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गद्य

मजबूरी
सत्यकथा

मजबूरी

माधवी तारे लंदन ******************** (सत्य घटना पर आधारित) “बेटा मेरी उम्र अब ८०-८२ साल के ऊपर हो गई है शरीर भी दिन-ब-दिन थकता जा रहा है... और तू है कि सवेरे शाम धंधे में लगा रहता है। तेरे बेटा और बेटी भी नौकरी पानी के लिए दूर रहते हैं, तुम्हारी बेटी तो ससुराल में अपनी नौकरी और घर के कामकाज में व्यस्त रहती है तू रोज़ नौकर के हाथों जमा पूंजी और कमाए हुए रकम बैंक में भेजता रहता है तुमने बैंक में नॉमिनेशन करके रखा है कि नहीं? सुबह से रात के ८-९ बजे तक दुकान पर ही बैठा रहता है एकाध दिन फुर्सत निकालकर बैंक का काम जरूर कर लेना” “हाँ माँ तू चिंता मत कर मेरा ध्यान है इस तरफ” “बेटा, समय बताकर नहीं आता है, समझ रहा है ना” “माँ मत घबरा मैं सब कर लूंगा” माँ का रोज-रोज कहना बेटे का हामी भरना ये सिलसिलेवार चलता रहा। एक दिन संध्या बेला थी, घर के पास धीरे-धीरे लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी, आने ...
लिहाज
लघुकथा

लिहाज

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घानू का नशा उतर गया था। वह घर की बालकनी में आराम से बैठे चाय की चुस्की के साथ पेपर पढ़ रहा था। उसकी नजर उन खबरों पर थी जहां दारू के अड्डे पर छापे पड़ रहे थे। कहीं नशा मुक्ति अभियान के तहत महिलाएं जुलूस निकाल रही थी, तो कहीं युवाओं से बच्चों से शपथ दिलवाई जा रही थी। लेकिन घानू मुस्करा रहा था। 'पार्वती बड़े प्रेम से पति के पास आई और बोली, देखो जी आज सर्व पितृ अमावस्या है। आप आज के नशे के पैसे बचाकर पितरों के फोटो के लिए फूलो का हार लेकर आयेंगे तो बच्चों को भी समझ पड़ेगी कि ये हमारे पूर्वज है। घानू ने झिड़क कर जवाब दिया, "क्या दिया पितरों ने जो हार फूल चढ़ाना। जाओ अपना काम करो।" तुम्हें रहने के लिए छत दी है। कहीं सड़क या नाले के हवाले तो नहीं किया है। तुम्हें पढ़ाया लिखाया काम पर भी लगवा दिया। "लेकिन ये सौत ने तुम्हें हड़प लिया, ज...
कफन की शान तिरंगा
लघुकथा

कफन की शान तिरंगा

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** आज लंबे अर्से के बाद पोस्टमेन की आवाज सुनकर, और उसके हाथ में लिफाफा देख कर दिल खुशी से नाच उठा। क्योंकि आजकल मोबाइल के जमाने में डाक से चिट्ठी कहाँ आती है? जरुर किसी पुराने परिचित ने भेजी होगी। झटपट लिफाफा ले कर खोला तो देखा बचपन की सहेली अपूर्वा की चिट्ठी थी। चिट्ठी खोलते हुए हाथ कांपने लगे क्योंकि कुछ दिनों पहले ही उसका बेटा अचल, जो सेना में ऊंचे ओहदे पर था, काश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। तब फोन पर ही मैं उसे दिलासा दे पाई थी। चाहकर भी मिलने नहीं जा पाई थी। उसका पत्र हाथ में लेकर आँखें गीली ह़ो गयी। लिखा था, मन की कुछ बातें फोन पर नहीं हो पाती हैं इसलिए आज तुझे चिट्ठी लिख रही हूँ। विभा, तुझे क्या बताऊँ, अचल के जाने के बाद कैसे थोड़ा संभल पाई थी कि आज हमारे यहाँ के महपौर स्वयं घर आए। वे इस बार गणतंत्र...
ये फुनवा मुआ
लघुकथा

ये फुनवा मुआ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यशोदा अपने कमरे में लेटी लेटी सोच रही है...एक ज़माना था जब घर में कितनी चहल पहल रहती थी। अम्मा जी भी सुबह जल्दी उठ जाती थी। दोनों सास बहू मिलकर पूरे घर को बुहार लेती थी। अम्मा का स्नान ध्यान प्रारम्भ हो जाता था। पूरा वातावरण अगरबत्ती की महक से सुवासित हो जाता था। वह स्वयं भी नहाकर चाय लिए पूजाघर में अम्मा जी के साथ जा बैठती। मुँह अंधेरे घूमने निकले पतिदेव प्रशांत भी पिता के साथ अख़बार में खो जाते। चाय की चुस्कियों के साथ यशोदा सब्जियों की सफ़ाई पर हाथ चलाती और दिनभर की योजनाएँ बनती रहती। दिन के खाने के टिफ़िन बन जाते किन्तु नाश्ता सब साथ साथ बतियाते हुए करते। यशोदा वर्तमान में आकर मायूस हो जाती है। घर में तो जैसे मरघटी शांति ने डेरा जमा लिया है। एकमात्र शेखर जी ही हैं जो अपनी ऐनक चढ़ाए अख़बार में मशगूल रहते हैं। हाँ, अपनी शाम वे पत्...
बारिश
लघुकथा

बारिश

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज आसमान पर बादल छाए थे, मानसून का आगमन हो चुका था। सभी को खुशी थी कि अब इस तपती गर्मी से निजाद मिलेगी। लेकिन शोभा ताई अपनी झोपड़ी में बैठे-बैठे ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि पहली बारिश के बाद ही झोपड़े में पानी भर जाएगा, फिर अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जायेगी। हे ईश्वर! जब तक कहीं रहने का इंतजाम न हो, तब तक कैसे भी करके बादलों को बरसने से रोक लो। तभी नगर पालिका की गाड़ी बस्ती के बाहर आकर रूकी, कि पूरी बारिश में बस्ती के लोगों के रहने के लिए सरकार ने पुराने स्कूल में व्यवस्था की है। सब लोग अपना काम का सामान लेकर उधर रहने जा सकते हैं। तभी बादल बरसने लगे और अब शोभा ताई भी बारिश में खुशी से झूम रही थी। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी म...
ईमानदारी व्यर्थ नहीं जाती
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ईमानदारी व्यर्थ नहीं जाती

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यकायक एक अनजाना सा, गुमनाम सा नाम द्रोपदी मुर्मू जी का चर्चा में आ गया है। एन डी ए से राष्ट्र के सर्वोच्च पद के लिए एक आदिवासी महिला का नाम घोषित होता है। सभी उत्सुक हैं जानने के लिए आखिर ये मोहतरमा हैं कौन ? सचमुच द्रोपदी मुर्मू जी एक साधारण महिला ही है। जैसे कभी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद या लालबहादुर शास्त्री देहात परिवेश से आकर अपनी योग्यताओं के कारण देश के उच्च पदों पर आसीन हो गए थे। द्रोपदी मुर्मू जी का जन्म २० जून १९५८ को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी ग्राम में एक सांथाल परिवार में हुआ था। पिता ने इन्हें गाँव में ही प्राथमिक शिक्षा दिलवाई थी। वे खूब पढ़ना चाहती थी ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर सके। घर में गरीबी इतनी थी परिवार को शौच के लिए जंगल जाना पड़ता था। उन्होंने स्नातक की शिक्षा भुवनेश्वर में रह कर अर्जित की। ...
बेटी की विदाई
लघुकथा

बेटी की विदाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी की शादी करना हर पिता का सपना होता है ... मेरे जीवन में भी एक बेटी आई और मेरा घर खुशियों से भर गया जैसे-जैसे बेटी बड़ी होने लगी मुझे एक बात सताने लगी की इसकी शादी होगी और यह पराई हो जाएगी फिर मेरे घर आंगन में कौन नाचेगा जिसे मैंने बड़े लाड से पाला वह आज पराई होने जा रही है। खुशी है बेटी की शादी की परंतु दिल में कहीं किसी एक कोने में उदासी भी है, अपनी नन्ही सी कली को अपने प्राणों से ज्यादा चाहा अपनी पलकों की छांव में रखा उसे ईश्वर हर खुशी दे बेटी की विदाई का विचार मन में आते ही दिल अंदर से कांप जाता बेटी के बिना मैं अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता उस बेटी को आज मुझे विदा करना है, मेरा पूरा घर उसकी मीठी बोली से गूंजता रहता था अब यहां सन्नाटा होगा बेटियां पराई अमानत होती है तो ईश्वर उन्हें देता ही क्यों है, क्यों माता-पिता...
पर्यावरण दिवस
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पर्यावरण दिवस

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** हम चारों तरफ से आवरण से घिरे रहते हैं उस प्राकृतिक तत्व को पर्यावरण कहा जाता है। यह प्राकृति तत्व ही जीवन की संभावना का निर्माण करता है। इसमें हवा, पानी, धरती, आकाश, प्रकाश, पेड़, पशु, पक्षी सभी सम्मिलित हो जाते हैं। पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन की संभावना है और इसी जीवन के अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण अति आवश्यक हो जाता है। प्रत्येक वर्ष ५ जून को पूरा विश्व पर्यावरण दिवस मनाता है। यह पर्यावरण के संरक्षण हेतु एक अभियान है। पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले तत्वों को रोकने का संकल्प लिया जाता है। पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत इस उद्देश्य के साथ की गई थी कि वातावरण की स्थितियों पर इस दौरान ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा और भविष्य में भी पृथ्वी पर सुरक्षित जीवन की सुनिश्चित किया जा सकेगा...
ऐसा क्यों है?
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ऐसा क्यों है?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी मैं सोकर उठा भी नहीं था कि मोबाइल की बज रही लगातार घंटी ने मुझे जगा दिया। मैंने रिसीव किया और उनींदी आवाज़ में पूछा -कौन? उधर से आवाज आई- अबे! अब तू भी परेशान करेगा क्या? कर ले बेटा ओह! मधुर, क्या हुआ यार? कुछ नहीं यार! बस थोड़ा ज्यादा ही उलझ गया हूँ, सोचा तुझसे बात कर शायद कुछ हल्का हो जाऊं। बोल न ऐसी क्या बात हो गई? मैं तेरे पास थोड़ी देर में आता हूं, फिर बताता हूं। मधुर ने जवाब देते हुए फोन काट दिया। मैं भी जल्दी से उठा और दैनिक क्रिया कलापों से निपट मधुर की प्रतीक्षा करने लगा। लगभग एक घंटे की प्रतीक्षा के बाद मधुर महोदय नुमाया हुए। मां दोनों को नाश्ता देकर चली गई। नाश्ते के दौरान ही मधुर ने बात शुरू की। यार मेरी एक मित्र (गिरीशा) है। जिससे थोड़े दिन पहले ही आमने सामने भेंट भी हुई थी। वैसे त...
अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो… वाद-विवाद
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अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो… वाद-विवाद

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वाद-विवाद आदरणीय निर्णायक गण, विपक्ष के प्रतिभागी एवं उपस्थित मेरे प्रिय साथियों !!! मैं सरला मेहता प्रदत्त विषय के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ। पूर्व जन्म में मैं क्या थी, मुझे नहीं पता। किन्तु अगले जन्म में भी मुझे बिटिया बनने की ही चाह है। हाँ, सुना है मैंने 'नारी सर्वत्र पूजयते'। मैं पूजित होने के लिए नहीं वरन परिवर्तन की प्रणेता बनने के लिए बेटी के रूप में पुनः आना चाहूँगी। अभी तक मैं अनुभव ही बटोरती रही। अब मैं चाहती हूँ कि उनका सदुपयोग कर सकूँ। बेटी- जन्म के प्रति सामान्यजन की सोच बदलना चाहती हूँ। अभी वह इस संसार में आई ही नहीं है। जन्म पूर्व ही उसका पोस्टमार्टम कर दिया जाता है। मैं चाहती हूँ कि मेरा स्वागत भी एक बेटे जैसा ही हो। अरे! सुने होंगे ना पारम्परिक गीत। जन्मे बच्चे के लिए गाया जाता है, "अवधपुरी...
काश बुद्ध सा कुछ करता
लघुकथा

काश बुद्ध सा कुछ करता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "घर सम्भालूँ कि नौकरी करूँ? बिट्टू के स्कूल की मीटिंग में अलग जाना है।" सुमेधा बड़बड़ाते हुए अपना व बेटे का टिफ़िन तैयार करती है। रिक्शा से बिट्टू को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस पहुँचती है। पता चला आज भी बॉस ने लेट लगवा दिया है। चाय की तलब लगने पर याद आया घर में दूध था ही नहीं। बिट्टू को देना जो ज़रूरी था। चाय को भूलकर फाइलें निपटाते दिमाग़ में विचारों का ज्वारभाटा चलने लगा, "सिद्धार्थ से प्रेम विवाह कर कितने सपने देखे थे। पति के पास काम नहीं होने पर भी दिलासा देकर उसके लेखक बनने के जुनून को हमेशा सराहा। हाथ खर्चा देती रही इस आशा में कि सब ठीक होगा। किन्तु एक रात वह सब को सोता हुआ छोड़कर अनजानी राह पर चला गया।" काम निपटाते हुए वह उदास हो जाती है। तभी एक मित्र का फोन आता है, "सुमेधा ! संयत होकर धैर्य से मेरी बात सुनना। पता चला है कि सिद्धा...
निर्णय
लघुकथा

निर्णय

माधवी तारे लंदन ******************** लग्न मंडप से अपने-अपने कमरों में चले गए दूल्हा और दुल्हन, थोड़े समय बाद पूरी रात भर सुनाई देने वाली दूल्हे के कमरे से चिल्पो सुन रही थी दुल्हन, सुबह वरमाला लेकर मंडप में तो गई, पर सबके सामने बोल पड़ी मैं ससुराल नहीं जाऊंगी डोली हटा लो कहारो.... परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ...
औषधीय गुणों से युक्त “काफल”
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औषधीय गुणों से युक्त “काफल”

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** फलों में पोटेशियम की अधिक मात्रा होने से उच्च रक्तचाप और गुर्दे में पथरी होने से बचा जा सकता है। साथी हड्डियों के क्षय को भी रोका जा सकता है। फलों के तुल्य कोई भी अन्य भोज्य पदार्थ नहीं हो सकता है फलों में कई ऐसे जादुई सूक्ष्मात्रिकतत्वोंऔर एंटी-आक्सीडेंट्स का मिश्रण पाया जाता है जिनकी पूर्ण खोज वह ज्ञान अभी भी अज्ञात है। जिन फलों के सेवन से स्वास्थ्य को अच्छा लाभ बनाए रखने में मदद मिलती है उनमें- सेव, अमरुद, अंगूर, संतरा, केला, पपीता, विशेष रूप से प्रयोग किया जा सकता है। उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल उत्तराखंड और नेपाल में पाया जाने वाला सदैव हरा भरा रहने वाला "काफल' का वृक्ष प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। जिसके फल को "बेबेरी" नाम से भी जाना जाता है का- फल खाने में अत्यधिक स्वादिष्ट, हरा, लाल, व काले रंग में पाए जाते ...
अनूठा प्रेम
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अनूठा प्रेम

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** वो सून्दर सी पालकी "गुलाब के फूलो से सजी हुई थी। उन फूलो की खूश्बू से पूरा वातावरण सुगान्धित था। हवा के झोके अपने होने का अहसास दिला रहे थे। रुपमती का यौवन उसकी स्वरलहरियो" जैसा परिपूर्ण था। उसकी लटे उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार रही थी। पालकी को कहारो ने महल के प्रागंण मे उतारा "बहुत सारी दासियो ने पालकी को घेर लिया" पालकी के बाहर पैर रखते ही नूपुर की छुनछुन की आवाज चूडियो की खनक उस प्रागंण मे अपने मीठी अनुराग पैदा करने लगी। रूपमती पालकी से बाहर आ गई "सारी दासिया उसे अवाक सी देखती रही" उसकी खूबसूरती को नजर न लगे दासी रजला ने" रूपमती के चेहरे को घूघट से ढक दिया। और रूपमती का हाथ पकड महल की ओर बढ गई" बाजबहादुर की धडकने बेताहास धडकने लगी "उसकी कुछ मर्यादा थी। वो राजा था।वो अपनी प्रेयसी को गले नही लगा सकता था। पर उसका मन बार बार...
श्रद्धांजलि
लघुकथा

श्रद्धांजलि

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ********************  "विभोर, कॉलेज से आते आते एक फूल माला लेकर आना।" फुलमाला किसलिए मां.. ? आज कोई त्यौहार है क्या? अरे नहीं, वो हमारे स्नेही माधव काका..., उनके श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जाना है, तो मैंने सोच लिया.. साथ में फूल माला लेकर जाते हैं। तस्वीर पर चढ़ा देंगे, उनके आत्मा को शांति मिलेगी। "अरे मम्मी, फूल माला चढ़ाने से न आत्मा को शांति मिलती है, न कोई पुण्य मिलता है। यह तो केवल दिखावा है। जब बिस्तर में पड़े थे तो उन्होंने कितनी बार तुझे याद किया, मिलने को बुलाया। वह आपसे बातें करना चाहते थे। अपना दिल हल्का करना चाहते थे। पर तुझे उन्हें मिलने को न समय मिला, न उनके साथ ठीक से बात कर पायी और आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रही हैं!!!!" बेटे की बात सुनकर माँ बोली "वैसा कुछ नहीं है, विभोर। मैं उनसे मिलने कई बार गई थी। इस छ:...
मुझे भी जीना है!
कहानी

मुझे भी जीना है!

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कार दरवाजे पर आकर खडी हो गयी थी, कला का मन बार बार उधर ही जा रहा था! नयी बहू आयी थी पर वो खुद को रोके हुए थी! वजह उसका विधवा होना, अंश उसका इकलौता बेटा था! नीचे बहू परछन की तैयारी हो रही थी! बड़ी ननद ने सारा जिम्मा लिया था और निभा भी रही थी! कही कुछ कमी नहीं अरे कला नीचे चल अब तो बहू का मुहं देख ले, इतनी प्रतीक्षा की कुछ देर और सही, चल ठीक है, तेरी इच्छा, पडोसन सविता बोली " कुछ ही घंटो में सारे रीति रिवाज समाप्त हो गये, पर कला के कान उधर ही लगे थे! कला भाभी, बडी ननद की आवाज थी, जो दरवाजे पर अंश और नयी बहू के साथ खडी थी! अंश बहू के साथ कला के समीप आ गया, माँ "कला ने बाहे फैला दी" पर अंश उसके पैरों में झुक गया "जुग-जुग जिऐ" उसने अंश को गले लगा लिया कोमल हाथों ने उसके पैरों को धीरे से छुआ, कला अंश को हटा झट से नीचे झुक गयी " बहू को ...
माँ तू बहोत याद आती
आलेख

माँ तू बहोत याद आती

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होले से चपत लगाकर के सूरज संग मुझे जगा देती जो मेरे सपने सजाती थी वो सपनों में क्यूँ समा गई माँ ! तू बहोत याद आती माथा मेरा सहला करकर बालों को तू सुलझाती थी लाल रेशमी रिबन बांधके भालपे मीठी मुहर लगाती माँ ! तू बहोत याद आती नाज़ुक महकते हाथों से गरम नाश्ता रोज़ कराती बस में मुझे चढ़ा कर के भारी  बस्ता थमा जाती माँ ! तू बहोत याद आती जन्मदिन की तैयारियों में कई रातें माँ तू नहीं सोती मुश्किलें जो आती मुझपे हर मर्ज़ की दवा बताती माँ ! तू बहोत याद आती अब तेरी नातिन मुझको दिनभर  नाच नचाती है झुंझलाती थकके मैं बैठूँ तस्वीर से तू है मुस्काती माँ ! तू बहोत याद आती परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सीखना व्यर्थ नहीं जाता
आलेख

सीखना व्यर्थ नहीं जाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन भी एक पहेली है। जो सोचते हैं वह कब कहाँ छूट जाता है कह नहीं सकते है। मैं अंग्रेजी साहित्य में स्नाकोत्तर हूँ। किन्तु जब नौकरी का सोचा तो शुरुआत सहकारी बैंक से की। शब्दों को छोड़ अंकों का दामन थामा। सहकारी प्रशिक्षण में म.प्र. में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाया। किन्तु एक माँ व पत्नी को छुट्टियों वाली नौकरी ज़्यादा सुविधाजनक होती है। दस वर्ष पश्चात शिक्षण के क्षेत्र में कदम रखने के लिए बी एड किया। एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश हुआ। यहॉं भी चुनौतियाँ थी। अंग्रेजी की ज्ञाता तो थी पर अंग्रेजी अच्छे से बोलने में झिझक थी। एक गाँव की लड़की व सरकारी विद्यालय की छात्रा जो थी मैं। बस लगी रही मुन्नाभाई की तरह। एक शिक्षिका होकर घर पर विद्यार्थी बन जाती। एक प्रशिक्षक के साथ कॉन्वेंट वाली अंग्रेजी बोलने का अभ्यास करने लगी। और गटर-पटर करते मेरी गाड़ी चल ...
कुछ तो है उसमें
कहानी

कुछ तो है उसमें

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीमा घर में प्रवेश करने के बाद सीधे बेडरूम में चली गई थी। "मैं बहुत थक गई हूं।" सुनो जी कोई बुलाये या माँ पुकारे तो भी उठाना नहीं। आदेश देने के लहजे से कहकर, सीमा पलंग पर हाथ पैर फैलाये पसर गई थी। सेहल सीमा के नाटक को गौर से देख रहा था। माँ सुबह से काम में व्यस्त रहती फिर भी कुछ नहीं बोलती, थकान, चिन्ता को जैसे निगलना जान गई हो। आखिर "माँ'" है ना! सीमा करवटें बदलती सोने का उपक्रम करके पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सेहल सीमा के पास आया, हां वाकई में थक गई हैं। नींद के आगोश में गये चेहरे को देखकर सेहल के मन में ढेर-सा लाड़ उमड़ आया। लेकिन इस वक्त हिम्मत जुटाना मुश्किल था। भरी दोपहर के दो बज रहे थे। माँ अभी भी रसोईघर में काम निपट रही थी। सीमा का यूं सोना भी उसे अखर रहा था। बैठक से भी रसोई का कमरा दिखाई देता था। सेहल ने माँ की ओर देखा वह...
मैं बचूँ या ना बचूँ
लघुकथा

मैं बचूँ या ना बचूँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "अरे शोभा जी ! आप अपनी संगीत कक्षा में ही व्यस्त रहो। खबर भी है आपको कि बिट्टू कहाँ है?" "क्या हुआ नीता जी बिट्टू को? वह तो स्वीमिंग क्लास गया है। बस आता ही होगा।" तभी बाहर से शोर सुनाई देता है, "बिट्टू राजा जिंदाबाद।" लड़कों ने हार पहने बिट्टू को काँधे पर उठा रखा है। आशंकित शोभा जानना चाहती है कि आख़िर माज़रा क्या है। स्वीमिंग क्लास के सर हाथ जोड़कर बताते हैं, "मेडम ! आपका बेटा बड़ा दयालू व बहादुर है। इसने एक पपी को पूल में डूबते हुए देखा। अपनी जान की परवाह किए बिना यह पास पड़ी तगारी लिए पानी में कूद गया। और झट से पपी को तगारी में डाल सिर पर रख लिया। खुद अपने हाथ ही नहीं चला पा रहा था। मैं वहीं खड़ा था तो दोनों को बचा लिया।" बिट्टू को आगोश में भरते हुए शोभा पूछती है, "बच्चे ! तुम्हें कुछ हो जाता तो...।" "मम्मा ! आप ही तो सिखाती हो...
पुस्तकों का जीवन में महत्व
आलेख

पुस्तकों का जीवन में महत्व

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज में रहता है, जिसमें रहने के लिए बहुत सी बातों का ज्ञान होना चाहिए। मनुष्य का समाज में सामाजिक और मानसिक विकास भी होता है। पुराने मंदिर और इतिहास की चीजें नष्ट हो जाती है, लेकिन किताबों में सब कुछ सुरक्षित रहता है, जिसके द्वारा हम इतिहास के विषय में जान सकते हैं। अगर पुस्तक ना हो तो हम बहुत सी बातें हैं बातों से अनजान रह जाएंगे। जिस प्रकार तन को स्वस्थ रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन को स्वस्थ रखने के लिए साहित्य की आवश्यकता होती है। जीवन की वास्विकता का अनुभव करने के लिए पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुस्तकें ही हमारे ज्ञानकोष का भंडार है। पुस्तक इंसान की सबसे अच्छी मित्र है, हमेशा पास रहती है, वह बिना बोले ही सब कुछ कह जाती हैं। पुस्तक...
माँ बहन या बेटी
संस्मरण

माँ बहन या बेटी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** विगत दिनों आभासी दुनिया से जुड़ी मुंहबोली बहन की जिद पर पहली बार उसके निर्माणाधीन मकान पर जाना हुआ। जहां उसके चेहरे पर सचमुच की छोटी बहन जैसी खुशी देख मन गदगद हो गया। क्योंकि वह पहले ही बेटे और मजदूरों से इस बात की चर्चा कर चुकी थी कि बड़े भैया आ रहे हैं। वापसी की बात पर और वो जिद कर घर चलने का अनुरोध करने लगी, मना करने पर उसकी आंखों में आसूं भर आये, शायद ये भी सोचती रही होगी कि उसका अपना भाई भी क्या यूं ही मना कर देता? उसकी भावुकता ने मुझे हिला दिया और उसकी भावनाओं को सम्मान देते हुए मैंने स्वीकृत क्या दिया, वो कितनी खुश हो गई, ये बता पाना मुश्किल है। लेकिन मुझे भी संतोष तो हुआ ही कि मेरे किसी कदम ने एक शख्स को खुश होने का अवसर तो दिया। वहां से निकलते हुए ही काफी विलंब हो चुका था। विद्यालय और मकान की व...
माँ की पीड़ा
स्मृति

माँ की पीड़ा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  पिछले दिनों अपने एक साहित्यिक मित्र की बीमार माँ को देखने जाना पड़ा। विगत हफ्ते से उनकी सेहत में सुधार नहीं हो रहा था। लिहाजा जाने का फैसला कर लिया। एक दिन पूर्व ही अपने एक अन्य कवि मित्र को अपने आने की सूचना दी और उसी शहर में अपनी मुँह बोली बहन को भी अपने आने के बारे में अवगत कराया, तो उसने भी मेरे साथ चलने की बात कही। स्वीकृत देने के अलावा कोई और और रास्ता न था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन कवि मित्र सूचनानुसार निर्धारित स्थान पर मिले। हम दोनों लोग पास में ही बहन के घर गए। हालचाल का आदान प्रदान हुआ। बहन के आग्रह का सम्मान करना ही था। अतः चाय पीकर हम सब अस्पताल जा पहुंचे। हमारे साथ बहन का बेटा भी था। हम चारों को मित्र महोदय बाहर आकर मिले और हम सब उनके आई सी यू में माँ के पास जा पहुंचे। वहां...
क्षमा- एक दिव्य गुण
आलेख

क्षमा- एक दिव्य गुण

सुनीता चौधरी 'सरस' अबोहर फाजिल्का (पंजाब) ******************** एक सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ कई दिव्य गुणों से अभिभूत है। यह दिव्यता परमात्मा ने उसे हर क्षेत्र में प्रदान की है। चाहे हम भौतिक गुणों की बात करें या आध्यात्मिक गुणों की। इन गुणों से सरोबार मनुष्य है दिन प्रतिदिन विकास की ऊंचाइयों को छूता हुआ अपने किस्मत का सितारा आसमान में चमक आ रहा है। इन सितारों को चमकाते-चमकाते वह क्या सही और क्या गलत कर रहा है उसे कुछ भी ध्यान नहीं है। माना कि जब भी मानव गलती करता है तो हर बार परमात्मा उसे किसी न किसी रूप में क्षमा कर देता है। लेकिन बुलंदियों को छूता हुआ मनुष्य अन्य लोगों को रुलाता हुआ इस प्रकार आगे बढ़ता है कि उसे अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता लेकिन अगर हम पुराने समय की बात करें तो समाज में जियो और जीने दो की भावना पूरे समाज को सरोबार वह तरोताजा रखती थी। लेकिन आज का मनुष्य क्...
आत्म संघर्ष
लघुकथा

आत्म संघर्ष

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरीर और आत्मा दोनों ही अलग हैं। लेकिन आत्मा को कर्म में आने के लिए शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। काया के सौन्दर्य को इतना महत्व देने के बजाय आचरण और व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाहरी सौन्दर्य पर लोग भ्रमर के भांति आकर्षित होते हैं। यदि आचरण सही है तो उसका चरित्र ही सत्य सौन्दर्य है‌। इस सोच के साथ बेला पति रोहन और माँ को तीव्रता से याद कर रही थी। आफीस से लौटी बेला व्याकुल होकर सोफे पर निढाल बैठी थी। आज आफिसर श्रेयस का व्यवहार चूभ रहा था। वहीं रोहन के शब्द कानों पर टकरा रहे थे। बेला, "इतनी चंचल वृत्ति काम की नहीं। सौन्दर्य का नशा झटके में कोई उतार न दे।" वह बेसब्री से रोहन की राह देख रही थी। शायद उसे देखते ही मन हल्का हो जाय। इसी अपेक्षा से उसे एकान्त प्रिय लग रहा था। कई प्रश्न उभर रहें थे। उसके उत्तर भी वही खोज रही थी। मुझे...