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गद्य

अमरप्रेम
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अमरप्रेम

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** अमरप्रेम इस विषय पर साहित्य में, फिल्मों में और धारावाहिकों में हमें ढेर सारी सामग्री मिलती हैंI क्या अमरप्रेम यह विषय मनोवैज्ञानिक हैं? क्या अमरप्रेम की मस्तिक्ष में कोई ग्रंथि होती हैं? उम्र का इससे भले कोई संबंध ना भी हो तो भी अक्सर ख़ास कर किशोर अवस्था से इसकी शुरवात क्यों होती हैं? आगे जाकर यह किस तरह पनपता हैं या किस तरह इसका अंत होता हैं? और क्या यह परिस्थतियों पर निर्भर होता हैं? आखिर अमरप्रेम होता क्या हैं? अमरप्रेम इस शब्द का उपयोग स्त्री-पुरुषों के संबंध हेतु, विशेष कर प्रेमीयुगल हेतु और उनके अंतरंग संबंधों हेतु किया जाता हैंI ‘प्रेम मय सब जग जानीI’ कबीरदास इसके भी आगे जाकर कहते हैं, ‘ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होयI ‘सब कुछ भूलकर और भुलाकर प्रेम में डूब जाने वाले ऐसे युगलों की एक लम्बी फेहरिस्त हैंI लैला-मजनू, शिरी-फरहाद,...
सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा
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सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** दोनों का उद्देश्य समान है दोनों एक दूसरे के पूरक है। शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक शिक्षा विभिन्न क्रियाशीलनो के माध्यम से बच्चे-बच्चियों एवं युवकों के शारीरिक मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास कर उन्हें जिम्मेवार नागरिक तैयार करना है। जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विकास में सक्रिय सहयोग दे सके। शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति एवं उसके सफल कार्यवाही के लिए संसद द्वारा अनुमोदित प्रोग्राम ऑफ एक्शन में शारीरिक शिक्षा को शिक्षण को एक महत्वपूर्ण अंग बताया है। ऐसा संसार के विद्वानों का कहना है, गांधी जी ने कहा है कि शरीर जगत का एक संपूर्ण नमूना है। जो शरीर में नहीं है और जो जगत में नहीं है वह शरीर में नहीं है इसी से यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे का मह...
बाल यौन शोषण
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बाल यौन शोषण

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** समाज और बच्चे के लिए बाल यौन शोषण कोई नयी समस्या नहीं है। ये एक वैश्विक समस्या है। ये समस्या १९७० और १९८० के दशक के बाद एक सार्वजनिक मुद्दा बन गयी है। इन वर्षों से पहले ये मुद्दा नागर समाज में दर्ज नहीं होता था। छेड़छाड़ से संबंधित मुद्दों की पहली सूचना वर्ष १९४८ में और १९२० के दशक में मिली थी। नब्बे के दशक में बाल यौन शोषण पर कोई औपचारिक अध्ययन नहीं था। जहाँ तक भारत का संबंध है, ये विषय अभी भी चर्चा के लिए वर्जित है, क्योंकि इस मुद्दे को घर की चारदिवारी के ही अन्दर रखने के लिये कहा जाता है और बाहर किसी भी कीमत पर बताने की अनुमति नहीं दी जाती। एक रुढ़िवादी समाज में जैसे कि हमारा भारतीय समाज, जहां छेड़छाड़ के मुद्दे पर लड़की अपनी माता से भी बात करने में असहज महसूस करती है। यह पूरी तरह से अकल्पनीय हो जाता है कि यदि उसे अनुचित स्थानों पर छूआ ग...
बच्चो को सही शिक्षा दे
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बच्चो को सही शिक्षा दे

संजय जैन मुंबई ******************** माँ बाप का परम कर्तव्य बनता है की वो अपने बच्चो को सही तालीम के साथ संस्कार और ज्ञान दे, ताकि आने वाले समय में उन्हें अपने पैरो पर खड़ा होने के लिए कोई परेशानियो का सामना न करना पड़े। दोस्तों आज की शिक्षा व्यवस्था हमारी आने वाली पीढ़ी को पंगु बना रही है।आज दसवीं से पहले 9वी तक के छात्रों की एग्जाम व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है, जिसके कारण शिक्षा का स्तर अब निरंतर गिरता जा रहा है। सरकार ये दबा अब जरूर कर रही है, की देश का हर नागरिक शिक्षित है परन्तु हकीकत कुछ और ही है। जो की एक भ्रहम ही पैदा करता है ? क्योकि हमने तो १ से ९ तक को सिर्फ पास करके ये बताया है, की सभी लोग कम से कम ९ तक पड़े है, भले ही उन्हें पांचवी कक्षा का ज्ञान न हो, परन्तु हमारी शिक्षा प्रणाली ने उन्हें ९वी का प्रमाण पत्र बिना कुछ किये ही प्रदान कर दिया। क्या इस तरह की व्यवस्था से द...
साहित्य ही समाज को गढ़ता है
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साहित्य ही समाज को गढ़ता है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो कभी न कभी, किसी न किसी रूप में साहित्य के किसी न किसी विधा के संपर्क में न आया हो। इतिहास से लेकर अब तक की बात करें तो भित्तिचित्र, शिलालेख, मिट्टी और काँसे के बर्तनों पर उकेरे चित्र, पत्तों पर लिखे शब्द, लोक संगीत, देववाणी, सत्संग, भजन, कीर्तन, उपदेश, गांव के चौपालों पर मंडली द्वारा गाया जाने वाला संगीत, शादी-विवाह के अवसर पर वर पक्ष को वधू पक्ष की ओर से दी जाने वाली गालियाँ, दादी नानी की कहानियाँ, चित्रकथाएँ, कॉमिक्स, कार्टून, नवीन संगीत, नृत्य, नाटक एवम अन्य कई और तरह की साहित्यिक विधाएँ जन मानस में रची बसी होती हैं। साहित्य केवल एक ख़ास वर्ग के लिए ही नहीं होता, नहीं तो आइंस्टीन और कलाम जी जैसे वैज्ञानिक संगीत के मुरीद न होते। साहित्य का हर रूप समाज को जोड़ने की कोशिश ही करता है। यह किसी दायरे में बंधा हुआ ...
कोमल किसलय (काव्य संग्रह) : पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा, साहित्य

कोमल किसलय (काव्य संग्रह) : पुस्तक समीक्षा

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** पुस्तक समीक्षा कृति :- कोमल किसलय (काव्य संग्रह) लेखक :- ग्यारसीलाल सेन प्रकाशक :- सुधाकर साहित्य समिति, झालावाड़ (राजस्थान) मूल्य :-१२५/- पृष्ठ :- ८९ समीक्षक :- राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित" झालावाड़ राजस्थान के वरिष्ठ कवि एवम साहित्यकार विचारक, चिंतक ग्यारसीलाल सेन ख्यातिनाम लेखक है। आपने अपनी काव्य कृतियों से राष्ट्र में अलग ही पहचान बनाई है। नवोदित कवियों के आप प्रेरणा स्रोत हैं। प्रस्तुत कृति कोमल किसलय काव्य संग्रह उनके पिता श्री किशनलाल जी व माता केशर देवी को समर्पित कृति है। मुखावरण बहुत सुन्दर है। सेन के ट्रेवल पिक्चर्स, अभिव्यक्ति का आत्मदान, आदि निबन्ध संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्र की पत्र पत्रिकाओं में नियमित छपती है। प्रस्तुत कृति की भूमिका देश के सुप्रसिद्ध कवि बालकवि बैरागी जी ने लिखी है ज...
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और मानवता
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धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और मानवता

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** भारत एक धर्मनिरपेक्ष  राष्ट्र है। जिसमें भिन्न भिन्न प्रकार के धर्म पाए जाते हैं जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, अलग-अलग  धर्मों के अपने अलग-अलग रीति रिवाज और परंपराएं हैं। हर धर्म का अपना अलग इतिहास और पृष्ठभूमि है। सभी धर्मों के अपने त्यौहार भी अलग हैं जिन्हें वह अपनी धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार मनाते हैं। ईश्वर ने सृष्टि मैं मानव को उच्च स्थान दिया  मानवता ही मानव का  सर्वोत्तम धर्म है मगर समय के बदलाव के साथ-साथ मानव ने कई सारे धर्म खड़े कर दिए जिसने समाज को विभिन्न भागों में विभाजित कर दिया, जो कई रंगों की तरह लुभावना है तो दूसरी ओर समाज में फैली नफरत का प्रमुख कारण है। कोई भी धर्म मानव को नफरत या अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता है मगर  मानव मानवता को भूलकर अपने बनाए हुए धर्म रीति-रिवाजों परंपराओं त्योहारों का सही महत्व तथा यथार्थ भूल जात...
महत्वाकांक्षा
लघुकथा

महत्वाकांक्षा

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** अपने आंसू पोछते हुए शालू समझ नही पा रही थी इस परिस्थिति के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाये। शिक्षित परिवार की शालू सर्व गुण संपन्न थी। मायके और ससुराल दोनों ही परिवार में प्रिय थी। इकलौता बेटा तरूण की परवरिश भी ऐसे किया कि लोग बाग तारीफ करते न थकते थे। संस्कार और उच्च सामाजिक मापदंड दोनों ही कड़ियों का पालन हो रहा था बेटे के परवरिश में। फिर कहां चूक रह गई । संदीप के बार बार समझाने पर भी शालू के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे कल रात जब बेटे का फोन आया था - "माँ आपको पोता हुआ है और साथ में हमें यहाँ की नागरिकता भी मिल गयी। "आपकी मेहनत ही रंग लायी है माँ जो आज मैं ये सब हासिल कर पाया हूँ। शालू के दिल दिमाग में इक ही बात घुमड़ रही थी - ये सपना तो कभी न था मेरा कि बेटा अपनी मिट्टी छोड़ कर विदेशी बन जाये। उसने तो विदेश में शिक्षा दिलवाने का कदम इस...
अधूरा  पात्र
लघुकथा

अधूरा पात्र

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** निशा बालकनी मे खडी़ दूर क्षितिज मे आँखे गडा़ये बिचार मग्न थी। उसके हाथ मे एक कागज का टुकड़ा था, शायद किसी का पत्र। उसमे लिखे शब्द उसके मन मस्तिष्क को झकझोर रहे थे, वह जबाब देना चाह रही थी,पर समझ नही पा रही थी कैसे? क्या कहूँ? क्या सम्बोधन करूँ? प्रिय? नही प्रिय होता तो जीवन को अप्रिय न बना देता। मित्र? नही, मित्र तो सुख दुख का साथी होता है, चोट लगने पर वह तिलमिला जाता है स्वयं चोट नही देता। तो क्या सम्बोधन करूँ? अनजान? पर अनजान भी तो नही है। फिर? फिर क्या, बगैर किसी सम्बोधन के ही अपने प्रश्न पूछती हूँ। जिनका सटीक उत्तर उसे देना होगा। पर क्या दे सकेगा वह मेरे प्रश्नों का उत्तर? उसके पास होगा मेरे अनुत्तरित प्रश्नों का हल? शायद, शायद वह जबाब दे, शायद मिल जाये मुझे मेरे जबाब। दे सकोगे मेरे प्रश्नों का उत्तर? लौटा सकोगे वह पल, वह सुहानी शाम, वह गुन...
भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता
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भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही विभिन्न पर्वों और त्योहारों को मनाया जाता रहा है। यदि कहां जाए कि भारतीय संस्कृति पर्व, उत्सव व त्यौहारों में बसती है, तो अतिशयोक्ति न होगी। त्योहार उत्सव पर्व हमारी संस्कृति के मेरुदंड हैं। समाज में जब-जब स्थिरता आई उसकी प्रगति अवरुद्ध हुई, तभी उन्होंने उसे गति प्रदान करने की और मनुष्य को भविष्य के प्रति आस्थावान बनाने में योगदान दिया। आज की सदी का मनुष्य इन पर्वों को रूढ़िवादिता का परिचायक मानने लगा है, उसकी दृष्टि में यह तीज त्यौहार पुरातन ता के परिचायक हैं। इनमें आस्था रखने वाला मनुष्य पिछड़ा हुआ है। पुराने विचारों का है। उसे मॉडर्न सोसाइटी का अंग नहीं माना जाता परंतु आज वास्तव में क्या ऐसा है? नहीं! भारतवर्ष में मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व अपने ही देश के हैं वह सार्थक हैं। किसी भी छोटे ...
गरीबी पर चोट
लघुकथा

गरीबी पर चोट

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** आज सुबह और दिनों की तरह ही अपने काम में लगी रही, वक्त इतनी तेजी से बीत रहा था कि पता ही नहीं चला, कब ११:०० बज गए, अचानक घर के बाहर एक ठेले वाले की आवाज आई, जो बहुत सस्ते दामों में घर के काम का सामान बेच रहा था, हम कई महिलाएं अपने अपने घर से उसकी आवाज सुनकर बाहर निकल गई, और सामान खरीदने लगी। तभी मेरी नजर मिसेज मित्तल पर पड़ी वह सामान खरीदते हुए कुछ छोटी-छोटी चीजें अपने हाथ में छुपा लेती थी, और अपनी कनखियों से देखती थी कि किसी ने देखा तो नहीं। मैंने देख कर भी अनदेखा कर दिया, सभी लोग सामान लेकर अपने अपने घर को चले गए! तब मैंने ठेले वाले भैया से कहा की अगर ऐसे ही समान बेचोगे तो तुम्हें घाटा होता रहेगा, थोड़ा सा अपनी आंखें खोल कर भी देख लिया करो कि कोई सामान तो नहीं उठा रहा। वह बिना कुछ कहे मुस्कुरा दिया और चला गया। अगली बार फिर वह...
धुंध में लिपटी राजधानी
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धुंध में लिपटी राजधानी

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ********************   दीपावली के तीन दिनों बाद हमारे देश की राजधानी दिल्ली धुंध के काले आवरण से ढँक चुकी थी।दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों से प्रदूषण की दर बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार १६०० बड़े शहरों में दिल्ली प्रदूषण में सबसे आगे हैं। भारत मे दिल्ली के अलावा ग्वालियर व रायपुर में भी वायु प्रदूषण अधिक है। वायु प्रदूषण से दिल्ली में २.२ मिलियन और पचास फीसदी बच्चे फेफड़ों सम्बधी बीमारी से ग्रसित है। दिल्ली पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड ने हालात गम्भीर होते देख मेडिकल इमरजेंसी घोषित की है।आज दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्तर को पार करते हुए ४५० से ऊपर पहुंच गया जो कि अब तक का सबसे अधिक है। दिल्ली सरकार ने स्कूलों में कुछ दिनों तक छुट्टियां घोषित कर दी है। बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को हृदय रोग, स्ट्रोक, स्वास से सम्बन्धी पर...
हिंदी में कार्य ही, मातृभाषा की सही स्तुति होगी
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हिंदी में कार्य ही, मातृभाषा की सही स्तुति होगी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** देवनागरी लिपि में ग्यारह स्वर और तैतीस व्यंजन से बनी होती है| हिंदी में वैज्ञानिक भाषा समाहित है।अंग्रेजी भाषा में ये खूबी देखने को नही मिलती।इसमें शब्दों के उच्चारण मुँह के अंगों से निकलते है।जैसे कंठ से निकलने वाले शब्द,तालू से,जीभ से जब जीभ तालू से लगती,जीभ के मूर्धा से,जीभ के दांतों से लगने पर,होठों के मिलने पर निकलने वाले शब्द ।अ, आ  आदि शब्दावली से निकलने वाले शब्द इसी प्रक्रिया से बनकर निकलते है।इसी कारण हमें अपनी भाषा पर गर्व है।आज भी कई स्थानों पर दुकानों के बोर्ड अंग्रेजी में टंगे होते है |हिंदी में लगाने से उनका स्टेट्स कम होता है ऐसा उनका मानना है |नौकरी व्यापार में भी यही हालत है |अंग्रेजी का होना आवश्यक |जबकि शासन हिंदी को शासकीय कार्य में प्राथमिकता देने हेतु हर साल कहता आया है|सोशल मिडिया पर हिंदी के भंडार है किंतु उसक...
संस्कार
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संस्कार

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** दीदी आप भजन गाइये ना, कितना अच्छा गाती है'। सरला जी उसे देख मुस्कुराई कुछ बोली नहीं। वह अभी इस शहर में नई नई आई थी। धीरे धीरे पास पड़ोस से परिचित हो रही थी। सामूहिक मायका और सामूहिक ससुराल परिवार की आदी, वह सभी को अपने घर जैसा मानती थी। कभी भजन कभी कथा कभी कुछ और कार्यक्रम में आपस में मिलने लगे। उसको सभी के साथ मिलकर अच्छा लगा और सभी ने प्यार से उसे अपनाया। उसकी उम्र से बड़ी कई महिलाएं थी, वह उनका सम्मान करती थी। ऐसे ही स्वभानुसार उसने आज भी कह दिया चलिए दीदी आप सब आज हमारे यहां चाय बनाती हूं। आप सभी का आना नहीं हुआ अब तक। एक दो छोटी थी वह कुछ नहीं बोली, लेकिन जिन्हें दीदी कहकर सम्बोधित किया, वह एकदम तमतमा गई और बोली__ 'यहां दीदी कोई नहीं सबका नाम लेकर बुलाया कीजिए'। हम बुढ़ा नहीं गये है। वह हतप्रभ थी की बड़े लोग प्यार और सम...
हर घर एक वृद्ध को गोद ले
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हर घर एक वृद्ध को गोद ले

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** हमारे देश मे १२ करोड से ज्यादा जनसंख्या ६० वर्ष के उपर के वृद्ध लोगो की है। और सन २०२५ तक यह २५ करोड से ज्यादा होने की संभावना है। वरिष्ठ नागरिको की संख्या मे होने वाली वृद्धी को एक चरम संकट की चेतावनी ही समझी जानी चाहिये। २५ करोड़ वरिष्ठ नागरीकों का मतलब दुनिया में चीन और अमेरिका को छोड़ दिया जाय तो यह किसी भी राष्ट्र की जनसंख्या से ज्यादा होगी। पश्चिमी राष्ट्रों में संयुक्त परिवारों का विघटन बहुत पाहिले ही हो चुका है। परन्तु हमारे देश में इसकी शुरवात पिछले ३० -४० वर्षो में हुई और विगत १० वर्षो में इसकी गति बहुत तेज रही है। पश्चिमी राष्ट्रों की तुलना में हमारे यहां संयुक्त परिवारों का विघटन देर से होने के कारण हमारे यहां संयुक्त परिवारों का सुख भोग चुके वृद्ध आज भी उन यादों को संजोये हुए है। वृद्धावस्था में आने वाले संकटों का सामना सभी...
मैंने एक गाँव को मरते हुए देखा है
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मैंने एक गाँव को मरते हुए देखा है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** बेगूसराय मुख्यालय से १८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवलगढ़ जो कि कालांतर में नौलागढ़ बन गया, इस त्रासदी का शिकार हुआ। अगर आप इसके इतिहास में जाएँ तो यहाँ विग्रा पाला ... के शिलालेख के साथ एक काले पत्थर टूटी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जो कि इसके ऐतिहासिक धरोहर की वैभवता की कहानियाँ कहता है। आज हम आदर्श और स्मार्ट शहर की बात करते हैं लेकिन यह गाँव आज से कुछेक २० -२५ साल पहले तक एक जीता जागता सुन्दर और रमणीय गाँव था। शहर में काम करने वालों को गाँव से इतना प्रेम था क़ि लोग २ घंटे साईकिल चलाकर भी शनिवार की सुबह-सुबह गाँव पहुँच जाते और दो दिन उस ज़िंदगी को जीते थे। गाँव की चौहद्दी से बालान और बैंती नदी इसका श्रृंगार करती थी जहाँ लोग सुबह की सैर, स्नान एवं छठ के त्यौहार तक को सम्पन्न किया करते थे। कच्चे घरों की छत और दीवारों पर साग -सब्जियाँ भरी होती थीं...
प्रदूषित सांसे और जिंदगी
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प्रदूषित सांसे और जिंदगी

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** दिल्ली का प्रदूषण इतना बढ़ गया है की सांस लेना मुश्किल हो गया है। जिसके चलते दिल्ली सरकार को एहतियात के तौर पर स्कूलों में ४ नवंबर तक की छुट्टी घोषित करनी पड़ी है। ४ नवंबर से यातायात मे सम और विषम नंबर का कानून भी कुछ दिन के लिए लागू किया जा रहा है जिससे कुछ हद तक यातायात और प्रदूषण को लेकर आवाम को कुछ राहत मिल पाएगी। सवाल यह उठता है की प्रदूषण का कारण क्या है? जबकि इस साल दिवाली पर एक बड़ी संख्या में लोगों ने पटाखे नहीं जलाए। पटाखों को लेकर सख्त कानून बनाया गया है मगर फिर भी वातावरण दूषित है। वातावरण में धुंआ फैला हुआ है जो अत्यंत हानिकारक और जानलेवा साबित हो रहा है। इस बात से सरकार और आवाम ना खबर नहीं कि यह प्रदूषण खेतों में जलाए जाने वाली पराली से है। अनाज काटने के बाद जो अवशेष बच जाते हैं उसे पराली कहा जाता है जिसे बाद में जला दिया जाता है। ...
शुकुलाईन का फेसबुकिया साहित्य प्रेम
व्यंग्य

शुकुलाईन का फेसबुकिया साहित्य प्रेम

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यूँ तो शुकुलाईन अपने शहर की जानी पहचानी फेसबुक यूजर हैं, शुकुलाईन के शहर के बिगड़े नवाब, लफंगे लुच्चे, टुच्चे, पनवाड़ीे से लेकर धोबी तक सभी शुकुलाईन की फेसबुक मित्र सूची में हैं, शुकुलाईन की हर फेसबुक पोस्ट पर यह सभी लोग लव रियेक्ट कर खुद का जीवन सफल मानते हैं। वहीं शुकुलाईन भी इतनी संख्या में फेसबुक पोस्ट पर लव रिएक्ट पाकर खुद को गौरान्वित महसूस करती हैं, ना जाने कितने ही फेसबुक समूहों में अपनी द्विअर्थी संवाद से परिपूर्ण टिप्पणी एवं पोस्ट को लेकर निकम्मे, निठल्ले और "फुरसतिए टाइप" के लड़कों के मध्य शुकुलाईन कौतूहल का विषय बनी हुई हैं। फेसबुक का इतिहास इस बात की गवाही देने से साफ मुकर गया है कि आज दिनांक तक शुकुलाईन ने कोई तरीके की या यूँ कहें कि सार्थक (पढ़ने योग्य) एकाध पंक्ति भी फेसबुक पर लिखी हो!! बवाल और भसड़ मचाने वाली फेस...
सब्ज़ी मेकर
लघुकथा

सब्ज़ी मेकर

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) ****************** इस दीपावली वह पहली बार अकेली खाना बना रही थी। सब्ज़ी बिगड़ जाने के डर से मध्यम आंच पर कड़ाही में रखे तेल की गर्माहट के साथ उसके हृदय की गति भी बढ रही थी। उसी समय मिक्सर-ग्राइंडर जैसी आवाज़ निकालते हुए मिनी स्कूटर पर सवार उसके छोटे भाई ने रसोई में आकर उसकी तंद्रा भंग की। वह उसे देखकर नाक-मुंह सिकोड़कर चिल्लाया, “ममा… दीदी बना रही है… मैं नहीं खाऊंगा आज खाना!” सुनते ही वह खीज गयी और तीखे स्वर में बोली, “चुप कर पोल्यूशन मेकर, शाम को पूरे घर में पटाखों का धुँआ करेगा…” उसकी बात पूरी सुनने से पहले ही भाई स्कूटर दौड़ाता रसोई से बाहर चला गया और बाहर बैठी माँ का स्वर अंदर आया, “दीदी को परेशान मत कर, पापा आने वाले हैं, आते ही उन्हें खाना खिलाना है।” लेकिन तब तक वही हो गया था जिसका उसे डर था, ध्यान बंटने से सब्ज़ी थोड़ी जल गयी थी। घबराह...
बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन? भाग-2
आलेख

बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन? भाग-2

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** प्राथमिक संस्था में छात्र/छात्राओं काठहराव होने के साथ प्रारंभिक स्तर पर जहां पुस्तक पढ़ना, ऐकिक नियम तक के सवाल करना, अंग्रेजी मे छोटे वाक्य समझने के साथ चाल-चलव अंग्रेजी समझ लेते है। पर्यावरण में अपने आसपास के वाता वरण को समझकर चिंतन करने बालसभा खेल की प्रथम पाठ शाला इतना ज्ञान प्राप्त कर लेते है। माध्यमिक में आने पर उसे नया माहौल मिलता है। जहां गुरु पूर्णिमा, शिक्षक दिवस, तुलसीदास आदि जयन्तियां मनाने के साथ नियमित उपस्थिति, सख्ती प्रार्थना, खेलकूद, बाल सभा क्रिकेट, खो-खो,कबड्डी के साथ साहित्यिक एवम सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सहभागिता करने का अवसर मिलता है। प्राथमिक में एक क्लास को एक शिक्षक ही पूरे समय पढ़ाते है जबकि माध्यमिक में पीरियड पद्धति प्रारम्भ होती है। हर पीरियड पश्चात नए शिक्षक पढ़ाने आते है यानि विषय शिक्षक, यह रोचकता प...
धन तेरस… हो मन तेरस…
कविता, व्यंग्य

धन तेरस… हो मन तेरस…

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** धनतेरस धनवान बने, धन बरसे, ना मन तरसे। सभी भुभेच्छा यही आज, देता सारा सकल समाज।। किंतु ...! मेरे कवि ह्रदय ने नया पर्व का नाम दिया .... मनतेरस। धन तेरस .. हो..जन तेरस ..हो मन तेरस ..।। मनतेरस का पर्व मनायें हम सब। दुखिया के घर खुशियां लायें हम सब।।.... जिनकी आंखों में सागर तैर रहे। हाय वेदना उनकी हर जायें हम सब।।... जिनके घर दीपक घी के जार रहे, भूखे तक कुछ तेल पहुंचायें हम सब।।... जिन्हें दरिद्रता ने अभिषापित कर डाला, गहरे घावो तक मरहम दे आयें हम सब।।... त्योहारों को जो सीमा पर मना रहे, उनकी यश गाथा को गायें, हम सब।।... धनतेरस का मतलब शायद जान चुके, आओ मिल अभियान चलायें हम सब .... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यका...
मुद्दे ! समस्यांएंऔर उनकी परिणति
आलेख

मुद्दे ! समस्यांएंऔर उनकी परिणति

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा कह सकते है। मुद्दों के बारे में यह कि तात्कालिक विषयों को हम जब अल्पावधि में विचार कर तर्क संगत परिणिति तक पहुचाते है तब उन्हें मुद्दे कहना न्याय संगत होता है। मुद्दों को जब हम समय के अभाव में या पसंद नापसंद के धरातल पर तोलकर या अहंकारवश या और किसी कारण से अतार्किक पद्धति से परिणिति तक पहुचाने का प्रयास करते है तब मुद्दा अपना मूल रूप और क्षमता खो देता है। फिर जो बचता है वह मुद्दे को तर्क वितर्क और कुतर्क के साथ एक मजबूत अहंकार में बदल देता है। इसके बाद जो परिणाम होते है वह स्वार्थो का टकराव और अहंकार का शिखर जो स्पष्ट रूप से आचार विचार और व्यवहार में परिलक्षित होता है। मेरा अपना स्पष्ट मानना है कि कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हो इनसे अपने आप को बचाए रखना चाहिए। परिस्थितियों पर नियंत्रण नहीं हो सकने के कारण मुद्...
सफाई अभियान
लघुकथा

सफाई अभियान

सुरेश सौरभ निर्मल नगर लखीमपुर खीरी ********************** वह लड़का कंधे पर बोरी लटकाए कूड़ा बीन रहा था, तभी उसके सामने एक लग्जरी गाड़ी आकर रुकी। उसका दिल बैठने लगा। गाड़ी में कुछ सूट-बूट वाले बाबू लोग बैठे थे। उनमें से एक बाबूजी बाहर निकले और लड़के से बोले-ऐ! लड़के इधर आ। लड़का डरता हुआ बाबूजी के करीब आया । उसकी बोरी की ओर इशारा करके थोड़ा ऐंठ कर-ऐ! लड़के, ये बोरी १०० रुपए की देगा। लड़का सकते में आ गया। बीस-तीस रुपए बोरी बिकने वाले कूड़ा को कोई सौ रूपए की मांग रहा है, यह सोच वह हैरत में था, फिर भी थोड़ा हिम्मत जुटा कर बाबू जी से बोला-साहब दो सौ लगेंगे। "ठीक है। ये पकड़ दो सौ, पीछे डिग्गी में डाल दे। "कूड़े की बोरी डिग्गी में पहुंच गई। दो सौ रुपए पाकर उसकी बांछें खिल गईं। बाबू लोग फुर्र से उड़ गए। उन बाबूओं ने अपने कार्यालय पहुंच कर बड़े साहब से कहा-काम हो गया।तब बड़े साहब बहुत खुश ह...
बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन ?
आलेख

बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन ?

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** जिन पालकों के पास थोड़ा बहुत पैसा आना शुरू होता है, वह अपने बच्चों कोअशासकीय विद्यालयों में प्रवेश करा देता है।       रेत छानने के चलने में से बारीक रेत छन जाती है व अनुपयोगी बंडे अलग रख दिये जाते है, वैसे ही अत्यंत दयनीय आर्थिक स्थिति वाले पालकों के अधिकांश बच्चे शासकीय विद्यालयों में प्रवेश लेते है। उनके प्रवेश के लिए भी शिक्षकों को काफी मशक्कत करना पढ़ती है। देखा जा रहा है झोपड़ पट्टियों,पन्नी-बोतल, लोहा-लंगर बिनने वालों, सस्ता सामान बेचने वालों, भिक्षावृत्ति करने वालों दाड़की, दानी-दस्सी करने वालों के बच्चे लगभग शासकीय विद्यालयों में पढ़ रहे है,कुल मिलाकर कहा जा सकता है यानी क्रीम निकालने के बाद बची छाछ प्रवेशित होती है,ऐसे छात्र चेलेंज के रूप में स्वीकार किये जाकर छाछ में से पुनः मंथन कर क्रीम निकालने का दुष्कर कार्य शिक्षक को करना ...
दीपावली मिलन का त्योहार है
आलेख, निबंध

दीपावली मिलन का त्योहार है

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ********************   कार्तिक मास की अमावस्या को हम प्रतिवर्ष दीपावली का त्योहार मनाते हैं। भगवान श्री रामचन्द्र जी चौदह वर्ष के वनवास के बाद वापस इसी दिन अयोध्या लौटे थे। इसी खुशी से अयोध्या की प्रजा ने घी के दीप जला कर रोशनी की थी। भगवान के अवध पधारने के लिए उनका स्वागत सत्कार अगवानी की थी। दीपावली प्रकाश का त्योहार है। व्यक्ति अपने आप मे एक प्रकाश है। लोग इस दिन मिठाइयां बांटते है। खुशी मनाते हैं। नये वस्त्र पहनते हैं।सारे दुख दर्द भूल जाते हैं।पटाखे चलाते हैं। धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजन करते हैं।ऐश्वर्य सुख समृद्धि की कामना करते हैं। इस त्योहार पर बैलों गायों के साथ पशुधन की पूजा भी की जाती है। आज के दिन बुद्धिमत्ता का प्रकाश सबके भीतर होता है।जीवन का उत्सव लोग खुशी से मनाते हैं।धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की पूजा कर लोग समृद्धि ...