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गद्य

कोयल की कॅूक
लघुकथा

कोयल की कॅूक

डॉ. सुरेखा भारती *************** दीदी sss ......ओ दीदी ! आंगन में झाडू लगा रही मुन्नी, आवाज लगी रही थी। अब इसको क्या हो गया..... मैंने झल्लाते हुए अन्दर से ही बोला, क्या है? क्यो चिल्ला रही हो..? दीदी बाहर तो आओ sss ..... मैं बाहर आंगन में पहुंची, देखा मुन्नी दीवार के एक कौने मैं चुपचाप खड़ी है। ‘देखो...देखो कोयल कॅूक रही है.....’। उसे देखकर मैं ने भी सहसा कोयल की बोली सुनने का प्रयत्न किया। दूर कही कोयल बोल रही थी, कुछ पल के लिए मुझे भी अच्छा लगा। थोडी देर मुन्नी उसकी आवाज सुनती रही। कोयल की बोली बंद हो गई। उसने मेरी तरफ देखा और कहने लगी - दीदी, गाँव में हमारे आंगन में बड़ा सा आम का पेड़ था। इन दिनों कोयल उस पर बैठ कर कॅूकती थी, मैं भी उसके जैसी आवाज निकालकर उसे चिढ़ाती थी, फिर वह चूप हो जाती, फिर थोडी बाद कूँकती थी। अब शहर में आ गए हैं, अब कहाँ कोयल की कूक सनाई देती है। मेरा सारा दिन तो इस...
आते जाते खू़बसूरत
यात्रा वृतांत

आते जाते खू़बसूरत

राजेश गुप्ता तिबड़ी रोड, गुरदासपुर ********************                दिल्ली एक उस शरारती बच्चे-सी है जो कभी चैन से न बैठता है और न ही किसी को बैठने देता है। दिल्ली अपने वेग से ही चलती है और अपने वेग से ही उठती है, बैठती है, न कोई इसे थाम सका है और न ही कोई शायद इसे थाम सकेगा। यह विचित्र-बहाव से बहने वाली नदी की तरह है जिस तरह एक चँचल बच्चा जिस के पास ऊर्जा का असीम भंडार होता है जिस से वह उत्प्रेरक होता है। उसी प्रकार दिल्ली भी असीम ऊर्जावान है उसके पास भी असीम कार्य करने की, दौड़ने-भागने की क्षमता है। वहां के दिन-रात एक ही जैसे हैं, हालाँकि रात को वह कुछ शांत होती है परन्तु रुकती याँ थमती वह तब भी नहीं है, यह उसकी विशेषता है। मैं अपनी पत्‍‌नी के साथ लगभग रात दस बजे के आस-पास घर से निकला क्योंकि मुझे ग्यारह बजे की गाड़ी पकड़नी थी। मैं और मेरी पत्‍‌नी कैब में आपस में आनन्दपूर्वक बातें कर...
आखिरी सफर
लघुकथा

आखिरी सफर

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** मंजुला के पार्थिव शरीर को देखकर कोई कह नहीं सकता कितना संघर्ष से भरा जीवन रहा होगा उसका। चेहरे पर वही सौम्यता और शांति थी। किरण टकटकी लगाए मंजुला के बेजान शरीर को देख रही थी। आंखों से रिमझिम रिमझिम बरस रही थी। अतीत की यादें आ जा रही थी। मंजुला और किरण बचपन की सहेलियां थी। जीवन के उतार-चढ़ाव सुख-दुख की भागीदार। एक दूसरे की सीक्रेट डायरी जैसी। जिसमें इंसान अपने अंदर के सब विचार खोल देता है। आज मंजुला का अंतिम सफर था किरण को अकेला महसूस हो रहा था। अब किससे वह अपने दिल की बात कह पाएगी। कुछ देर में मंजुला का शरीर भी नहीं रहेगा। आने जाने वाले सभी लोग मंजुला के जीवन पर चर्चा कर रहे थे। बेहद शांत मधुर सादगी वाली थी मंजुला। हर हाल में खुश रहने वाली ईश्वर पर भरोसा करने वाली इस तरह की कई बातें रिश्तेदार और अन्य आने जाने वाले कर रहे थे। किरण ही जानती थी कि ...
बसंत पंचमी
आलेख

बसंत पंचमी

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** बसंत पंचमी, माघी पंचमी, श्री पंचमी..... मां वागेश्वरी, सरस्वती अवतरण दिवस। बसंत पंचमी का पर्व अपने आप में एक सुखद अनुभूति है। बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती अवतरित हुई, इसलिए यह बहुत पावन दिन माना जाता है, क्योकि ज्ञान की देवी शारदे को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उन पर प्रसन्न होकर वरदान दिया था की, बसंती पंचमी के दिन तुम्हारी पूजा की जायेगी। श्रीहरि की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीव-जंतु, मनुष्य योनि की रचना की पर उन्हें पूर्णतः संतुष्टि नहीं थी। फिर से श्रीहरि की अनुमति से ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल की बूंद धरती में समाहित होते ही कम्पन हुआ और वृक्षो के बीच से एक स्त्री शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। यह मां वीणा पाणी थी और दिन माघ शुक्ल पंचमी थी, जो हम बसंत पंचमी के रुप में मनाते है। भारत वर्ष के अलावा नेपाल औ...
ज़िन्दगी की हकीकत
व्यंग्य

ज़िन्दगी की हकीकत

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** असमंजस में कट रही है जिंदगी खुदपे करूं यकीन या दुनिया को गलत समझूं। बड़ी बेरहम है दुनिया समझ नही आता मैं खुदको बचाऊँ या गैरो का साथ दूं। हर दिन हो रहा है गुनाह हाथों से मेरे में खुदको आजकल बड़ा समझने लगा हूँ। क्या हक है मुझे किसी का दिल दुखाने का क्या मेरे अंदर इंसानियत नही है। अकेला था तो खुश था शामिल हुए कुछ और तो ज़िम्मेदारी का सफर शुरू हुआ। जितनी भी ली सुविधा उतनी हुई दुविधा क्या इरादे मेरे नेक नही थे या में काबिल नही था। बड़े यकीन के साथ निकलता हूँ घर से की आऊंगा लेकर सबका सामान। उम्मीदों और ख्वाइशों से भरा पड़ा है मेरा मकान नही देखना उनको मेरी थकान। आजमाने चला हूँ मै उनको आजकल जो पीठ पीछे मुझे कुछ मानते ही नही। और तारीफें कर रहे है वो मेरी जमाने भर में जो मुझे कभी जानते ही नही। क्या दुनिया है ये जिसको देखो वो अपन...
बाल श्रम
आलेख

बाल श्रम

अक्षुण्ण बोहरे ग्वालियर, मध्यप्रदेश ******************** वर्तमान में हमारे देश में बाल श्रम जैसी कुप्रथा, सामाजिक कुरीति एवं बुराई विकराल मुँह लेकर खड़ी है। बाल अवस्था में गरीबी एवं शिक्षा के अभाव में लाखों बच्चे इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। आज हमारे देश के कई पिछड़े राज्यों में बाल श्रम से प्रभावित बच्चों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, और यह ज्वलंत एवं गंभीर समस्या दिनोंदिन उग्र होती जा रही है। भारत के संविधान १९५० के २४वें अनुच्छेद के अनुसार १४ वर्ष से कम आयु के बच्चों का कारखानों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों, होटलों, फैक्ट्रियों, ढाबों, दिहाड़ी मजदूर एवं घरेलू नौकरों के रूप में कार्य करना बाल श्रम के अन्तर्गत आता है। चाइल्ड लेबर (निषेध एवं विनियमन) एक्ट १९८६ के अनुसार १४ वर्ष से कम आयु के बच्चों से मजदूरी का कार्य कराना गैर कानूनी होकर दण्डनीय माना गया है। किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) बा...
खूबसूरत चेहरे
लघुकथा

खूबसूरत चेहरे

श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' इंदौर म. प्र. ******************** मूवी देखकर लौट रही दिव्या ने अपना टू-व्हीलर स्टार्ट करने के पहले दुपट्टे से मुंह इस तरह लपेटा कि बस उसकी आंखें ही शेष बची थीं उस पर गागिल चढ़ा लिया। मनीषा पीछे की सीट पर बैठते हुए बोली तुम भी यार... क्योंं पडी रहती हो इस झंझट में, मुझे देखो मैं तो कभी चेहरा नहीं ढ़क सकती, फिर भी क्या तुम्हें मेरे चेहरे की चमक कम दिखती है? "अभी अभी तू छपाक देखकर लौट रही है फिर भी ऐसे सवाल करती है" "मुझे किसी का डर नहीं न ही मैंने कोई ग़लत काम किया है" पर चेहरा तो खूबसूरत है, कहते हुए दिव्या ने गाड़ी बढ़ा दी। ओह..... तभी मै सोचूं खूबसूरत चेहरे आजकल दिखाई क्यों नहीं देते। . परिचय :- नाम - श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शिक्षा - एम.ए.अर्थशास्त्र, डिप्लोमा इन संस्कृत, एन सी सी कैडेट कोर सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय दार्शनिक शिक्षा - जैन दर्श...
लोहड़ी मकर संक्रांति  का सामाजिक पहलू
आलेख

लोहड़ी मकर संक्रांति का सामाजिक पहलू

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** भारतीय संस्कृति में त्योहारों का अपना एक विशेष महत्व है। जिनको धार्मिक नजर से देखा जाता है परंतु हर त्यौहार को मनाने का सबसे बड़ा सामाजिक कारण समाज को बांधना और जोड़ना है।  यदि हम किसी भी त्योहार को सामाजिक दृष्टि से देखें तो एक दूसरे से गले मिलना ,साथ बैठना ,मिलकर उत्साह से खुशी मनाना तथा नाचना गाना ,खाना-पीना यह सभी हर त्यौहार का हिस्सा होते हैं। भारत जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है इसमें भिन्न-भिन्न तरह के त्योहार मनाए जाते हैं। लोहड़ी का त्यौहार  देशभर में  मनाया जाता है। लोहड़ी  मकर संक्रांति पोंगल इत्यादि अलग-अलग नामों से यह त्यौहार भिन्न-भिन्न राज्य और धर्म के हिसाब से  मनाया जाता है। यूं तो  लोहड़ी मकर संक्रांत का महत्व सर्दी के खत्म होने और सूर्य के स्थान बदलने  का  सूचक माना जाता है। संक्रांति के दिन बहुत से लोग सूर्य की पूजा कर पवित्र न...
शिक्षक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह
आलेख

शिक्षक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** अनूठा, अकल्पनीय, अनुकरणीय, असीम सम्भावनाओं को जन्म देने वाला अनन्त विचारों को प्रकाश पुंज की तरह समेटने वाला आयोजन दिनांक २० दिसम्बर २०१९ को संध्या समय धनौरा जिला सिवनी के लिए इंदौर से मैं डॉ. विनोद वर्मा अपने ६ साथियों संजीव खत्री, तोलाराम तंवर, पवनसिंह नकुम, कैलाश परमार, माखनलाल परमार, अशोक राठौर के साथ कार से रवाना हुआ। दि.२१ को प्रातः काल पहुंचे। जहाँ विद्यालक्ष्य फाउंडेशन धनौरा के तत्वावधान में राष्ट्रस्तरीय शिक्षक संगोष्ठी और शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन होने जा रहा था। इस आयोजन में जिला कलेक्टर, अपर कलेक्टर, सीईओ जिला पंचायत सिवनी के साथ शिक्षा विभाग का महकमा संयुक्त संचालक श्री तिवारी जी, जिला शिक्षा अधिकारी श्री बघेल जी,जिले के सभी विकास खण्ड शिक्षाधिकारी,सभी खण्ड स्रोत समन्वयक ने अधिकांश समय अपनी उपस्थिति देकर इस आयो...
इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि
आलेख

इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** एक हजारवें स्थापना दिवस पर विशेष संतो और शूरमाओं की मातृभूमि राजस्थान राज्य के बाड़मेर जिले में स्थित गढ़ सिवाणा शहर की स्थापना विक्रमी संवत १०७७ में पौष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिधि को वीर नारायण परमार ने की थी! आगामी 1 जनवरी २०२० को इस ऐतिहासिक शहर की स्थापना के एक हजार वर्ष पूर्ण हो रहे है! इस अवसर पर जानते है सिवाना शहर के इतिहास और विशिष्टता को! गढ़ सिवाणा का ऐतिहासिक दुर्ग राजपुताना के प्राचीन दुर्गो में अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। ये दुर्ग राजस्थान के उस चुनिन्दा दुर्गों में शुमार है जहाँ दो बार जौहर हुए है! वहीं यह शहर प्राचीन काल से ही कई महान तपस्वी विभूतियों की तपोभूमि रही हैं। कस्बे के मध्यभाग में स्थित गुरू समाधी मंदिर हजारों श्रद्धालुओं के श्रद्धा का केंद्र हैं। राजस्थान का मिनी माउंट हल्देश्वर तीर्थ अत्यंत रमणीय स...
सीख
लघुकथा

सीख

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** हर समय उलाहनों की बारिश करती रहती थी सासू मां। 'हमारे समय में बहुत सख्ती थी, अब देखो निर्लज्लता से घूमती है बहुएं'! हर समय अपनी बराबरी बहुओं से करते रहना। रामलाल जी परेशान थे, अपनी पत्नी की आदतों को। कभी स्वयं ससुराल में नहीं रही वह। रामलाल जी के बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। बड़ी बहन और ननिहाल वालों ने शिक्षा दी, बड़ा किया। शादी के बाद पिता गांव में ही रहे और अपनी नवोढ़ा को लेकर रामलाल जी दूसरे शहर चले गये। बच्चों की पढ़ाई नौकरी मे तबादला इसके कारण कभी कभी पिता के पास बच्चों को ले जाते फिर अकेले रह जाते पिता। गांव में अकेले रहते थे। लोग कहते चले जाओ बहू के पास लेकिन अनुभवी आंख एक बार में ही अपनी बहू को जान गई थी। वह अपने बेटे को दुखी नहीं देख सकते थे। रामलाल जी की किस्मत अच्छी थी। चार बहूएं गुणी पढ़ी लिखी। सम्म...
संचार क्रांति
आलेख, नैतिक शिक्षा

संचार क्रांति

मंजर आलम रामपुर डेहरू, मधेपुरा ******************** संचार क्रांति के इस दौर में शायद ही कुछ लोग ऐसे हों जिनके पास सेलफोन न हो। निश्चय ही मोबाइल बहुत उपयोगी है और हर किसी की जरूरत भी। कहाँ गए वह दिन जब परदेश गए किसी अपनों की खबर पाने को डाकिए का इंतज़ार करना पड़ता था ताकि वह आए तो उनका पत्र साथ लाए। उस पत्र में लिखे संदेश की इतनी महत्ता होती कि एक ही खत को बार बार पढ़ा जाता मानो वह अब भी नया ही हो। अब तो पल पल की खबरें घर बैठे बिठाए मिल रही हैं। “कर लो दुनिया मुट्ठी में" अब स्लोगन नहीं, हकीकत है। एनड्रॉयड मोबाइल ने तो लोगों के जीवन में इतना बदलाव ला दिया है कि समय बिताने के लिए अब किसी की कमी नहीं खलती। टेलीविजन, अखबार सब कुछ एक ही क्लिक पर मिल जाता है मानो दुनिया अंगुलियों के ईशारे पर हों। अब तो घर परिवार के लोगों के बीच मिल बैठकर बातचीत करने के लिए भी समय कम ही निकलता है। सहपाठियों...
गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?
आलेख, बाल साहित्य

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बुद्धी और ज्ञान दुनियां में बहुत महत्वपूर्ण हैं, फिर वह किसीसे भी प्राप्त हो, उसे अनुभव से प्राप्त कर आत्मसात करना होता हैं। ज्ञान एवं अनुभव ग्रहण करने वाला शिष्य और ज्ञान देने वाला या प्राप्त करवाने वाला गुरु होता हैं। ऐसा यह गुरु और शिष्य का बुद्धी, ज्ञान और अनुभव का रिश्ता होता हैं। ज्ञान तथा अनुभव लेनेवाले एवं देनेवाले की उम्र का इससे कोई संबंध नहीं होता, सिर्फ ज्ञान देनेवाला अपने विषय में निष्णात होना चाहिए, और ज्ञान लेनेवाले का देनेवाले पर विश्वास होना चाहिए। यहीं इस रिश्ते की पहली शर्त होती हैं। बच्चें की पहली गुरु का मान यह उसकी माँ का होता हैं। इसके बाद जीवन के हर मोड़ पर ज्ञान और अनुभव देनेवाले गुरु की आवश्यकता महसूस होती रहती हैं। ‘गुरुपूर्णिमा‘ यह सभी गुरुओं को आदर और श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का दिन हैं। गुरुपूर्णिमा को ‘व...
रौनक
लघुकथा

रौनक

कुमुद दुबे इंदौर म.प्र. ******************** आँफिस से लौटे साठे जी, घर मे कदम रखते ही पत्नी शोभा से बोले शोभा ! मैं कुछ दिनों से देख रहा हूॅ अपनी कालोनी के अतुल जी के यहाँ, जहाँ हमेशा सन्नाटा छाया रहता था, आजकल रौनक बनी हुयी है। देर रात तक घर की लाईटें जलती रहती हैं और लोगों का आना जाना भी लगा रहता है। क्या बात है? शोभा बोली! मैने उनकी पडोसन माला से पूछा था, वह बता रही थी-अतुल जी के माता पिता साथ ही रहते थे। दम्पती बहुत ही मिलनसार, व्यवहारिक और काॅलोनी के लोगों की किसी भी प्रकार की परेशानी हो सहायता के लिये सदा तत्पर! बच्चे बडे बूढे सभी के चहेते रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद अधिकांशतः समय अपने गाँव में ही व्यतीत कर रहे हैं! फिलहाल कुछ दिनों के लिये आये हुये हैं। . लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३...
चाय की चुस्की
कहानी

चाय की चुस्की

राजेश गुप्ता तिबड़ी रोड, गुरदासपुर ********************   चाय के प्यालों की भाप ने सम्पूर्ण कमरे में एक अलग ही तरह का वातावरण निर्मित कर दिया है। कमरे के चारों तरफ मध्यवर्गीय चाय की महक आ रही है।दोस्तों की महफिल सजी है। “छोटे-छोटे शहरों में बसे लोगों की एक अजीब-सी दास्तान है, रहते तो ये छोटे शहरों में हैं परन्तु सपने इनके बहुत बड़े-बड़े होते हैं ”एक दोस्त ने कहा। “छोटे शहरों में रह कर बड़े-बड़े काम कर जाना कोई आसान बात नहीं होती “फिर दूसरे दोस्त ने बात आगे बढ़ाई। “बड़े-बड़े सपनों वाले छोटे शहरों के नागरिक साधनों और संपर्कों की कमी के कारण पिछड़ जाते हैं, चाहे वो शिक्षा हो, कारोबार हो या फिर कला का कोई भी क्षेत्र, वे प्राय: योग्य होने के बावजूद भी पिछड़ जाते हैं भूमंडलीकरण के इस विस्तारवादी दौर में हर कोई उन्नति करना चाहता है “पहले दोस्त ने फिर कहा। “कला के पक्ष से देखें तो प्रत्त्येक कल...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मैं बिलासपुर स्टेशन से इंदौर आई। जैसे ही मैं स्टेशन पर ट्रेन से नीचे उतरी। एक बूढ़ा व्यक्ति जिसकी कमर झुकी हुई थी, आंखों में मोटे ग्लास का चश्मा था, मुंह में झुर्रियां पड़ गई थीं, वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। मेरे पास जल्दी-जल्दी आया और बोला मैडम आपको कहां जाना है? मैं आपको छोड़ देता हूं, और मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरा सूटकेस लेकर चलने लगा मैं उसके पीछे-पीछे चलने लगी, जब मैं उसके रिक्शे में बैठी तो उसने रिक्शा खींचना शुरू किया, कुछ ही दूर जाकर उसका श्वास फूलने लगा। वह पसीना पसीना हो गया मैं तुरंत उसके से उतर गई और सौ का नोट उसके हाथ में रख दिया। बड़ी हिम्मत करके मैने पूछ ही लिया, कि बाबा आप बूढ़े हो गए हो, और आपकी उम्र रिक्शा चलाने की नहीं आराम करने की है। तुम्हें इस उम्र में रिक्शा में रिक्शा नहीं चलाना चाहिए। क्या करूं मेडम...
सोशल मीडिया और बढ़ते अपराध
आलेख

सोशल मीडिया और बढ़ते अपराध

मो. जमील अंधराठाढी (मधुबनी) ******************** सोशल मीडिया वर्तमान में अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। यह एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां लोग अपनी रचनात्मकता और कलात्मकता का प्रयोग कर अपनी प्रतिभा को सभी के सामने रख सकते है। शायद यही कारण है कि कम समय में यह प्लेटफार्म युवाओं के दिल और दिमाग पर राज कर रहा है। सोशल मीडिया पर सक्रिय होना बुरा नहीं है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी इस प्लेटफार्म का प्रयोग अपने अनुसारकर रहे है। जिसके अच्छे और बुरे परिणाम हमारे सामने वीडियो वायरल होने से लेकर दरिंदगी की खौफनाक घटनाओं के रूप में सामने आ रहे हैं। खुद को जनता के बीच चर्चित करने या फिर अपने टैलेंट को दिखाने के लिए भी इसका इस्तेमाल बखूबी हो रहा है। अच्छे और बुरे परिणामों की बात करने वाद अहम सवाल यह उठता है कि क्या सोशल मीडिया बुरा है या फिर उसके उपयोग कसे का तरीका? आपका भी जवाव शायद तरीका ...
मान
लघुकथा

मान

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** अरी  सुलक्षणा कल "हरतालिका तीज" है, याद है ना। अरे माँ मैं तो भूल ही गई थी। अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया, ठीक है कर लूँगी। "अरे माँ आपने अभी तक चाय नहीं बनाई सुबह-सुबह किसको फोन करने बैठ गयीं?" सीमा अपनी माँ के गले में हाथ डालते हुए बोली।" तेरी भाभी को ही फोन लगा रही थी, उसे याद दिला रही थी कल हरतालिका तीज है, व्रत कर लेना "और भाभी ने कहा होगा ठीक है मैं कर लूंगी। "हां तेरी भाभी बोल रही थी कि माँ मैं तो भूल ही गई थी अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया।"  देख मैं उसे याद दिला देती हूं तो निधि बड़ी खुश हो जाती है। पर माँ आपको पता है न कि भाभी व्रत नहीं कर पाती हैं, उन्हें भूख सहन नहीं होती है। फिर क्यों याद दिलाती हो? अब उसकी इच्छा होगी तो कर लेगी नहीं तो कोई बात नहीं है। मैंनें अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। पर देख बेटा मेरा मान तो रख लेती है। कभी म...
मेज के उस पार की कुर्सी
लघुकथा

मेज के उस पार की कुर्सी

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** सुनों आज भी मैं खिडकी के पास रखी कुर्सी पर बैठी हूँ। बाहर बगीचे में ओस से भीगा आँवले से लदा पेड हरे काँच की बूँदों सा लग रहा है। इन दिनों गुलाब में भी बहार आई हुई है। सुर्ख लाल गुलाब पर मंडराती रंग-बिरंगी तितलियां मौसम को और भी खुशनुमा बना रही है। मौसम भी इस बार कुछ ज्यादा ही उतावला है नवम्बर में ही गुलाबी ठंड ने दस्तक दे दी है। ये गर्म काँफी मुझे अब वो गर्माहट नहीं देती क्योंकि मेज के उस पार खाली कुर्सी और काँफी मग का वो रिक्त स्थान तुम्हारी कमी महसूस करवा रहा है। मै अपनी बेबसी ठंडी कर काँफी के हर घूँट के साथ पीती जा रही हूँ। जानते हो ये हवा जो ठंड से भीगी हुई है, ये अब भीगोती नही है। भीगना और गीले होने का अंतर तुम्हारे बिना समझ में आया। मैं हथेलियों की सरसराहट से उस गर्माहट को महसूस करना चाहती हूँ, जो कभी तुम्हारी हथेलियों ने थाम कर गर्मा...
क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?
आलेख

क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** स्त्री और पुरुष उस सर्वशक्तिमान की अमूल्य भेंट है। आजतक के विकास में स्त्री और पुरुष की समान हिस्सेदारी भी है। इतना होते हुए भी हर समय यश, प्रसिद्धी, मानसन्मान, निर्णय लेने का अधिकार हमें हरस्तर पर आज पुरूषों के लिए ही दिखाई देता है। देश में हर स्तर पर महिलाओं के लिए ५० प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए परन्तु ३३ प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव भी पुरूषों के अड़ियल और महिलाओं के प्रति उनके नकारात्मक द्रष्टिकोण के कारण अनेक वर्षों से लोकसभा में लंबित था। वैसे भी वर्तमान में महिला सशक्तिकरण की अनेक योजनाये कार्यरत है, परन्तु लचर मानसिकता और भ्रष्टाचार के कारण वांछित परिमाण देश में दिखाई नहीं दे रहे है। पुरुष सत्तात्मक समाज में आज भी महिलाओं को पुरूषों के बाद का ही दर्जा दिया जाता है। समानता को स्वीकार करने की मानसिकता ही दिखाई नहीं देती। मजे की बात ...
अपना घर
लघुकथा

अपना घर

सीमा निगम रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** अपने घर का सपना सबका रहता है और आज मेरे घर का सपना पूरा होने जा रहा है तो आप अम्मा-बाबूजी को साथ चलने के लिए मत कहना। "मानसी अपने पति अमित को सख्त लहजे में बोल रही थी। "ये कैसी बात कर रही हो तुम एक ही शहर में अम्मा बाबूजी को अलग छोड़कर रहेंगे तो लोग क्या कहेंगे" अमित ने समझाया पर मानसी जिद में अड़ी रही अम्मा-बाबूजी ने दुखी मन से जाने की इजाजत दे दी। पिछले साल ही किश्तो में कर्ज लेकर नई कालोनी में घर लिये थे नये घर मे आकर मानसी उसे सजाने संवारने में लग गयी। गृहप्रवेश भी बहुत धूमधाम से किया। नये घर का आकर्षण अकेले रहने का रोमांच मानसी को लग रहा था कि जिन्दगी में सुख ही सुख है। हर रविवार को अमित अम्मा-बाबूजी से मिलने जाता व उनकी दवाई और जरूरी सामान रख आता।                    अपने घर में रहते मानसी को छः माह हो गए। धीरे-धीरे आर्थिक समस्या ह...
उतरन
लघुकथा

उतरन

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** देवकी सुनो, जी दीदी चलो मेरी मदद करो। दीपावली की साफ सफाई करनी में, चलो पहले मेरा कमरा साफ करते हैं। ऐसा करो मेरी अलमारी पहले साफ कर दो। अलमारी के सारे कपड़े निकाल लो, और जो पुराने हैं उन्हें अलग रखना, और जो नये हैं उन्हें अलग। फिर आवाज आई, देवकी देख तो यह सलवार सूट कितना सुंदर है? हाँ दीदी बहुत सुंदर है। तो ऐसा कर इसे अपनी बेटी ममता के लिए ले जा। इसे पहनकर ममता बहुत सुंदर लगेगी। और यह उसे  आ भी जाएगा। मैं तो केवल एक-दो बार ही पहनीं हूं। दीदी पर अरे ! पर वर कुछ नहीं, प्यार से दे रही हूं ना तो रख ले। यह  बात नहीं  है दीदी, मैं तो आपकी दी हुई हर साड़ी पहन लेती हूं, कभी मना नहीं करती। पर अपनी बेटी को उतरे हुए कपड़े नहीं पहनाऊंगी दीदी। देवकी के मुंह से यह बात सुनकर प्रभा के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवा...
परवरिश
लघुकथा

परवरिश

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** कॉफी हाउस से गुस्से में उठ स्नेहल बदहवास सी बिना रुके चलती ही जा रही थी स्वाति ने आवाज दी स्नेहल रुक जाओ मगर स्नेहल अनसुना कर वहां से निकल गई उसे मंजिल की खबर नहीं थी। ना जाने वह किस बात की सजा खुद को दे रही थी? आनंद और स्वाति कुछ ना कर सके। स्नेहिल जिंदगी से खफा थी सब कुछ होते हुए भी जिंदगी में कड़वाहट थी। मां बाप के बीच की दूरी ने उसके अंदर एक अजब अहसास पैदा कर दिया था। जाने अनजाने कब वह दोनों से दूर हो गई पता ही नहीं चला। स्वाति ने स्नेहल के पैदा होने पर अपनी दुनिया को बहुत छोटा कर लिया था। उठते बैठते उसे सिर्फ और सिर्फ स्नेहल का ख्याल था। जी जान से उसकी परवरिश में खो गई यहां तक कि नौकरी भी छोड़ दी मगर फिर भी स्नेहल को बांध ना सकी। बच्चों की परवरिश में कितना ही समय दो मगर बात फिर वही जन्मों के संबंधों और किस्मत के लिखे पर आ जाती है, चाहे अनचा...
बुढापे की लाठी
लघुकथा

बुढापे की लाठी

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** शंभु जी और उनकी पत्नी बहुत खुश है। उनका बेटा संजय उनके दिए संस्कारों तले बड़ा हुआ है। परिवार में भी सबका सम्मान करता है। समाज, देश का सच्चे नागरिक की तरह सभी जरूरतमंदों की सहायता करता है। जिला अधिक्षक होते हुए भी शंभू जी की बीमारी की खबर सुनकर घर आया है। "पापा आपकी तबियत कैसी है? आप और माँ मेरे साथ चलिए।" संजय बोला। "मैं स्वस्थ हूँ। तुम चिन्ता मत करो। तुम अपनी ड्यूटी पर ध्यान दो। हमलोग यहाँ बिल्कुल ठीक हैं।" शंभू जी बोले। "नहीं पापा, अब आप लोग यहाँ नहीं रहेंगे। यहाँ आप लोगों का ध्यान रखने वाला कोई नहीं है। आप लोग मेरे साथ रहेंगे ...........मुझे खुशी मिलेगी। "संजय बोला। दोनों खुशी-खुशी संजय के साथ चल दिए। मन ही मन संजय को ढेरों आशीष दे रहे हैं। वह उनके अपेक्षा पर खड़ा उतरकर बुढापे की लाठी बना है।   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका...
बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज
आलेख

बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** सृष्टि की रचना में सब समान है मगर हम इंसानों ने अपने हिसाब से नियम कानून बनाकर समाज की स्थापना की है। किसी भी नियम कानून व्यवस्था को इसलिए बनाया जाता है की जीवन सुचारू रूप से चल सके मगर हम इंसान ही उन नियमों कानूनों का उल्लंघन कर और उनकी आड़ में समाज में कुरीतियां पैदा कर देते है। मगर यहां यह समझना जरूरी है की कोई भी नियम जो किसी भेद विशेष को लेकर  बनाया जाए वह इंसानियत के विरुद्ध है। जो समय के साथ साथ एक विकराल रूप ले लेता हैं। प्राचीन काल से ही मर्द औरत के बीच केवल मात्र लिंगभेद को लेकर बहुत से नियम कानून औरतों के लिए बनाए गए और उन्हें सामाजिक तौर पर सदैव दबाया गया जो इंसानियत के विरुद्ध है। समय के बदलाव के साथ नारी जाति के उत्थान के लिए बहुत से शिक्षित लोग आगे आए जिन्होंने समाज द्वारा बनाई गई कुरीतियों का खंडन किया और उसे एक सामान्य जीवन जीने...