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नैतिक शिक्षा

धीरे-धीरे रे मना
कहानी, नैतिक शिक्षा

धीरे-धीरे रे मना

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "अरे चुन्नू ! क्या सारा दिन खेलते रहोगे। पता है, छः माही सर पर आ रही है। पढ़ाई के लिए स्कूल ने छुट्टी रखी है और मैं भी तुम्हारे लिए घर पर हूँ। तिमाही का रिज़ल्ट देखकर पापा ने कितनी डाँट लगाई थी, याद है न। चलो जल्दी से पढ़ने बैठो।" कामवाली सरयू अभी तक आई नहीं है। धैर्या पोहे धोकर प्याज़ काटने बैठ जाती है। आँखों से झरते पानी में मिले बहू के आँसू अम्मा को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। उन्होने भी तीन तीन बच्चों को पाला है। दोनों बेटियाँ सुघढ़ता से गृहस्थी चलाते हुए नौकरी भी कर रही हैं। और बेटा भी अपने कर्तव्य निभा रहा है। बस तीनों को नियमित अभ्यास करने बिठा देती थी। ख़ुद तरकारी भाजी साफ़ करते हुए उनकी कॉपियाँ भी देखती जाती। फ़िर तीनों मस्ती में खेलते-कूदते रहते थे। तभी बहू ने नाश्ते के लिए आवाज़ लगाई। सही मौका देख उसे टेबल पर हिदायतें देने लगी- "बि...
आखरी पत्ता नहीं… बचा हुआ एक पत्ता यानि और पत्तों की उम्मीद…
गुण श्रेष्ठता, नैतिक शिक्षा, संस्कार

आखरी पत्ता नहीं… बचा हुआ एक पत्ता यानि और पत्तों की उम्मीद…

ज्योति जैन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** https://youtu.be/VRRxrIyGRX0                           यूं तो मैं आम दिनों में भी अपनी पसंद के सारे काम कर लेती हूँ पर फिलहाल लॉकडाऊन में चूंकि बाहर नहीं जाना होता, सो और अतिरिक्त कार्य भी हो जाते हैं, जिनमें बागवानी भी शामिल है। इन दिनों माली भैया नहीं आ रहे सो पुराने सीज़नल पौधों के सूखते चले गमलों में नये रोपे लगाने बैठी थी। मुझे ध्यान आया कि पिछले दिनों चौकोर गमला माली ने एक ओर रख दिया था, ये कहकर कि उसकी वॉटर लिली सूखकर खत्म हो चुकी है। वो मेरा पसंदीदा पौधा है। वॉटर लिली ज़रा से में फैलकर अपने छोटे-छोटे गोल पत्तों से गमले की सुन्दरता और बढ़ा देती है। मैंने सबसे पहले वही गमला हाथ में लिया। वॉटर लिली सूख चुकी थी। पर ये क्या...! एक बिल्कुल नन्ही सी, गोल पत्ती उस सूखी मिट्टी से झांक रही थी। मैंने फौरन उसमें पानी डाला। पिछले दस द...
संचार क्रांति
आलेख, नैतिक शिक्षा

संचार क्रांति

मंजर आलम रामपुर डेहरू, मधेपुरा ******************** संचार क्रांति के इस दौर में शायद ही कुछ लोग ऐसे हों जिनके पास सेलफोन न हो। निश्चय ही मोबाइल बहुत उपयोगी है और हर किसी की जरूरत भी। कहाँ गए वह दिन जब परदेश गए किसी अपनों की खबर पाने को डाकिए का इंतज़ार करना पड़ता था ताकि वह आए तो उनका पत्र साथ लाए। उस पत्र में लिखे संदेश की इतनी महत्ता होती कि एक ही खत को बार बार पढ़ा जाता मानो वह अब भी नया ही हो। अब तो पल पल की खबरें घर बैठे बिठाए मिल रही हैं। “कर लो दुनिया मुट्ठी में" अब स्लोगन नहीं, हकीकत है। एनड्रॉयड मोबाइल ने तो लोगों के जीवन में इतना बदलाव ला दिया है कि समय बिताने के लिए अब किसी की कमी नहीं खलती। टेलीविजन, अखबार सब कुछ एक ही क्लिक पर मिल जाता है मानो दुनिया अंगुलियों के ईशारे पर हों। अब तो घर परिवार के लोगों के बीच मिल बैठकर बातचीत करने के लिए भी समय कम ही निकलता है। सहपाठियों...
नैतिक बल
कविता, नैतिक शिक्षा, संस्कार

नैतिक बल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** शारिरिक बल, बुद्धिबल, से बलशाली नीति, नैतिक बल के सामने, टिकती नहीं अनिती। व्यक्ति जाति या राष्ट्र हो, होता उसका नाश, जो अनिती पथ पकड़ता, है साक्षी इतिहास। नैतिक बल से आत्म बल है संवद्ध घनिष्ठ, टका एक दो पृष्ठ है, किसे कहें मुख पृष्ठ। है यदि सच्ची नीति तो, वहीं धर्म आधार, ठहर न सकता धर्म है, जहां न नीति विचार। सब धर्मों को देख कर, गोर करें यदि आप, तो पायेंगे नीति का, सब मे अधिक मिलाप। अचल नियम है नीति के, अचल न चक्र विचार, मत विचार है बदलते, नीति धर्म आधार। निर्भर करता नियत पर, नीति अनिती कलाप, शुद्ध हर्द्रय सदभावना, मूल्यांकन का माप। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्...
मित्रता : बच्चों के साथ
आलेख, नैतिक शिक्षा

मित्रता : बच्चों के साथ

अंजू खरबंदा दिल्ली ******************** हम पति पत्नी ने शुरू से ही आदत बनाई हुई है कि बच्चों को महीने मे दो बार बाहर डिनर के लिये लेकर जाते है। एक पंथ दो काज। इससे दो बाते होती है - पहली साथ बिताने के लिये समय मिलता है और दूसरा बच्चे बाहर घूमने के लिये यारों दोस्तों का साथ नही ढूंढते। आर्डर देते समय ये निर्णय करने मे अक्सर समय लगता कि - "आज क्या मंगाया जाये!" "इस भोजनालय की सूचि मे स्पेशल क्या है !" पर बच्चे तो बच्चे है - "आज ये नही खाना, पिछली बार भी तो यही खाया था! आज कुछ और मंगाते हैं !" कभी-कभी कोफ्त सी होने लगती व इंतजार भारी सा लगने लगता तो बच्चों को कहना पड़ता - "जल्दी निर्णय करो! देखो और लोग भी प्रतीक्षा मे खड़े हैं!" बच्चों के साथ कही जाओ तो बहुत धैर्य रखना पड़ता है । हमें देख कर ही तो बच्चे सीखते है फिर हम ही जल्दी परेशान हो जायेगे तो उसका असर सीधा बच्चों पर पड़ेगा ही! एक ...
हिम्मत
कविता, नैतिक शिक्षा, बाल कविताएं

हिम्मत

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ तुम कुछ कर सकते हो तुम आगे बढ़ सकते हो। तुममे है बहुत हिम्मत तुम जग को बदल सकते हो। तुम खुद से हिम्मत नही हारना। कभी खुद का भरोसा मत हारना। तुम झूठ का मार्ग छोड़ सच्चाई के रास्ते पर चलते रहना। मुसीबत बहुत आते हैं जीवन में बस डट कर सामना करना। तुम ही देश के भविष्य हो यह बात हमेशा याद रखना। आत्मविश्वास बनाए रखो तुम हर कार्य पूरा कर पाओगे अपनी प्रयास तुम जारी रखो एक दिन जरुर सफल हो जाओगे। तुम करना कुछ ऐसा की, सारी दुनिया तुम्हारे गुण गाए। तुम बनना ऐसा की महानों की, महानता भी कम पड़ जाए। तुम रखना हिम्मत इतना की, वीर योद्धा की तलवार भी झुक जाए। तुम बनना इतना सच्चा की हरीशचंद्र के बाद तुम्हारा नाम लिया जाए। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार...
वर्तमान परिदृश्य और भूतकाल के 45 साल
आलेख, नैतिक शिक्षा, स्मृति

वर्तमान परिदृश्य और भूतकाल के 45 साल

रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" बालमन के भी स्वप्न है, वे भी कल्पना लोक में विचरण करते है उनके भी मन मे लालसा के साथ जिज्ञासा होती है। बच्चों के बचपन को पुस्तकों, ग्रीष्म कालीन,शीतकालीन शिविरों में झोंका जा रहा है। छुट्टियां भी कम होती जा रही है। प्रातःकाल घूमना, दौड़ लगाना, खेलकूद आदि तो जैसे जड़वत होते जा रहे है। उनकी जगह मोबाइल फोन दूरदर्शन आदि ने ले ली है। वीडियो गेम से खेल की कमी को पूरा किया जा रहा है। इससे एक तेजतर्रार व मजबूत नस्ल की अपेक्षा नही की जा सकती। कमजोर बच्चे भले पढ़ने - लिखने में आगे हो जाये लेकिन उनमें सामान्य ज्ञान का अभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। पहले हम पढ़ाई के साथ पट्टी पहाड़े में पाव, अद्दा, पौन आदि भी सीखते थे। लेकिन आज के बच्चों को यह सब समझ नही आता। आज बच्चों को कोई सामान लाने का कहा जाए तो वह आना कानी शुरू कर देते है या बहाना बना लेते है। जबकि पहले अगर पड़ोसी भी...