Sunday, December 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

आंचलिक बोली

ज्ञानी सन मिलो तो
आंचलिक बोली

ज्ञानी सन मिलो तो

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी ज्ञानी सन मिलो तो ज्ञान मिलही सच्चाई के रास्ता मिलही, अज्ञान से मिलो तो गलत व्यवहार सिखे ला मिलही.! संसार मे दो तरह के इंसान अच्छा बुरा तोला इही मे चुने ला पढही, अच्छा बुरा के संगत ला परखे ला पढही.! अच्छाई के बात बताही जो जन्म दिये मां बाप और गुरु, ये दुनिया मे इज्ज़त बनाही तोर व्यवहार.! संगत ला जान ले सुख दुख के रददा ला पहिचान ले, सब के इज्ज़त करले दुनिया मे इज्ज़त सम्मान कमा ले..!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाया...
छत्तीसगढ़ी दोहे
आंचलिक बोली, दोहा

छत्तीसगढ़ी दोहे

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी दोहे) होरी हे के कहत मा, मन म गुदगुदी छाय। गोरी गुलाल गाल के, सुरता कर मुसकाय।। एक हाँथ गुलाल धरे, दुसर हाँथ पिचकारि। बने रंग गुलाल लगा, गोरी ला पुचकारि।। रंग रसायन जब लगे, होही खजरी रोग। परत रंग तन मन जरय, नहीं प्रेम के जोग।। चिखला गोबर केंरवँछ, जबरन के चुपराय। खेलत होरी मन फटे, तन मईल भर जाय।। परकिरती के रंग ले, रंग बड़े नहि कोय। डारत मन पिरीत बढ़े, खरचा न‌इ तो होय।। परसा लाली फूल ला, पानी मा डबकाय। डारव कतको अंग मा, कभु न जरय खजवाय।। परसा फूले लाल रे, पिंवँरा सरसों फूल। गोरी होरी याद रख, कभु झन जाबे भूल।। होरी अइसन खेल तैं, सब दिन सुरता आय। अवगुन के होरी जरे, कभु गुन जरे न पाय।। तन के भुइयाँ अगुन के, लकरी लाय कुढ़ोय। अगिन लगा ले ग्यान के, हिरदे उज्जर होय।। लाल ...
जीमणा री याद
आंचलिक बोली

जीमणा री याद

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मारवाड़ी कविता इस कविता मे मैने एक गाँव के जीमने को याद करते हुए कुछ अपने विचार लिखने की कोशिश की है । (१) आज घणा वक्त पछे शहर रो जीमणो जीम्यो, पर जीमणा मे वो बात कोणी जो पहळा गाँव रा जीमणा मे वेती। जीमता-जीमता मैने गाँव रा जीमणा री याद आगी, कतरा बरस होग्या पेल्ली जसा जीमणा जीम्या ने। शहर रा जीमणा मे वो मजो कोणी जो गाँव रा जीमणा मे वेतो। (एक गाँव रो बालक स्कुल भणवा जावे उ बालक रे मन री दशा को वर्णन है) ध्यान मु हुन्जो (२) सुबह रो जीमणो को नुतो आतो तो मन मे उतल-फुतल मचती, कि अबे स्कूल जावा की छुट्टी मारा जीमबा ने... पर कि करा घर वाला स्कूल भेजता, अन कहता कि मू स्कूल मे बुलावा आई जावं, मै भी स्कूल तो जाता पर मन भणवां मे न लागतो। सहेलियाँ ने भी पूछता थारे जीमबा जाणो की, आपा सब लारी चाला ...
सुघ्घर माघ के महिना
आंचलिक बोली, गीत

सुघ्घर माघ के महिना

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी लोकगीत बड़ नीक महिना माघ के, आगे वसंत बहार। खुशी मनावव संगवारी, करके खूब श्रृंगार। सुघ्घर मऊरे हे आमा हर, महर महर ममहावय। अमरइया मं बइठे कोइली, सुघ्घर गीत सुनावय।। आज खुशी ले झूमत हावय, ये सारा संसार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार हरियर हरियर खेत खार हे, सुघ्घर हे फुलवारी। बड़ नीक लागे रूख छाँव हर, जइसे हे महतारी।। धरती दाई के कोरा मा, सब सुख हावय अपार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार किसिंम किसिंम के फूल फूले हे, देख के मन हरषावय। लाली लाली परसा फूल गे, आगी घलव लजावय।। सुरूर सुरूर पुरवाही सुघ्घर, गावय राग मल्हार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार चार दिन के जिनगानी हे, जादा झन इतरावव। ये वसंत के बेर मा संगी, जुर मिल खुशी मनावव।। राम कहे झन भूलव मन मा, करल...
छत्तीसगढ के सुघ्घर तिहार
आंचलिक बोली

छत्तीसगढ के सुघ्घर तिहार

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** हमर संस्कृति अऊ हमर संस्कार। नदावत जावत हे छेर-छेरा तिहार।। कतको तिहार के धरती हावय, ये छत्तीसगढ महतारी। ये मन ल बचाके रखना हावय, हम सबला संगवारी।। धर के टुकनी अऊ धरें बोरा, लइकामन चलें बिहनिहा बेरा। खोल गली बने गझिन लागय, कहत जावंय छेर छेरा ,छेर छेरा।। टुकना मा घर के मुंहटा मा, धर के बइठे रहे धान। वो घर के रहे जेहर, सबले बड़े सियान।। रंग-रंग के ओनहा पहिरे, लइका मन बड़ सुख पांय। छेर-छेरा मांगे खातिर, जम्मो घरो घर जांय।। पढ़े लिखे लइका मन ला, अब लागथे लाज। समय हर बदलत हावय, देखव का होवत हे आज।। अपन सुघ्घर तिहार के, परंपरा ला भुलावत हावंय। गांजा दारू के नशा मा, रात दिन सनावत हावंय।। हमर छत्तीसगढ के संस्कृति ला, हमन ल रखना हावय जिंदा। ये सुघ्घर तिहार मन के, झन करव भुला के निंद...
सुघ्घर कातिक के महिना
आंचलिक बोली

सुघ्घर कातिक के महिना

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी भाखा म लोक गीत के रचना हावय भिनसरहा के बेर मा, कर कातिक असनान । पूजन कर भगवान् के, कर ले ओकर ध्यान ।। सूरूज ला दे के अरघ, कर जीवन उजियार । इही सनातन धर्म के, बने हमर संस्कार ।। जल दे के शिव के करें, हाथ जोर परनाम । बिगरे सबो संवारहीं, पूरन करहीं काम ।। कच्चा दूध अऊ बेल के, ले के पाती हाथ । शिव शंकर ला ले मना, अपन नवा के माथ ।। पूजा तुलसी मात के, फूल पान के संग । जिनगी मा सुख के संगी, भर जाही सब रंग ।। धनतेरस शुभ वार हे, धनवंतरि महराज । माँ लक्ष्मी पूरन करें, सबके बिगरे काज ।। देवारी के रात मा, जगर बगर परकास । माटी के दियना बरे, करे जगत उजियास ।। गोवर्धन पूजा करें, बइला भात खवांय । जतको घर परिवार के, मिल के भोग लगाएं ।। महिमा पुन्नी के संगी, कतका करंव बखान । अंवरा रूखुवा...
अंगा री हड़ताल
आंचलिक बोली

अंगा री हड़ताल

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** एक्क दिन सबीं अंगा ने बैठक बुलाई... सोचि बचारी के, गल्ल गलाई। ऐ पेट नहीं करदा, काम्म ना कार,,,,, जेब देखो, खाई के रोटी, मारुंआं डकार। सारा दिन हांए, मरदे-खपदे।। थकि के हुई जाउंआं बुरा हाल। पैरा ने आपणी तौंस जमाई, हांए, हांडि फिरि के करुंए कमाई। हाथ्थां ने भी दुखड़ा सुणाया... खाणे-पिणे रियां चिजां ल्याओ, तेब ऐस पापी पेटो तिकर पहुंचाओ, पर बसर्म पेटो ने कदि जस नी गाया। नाक, कान्न, जीब बी तुनके, आकड़ि के बोले,,,,, आलसी पेटो जो देयो दो-चार छुनके। दान्दा ने भी दांद द्खाए... ऐ-पेट, खसमां जो खाए।। करि के हड़ताल...बोले.. मोटा पेट हाए-हाए। चंउं दिन्ना बाद, अंगा री अक्ल ठकाणे आई।। पैर अकड़े, हाथ्थ सुकड़े, कान्ने सुणणा बंद। हाखिं री बी हालत माड़ि, जीब सुकिगी सारी। सिर चकराया, कांदा नाल टकराया।। पंजुए दिन्...
स्याणे री पिलसण
आंचलिक बोली

स्याणे री पिलसण

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** देखि के न्याणेयां शोर मचाया, बोले ! डाकिया आया-डाकिया आया। स्याणे सोचेया .... जरूर मेरी पिलसण ल्याया, डाकिये चिट्ठी हाथ्थो थमाई, स्याणे रे पोपल़े मुंए रौणक आई। बोल्या, सुकर आ, मेरी पिलसण आई, डाकिये ने समज्याया....बाबा ! चिट्ठी बंको री.... आज्जां तेरी पिलसल नी आई। सुणि के स्याणी,बऊ, पाऊ, स्याणे रे बक्खो गए आई। बऊए चिट्ठी पड़ी के सुणाई.... बोली --बंको ते करिसी कारड, तिन्न लख लौन आ लऊरा। ना मूल़ ना ब्याज ...चार साल ते एक्क बी पैसा नींयां टाउरा। ऐते करिके लीगल नोटस आ आउरा, सुणि के स्याणे रा सिर चकराया, बोल्या--देखो लोको ! ल्वादा री करतूत, सारे पैसे नसेयां च फुक्कै, तेबेई करजे रा सिरो परो चड़ेया पूत। लाम्बा साअ लेई स्याणा ग्लाया,,,,, मैं सोचेया बुढ़ापा पिलसण आई, पर ये थी नलैक पाऊए री कमाई।। परिचय :-...