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गद्य

लोकतन्त्र की मार
लघुकथा

लोकतन्त्र की मार

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** कैसे है मुहम्मद भाई? शर्मा जी ने दूर ही से आवाज लगाई। शुक्र है खुदा का भाई जान मुहम्मद भाई मुस्कुराते हुए बोले। बहुत अरसे से मुहम्मद भाई और शर्मा जी एक ही महौल्ले में रहते थे दोनों में अच्छी जान पहचान थी। गली से गुजरते दुआ सलाम होती ही थी . क्या खबर छपी है ? आज पेपर में शर्मा जी ने पूछा . भाई जान अब कहां कुछ खबर छपती है हर तरफ हाहाकार फैली है मगर मीडिया बिकाऊ हो चला है . सही कह रहे है आप . लोकतन्त्र सिर्फ नाम भर का है . जाने लोग किस ओर जा रहा है . राजनीति का स्तर गिर गया है. उठने वाली हर आवाज को दबा दिया जाता है . ईश्वर नेक राह दिखाए. आमीन मुहम्मद मुस्कुरा उठे. शर्मा जी गली से निकल गए , आज उन्हे अपनी बेटी के ससुराल जाना था शादि का कार्ड देने .शादि की तारिख पास आ चूकी थी , उसी सिलसिले में बाजार से कुछ सामान लेने निकले थे . बैंकों में पैसा होते हु...
चिंतक नियरे राखिए
व्यंग्य

चिंतक नियरे राखिए

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** चिंता सदा से चिता के समान रही है। ऐसा हमारे बुजुर्गों ने कहा, भगवान ही जाने बुजुर्गों ने कहा भी है या लोगों ने खुद ही सब कुछ कह सुन कर बुजुर्गों का नाम लगाकर पल्ला झाड़ लिया। समाज और देश को आगे बढ़ाने के लिए या मुख्य धारा में लाने के लिए चिंता नहीं चिंतन करने की जरूरत है। वैसे आज के इस दौर में चिंतक ढूढ़े नहीं मिल रहे हैं । जिसे देखो वही चिंताग्रस्त है। जब हम छोटे थे तब सुबह-सुबह सड़क के किनारे, और रेल्वे ट्रैक के आसपास लोटा सामने रखकर गूढ़ चिंतन में खोए लोग दिख जाते थे। उनकी भावभंगिमा देखकर लगता था कि राष्ट्र हित में कोई बड़ा चिंतन कर रहे हैं।लेकिन समय-समय पर सरकार ने चिंतकों के प्रति चिंतन करने के पश्चात घर-घर में आत्म चिंतन केंद्र खुलवा दिए। सरकार के इस कठोर निर्णय से ऐसे चिंतक डायनासोर की भांति विलुप्त होने की कगार पर जा चुके...
अफसोस
व्यंग्य

अफसोस

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** नेताजी गहन वार्तालाप मेँ व्यस्त थे, तभी उन के व्यक्तिगत सहायक ने उन्हे याद दिलाया कि उन्हे एक  सार्वजनिक कार्यक्रम मेँ  वनो की मह्त्ता व उनके समग्र विकास पर एक परिचर्या के लिये जाना है नेताजी परिचर्या मेँ पहुंचे व उनकी बारी आने पर, वनोँ  के विनाश, वन महोत्सव की उपयोगिता पर अपने विचार रखे। भारत मेँ लगातार हो रहे औद्योगिक विकास की भेँट चढ रहे वनो के विनाश, आदिवासियोँ के पलायन, दुर्दशा पर उनका भाषण इतना ओजस्वी एवँ भावना पूर्ण था कि लग रहा था कि वे अब रोये कि तब रोये उनका दावा था कि यदि उचित माध्यम से तथा सभी के सहयोग से अगर वनोँ  के विनाश को रोकने, वनो मेँ अनवरत पौधा रोपण करने, उनकी निरँतर देखभाल करने, तथा वनोँ की सुरक्षा के बारे मेँ समग्र प्रयास कि जायेँ तो वनोँ की घटती सँख्या पर काबू पाया जा सकता है उनहोंने जनता से अपील की अपने घर क...
स्त्री का अस्तित्व
कहानी

स्त्री का अस्तित्व

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** रूपा तीन विद्यालय की संचालिका है। इतनी कर्मठ महिला अपने आप सम्मान की पात्रा हो जाती है। कितनों को ही रोजगार देने में सक्षम। एक समय ऐसा भी था जब वह अपनी जिंदगी से निराश हो चुकी थी। जीवन का चक्र तो अनवरत चलता है जिसमें दिवस के उजाले के साथ रात्रि की कालिमा का भी आवागमन होता है। मैं जिस रूपा को जानती थी महाविद्यालय के दिनों में वो अपने आप में ही सिमटी रहती थी, और मैं भी अंतर्मुखी, स्वाभाविक था दोनों इक दूजे के ज्यादा करीब नहीं थे। पर अरसे बाद जब रेल में यात्रा के दौरान हम दोनों आमने सामने की सीट पर मिले तो हर्षातिरेक से भर आलिंगनबद्ध हो गए। दोनों का ही व्यक्तित्व परिवर्तित मैं उम्र के इस पड़ाव पर अंतर्मुखी से बहिर्मुखी और रूपा भी व्यावसायिक महिला के अनुसार मिलनसार। थोड़ी देर इक दूजे की पारिवारिक जानकारी ली हम दोनों ने, पर मैंने महसूस किया अतीत ...
एक राष्ट्र–एक चुनाव
आलेख

एक राष्ट्र–एक चुनाव

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** विश्व में आज हमारा लोकतंत्र जितना स्थिर, स्थायी, मजबूत और परिपक्व हैं, उतना ही हमारा मतदाता भी परिपक्व होता जा रहा हैंI ऐसे में यह भी सोचना होगा कि क्या ‘एक राष्ट्र एक चुनाव‘ यह देश का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा हैं या महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए एक और नया मुद्दा हमें परोसा जा रहा हैंI भले ही सारे राजनितिक दल और नेता पुरानी तरह से सोचते हो परन्तु वास्तविकता यह हैं कि तकनिकी विकास और सोशल मिडियाने मतदाताओं को परिपक्व किया हैं, इसका अंदाजा नेताओं को शायद नहीं हैं I पक्ष-विपक्ष के राजनितिक दलों के अपने अपने तर्क हो सकते हैं I परन्तु सत्ताधारी और विपक्ष वे ज्वलंत मुद्दे क्यों नहीं उठाते जो देश के सामने विकराल रूप से आज भी चुनौती दे रहे हैं I यह आश्चर्यजनक हैं कि राजनैतिक दल उनके ही द्वारा उठाये गए पुराने मुद्दों को अधूरा छोड़ते जा...
करवा चौथ आस्था और प्रेम
आलेख

करवा चौथ आस्था और प्रेम

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** कुदरत ने औरत को जितना शारिरिक तौर पर कोमल बनाया है उतना ही उसे प्यार , ममत्व से भरा है . हमारी भारतीय संस्कृति पुरूष प्रधान रही है . औरत का अस्तित्व सदैव पुरूष से जोड़ा जाता है . अधिकतर परंम्पराएं या दायित्व  औरत से ही जोड़े  है . करवा चौथ का व्रत भी उन्ही परंम्पराओं का हिस्सा है . अलग अलग धर्मो और जातियों के अपने अलग अलग रिवाज तथा आस्थाएं है .  महिलाएं कई तरह के व्रत रखती है , जिनमें से एक करवा चौथ का व्रत है . जिसे पत्नी अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती है . कई कंवारी लड़कियां भी अपने प्रेमी के लिए या गणपति जी से अच्छे पति की  कामना के लिए रखती है . इस व्रत के अनुसार सुबह तारों की छाय में सरगी खाई जाती है , उसके बाद दिन भर चादं निकलने तक पानी या भोजन कुछ नही . चांद निकलने के बाद चादं को अर्क दे कर ही व्रत खुला जाता है . इस व्रत को लेकर स्त्रिय...
लोकतंत्रीय तानाशाही
आलेख

लोकतंत्रीय तानाशाही

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** भीड़तंत्र की, 'लोकतंत्रीय तानाशाही' पढ़कर और सुनकर अनेक लोग हैरान हो सकते हैं और उन्हें यह विषय हास्यास्पद भी लग सकता हैं, परन्तु वस्तुस्थिति यह हैं कि हम लोकतंत्रीय तानाशाही की ओर बढ़ रहें हैं, जहाँ किन्ही चयनित या निर्वाचित कुछ ख़ास व्यक्तियों को व्यवस्था रूपी तंत्र निर्णय लेने के सारे अधिकार सौप देती हैंI एक दो व्यक्ति, चाहे घर हो या बाहर, या हो राष्ट्र में, योग्य निर्णय लेने की असीम एवं निष्पक्ष क्षमता नहीं रख सकते, बल्कि यह कहें कि सुचारू व्यवस्था के लिए और नित नयी समस्याओं के समाधान हेतु किसी एक या दो व्यक्तियों को योग्य और सक्षम निर्णय लेना संभव ही नहीं हो सकता I लोकतंत्रीय तानाशाही में सलाहकार भी एक वृत्त और उसकी परिधि की चकाचौंध से भ्रमित हो उन्हें योग्य सलाह देने का साहस ही नहीं जुटा पाते, क्योंकि उन्हें हमेशा यह भय सताता रहता ह...
सौभाग्यवती स्त्रियोँ का पर्व करवा चौथ
आलेख, धर्म, धर्म-आस्था

सौभाग्यवती स्त्रियोँ का पर्व करवा चौथ

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** हिंदुओं का पवित्र त्योहार करवा चौथ सम्पूर्ण देश मे कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक  सभी महिलाएं करवा चौथ का व्रत अवश्य करती है। उनमें बड़ी श्र्द्धा व विश्वास उत्साह के साथ सौभाग्यवती स्त्रियां इस पर्व को मनाती हैं। इस पर्व को होई अष्टमी  या तीज की तरह ही उल्लास से मनाया जाता है। पति की दीर्घायु व  अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। दिन भर उपवास रखकर रात में चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद  ही भोजन का विधान है। अपने परिवार में प्रचलित परम्परा के अनुसार ही करवा चौथ महिलाएं मनाती है।लेकिन निराहार बिना जल ग्रहण किये दिन भर महिलाएं उपवास रखती है। चन्द्रोदय होने पर पूजा करती है। अर्ध्य देती है। फिर आंक में अपने पति का ...
अपने-पराये
कहानी

अपने-पराये

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ********************   खुशीनगर में मोहन काका रहते थे। वे शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी, सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले और खुशमिज़ाज व्यक्ति थे। इसी गाँव में मनसुख बाबा का आश्रम था, बाबा हमेशा प्रसन्नचित्त रहते थे। बाबा के मुखमण्डल का तेज व मुस्कराहट को देख हर किसी व्यक्ति का चेहरा इस कदर खिल उठता मानो सूर्य-किरण पड़ते ही कमलिनी खिल उठती हैं। प्रसन्नता महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सद्गुण माना जाता है। बाबा ने क्रोध व अहं पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनमें लोगों को खुश करने की कला थीं गर गाँव में कोई भी व्यक्ति नाखुश मिल जाता तो वे उनके रहस्य जान कर उसके मुखमण्डल पर प्रसन्नता की लकीरें खींच देते। बाबा की मान्यता थी कि, दरअसल भगवान मंदिर, मस्जिद व गिरजाघरों में न होकर दीन-दु:खियो व पीड़ितों के दर्द भरी आह के पीछे की मुस्कान में वास करते हैं।...
अधिकारी दामाद
लघुकथा

अधिकारी दामाद

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** प्रिया बैठक में गुमसुम बैठी थी, उसे पता नहीं चल रहा था - रंजन से कैसे जिक्र करे माँ के आने का। क्या शादी के समय हुई घटनाओं को भूलकर सहजता से व्यवहार कर पायेगा रंजन माँ के साथ। माँ की सोच भी तो कुछ गलत नहीं थीं अपनी बेटी के लिए अपने सामाजिक स्तर का ही दामाद चाहतीं थीं। सरकारी अफसर की बेटी का हाथ अपने भविष्य निर्माण में लगे निजी संस्था के कर्मचारी के हाथ में कैसे दे देतीं। अब ये अलग बात थी कि रंजन की पारिवारिक स्थिति से प्रभावित होकर दोनों के दिल में प्यार के बीज माँ ने ही डाले थे। प्रिया के पापा रंजन के ही घर की गली में आलीशान मकान खरीदे और पूरे परिवार को स्थायी रूप से रखकर अपने कार्य स्थल पर चले गए। रंजन के पापा भी उच्च पदासीन पदाधिकारी,बड़े भाई शहर के नामी चिकित्सक। उनका मकान भी कुछ कम आलीशान नहीं था। उसमें सोने पर सुहागा ये कि जात बिरादरी ...
जम्मू उधमपुर
यात्रा वृतांत

जम्मू उधमपुर

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************* कुदरत बेहद ही खुबसुरत है , मगर उसकी खुबसूरती को बनाए रखना मानव पर निर्भर करता है . जम्मू उधमपुर शहर हमारे भारत का हिस्सा है . पहाड़ों की नगरी . जम्मू का नाम सदैव कश्मीर घाटी से जोड़ा जाता है , जिसे कभी धरती का स्वर्ग माना जाता था मगर बटवारे के बाद से राजनैतिक लिए गए फैसलों ने कश्मीर मुद्दे को कभी खत्म होने नही दिया .देखते देखते धरती का स्वर्ग उजड़ता चला गया . हर वक्त खौफ के साय में ऱहती आवाम की हालात किसी से छूपी नही है , जिसका असर जम्मू , उधमपुर में देखने को भी मिलता है . हर गली चौहारे पे फौजी दिखाई देते है. अभी हाल ही में भांजे की शादि में उधमपुर जाना हुआ क्योंकि हमारे पूर्वज कौटली , मीरपूर से है तो हमारी बिरादरी के बहुत से लोग जम्मू , उधमपुर शहर में बसते है . दिल्ली से जम्मू हम अपनी कार में ही गए . हाई वे का रास्ता अच्छा है , किसी तरह की कोई प...
यादों का गुलदस्ता …
आलेख, स्मृति

यादों का गुलदस्ता …

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** मिसाइल मेन देश के प्रसिद्ध अभियन्ता व भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम साहब का जन्म १५ अक्टूबर १९३१ को धनुष कौड़ी ग्राम रामेश्वरम तमिलनाडु में हुआ था। वे एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्मे थे। इनके पिताजी मछुआरों को नाव किराये पर देने का काम करते थे। इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन अधिक पढ़े लिखे नही थे। अब्दुल कलाम सयुंक्त परिवार में रहते थे। संयुक्त परिवार में सदस्य कितने थे इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कलाम साहब के पांच भाई व पांच बहने थी घर मे तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम पर इनके पिताजी का बहुत प्रभाव पड़ा। वे चाहे पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन उनके दिए संस्कार उनके काम आए। पांच वर्ष की आयु में कलाम को रामेश्वरम की पंचायत के प्राथमिक विद्यालय में भर्ती कराया गया। उनके शिक्षक सोलोमन ने उनसे कह...
कितना राष्ट्रप्रेम कितनी राष्ट्रभक्ती
आलेख

कितना राष्ट्रप्रेम कितनी राष्ट्रभक्ती

********* विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. किसी भी राष्ट्र की भौगोलिक सीमा ये उस राष्ट्र का अस्तित्व, महत्व, और पहचान के लिये पर्याप्त नही होती। जमीन पर दिखने वाली इस सीमा रेखा के अंदर उस राष्ट्र के नागरिकों के अपने राष्ट्र के प्रति जो आदर, जो कर्तव्य, जो प्रेम और अपनत्व की भावनाएं अपने परिपक्व स्वरूप मे होती है, और यह सब जब राष्ट्र के नागरिकों के व्यवहार और आचरण मे प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित होती है, तब हम इसे राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती कह सकते है। राष्ट्र के स्थायित्व और सर्वांगीण उन्नती के लिए तथा भावनात्मक रूप से राष्ट्र को एक सूत्र मे पिरोये रखने के लिए इसी राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती की नितांत आवश्यकता होती है। - इतिहास साक्षी है कि राष्ट्रप्रेम के अभाव मे भारत का विभाजन हुआ। आगे संयुक्त पाकिस्तान मे भी नागरिकों के राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती की भावनाओं का ऱ्हास होने के कारण ...
मानव-मूल्य
लघुकथा

मानव-मूल्य

********* डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) वह चित्रकार अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति को निहार रहा था। चित्र में गांधीजी के तीनों बंदरों  को विकासवाद के सिद्दांत के अनुसार बढ़ते क्रम में मानव बनाकर दिखाया गया था। उसके एक मित्र ने कक्ष में प्रवेश किया और चित्रकार को उस चित्र को निहारते देख उत्सुकता से पूछा, "यह क्या बनाया है?" चित्रकार ने मित्र का मुस्कुरा कर स्वागत किया फिर ठंडे, गर्वमिश्रित और दार्शनिक स्वर में उत्तर दिया, "इस तस्वीर में ये तीनों प्रकृति के साथ विकास करते हुए बंदर से इंसान बन गये हैं, अब इनमें इंसानों जैसी बुद्धि आ गयी है। ‘कहाँ’ चुप रहना है, ‘क्या’ नहीं सुनना है और ‘क्या’ नहीं देखना है, यह समझ आ गयी है। अच्छाई और बुराई की परख - पूर्वज बंदरों को ‘इस अदरक’ का स्वाद कहाँ मालूम था?" आँखें बंद कर कहते हुए चित्रकार की आवाज़ में बात के अंत तक दार्शनिकता और बढ़ गयी थी। "ओह! ...
कौन है शत्रू राष्ट्रभाषा के ?
आलेख

कौन है शत्रू राष्ट्रभाषा के ?

********* विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. हमारे देश मे तामिलनाडू राज्य मे हिंदी भाषा के लिये कुछ असंवेदनशीलता देखने को मिलती है और वैसा हमे प्रत्यक्ष अनुभव भी होता है परंतु यह भी सच हैं कि, तामिलनाडू राज्य मे उनकी मातृभाषा के लिये गौरव, सन्मान और अभिमान और आत्मीयता भी उन्हें अनुभव होती है I राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे मे तामिल जनता से और राज्य के राज्यकर्ताओ से अन्य भारतीयो का कितना भी मतभेद हो परंतु एक राष्ट्रभक्त होने के नाते हमे निश्चित ही तामिलों की भावनाओ का आदर भी करना चाहिये, और मातृभाषा के प्रती उनके लगाव के कारण हमे गौरवान्वित भी होना चाहियेI हमे इस हेतू निश्चित ही संतुष्ट भी होना चाहिये कि एक राज्य की भाषा (तमिल) को, संस्कृती को और अस्मिता को सहेजकर और सुरक्षित रखने के लिये वहां के लोग जी जान से जुटे है और भावनिक दृष्टी से अपनी मातृभाषा से भी जुडे हुए है परंतु राष्ट्रभाषा हिंद...
उड़नखटोला
लघुकथा

उड़नखटोला

********** नीरजा कृष्णा पटना 'ये रूपा अभी तक बिस्तर तोड़ रही है, नौ बज रहा है। इस तरह पड़े रह कर तो ये लड़की कभी भी जिम्मेदारी नहीं सीख पाएगी' ना चाहते हुए भी आनन्द बाबू की आवाज़ काफ़ी तल्ख हो गई। 'ज़रा धीमे बोलिए ना! बच्ची है, सब सीख जाएगी! कितनी प्यारी सुन्दर हैं अपनी रूपा! देख लेना, एक दिन कोई राजकुमार आकर मेरी फूल सी बच्ची को उड़नखटोले पर बैठा कर ले जाएगा" अब तो सहनशक्ति जवाब दे गई उनकी, "शीला! कौन से जमाने में रह रही हो? अब ना कोई राजकुमार आएगा, ना कोई उड़नखटोला आएगा, बेटा बेटी सब बराबर होते है, अच्छी शिक्षा दो, हर क्षेत्र में यथासंभव काबिल बनाओ...यही आज के युग की माँग है।" पति की बातें सुन कर वो बहुत सोच में पड़ गई .... 'क्या सचमुच उनकी प्यारी गुड़िया के लिए कोई राजकुमार उड़नखटोले पर नहीं आएगा? क्या सचमुच उनकी रूपा के असीम रूप का कोई मूल्य नहीं है? सोचते सोचते उनको ध्यान आ गया पडौस...
वेणी वाली दुर्गा
लघुकथा

वेणी वाली दुर्गा

********** स्वाति जोशी पुणे देवी मंदिर के आहते में सजी छोटी सी दुकान पर स्मिता सामान ले रही थी। हार, फूल, नारियल,धूप, कपूर, प्रसाद सब ले लिया था, तभी वहाँ रखी लाल रंग की जरी बाॅर्डर की साडी पर उसकी नज़र पडी, कुछ कहने के लिये मुडी, तो देखा पति सतीश दुकान के बाहर कुछ दूरी पर मोबाईल में सिर गडाये खडा था। वहीं से आवाज़ देकर स्मिता ने पूछा, 'ये साडी भी ले लूं देवी माँ के लिये?' 'हाँ,हाँ ले लो’ सतीश ने सिर हिला कर सहमति दी। 'ये औरतें भी ना... एक तो नवरात्रि में भीड़-भाड़ में इनके साथ मंदिर चलो, और फिर, 'ये भी ले लूंँ?, वो भी ले लूँ?''... सतीश मन ही मन बुदबुदाया..मगर पत्नी से कुछ भी कहने के बजाय, हाँ कहना उसे ज्यादा आसान लगा। वैसे भी मंदिर में चारों तरफ लोग ही लोग थे, जहां जगह मिली वहाँ छोटी छोटी दुकानें भी लगा रखी थीं हार- फूल, नारियल वालों ने, कमाई का सीज़न था उनका! उपर से बारिश की चिक-चिक......
सड़क का गढ्ढा
व्यंग्य

सड़क का गढ्ढा

********** जितेंद्र शिवहरे महू (इंदौर) मुख्य बाजार की सड़क से गुजरना हुआ। वहीं कुछ दूरी पर लोगों की भीड़ जमा थी। सड़क के इर्द-गिर्द बहुत से लोग खड़े थे। सभी की आखें नीचे सड़क पर थी। मुझे भी उत्सुकता हुई। मैंने वहां भीड़ के नजदीक जाकर देखा। सड़क के बीचों-बीच एक गहरा गढ्ढा हो गया था। राहगीर जैसे-तैसे बचते बचाते निकल रहे थे। दो पहिया वाहन तो गढ्ढे के आसपास से निकल जाते मगर चार पहिया वाहन युं ही सड़क की दोनों ओर पंक्ति बध्द खड़े थे। चार पहिया वाहन स्वामियों को अमिट विश्वास था कि कोई न कोई उस गढ्ढे को भरने अवश्य आयेगा। तब वे आराम से निकल जायेंगे। इसलिए वे निश्चिंत होकर अपनी-अपनी कार में बैठे थे। कुछ लोग गाड़ी से नीचे उतर कर सड़क किनारे भुट्टें की दुकानों पर टूट पड़े थे। मैंने साहस कर कहा- "अरे भाई कोई म्यूनिसिपल ऑफिस को फोन करो। वहां से कोई आयेगा तब ही पेंच वर्क शुरू होगा।" मेरी बात वहां सुन...
कैलाश विजयवर्गीय एवं चिंटू वर्मा विश्व बुक ऑफ रेकॉर्ड लंदन द्वारा सम्मानित
आलेख

कैलाश विजयवर्गीय एवं चिंटू वर्मा विश्व बुक ऑफ रेकॉर्ड लंदन द्वारा सम्मानित

*********** विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर बात उन दिनों की है जब धार्मिक गतिविधियों के प्रचार - प्रसार की शुरुआत को कोई ५,६ साल ही हुए थे। उस काल मे चुनिंदा जगह नवरात्रि में गरबे, भजन, कवि गोष्ठियां,कवि सम्मेलन, आर्केस्ट्रा आदि होना प्रारम्भ हुए थे। ऐसे वक्त में नगर के एक उदीय मान बालक जिसकी उम्र लगभग १७ वर्ष थी ने हिम्म त जुटाई और अपने कुछ मित्रों को साथ लेकर अति प्राचीन देवी माता मंदिर पर प्रथम भजन संध्या का आयोजन किया, जिसमे एक सशक्त राजनेता ने उस भजन संध्या में अपनी युवा संगीत मंडली के साथ भजनों की शुरुआत की। छोटा सा मंच ओटले पर बना हुआ, वही माता एवम बहनों की अपार भीड़, पुरुषों का भी भारी जनसमूह इस भजन संध्या में भजनों की बयार का आनन्द लेने उप स्थित था। रात्रि ३ बजे तक भजन संध्या में माता के भजनों एवं राष्ट्रीय गीतों के साथ "मां तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, प्यारी-प्यारी है ...
कक्षा दसवीं के बाद सही विषय का चुनाव
आलेख

कक्षा दसवीं के बाद सही विषय का चुनाव

************ पूर्वा परमार राऊ, इंदौर अक्सर हमारे मित्र या परिचित हमसे पूछते हैं कि क्या दसवीं के बाद मैं अर्ट्स का चुनाव करूं या गणित ? क्या मैं इंजीनियर बनूं या डॉक्टर? क्या मै गायक बनकर पैसे कमा सकता हूं? क्या नृत्य मेरी आजीविका का साधन बन सकता है? ऐसे असमंजस से हर कोई गुजरता है। तो ऐसे में सही विषय का चुनाव आपके लिए आगे के रास्ते खोलता है और आपको अपने पसंदीदा नौकरी या व्यसाय चुनने में मदद करता है। इस स्तिथि में सबसे अहम भूमिका माता पिता की होती है। ज़रूरी यह है कि पालक अपने बच्चों से चर्चा करें उनका मत जानें क्युकिं ऐसे समय में जब हम दसवी की परीक्षा दे रहें हैं, हमें समझ नहीं आता कि हम किस ओर आगे बढ़ें? अब ऐसे वक्त में हमें यानि विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को क्या करना चाहिए? आप जानें कि आपके बालक कि रुचि किस विषय में है। उसके बाद उस दिशा में पढ़ रहे या कार्य कर रहे रिश्तेदा...
दोस्त की पहचान
लघुकथा

दोस्त की पहचान

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) राम और श्याम दोनो बहुत ही गहरे मित्र थे .  उनकी मित्रता बचपन की थी, साथ खेले और साथ ही बड़े हुए . बारवीं की  परिक्षा खत्म हो चुकी थी .  विध्यालय की शिक्षा के पश्चात अब आगे विश्व विध्यालय में जाने का समय था .  अन्य विधायर्थियों की भातिं ये दोनों मित्र भी इसी चिंता में थे कि आगे क्या और कैसे किया जाए  . राम जहां  पढ़ाई में ठीक सा था तो श्याम सदैव कक्षा में अवल  स्थान प्राप्त करता था .   दोनो के परिवारों में रहन -सहन  की भी अन्तर था .  परन्तु इन सब अन्तर के बावजूद दोनों में अटूट मित्रता रही .  विध्यालय के परिणीम स्वरूप दोनों को अलग अलग विश्व विध्यालय में दाखिला मिला .  वह दोनो ही अपनी अपनी दिन चर्या और पढ़ाई में व्यस्त हो गए . अब वह कभी-कभार ही मिल पाते और  पिछले समय को याद करते . फिर एक दिन राम ने अपने जन्मदिन की पार्टि रखी और अपने सभी नए पूराने दोस्तो ते अम...
बर्ताव
लघुकथा

बर्ताव

अविनाश अग्निहोत्री इंदौर म.प्र. ******************** राजेश के ड्राइवर पिता को जब उसके मालिक के बच्चे भी नाम से ही पुकारते।तो यह बात राजेश को बड़ी बुरी लगती।वो सोचता कि आज भले वो गरीब है।पर एक दिन उसके पास भी यही शानो शौकत होगी।तब उसके पिता के नाम को भी सब अदब से लिया करेंगे।उसके बाल मन का ये विचार बड़ा होते होते दृढ़ संकल्प बन गया।और अपनी अच्छी पढ़ाई और आरक्षण के फायदे के चलते,आज वो भी एक बड़ा अधिकारी बन चुका है।अब उसके पास भी रसूख के साथ वो सब है।जिसकी कभी बचपन मे उसने कल्पना की थी।आज उसके साथ उसके पूरे परिवार को भी उसकी इस तरक्की पर नाज है।पर अब वो भी अपने पिता की उम्र के, अपने ड्राइवर व माली आदि नोकरो को उनका नाम लेकर ही पुकारता है।और जरा जरा सी भूलो पर सबके सामने उन्हें फटकारने में अपनी शान समझता है।जो आज उसके नोकरो के बच्चों को भी वैसे ही बुरा लगता है।जैसे कभी उसे लगता था।पर आज शायद रा...
हिचकिचाहट
लघुकथा

हिचकिचाहट

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) संजय और नीलम रिश्ते में यूं तो एक दूसरे के कुछ नही लगते थे, पर एक ही बिरदारी से थे . बस इसी नाते आपस में जान पहचान थी . फिर एक बार किसी करीबी रिश्तेदार के यंहा, उनके बेटे की शादि में नीलम का जाना हुआ . इतफाक से वंहा संजय भी आया हुआ था . शादि से पहले की भी कई रस्में होती है, जैसे महंदी, सगन इत्यादि .  बाहर से आने वाले सभी अतिथी तीन , चार दिन का प्रोग्राम बना कर आए हुए थे . नीलम और संजय भी चार दिन के लिए दिल्ली से जयपूर पहुंचे थे . एक ही शहर के होने के बावजूद भी कभी दोनों का आमना सामना नही हुआ, पर यहां शादि के इन चार दिनों में वह एक दूसरे के बेहद करीब आ गए . दोनों को यूं लग रहा था जैसे वह एक दूसरे को बहुत पहले से जानते और समझते है .  चार दिन का समय अच्छे से गुजर गया . वक्त का पता ही नही चला फिर वापसी की उड़ान भरने का समय आ गया . दोनो ने एक दूसरे का नम्बर लेत...
एक पौधा बगिया का
लघुकथा

एक पौधा बगिया का

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज सुबह बहुत दिनों के बाद परिवार के सभी सदस्य बागीचे में साथ बैठकर धुप सेंक रहे थे ... तभी बबली भी बिस्तर से उठकर अपने बाबूजी की गोद में आ बैठी .... हंसी ठिठोलियों का दौर चल रहा था की बबली को देख काकी बोल उठी ... अरे बबली अब उठी हो सोकर ... इतनी देर कोई सोता है भला ... कल ससुराल जाओगी तो वंहा यह सब नहीं चलने वाला ... दादी ने भी काकी की बात का समर्थन किया ... मै नहीं जाउंगी कोई ससुराल-वसुराल, यहीं रहूंगी अपने माँ-बाबूजी के पास ... आप सब के बिना मै वहां कैसे रहूंगी ... क्या आप मेरे बिना रह सकते हैं ... संसार की रीत है ये सबको जाना होता है रुंआसी होकर काकी बोल पड़ी ... तभी बाबूजी ने बबली से कहा अरे बबली तुमने जो पौधा पीपल के नीचे लगाया था उसे खाद पानी दिया या नहीं चलो देखें क्या हाल है उसके और दोनों पौधे के पास जा पहुंचे और ...
वो नहीं आई
लघुकथा

वो नहीं आई

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) उस दिन अनु बिल्कुल निढाल सा हो गया था जबकि इतनी खूबसूरत शाम का सुहाना सा मौसम था जिसे देखकर किसी का भी मन मोह जाता और खुद को वहाँ रोके बिना नहीं जा पा रहा था लेकिन अनु अब भी एक टक उसी राह पर अपनी नजरें गढाए हुए बैठा था, जिस तरफ कोमल सिसकती हुई तेज कदमों से चली गई थी, हल्की हल्की बूँदें फ़ुहार नुमा आसमान से गिर रहीं थी जो बूँदें अब पानी बनकर अनु के बालों से खेलती हुई उसके रेगिस्तान की तरह सूखे और लालमा से भरे हुए गालों पर दस्तक देने ही वाली थी कि अनु ने एकदम से हाथ से पानी को हटाया और नदी के पानी की तरफ़ देखकर फ़िर से पिछली मुद्रा में लीन हो गया,क्योंकि अनु को भरोसा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास था कि कोमल मुझे छोड़कर नहीं जा सकती और फ़िर इस स्थिति में तो बिल्कुल भी नहीं कि जब मैं उससे कह चुका हूँ, कि कोमल तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी पूर...