Saturday, February 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

न जाओ… रुक जाओ…
कविता

न जाओ… रुक जाओ…

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** न जाओ, रुक जाओ...! तुम रुक गई तो 'जीवन' यूँ ही नहीं बीत पाएगा... बल्कि, ये अपना एक-एक पल आत्मा द्वारा मन व प्राणों संग अत्यंत सुकून से जी जाएगा ! प्रतिदिन सुबह होगी चाहे साँझ होगी, पर ये दुनिया न एक पल को भी बाँझ होगी! तुम्हारी आँखों से होकर हर बसन्त और सावन हरियाला हरसेंगे! तुम्हारे होठों पर से हो आने को कभी फाल्गुन तथा कभी चैता करषेंगे! तुम्हारे माथे से छिरकेगी जेठ-अषाढ़ी- नमकीनी- बारिश... तुम्हारे केशो में कभी हेमन्त तथा शिशिर के तुहिन-पाँव वर्तुल होंगे! और चेहरे से फिसलेगी फिर-फिर शारद- कार्तिकी पूनो यात्रा। परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र.द्वारा शिक्षा शिरोमणि सम्मान २०२३ से सम्मानित घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
मेरा बचपन
कविता

मेरा बचपन

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** भुला बिसरा बचपन याद आता है अबोहर की गलियों में खेला हुआ बचपन याद आता है। नई आबादी का दुर्गा मां का सुंदर मंदिर याद आता है। गंगानगर रोड का पर माँ काली का अद्भुत दरबार याद आता है। कॉलेज रोड पर खिलखिलाता यौवन याद आता है। लगड़ी की टिक्की का खटा मीठा स्वाद याद आता है। शहर की गलियों में साथ घूमता वफादार दोस्त याद आता है। मुझे मेरा बचपन ही नहीं मेरा शहर अबोहर याद आता है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
वे पुरानी औरतें
कविता

वे पुरानी औरतें

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जाने कहाँ मर-खप गई वे पुरानी औरतें जो छुपाए रखती थी नवजात को सवा महीने तक घर की चार दीवारी में। नहीं पड़ने देती थी परछाई किसी की रखती थी नून राई बांध कर जच्चा के सिरहाने बेल से बींधती थी चारपाई रखती थी सिरहाने पानी का लोटा सेर अनाज दरवाजे पर सुलगाती थी हारी दिन-रात। कोई मिलने भी आता तो झड़वाती थी आग पर कपड़े और बैठाती थी थोड़ा दूर जच्चा-बच्चा से फूकती थी राई, आजवाइन, गुगल सांझ होते ही नहीं निकलती देती थी घर से गैर बखत किसी को। घिसती थी जायफल हरड़ बच्चे के पेट की तासीर माप कर पिलाती थी घुट्टी और जच्चा को देती थी घी आजवाइन में गूंथ कर रोटियाँ। छ दिन तक रखती थी दादा की धोती में लपेटकर बच्चे को फिर छठी मनाती थी बनाती थी काजल बांधती थी गले में राई लाल धागे से. पहना...
जीवन रुका नहीं करता
कविता

जीवन रुका नहीं करता

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिंदगी का काफिला तो जारी रहेगा हम रहे ना रहे सिलसिला जारी रहेगा एक के न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता जीवन तो बस चलती का ही नाम है यह शरीर तो हाड़ मांस का मकान है मकान ढहने से सृजन रुका नहीं करता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता नियति का फल सबको मिलता ही है आज नहीं तो निश्चित कल मिलता है नियति किसी पर भी अन्याय नहीं करता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता कब क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा जीवन न जाने क्या-क्या गुल खिलाएगा बिना संघर्ष जीवन भी निखार नहीं करता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता हम भ्रम पाल के बैठे हमसे जगत है मिथ्या भ्रम की हमसे ही सब कुछ है हमारे झूठे भ्रम से जगत चला नहीं करता एक के न होने से जीवन रुका नहीं करता कौन-कौन है अपना कौन है पराया ...
राजा हरिश्चंद्र की काशी
कविता

राजा हरिश्चंद्र की काशी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** विश्वनाथ काशी में बिराजे, धाम बनारस प्यारा। दिखता घाट-घाट पर सुंदर, अनुपम सुखद नजारा। विश्वनाथ गलियों के अंदर, बिराजे भोले बाबा। हिंदू संस्कृति में पावन, जनमानस का दावा। विश्वेश्वर भगवान यहाँ हैं, अनुपम छटा निराली। ज्योतिर्मय जगमग मंदिर में, लगता यथा दिवाली। गंगा में स्नान बनाकर, जो दर्शन है पाता। भक्त वही सायुज्य मोक्ष को, काशी में पा जाता। काशी में, जा तुलसीदास ने, पावन ज्ञान जगाया। रामचरितमानस लिख डाली, जग में सुयश कमाया। पावन गंगा जी के तट पर, मंदिर बना मनोहर। विश्वनाथ के दर्शन पाकर, प्रमुदित हृदय सरोवर। राजा हरिश्चंद्र की काशी, सबकी मोक्ष प्रदाता। पार्वती के साथ यहाँ हैं, बाबा स्वयं विधाता। जो काशी में देह त्यागता, परमधाम पा जाता। मिल जाता है मोक्ष मनुज को, लौट न...
इंतजार
कविता

इंतजार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ के हाथ की लकीरों में क्यूँ सिर्फ होता है "इंतजार" माँ बनने का इंतजार, बच्चे के स्कूल जाने, उनके वापस आने का इंतजार बड़े होकर घर से बाहर निकलना उनके वापसी का इंतजार अपने हाथों से पका ममता के स्वाद से भरा भोजन खिलाने का इंतजार, बच्चों के प्यार, रूसने, मान जाने का इंतजार बूढे होते थक चुके माँ के शरीर को, प्यार से गले लगाने का इंतजार बंद कमरे के कोने मे दुबकी निढाल माँ को किसी कदमों की आहट का इंतजार, दर्द से कराहती काया को किसी के दुलार का इंतजार, कमजोर बूढे होते शरीर को मजबूत लाठी का इंतजार अखिर कब तक करे माँ इंतजार क्या उसका भाग्य है "इंतजार??? माँ की झिल्लीयां पुरानी हो जाती है पर उसका प्यार कभी पुराना और बूढ़ा नहीं होता माँ की उम्मीद की इमारत को धराशायी मत होने दो, म...
आधुनिकता
कविता

आधुनिकता

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चकाचौंध की दुनिया में बस भागम भाग है जीवन में, नहीं आत्मीयता नहीं है प्रेम, बस दिखावे है इस दुनिया में जंगल हो या हो बस्ती, नहीं पहचानते औरों को हम, हम और हमारे दो बस यही सिमटती दुनिया है। रिश्ते नाते सब दूर हुए, अब दोस्त यार है जीवन में, पैसे की अहमियत रह गयी अब, छलावा रह गया इस दुनिया में है। औरों के लिए जीते हैं ये, नहीं बहन भाई मौसी क्या है, त्योहारों पर घूमने जाना, रिश्ते नाते दबे मिट्टी में है। मर्यादा लाज धूमिल है हुई, शर्माते बूढ़े ठाड़े हैं, लज्जा से आंखें नम है हुई, आधुनिकता की इस दौड़ में है। "क्यों कृष्ण आए अब तो है यहां? किसकी साड़ी है बढ़ाने को, सब जींस पैंट में द्रोपती है, किसका यहां चीर बढ़ाने को" लूट रही रोज पैसों पर ये, नहीं कुल वंश का ख्याल रहा, मर्यादा पाली जिसने ...
ऑगन
कविता

ऑगन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घर का ऑगन प्यारा-प्यारा प्यारा-प्यारा न्यारा, न्यारा इस ऑगन में चिडिया चहके क्यारी-क्यारी फूल सजे गुन-गुन ध्वनी से इन पर मङराता भवरा लगे प्यारा। ऑगन मे सजी रंगोली स्वागत करती अतिथी का रवि किरणो से स्वर्णिम हौता ऑगन का कोना-कोना। इस ऑगन मे नाचे बिटिया बान्धे पायल पैरो मे रूण् झुन रूण् झुन ध्वनि गूंजती मा, बाबा के कानो मे। आगन में अमराई बौराती खटास भरी पवन झकौरो में। इस ऑगन मे बैठ बङे घर की शोभा है बढाते अतीत की यादो में गुम हो कभी खुशी कभी गम के आंसू छलक जाते। देखा है इस आँगन ने सुख-दुख का रैला कभी बिदाई बिटिया की कभी महापर्पाण का बोझा कभी विवाद कभी भाई मारत कभी-कभी देखा है कंही इस आँगन का बंटवारा। यह आँगन है सब देखता है जब संध्या समय तुलसी क्यारे में जलता है दीपक प्यारा आँगन को सजाने के लिए अत...
मेरा मुर्शिद
कविता

मेरा मुर्शिद

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मेरी महफिल में अगर तुम आओ तो सारे शहर के गम ले आओ उन गमों को मेरे मुर्शद की एक मुस्कुराहट से घायल कर जाओ। मेरी महफिल में अगर तुम आओ तो सारे शहर के दर्द भरे अश्क़ ले आओ उन अश्कों को मेरे मुर्शद की एक निगाह से कायल कर जाओ। मेरी महफिल में अगर तुम आओ तो सारे शहर के जख़्म ले आओ उन जख्मों को मेरे मुर्शद के एक नाम से भरकर चले जाओ। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
प्रेम
कविता

प्रेम

विकास कुमार शर्मा गंगापुर सिटी (राजस्थान) ******************** प्रेम- १ शक्कर की तरह घुलना और मिठास दूसरों को देना है प्रेम। शिव की तरह विष पीना और मुस्कुराना है प्रेम। प्रेम- २ मेले में कुछ ना खरीदना तवे पर जलती हुई उंगलियों को याद करना और हामिद के द्वारा अपनी अम्मा के लिए चिमटा खरीदना है प्रेम। काबुली वाले के सूखे मेवे और मिनी का प्रतीक्षा रत रहना है प्रेम। प्रेम- ३ भक्ति भाव में डूबी हुई प्रेम दीवानी मीरा का इकतारा, कृष्ण की मुरली गोपियों की दही की हांडी और राधा का उलाहना है प्रेम। परिचय :- विकास कुमार शर्मा निवासी : गंगापुर सिटी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
खुला चिट्ठा
कविता

खुला चिट्ठा

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** १४ फरवरी २०१९ पुलवामा आतंकी हमले के बाद, हमारे सैनिकों के द्वारा २६ फरवरी २०१९ सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान पाक सैनिकों को उनके घर में घुसकर मारा, उस समय सेना पर आक्षेप और पाक सैनिकों के मरने के सबूत मांगना तथा चाइना जाकर उनसे हाथ मिलाना ऐसे सभी कार्य जो विपक्ष के द्वारा किए गए, उसी दौरान, विपक्ष के कार्यों का खुला चिट्ठा बगैर किसी का नाम लिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं, ये उन शहीदों को आत्मीय श्रद्धांजली है जो १४ फरवरी २०१९ को पुलवामा में शहीद हो गए। आजादी की नाव डूब रही, देश दोही हत्यारों से, आक्षेप लग रहे नित सेना पर, घर के इन गद्दारों से। नेक इरादे हे नही इनके, हिंदुत्व में फोड़ा पटकाया, राष्ट्र हित के अच्छे कार्यों में हरदम रोड़ा अटकाया। भूखे है सत्ता के सत्ताधर्म निभाना क्या जाने, सीमा पर शहीद हो स...
वह-मौसम
कविता

वह-मौसम

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सुप्त सौन्दर्य की नींद और भावनाओं का उद्वेलन तन्द्रा की बेपरवाही और प्रतीक्षा का जागरण धैर्य-शक्ति का परीक्षण और घुटन का अवलम्बन शून्यात्मक- अभिव्यक्ति और हृदय का तुमुलनाद टीले की रेत और सागर का शोर... बहुत-कुछ शान्त हो गया हर एक ज्वार का अन्त हो गया... 'वह-मौसम' भी निस्पन्द हो गया! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र.द्वारा शिक्षा शिरोमणि सम्मान २०२३ से सम्मानित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
सम्भल जाओ
कविता

सम्भल जाओ

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अट्टालिका में खो गये खेत खलियान मेड, मुंडेर बिखर गई नहीं कहीं पेड़ों के चिन्ह, निशान। पक्षी निहारते शून्य आंखों से आकाश पगडंडी पक्की सड़क में बदली गलियां सकरी थी चौड़ी हुईं गांव बदल गये शहर में गांवों का बदला ऐसा मौसम ठन्डक थी अब तपन हुई व जलकूप कलपूर्जो से ढंक गये नहीं दिखाई देता अन्दर कितना जल अट्टालिकाएं पी गई नहरों का जल नदियों को उघाडते रेत खनन पहाड़ों को चोटिल कर राह बनाई जा रहीं है न, पृकृति का दोहन। स्वार्थी मानव के लिये धरा धैर्यवान हे, साहसी है, सहती हैं इसलिए चुप है। जब धरा की पराकाष्टा होगी । तब स्वार्थी सम्भल नहीं पाएंगे अभी थरा मौन रहकर सह रही है रुक जाओ सम्भल जाओ। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी...
महादेवा
स्तुति

महादेवा

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी स्तुति) काल के महाकाल कहावय शिव शंकर महादेवा भक्तनमन के भाग जागे जेन करे तोर सेवा ।। अंग म राख, भभूत चुपरे बईला म करें सवारी भूत,प्रेत अउ मरी मसान जम्मों तोर संगवारी।I दानी नइ हे तोर असन कस हे सम्भू त्रिपुरारी कतका तोर जस ल गावँव महिमा हे बड़भारी!! गंगा हर तोर जटा म साधे, कहाय तँय जटाधारी बघुवा के तँय खाल पहिरे जय हो डमरूधारी !! गणेश अउ, कार्तिक लाल कहावय पार्वती सुवारी तोर पउँरी म माथ नवावँय जम्मो नर अउ, नारी !! असुर मन कतकोंन छलिस तोला सिधवा जान हलाहल के पान करइय्या नीलकंठ भगवान !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
आत्मदाह
कविता

आत्मदाह

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** इस दुनियां में हर व्यक्ति परेशान है। आत्मदाह किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। ******* आत्मदाह करने से हम तो दुनियां छोड़कर चले जायेंगें। पीछे घर वालों के लिये हजारों समस्याएं छोड़ जायेंगे। ******* दुनियां की प्रत्येक समस्या का समाधान है। आत्मदाह करना एक कायराना काम है। ******* ८४ लाख योनियों के बाद मानव जीवन मिलता है। आत्मदाह करने से हमें कुछ भी नहीं मिलता है। ******* आत्मदाह से हमारी समस्या सुलझ नहीं पायेगी। उलटा वह बिगड़ती जायेगी। ******* समस्याएं तो जिंदगी का हिस्सा है। इनका डटकर सामना करें आत्मदाह करना तो बुजदिलों का किस्सा है। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलि...
बसंत पंचमी प्रेम पर्व …
कविता

बसंत पंचमी प्रेम पर्व …

डॉ. पवन मकवाना (हिंदी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे पास थी इक टोकरी जो मैं देना चाहता था तुम्हें बसंत पंचमी प्रेम पर्व पर कुछ गुलाब सफ़ेद रंग के जो प्रतीक है शान्ति/अमन/सुलह और भाईचारे का मैं देना चाहता था तुम्हें एक टोकरी ... देना चाहता था तुम्हें क्यूंकि तुम हो मुझसे नाराज हाँ ... मुझे है ये आभास ... कुछ गुलाब पीले जो प्रतीक है विशवास का/दोस्ती का जिसकी और बढ़ाया था तुम्हीं ने पहला कदम भेजकर संदेश अपना दिया था तुमने एक प्यारा सा दोस्त एक नया सपना हाँ रख लोगे पीले गुलाब तुम अगर कभी समझा होगा तुमने हमें जो दोस्त अपना हाँ मैं देना चाहता था तुम्हें एक टोकरी ... कुछ गुलाब लाल भी हैं जो प्रतीक हैं प्रेम/पूजा/प्यार के इबादत के देना चाहता था मैं तुम्हें क्यूंकि तुम्हीं चाहते थे कि कोई चाहे तुम्हें ... दोस्त कि तरह/ध्यान र...
गाथा खामोश नदी की
कविता

गाथा खामोश नदी की

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पहाड़ी कंदराओं से तब जो झरना बन उतरती है उछलती कूदती बहती ये इक अल्हड़ बाला सी नदी भू पे खामोश हो जाती नटखट बालिका थी जो यौवना बन गई है वो सयानी नार अब नीरा कदम गिन गिन के रखती है नदी खामोश हो जाती सजे हैं घाट देवों से किनारों पर लगे मेले कश्तियां गुनगुनाती हैं चाँदनी रात गाती है नदी खामोश हो जाती अक्षय दान दे जल का धरा की गोद भरती है लुटा कर प्यार वो अपना समंदर में समाहित होकर नदी खामोश हो जाती परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
फटे-पुराने कपड़े उनके
गीत

फटे-पुराने कपड़े उनके

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फटे-पुराने कपड़े उनके, धूमिल उनकी आस। जीवन कुंठित है अभाव में, खोया है विश्वास।। अवसादों की बहुतायत है, रूठा है शृंगार। अंग-अंग में काँटे चुभते, तन-मन पर अंगार।। मन विचलित है तप्त धरा है, कौन बुझाये प्यास। चीर रही उर पिक की वाणी, काॅंपे कोमल गात। रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल, अटल यही बस बात।। साधन बिन मौन हुआ उर, करें लोग परिहास। आग धधकती लाक्षागृह में, विस्फोटक सामान। अंतर्मन भी विचलित तपता, कोई नहीं निदान। श्रापित होता जीवन सारा, श्वासें हुई उदास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत...
ओस की बूँदें
गीत

ओस की बूँदें

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हरी घास पर ओस की बूँदें, भाती हैं। नया सबेरा, नया सँदेशा, लाती हैं।। सूरज निकले, नवल एक इतिहास रचे, ओस की बूँदें टाटा करके जाती हैं। प्रकृति लुभाती, दृश्य सजाती रोज़ नये, ओस की बूँदें नवल ज्ञान दे जाती हैं। कितनी मोहक, नेहिल लगती भोर नई, ओस की बूँदें आँगन नित्य सजाती हैं। सुबह धुँधलका फैले, जागे ओस तभी, ओस की बूँदें राग नया सहलाती हैं। जीवन के हर पन्ने पर, है कथा नई, ओस की बूँदें प्यार ख़ूब बरसाती हैं। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास) सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुच...
देखो चुनाव हो रहा है
कविता

देखो चुनाव हो रहा है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सब लड़ रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं, लड़ रहा है भाई-भाई, बहू संग सासू माई, एक नहीं हो रहे, नेक नहीं हो रहे, मतैक्य नहीं हो रहे, दबंग भी लड़ रहा, मलंग भी लड़ रहा, भुजंग भी लड़ रहा, चुनावी ताप बढ़ रहा, मिठाई की भरमार है, धन बल बेशुमार है, मतदाताओं में चुप्पी है, प्रत्याशी बेकरार है, बेवड़ों में छलका जाम है, हर दिन सुबह और शाम है, मुराद पूरी न हुए तो धमकी देना आम है, पीना खाना ही इनका काम है, प्रजातंत्र रो रहा है, जिम्मेदार सो रहा है, धर्म की ललक है जागी इतनी इंसानियत बिलख के रो रहा है, हो रहा है हो रहा है, चुनाव देखो हो रहा है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
जब इश्क हुआ था
कविता

जब इश्क हुआ था

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब इश्क हुआ था तो गुनगुनी सी धूप ठंड में लगने लगती थी प्रेयसी कि तरह। जब इश्क हुआ था तब गर्मी में तब बदल जाते थे कभी उनके मिजाज बेवफा की तरह। धूप के भी रिश्ते है फूलों से जेसे होता है चाँद का चाँदनी से जब इश्क हुआ था तब इश्क की राह में धूप में नंगे पांव भी चल पड़ते थे परवाने की तरह। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभाग...
मौसम
कविता

मौसम

डॉ. पवन मकवाना (हिंदी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** यूँ चाहे जब ना चले आया करो मौसम ... यूँ उनकी याद ना दिलाया करो मौसम ... रूठा हो जब यूँ दिलबर हमसे यूँ आकर ना हमको सताया करो मौसम ... गर आना हो जो मज़बूरी तुम्हारी आकर पहले हौले से हमें बताया करो मौसम ... तुम जब आते हो तो याद करते हैं हम उन्हें हम कितना यह बात उन्हें भी तो बताया करो मौसम ... याद में जो उनकी हम गाते हैं नगमें करीब जाकर उनको भी सुनाया करो मौसम ... चाहते हैं हम उन्हें कितना ना मानेगें वो कभी तुम्हीं जाकर उन्हें प्यार जताया करो मौसम ... प्यार के दीप से ही है रोशन दुनिया मेरी उनके दिल में भी इक दीप जलाया करो मौसम ... परिचय : डॉ. पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक) निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : स्वतंत्र पत्रकार व व्यावसाइक छायाचित्रकार संस्थापक : राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
पीला बसंत
कविता

पीला बसंत

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** बसंत पंचमी का उत्सव मां सरस्वती को समर्पित है। पूजा कर के उनको पीले फूल पीले वस्त्र करते समर्पित हैं। ******* पीला रंग मां सरस्वती को भाता है। सभी धार्मिक कार्य में भी पीला रंग नज़र आता है। ******** ज्ञान की देवी सरस्वती इनका सच्चे मन से पूजन करें। और अपने आपको ज्ञान से भरें। ******** देवी सरस्वती ने वीणा बजाकर पूरे संसार में मधुर आवाज फैलाई। तभी तो सुषुप्त श्रृष्टि जागृत अवस्था में आई। ******** भगवान शिव और माता पार्वती का तिलक भी बसंत पंचमी को हुआ था। और मां सरस्वती का जन्म भी बसंत पंचमी को हुआ था। ******* बसंत पंचमी का दिन विवाह का शुभ मुहूर्त कहलाता है। इस दिन होने वाला विवाह सुखमय होता है। ******* बसंत पंचमी से बसंत ऋतु का आगमन होता है। प्रकृति में नई ऊर्जा और उत्साह का संचा...
आदमी वो ही हैं
कविता

आदमी वो ही हैं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आदमी वो ही हैं आदमी वो ही है जिसमें धैर्य तो हो मानव धर्म भी हो आदमी वो है करे जो सार्थक सब कर्म भी हो। आदमी वो है रहम का वास जिसके दिल में हो आदमी वो है जो सहज हर मुश्किल में हो। सच बताओ? लग रहा क्या आदमी-सा आदमी आदमी के भेष में क्यूँ ? जानवर-सा आदमी। कब घुसा इस आदमी के जिस्म में ये जानवर? आदमी हो तो तुम्हें इस जानवर की शर्म हो। आदमी का वहम हो और जानवर-पन ही रहे ये ईमाँदारी कहाँ? हम आदमी खुद को कहें। आदमी हैं जिंदगी में आदमी बनकर रहें आदमी हो तो समझ़ में तत्व का कुछ मर्म हो। आदमी गर ठान ले तो स्वर्ग सी जीवन धरा हो शुभ हुआ है आज तक भी आदमी जब शुभ करा हो। आदमी हो आदमी से जुड़ गये गर प्रेम से भाव जो गहरा हुआ तो हर हृदय में यह भरा हो। आदमी वो जो ये जाने जन्म ...
चार पुरुषार्थों का कुंभ – महाकुंभ
कविता

चार पुरुषार्थों का कुंभ – महाकुंभ

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** धर्म- बारह वर्षों में मिलता महालाभ आत्मिक बल है इसका प्रताप आध्यात्मिक संगम का महाकुंभ सांस्कृतिक चेतना, आस्थाकुंभ तीर्थराज में संत समागम पौराणिक गाथाओं का संगम। यह मेला भक्तों का मेला मेल कराता सुधी जनो का आस्था के वैभव का भावों की उत्ताल तरंगों का। संगम भावों का स्नान कराता ऋद्धि सिद्धि, मन में शीतलता संतों के आत्मिक दर्शन से जीवनदर्शन के दर्शन पा जाता मन प्रफुल्लित हो जाता कलुष ताप मिट जाता भक्तिभाव से हो विव्हल संगम में डुबकी लेकर लीन प्रभु में हो जाता ईश्वरतत्व से सराबोर जीवन की उहापोह तज धन्यभाव समा जाता। कुंभ का मेला मेल कराता देता आध्यात्म ‌का आदेश प्रचुर मात्रा में देता संसार चलाने का संदेश। अर्थ- गंगाजल परम अति पावन सकल लोक के रोग नसावन गंगाजल अमृत, मिनरल वॉटर यह‌ पीकर सब पच जा...