहे, नज़र ना लगे किसी की किसी को बस सभी सलामत रहो। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से ...
किस बात का दीप
कविता

किस बात का दीप

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? क्या अंधियारा मिटा चुके हो, दीन हीन उजड़े बागन में? क्या कुम्हार के बच्चों का, बिस्कुट टॉफी है याद तुम्हें, या आधुनिक जगमगता में, पर्यावरण सुधि तुम भूले? किस बात के बम पटाखे, छोड़ रहे हो तुम गगन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? जिसने मर्यादा को जीती, उनके स्वागत में नर नारी, ले मसाल प्रसन्न हो भागे, दीप जलाए घारी घारी। क्या कुछ मानवता अपनाए, तुम भी अपने युग सावन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? कैसे हो रोशन हर कोना ? साफ सफाई बड़ी नेक किये। पर अंधियारा छिपा हिया में, चाहे जलाए लाख दिए। क्या एक बाती प्रेरण की, कभीजलाए अपने जीवन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में। क्या तुम अपने छल कृत्यों, को देख रह...
रावण जीत गया
कविता

रावण जीत गया

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** हमारे शहर में अब की रावण नहीं जलेगा, मुखिया ने कहा है वो गुनहगार नहीं है। पांच हजार की आबादी में एक शख्स नहीं बोला, सच है ये कड़वा कोई चमत्कार नहीं है। क्या फ़र्क पड़ता है, अच्छा हुआ, पैसें बचे, जिंदा लाशों से बदलाव के कोई आसार नहीं हैं। बेटे ने पूछा बाप से अबकी राम घर नहीं आयेंगे? क्या अयोध्या पर उनका अधिकार नहीं है? क्या चित्रकूट में भरत इंतजार में खड़े रहेंगे ? निषाद के फूल गंगा पार राह में पड़े रहेंगे ? क्या हनुमान सीना चीर के भगवान नहीं दिखाएंगे ? और क्या हम सब भी दीवाली नहीं मनायेंगे ? प्रश्नों की इन लहरों ने भीतर तक हिला दिया, अनजाने ही सही उसने मुझको खुद से मिला दिया। सच कहूं या झूठ बोलूं क्या समय की शर्त है, या कहूं कि बरसों पहले हुई अग्निपरीक्षा व्यर्थ है। आज दशरथ मौन है कैकेई की कुटिलाई पर, राम म...
दीप जलाएं
कविता

दीप जलाएं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** इस दीवाली दीप जलाएं चहुं दिशा प्रकाश फैलाएं तिमिर को नतमस्तक कर, उल्लास का दिया जलाएं, सृष्टि संग मिलकर, सद्भावना का गीत गाएं। सशक्त भावना निहित हो कामना विकास की, चमक उठे वसुंधरा, चमक उठे ये गगन। प्रसन्न जीव जन हों, लगे सुकर्म में सभी, शुद्ध चित्त का निर्माण हो, अथाह स्नेह परिपूर्ण हो, ना छल कपट बढ़े कहीं ना, लोभ भय का वास हो, निराश मन, हताश जन में प्रेम का प्रसार हो। जगत जहां निहाल हो ये सुखमई गीत गाएं, आई दीपावली खुशी मनाएं, हम सब मिलकर दीप जलाएं।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक...