Thursday, January 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गद्य

मित्रता : बच्चों के साथ
आलेख, नैतिक शिक्षा

मित्रता : बच्चों के साथ

अंजू खरबंदा दिल्ली ******************** हम पति पत्नी ने शुरू से ही आदत बनाई हुई है कि बच्चों को महीने मे दो बार बाहर डिनर के लिये लेकर जाते है। एक पंथ दो काज। इससे दो बाते होती है - पहली साथ बिताने के लिये समय मिलता है और दूसरा बच्चे बाहर घूमने के लिये यारों दोस्तों का साथ नही ढूंढते। आर्डर देते समय ये निर्णय करने मे अक्सर समय लगता कि - "आज क्या मंगाया जाये!" "इस भोजनालय की सूचि मे स्पेशल क्या है !" पर बच्चे तो बच्चे है - "आज ये नही खाना, पिछली बार भी तो यही खाया था! आज कुछ और मंगाते हैं !" कभी-कभी कोफ्त सी होने लगती व इंतजार भारी सा लगने लगता तो बच्चों को कहना पड़ता - "जल्दी निर्णय करो! देखो और लोग भी प्रतीक्षा मे खड़े हैं!" बच्चों के साथ कही जाओ तो बहुत धैर्य रखना पड़ता है । हमें देख कर ही तो बच्चे सीखते है फिर हम ही जल्दी परेशान हो जायेगे तो उसका असर सीधा बच्चों पर पड़ेगा ही! एक ...
मृत्युदंड क्यों नही
आलेख

मृत्युदंड क्यों नही

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** पता चला है कि हैदराबाद में फिर एक बेटी के साथ हैवानियत करने के बाद भी दरिंदों का मन नहीं भरा। तो उसकी लाश को ट्रक के पीछे बांधकर दूर ले जाकर जला दिया गया, तब प्रशासन क्या कर रहा था। क्या नेताओं और समाज के ठेकेदारों का कोई कर्तव्य नहीं बनता? एक तरफ तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगवाया जाता है, और दूसरी तरफ हर रोज बेटियाँ दरिंदों की हवस का शिकार बनती जा रही हैं। क्या गलती थी डॉ प्रियंका की? क्या औरत अपना जिस्म लुटाने के लिए ही बनी है? कि जिसका जब मन किया उसे अपने हवस का शिकार बना ले। क्या उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं? बड़ी-बड़ी बातें करने वाले हमेशा बेटियों की गलतियां निकालते हैं कि कपड़े छोटे पहनना होगें अपना जिस्म दिखा रही होगी। फिर बताइए कि जो बच्ची मां का दूध पी रही है उसके साथ भी क्यों हैवानियत होती है उसे भी दरिंदे नहीं छोड़ते...
स्वर्ग
कहानी

स्वर्ग

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** प्रत्युष अपने माँ -पिताजी के साथ गंगिया गाँव में रहता है। उसके पिताजी गाँव के ही मध्य विद्यालय के शिक्षक हैं। वह अपने माँ-पिताजी का दुलारा लाल है। प्रत्युष बचपन से ही शरारती एवं मनमौजी है। वह अपने माँ-पिताजी के बातों पर ध्यान नहीं देता है। बिना बताए घर से कहीं भी चला जाता है। "बेटा कहीं जाते हो,तो मुझे बोल दो।" उसकी माँ समझाती है। "मैं कहीं भी जाऊँ, आप इससे मतलब नहीं रखे।" प्रत्युष अपनी माँ की बातों पर ध्यान नहीं देता है। उल्टे गुस्सा कर दो-चार बातें अपनी माँ को सुना देता है। उसकी माँ अपने लाल के रूखे व्यवहार से चिंतित है। उसके माँ-पिताजी आपस में अक्सर बात करते हैं, "प्रत्युष का व्यवहार ठीक नहीं है। वह हमारे बुढापे का लाठी बनेगा कि नहीं?" धीरे-धीरे समय का पहिया आगे बढता जा रहा है। प्रत्युष अभियंता बन गया है। उसकीशादी सुन्दर और सुशी...
हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?
आलेख

हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** कर्तव्य अर्थ :- किसी भी कार्य को पूर्ण रूप देने के लिए सजीव व निर्जीव दोनों नैतिक रूप से प्रतिबद्ध हैं। तथा दोनों कर्तव्य के साथ अपनी भागीदारी का पालन करते हैं। हम जानते हैं कि कर्तव्य से किया गया कार्य हमे एक विशेष परिणाम उपलब्‍ध करवाता है। जो वर्तमान एवं भविष्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इंसान को कर्तव्य का प्रभाव केवल इंसानों में ही नजर आता है। परन्तु इस धरा पर इंसान के अलावा पशु - पक्षी और निर्जीव वस्तुएँ भी अपना महत्वपूर्ण कर्तव्य अदा कर रहे हैं l यह किसी को नजर नहीं आता है l क्योकि वर्तमान में इंसान अपने स्वार्थ को पूरा करने में दिन - रात दौड़ भाग कर रहा है। उसके लिए एक पल भी किसी को समझने का नहीं है l आईए कर्तव्य को विभिन्न विश्लेषण के साथ समझने का प्रयास करते हैं। मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- मनुष्य ...
मोबाइल की लत
आलेख

मोबाइल की लत

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** मोबाइल फोन जैसे जीवन में प्रवेश कर चुका है। यह अत्यंत लाभकारी और विनाशकारी दोनों ही साबित हो रहा है। छोटे बच्चों का बचपना इस मोबाइल और इंटरनेट में कहीं गायब सा कर दिया है, जिस उम्र में बच्चे खेल कूद किताबें पढ़ना व व्यायाम अन्य लाभकारी शारीरिक और मानसिक विकास बढ़ाने वाले कार्य करते हैं उस उम्र में छोटे छोटे बच्चे भी आजकल मोबाइल में लगे रहते हैं, स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि बच्चे सारा सारा दिन मोबाइल में वीडियो गेम यूट्यूब फेसबुक इत्यादि चलाते हैं, और एक अलग ही काल्पनिक दुनिया बना लेते हैं ,जिसके कारण उनका मानसिक और शारीरिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता। यह स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि बहुत से माता-पिता तो बच्चों मेंमोबाइल की लत छुड़ाने के लिए चिकित्सक की सहायता ले रहे हैं। मोबाइल यदि हिसाब से चला जाए तो लाभकारी है किंतु इ...
अंतर्द्वंद
लघुकथा

अंतर्द्वंद

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** बहुत दिनों बाद बचपन की सहेली रीना से मिलने के लिए मैं अति उत्साहित थी। और इसी खुशी में पूरी रात जगी रह गयी। गुज़रे दिनों की सारी बातें चलचित्र की तरह मानस पटल पर चल रही थीं। महाविद्यालय की वो शांत सी बाला जब काफी अरसे बाद फेसबुक पर दिखी तो पहचानने में बिलकुल वक्त नहीं लगा मुझे। और फिर फोन ने तो वर्षों की दूरियों को पल भर में घनिष्ठ कर दिया। जब भी बात होती रीना की खनकती आवाज उससे मिलने की इच्छा और बढ़ा देती। मिलने की व्यग्रता में अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से समय निकाल कर मैं उसके गाँव पहुँच गई। गांव का खुले आंगन वाला घर कितना साफ और सलीके से सुसज्जित था। आखिर रहता भी क्यों न इस घर की मालकिन सुशिक्षित सौम्य महिला जो थी। रीना की सारी पड़ोसन मुझसे मिलने आ गयी थीं। ऐसा लग रहा था मैं सिर्फ रीना की सहेली नहीं उन सभी की रिश्तेदार हूँ। इस अपनापन ने भावा...
उतना ही भोजन ले थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
आलेख

उतना ही भोजन ले थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** जिस प्रकार मानव को जीवित रहने के लिए पानी और हवा की आवश्यकता है इसी प्रकार मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है जहां कुछ लोगों पर खाने के लिए कुछ  नहीं है वहीं कुछ लोग भोजन का अनादर कर देते हैं और इतना खाना वेस्ट करते हैं जो कि बिल्कुल ही गलत है आपने शादी विवाह में देखा होगा कि लोग अपनी थाली में इतना खाना ले लेते हैं कि वह खा भी नहीं पाते और बाकी खाना फेंक देते हैं जो कि बेहद ही गलत है हमें उतना ही भोजन थाली में लेना चाहिए जितना हम खा सकें खाने को बिल्कुल भी नही छोड़ना चाहिए शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति खाने का अनादर करता है वह पाप का भागी बनता है जहां कुछ एनजीओ और संस्थाएं शादी विवाह आदि में बचे खाने को गरीब और असहाय लोगों में जिन पर खाने के लिए कुछ भी नहीं है उनको देकर पुण्य के भागी बन रहे हैं वहीं कुछ लोग खा...
रिश्ते
आलेख

रिश्ते

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रिश्ते आदमी को जन्म से ही अपने आप मिल जाते है। भले ही रिश्तों का कोई आकार प्रकार ना हो, परन्तु रिश्ते धीरे धीरे अपने आप जुड़ते जाते है और श्रृंखलाबद्ध हो जाते है। अटूट बंधनों में बंध जाते हैं। कुछ रिश्ते अचानक कोई लॉटरी खुल जाए ऐसे भाग्योदय जैसे उस लॉटरी में खुले इनाम की तरह मिल जाते है। जैसे परिवार में किसी की शादी तय होती है और वरमाला पड़ते ही अचानक कई सारे रिश्ते जुड़ जाते है। कुछ रिश्ते पुष्प जैसे होते है, खिलते जाते है, बहार लाते रहते है, महकते जाते है और हमेशा खुशबूं ही बिखेरते रहते है। गुलाब की पंखुड़ियों में अक्षरों से लिपट जाते है। कुछ रिश्ते पत्थर जैसे जडवत रहते है। अक्षरशः गले में पत्थरों की माला जैसे बोझा बन लटकते रहते है और उन्हें जबरन ढोते रहना पड़ता है। कुछ रिश्ते मन में चिडचिडाहट पैदा करने जैसे होते है। बिलकुल हैरान परेशान ...
अपना अपना देश प्रेम
यात्रा वृतांत

अपना अपना देश प्रेम

बाबुलाल सोलंकी रूपावटी खुर्द जालोर (राजस्थान) ******************** गांव से अहमदबाद जा रहा हूं। मेहसाणा बस डिपो पर दस मिनिट के लिए बस रुकी है। थोड़ी आरामदेही के लिए डिपो के चौड़े आंगन से टहलता हुआ हाइवे तक पहुँचा। कोई १०-१२ साल का एक लड़का और फटे-पुराने कपड़ो से लदी उसकी माँ तिरंगी टोपी व तिरंगा झंडा लिए जोर जोर से चिल्ला रहे थे .....तिरंगा लेलो .......झंडा लेलो.......! देश प्रेम नी एकज ओळखान.......(आगे की पंक्तिया समझ नही आई)......! हाइवे पर सरपट दौड़ती मारुति आल्टो ८०० से बी एम् डब्लू जैसी कारो वाले देश भक्त लोग भी है तो साइकिल से लेकर रॉयलफील्ड व महंगी स्पोर्ट्स बाइको पर सवार लोग भी है। कोई ईधर नजर घूमाता कोई न भी। कोई महँगी कारो की ए.सी. से हल्का सा ग्लास नीचे कर पूछता - अल्या केटला पइसा ? सेठ...ए....क....ना दस रुपिया, बीस रुपया ! देशप्रेम महंगा हो गया, ग्लास ऊंचा हो जाता और गाड़ी रवाना ! ल...
माँ से मिलना है …
लघुकथा

माँ से मिलना है …

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** आज सुबह-सुबह दोस्त के यहाँ चंडीगढ़ गृह प्रवेश हवन पूजा के लिए जाते समय अचानक रास्ते में कार का टायर पंचर होने पर ड्राइवर ने कहा सर! टायर बदली करने में थोड़ा समय लगेगा। मैंने खिड़की खोली और बाहर निकला तो देखा कि...एक बूढ़ी अम्माँ गेट पर खड़ी-खड़ी अपने थूक से पल्लू को गिला करके चश्मा पौंछ-पौंछकर मुझे बार-बार ऐसे निहार रही थी जैसे कोई उम्र कैद की सजा पाया हुआ कैदी किसी के आने का इंतजार कर रहा हो और फिर एक हाथ से इशारा करके मुझे बुलाने लगी। मैंने ड्राइवर से कहा कि....तुम टायर बदली करो मैं आता हूँ। जब मैं थोड़ा नजदीक पहुँचा तो बूढ़ी अम्मा ने वापस जाने का इशारा कर दिया। मैं समझ नहीं पाया ... मेरे पैर जाने को कह रहे थे पर मन बूढ़ी अम्माँ के वापस लौटने के इशारे पर काम कर रहा था। मैंने पैरों की भाषा को पहचाना और बुढ़ी अम्माँ के पास...
वो कोई ख्वाब ही थी
बॉलीवुड गॉसिप, सिनेमा, स्मृति

वो कोई ख्वाब ही थी

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** ईरान के अब्दुल सलीम अस्करी और शदी हबीब आगा के घर में पैदा हुई मुमताज़ ने भारतीय सिनेमा पटल पर जो धूम मचाई, वो किसी भी अभिनेत्री और उसके दर्शकों के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं। कसा हुआ बदन, छोटी नाक, अदाएँ बिखेरते हुए लव, अनार से भी लाल गाल और ज़ुल्फ़ों में उमड़ता-घुमड़ता बादल देखकर केवल और केवल मुमताज़ का नाम ही जहन में आता है। दो रास्ते फिल्म का गाना "ये रेशमी ज़ुल्फ़ें, ये शरबती आँखें, इन्हें देखकर जी रहे हैं सभी "मुमताज़ की अदाओं को सौ फीसदी सही साबित करते हैं। अपने शुरूआती दिनों के संघर्ष में दारा सिंह के साथ कई फिल्मों में काम करने के बाद जब उनका सिक्का चलना शुरू हुआ तो फिर वो चलता ही गया। उस दौर में एक अभिनेत्री के लिए एक अच्छी नर्तकी होना लाजिमी समझा जाता था। उस दौर की वहीदा रहमान, आशा पारेख, हेमा मालिनी सभी बेहतरीन नृत्य करने में परिपक्व थी।...
निंदाई में पनपा प्रेम
लघुकथा

निंदाई में पनपा प्रेम

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** खेतों में चल रही निदाई कि निगरानी के लिए हमें घर से दोपहर ११ के आस पास बजे खेदा गया आज एक अद्वितीय प्रेमी से भेट होगी हमने यह सोचा भी नहीं। घर से ५ सेर पानी और आधा सेर गुड़ लेकर चला और नदी पार खेतों तक पहुच कर निंदाई कर रही मजदूरनी को पानी और गुड़ थमाया फिर निंदाई से उखड़े खरपतवार उठा-उठा कर मेड़ पर रखने लगा मेघों कि कृपा विशेष रही उनके रिमझिम करने से काम में थकान नहीं हो रही । लगभग आधे घंटे के बाद कुछ खेतों आगे एक कृष्णवरण का जवान युवक लगभग ७-८ माह के बच्चे को सिर पर बिठाकर कुछ गीत गुनगुनाते हुए सीधे आ रहा। मैने पास निंदाई कर रही औरतों से उसके बार में पुछा तो एक अधेड़ औरत बोली मेरा लडका है और इसका पति (बगल खड़ी औरत को छू कर)। मैं झुक कर अपने काम में बारिश कि बूदें थोड़ी तेजी से और व्यक्ति छाता लगाकर खेत तक अलौकि...
अमरप्रेम
आलेख

अमरप्रेम

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** अमरप्रेम इस विषय पर साहित्य में, फिल्मों में और धारावाहिकों में हमें ढेर सारी सामग्री मिलती हैंI क्या अमरप्रेम यह विषय मनोवैज्ञानिक हैं? क्या अमरप्रेम की मस्तिक्ष में कोई ग्रंथि होती हैं? उम्र का इससे भले कोई संबंध ना भी हो तो भी अक्सर ख़ास कर किशोर अवस्था से इसकी शुरवात क्यों होती हैं? आगे जाकर यह किस तरह पनपता हैं या किस तरह इसका अंत होता हैं? और क्या यह परिस्थतियों पर निर्भर होता हैं? आखिर अमरप्रेम होता क्या हैं? अमरप्रेम इस शब्द का उपयोग स्त्री-पुरुषों के संबंध हेतु, विशेष कर प्रेमीयुगल हेतु और उनके अंतरंग संबंधों हेतु किया जाता हैंI ‘प्रेम मय सब जग जानीI’ कबीरदास इसके भी आगे जाकर कहते हैं, ‘ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होयI ‘सब कुछ भूलकर और भुलाकर प्रेम में डूब जाने वाले ऐसे युगलों की एक लम्बी फेहरिस्त हैंI लैला-मजनू, शिरी-फरहाद,...
सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा
आलेख

सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** दोनों का उद्देश्य समान है दोनों एक दूसरे के पूरक है। शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक शिक्षा विभिन्न क्रियाशीलनो के माध्यम से बच्चे-बच्चियों एवं युवकों के शारीरिक मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास कर उन्हें जिम्मेवार नागरिक तैयार करना है। जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विकास में सक्रिय सहयोग दे सके। शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति एवं उसके सफल कार्यवाही के लिए संसद द्वारा अनुमोदित प्रोग्राम ऑफ एक्शन में शारीरिक शिक्षा को शिक्षण को एक महत्वपूर्ण अंग बताया है। ऐसा संसार के विद्वानों का कहना है, गांधी जी ने कहा है कि शरीर जगत का एक संपूर्ण नमूना है। जो शरीर में नहीं है और जो जगत में नहीं है वह शरीर में नहीं है इसी से यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे का मह...
बाल यौन शोषण
आलेख

बाल यौन शोषण

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** समाज और बच्चे के लिए बाल यौन शोषण कोई नयी समस्या नहीं है। ये एक वैश्विक समस्या है। ये समस्या १९७० और १९८० के दशक के बाद एक सार्वजनिक मुद्दा बन गयी है। इन वर्षों से पहले ये मुद्दा नागर समाज में दर्ज नहीं होता था। छेड़छाड़ से संबंधित मुद्दों की पहली सूचना वर्ष १९४८ में और १९२० के दशक में मिली थी। नब्बे के दशक में बाल यौन शोषण पर कोई औपचारिक अध्ययन नहीं था। जहाँ तक भारत का संबंध है, ये विषय अभी भी चर्चा के लिए वर्जित है, क्योंकि इस मुद्दे को घर की चारदिवारी के ही अन्दर रखने के लिये कहा जाता है और बाहर किसी भी कीमत पर बताने की अनुमति नहीं दी जाती। एक रुढ़िवादी समाज में जैसे कि हमारा भारतीय समाज, जहां छेड़छाड़ के मुद्दे पर लड़की अपनी माता से भी बात करने में असहज महसूस करती है। यह पूरी तरह से अकल्पनीय हो जाता है कि यदि उसे अनुचित स्थानों पर छूआ ग...
बच्चो को सही शिक्षा दे
आलेख

बच्चो को सही शिक्षा दे

संजय जैन मुंबई ******************** माँ बाप का परम कर्तव्य बनता है की वो अपने बच्चो को सही तालीम के साथ संस्कार और ज्ञान दे, ताकि आने वाले समय में उन्हें अपने पैरो पर खड़ा होने के लिए कोई परेशानियो का सामना न करना पड़े। दोस्तों आज की शिक्षा व्यवस्था हमारी आने वाली पीढ़ी को पंगु बना रही है।आज दसवीं से पहले 9वी तक के छात्रों की एग्जाम व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है, जिसके कारण शिक्षा का स्तर अब निरंतर गिरता जा रहा है। सरकार ये दबा अब जरूर कर रही है, की देश का हर नागरिक शिक्षित है परन्तु हकीकत कुछ और ही है। जो की एक भ्रहम ही पैदा करता है ? क्योकि हमने तो १ से ९ तक को सिर्फ पास करके ये बताया है, की सभी लोग कम से कम ९ तक पड़े है, भले ही उन्हें पांचवी कक्षा का ज्ञान न हो, परन्तु हमारी शिक्षा प्रणाली ने उन्हें ९वी का प्रमाण पत्र बिना कुछ किये ही प्रदान कर दिया। क्या इस तरह की व्यवस्था से द...
साहित्य ही समाज को गढ़ता है
आलेख

साहित्य ही समाज को गढ़ता है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो कभी न कभी, किसी न किसी रूप में साहित्य के किसी न किसी विधा के संपर्क में न आया हो। इतिहास से लेकर अब तक की बात करें तो भित्तिचित्र, शिलालेख, मिट्टी और काँसे के बर्तनों पर उकेरे चित्र, पत्तों पर लिखे शब्द, लोक संगीत, देववाणी, सत्संग, भजन, कीर्तन, उपदेश, गांव के चौपालों पर मंडली द्वारा गाया जाने वाला संगीत, शादी-विवाह के अवसर पर वर पक्ष को वधू पक्ष की ओर से दी जाने वाली गालियाँ, दादी नानी की कहानियाँ, चित्रकथाएँ, कॉमिक्स, कार्टून, नवीन संगीत, नृत्य, नाटक एवम अन्य कई और तरह की साहित्यिक विधाएँ जन मानस में रची बसी होती हैं। साहित्य केवल एक ख़ास वर्ग के लिए ही नहीं होता, नहीं तो आइंस्टीन और कलाम जी जैसे वैज्ञानिक संगीत के मुरीद न होते। साहित्य का हर रूप समाज को जोड़ने की कोशिश ही करता है। यह किसी दायरे में बंधा हुआ ...
कोमल किसलय (काव्य संग्रह) : पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा, साहित्य

कोमल किसलय (काव्य संग्रह) : पुस्तक समीक्षा

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** पुस्तक समीक्षा कृति :- कोमल किसलय (काव्य संग्रह) लेखक :- ग्यारसीलाल सेन प्रकाशक :- सुधाकर साहित्य समिति, झालावाड़ (राजस्थान) मूल्य :-१२५/- पृष्ठ :- ८९ समीक्षक :- राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित" झालावाड़ राजस्थान के वरिष्ठ कवि एवम साहित्यकार विचारक, चिंतक ग्यारसीलाल सेन ख्यातिनाम लेखक है। आपने अपनी काव्य कृतियों से राष्ट्र में अलग ही पहचान बनाई है। नवोदित कवियों के आप प्रेरणा स्रोत हैं। प्रस्तुत कृति कोमल किसलय काव्य संग्रह उनके पिता श्री किशनलाल जी व माता केशर देवी को समर्पित कृति है। मुखावरण बहुत सुन्दर है। सेन के ट्रेवल पिक्चर्स, अभिव्यक्ति का आत्मदान, आदि निबन्ध संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्र की पत्र पत्रिकाओं में नियमित छपती है। प्रस्तुत कृति की भूमिका देश के सुप्रसिद्ध कवि बालकवि बैरागी जी ने लिखी है ज...
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और मानवता
आलेख

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और मानवता

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** भारत एक धर्मनिरपेक्ष  राष्ट्र है। जिसमें भिन्न भिन्न प्रकार के धर्म पाए जाते हैं जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, अलग-अलग  धर्मों के अपने अलग-अलग रीति रिवाज और परंपराएं हैं। हर धर्म का अपना अलग इतिहास और पृष्ठभूमि है। सभी धर्मों के अपने त्यौहार भी अलग हैं जिन्हें वह अपनी धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार मनाते हैं। ईश्वर ने सृष्टि मैं मानव को उच्च स्थान दिया  मानवता ही मानव का  सर्वोत्तम धर्म है मगर समय के बदलाव के साथ-साथ मानव ने कई सारे धर्म खड़े कर दिए जिसने समाज को विभिन्न भागों में विभाजित कर दिया, जो कई रंगों की तरह लुभावना है तो दूसरी ओर समाज में फैली नफरत का प्रमुख कारण है। कोई भी धर्म मानव को नफरत या अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता है मगर  मानव मानवता को भूलकर अपने बनाए हुए धर्म रीति-रिवाजों परंपराओं त्योहारों का सही महत्व तथा यथार्थ भूल जात...
महत्वाकांक्षा
लघुकथा

महत्वाकांक्षा

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** अपने आंसू पोछते हुए शालू समझ नही पा रही थी इस परिस्थिति के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाये। शिक्षित परिवार की शालू सर्व गुण संपन्न थी। मायके और ससुराल दोनों ही परिवार में प्रिय थी। इकलौता बेटा तरूण की परवरिश भी ऐसे किया कि लोग बाग तारीफ करते न थकते थे। संस्कार और उच्च सामाजिक मापदंड दोनों ही कड़ियों का पालन हो रहा था बेटे के परवरिश में। फिर कहां चूक रह गई । संदीप के बार बार समझाने पर भी शालू के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे कल रात जब बेटे का फोन आया था - "माँ आपको पोता हुआ है और साथ में हमें यहाँ की नागरिकता भी मिल गयी। "आपकी मेहनत ही रंग लायी है माँ जो आज मैं ये सब हासिल कर पाया हूँ। शालू के दिल दिमाग में इक ही बात घुमड़ रही थी - ये सपना तो कभी न था मेरा कि बेटा अपनी मिट्टी छोड़ कर विदेशी बन जाये। उसने तो विदेश में शिक्षा दिलवाने का कदम इस...
अधूरा  पात्र
लघुकथा

अधूरा पात्र

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** निशा बालकनी मे खडी़ दूर क्षितिज मे आँखे गडा़ये बिचार मग्न थी। उसके हाथ मे एक कागज का टुकड़ा था, शायद किसी का पत्र। उसमे लिखे शब्द उसके मन मस्तिष्क को झकझोर रहे थे, वह जबाब देना चाह रही थी,पर समझ नही पा रही थी कैसे? क्या कहूँ? क्या सम्बोधन करूँ? प्रिय? नही प्रिय होता तो जीवन को अप्रिय न बना देता। मित्र? नही, मित्र तो सुख दुख का साथी होता है, चोट लगने पर वह तिलमिला जाता है स्वयं चोट नही देता। तो क्या सम्बोधन करूँ? अनजान? पर अनजान भी तो नही है। फिर? फिर क्या, बगैर किसी सम्बोधन के ही अपने प्रश्न पूछती हूँ। जिनका सटीक उत्तर उसे देना होगा। पर क्या दे सकेगा वह मेरे प्रश्नों का उत्तर? उसके पास होगा मेरे अनुत्तरित प्रश्नों का हल? शायद, शायद वह जबाब दे, शायद मिल जाये मुझे मेरे जबाब। दे सकोगे मेरे प्रश्नों का उत्तर? लौटा सकोगे वह पल, वह सुहानी शाम, वह गुन...
भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता
आलेख

भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही विभिन्न पर्वों और त्योहारों को मनाया जाता रहा है। यदि कहां जाए कि भारतीय संस्कृति पर्व, उत्सव व त्यौहारों में बसती है, तो अतिशयोक्ति न होगी। त्योहार उत्सव पर्व हमारी संस्कृति के मेरुदंड हैं। समाज में जब-जब स्थिरता आई उसकी प्रगति अवरुद्ध हुई, तभी उन्होंने उसे गति प्रदान करने की और मनुष्य को भविष्य के प्रति आस्थावान बनाने में योगदान दिया। आज की सदी का मनुष्य इन पर्वों को रूढ़िवादिता का परिचायक मानने लगा है, उसकी दृष्टि में यह तीज त्यौहार पुरातन ता के परिचायक हैं। इनमें आस्था रखने वाला मनुष्य पिछड़ा हुआ है। पुराने विचारों का है। उसे मॉडर्न सोसाइटी का अंग नहीं माना जाता परंतु आज वास्तव में क्या ऐसा है? नहीं! भारतवर्ष में मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व अपने ही देश के हैं वह सार्थक हैं। किसी भी छोटे ...
गरीबी पर चोट
लघुकथा

गरीबी पर चोट

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** आज सुबह और दिनों की तरह ही अपने काम में लगी रही, वक्त इतनी तेजी से बीत रहा था कि पता ही नहीं चला, कब ११:०० बज गए, अचानक घर के बाहर एक ठेले वाले की आवाज आई, जो बहुत सस्ते दामों में घर के काम का सामान बेच रहा था, हम कई महिलाएं अपने अपने घर से उसकी आवाज सुनकर बाहर निकल गई, और सामान खरीदने लगी। तभी मेरी नजर मिसेज मित्तल पर पड़ी वह सामान खरीदते हुए कुछ छोटी-छोटी चीजें अपने हाथ में छुपा लेती थी, और अपनी कनखियों से देखती थी कि किसी ने देखा तो नहीं। मैंने देख कर भी अनदेखा कर दिया, सभी लोग सामान लेकर अपने अपने घर को चले गए! तब मैंने ठेले वाले भैया से कहा की अगर ऐसे ही समान बेचोगे तो तुम्हें घाटा होता रहेगा, थोड़ा सा अपनी आंखें खोल कर भी देख लिया करो कि कोई सामान तो नहीं उठा रहा। वह बिना कुछ कहे मुस्कुरा दिया और चला गया। अगली बार फिर वह...
धुंध में लिपटी राजधानी
आलेख

धुंध में लिपटी राजधानी

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ********************   दीपावली के तीन दिनों बाद हमारे देश की राजधानी दिल्ली धुंध के काले आवरण से ढँक चुकी थी।दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों से प्रदूषण की दर बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार १६०० बड़े शहरों में दिल्ली प्रदूषण में सबसे आगे हैं। भारत मे दिल्ली के अलावा ग्वालियर व रायपुर में भी वायु प्रदूषण अधिक है। वायु प्रदूषण से दिल्ली में २.२ मिलियन और पचास फीसदी बच्चे फेफड़ों सम्बधी बीमारी से ग्रसित है। दिल्ली पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड ने हालात गम्भीर होते देख मेडिकल इमरजेंसी घोषित की है।आज दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्तर को पार करते हुए ४५० से ऊपर पहुंच गया जो कि अब तक का सबसे अधिक है। दिल्ली सरकार ने स्कूलों में कुछ दिनों तक छुट्टियां घोषित कर दी है। बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को हृदय रोग, स्ट्रोक, स्वास से सम्बन्धी पर...
हिंदी में कार्य ही, मातृभाषा की सही स्तुति होगी
आलेख

हिंदी में कार्य ही, मातृभाषा की सही स्तुति होगी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** देवनागरी लिपि में ग्यारह स्वर और तैतीस व्यंजन से बनी होती है| हिंदी में वैज्ञानिक भाषा समाहित है।अंग्रेजी भाषा में ये खूबी देखने को नही मिलती।इसमें शब्दों के उच्चारण मुँह के अंगों से निकलते है।जैसे कंठ से निकलने वाले शब्द,तालू से,जीभ से जब जीभ तालू से लगती,जीभ के मूर्धा से,जीभ के दांतों से लगने पर,होठों के मिलने पर निकलने वाले शब्द ।अ, आ  आदि शब्दावली से निकलने वाले शब्द इसी प्रक्रिया से बनकर निकलते है।इसी कारण हमें अपनी भाषा पर गर्व है।आज भी कई स्थानों पर दुकानों के बोर्ड अंग्रेजी में टंगे होते है |हिंदी में लगाने से उनका स्टेट्स कम होता है ऐसा उनका मानना है |नौकरी व्यापार में भी यही हालत है |अंग्रेजी का होना आवश्यक |जबकि शासन हिंदी को शासकीय कार्य में प्राथमिकता देने हेतु हर साल कहता आया है|सोशल मिडिया पर हिंदी के भंडार है किंतु उसक...