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गद्य

सखी
कहानी

सखी

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कहते हैं तीन चीजें ईश्वर एक साथ कभी नहीं देता- १ सुंदरता/ रूप- रंग २ सादगी/ सरलता/सहजता/विनम्रता और ३ तीव्र मस्तिष्क/ मति/ पढ़ने में तेज। अगर किसी के जीवन में यह तीन चीजें हो तो उस पर तथा उससे जुड़े हुए लोगों पर ईश्वर की असीम कृपा होती है। आज की कहानी ऐसी ही एक लड़की की है, जिसका नाम है- सखी। सखी एक छोटे से शहर में रहने वाली एक सुंदर, सुशील और विनम्र लड़की है। उसकी सुंदरता की बात करें तो चंद्रमा के समान मुख वाली एवं शीतलता लिए हुए, हिरनी सी आंखों वाली एवं चंचलता लिए हुए, गज गामिनी एवं हथिनी सी गंभीरता लिए हुए। सादगी की प्रतिमूर्ति, अहंकार रहित, लेश मात्र भी घमंड नहीं, ना पढ़ाई का और न ही अपने रूप रंग का। मानो विनम्रता शब्द उसके लिए ही बना हो, वाणी शहद सी मीठी और मुस्कान जीवन रस का संचार कर दे। अत्यंत संकोची एवं शर्मिली, लेकि...
एक दिन की रानी
एकांकी

एक दिन की रानी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** (अंँग्रेजी के पोस्टरों से सजे एक कार्यालय का दृश्य) पहला कर्मचारी : ये सारे अंँग्रेजी के पोस्टर हटाओ और इनकी जगह सुंदर-सुंदर सूक्तियों से सजे हिंदी के पोस्टर लगाओ। दूसरा कर्मचारी :क्यों-क्यों? इन्हें क्यों हटाएँ? पहला कर्मचारी : अरे! तुम जानते नहीं, आज "हिंदी दिवस है... १४ सितंबर"! आज एक बहुत बड़ी अधिकारी मुख्य अतिथि के रूप में हमारे यहां हिंदी दिवस में भाग लेने आ रही हैं। (दोनों मिलकर सारे अंग्रेजी के पोस्टर हटाकर उनकी जगह हिंदी के पोस्टर लगाते हैं) दूसरा कर्मचारी: चलो अपने बाॅस से आज की तैयारी का निरीक्षण करवा लें। (अधिकारी के साथ दोनों का प्रवेश) अधिकारी : अरे वाह! तुम लोगों ने तो बहुत ही अच्छी तरह से सजा दिया है यहाँ! अब तो यहाँ का सारा परिवेश ही हिंदीमय हो गया है!! यह सब देख कर मुख्य अतिथि को यही समझेंगे कि यहाँ वर्ष भर सारे कार्य हिं...
वनवासी
आलेख

वनवासी

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                                    भारत देश संस्कृति, विभिन्न धर्मों, जनजातियों और भाषाओ का सम्मिश्रण है। इस देश के लोग शहरों में, गावों में और जंगलों में रहना पसंद करतें हैं। हम शहरों में रहने वालों को शहरी, गाँव में रहने वालों को ग्रामीण और जंगलों में रहने वालों को हम आदिवासी कहते हैं। यदि आदिवासी इस शब्द का सन्धि विच्छेद किया जाय तो आदि(म)+वासी =मूल निवासी। आखिर ये आदिवासी क्या होते हैं? क्या खाते हैं? ये समाज से कटे हुए क्यों होते हैं? इनमें क्या अदभुत और विलक्षण होता है? इन्हें लोग अजूबे की तरह क्यों देखते हैं? इनकी वेशभूषा, खानपान क्यों आम आदमियों की तरह नहीं होती? ये क्यों समाज से दूर भागते हैं? ऐसे अनगिनत प्रश्न मन में उठते हैं। सुना है कि ये वनवासी प्रकृति पूजक होते हैं क्यूकि प्रकृति ही इन्हें अन्न, परिधान, आवास और औषधि प्...
जिंदा मुर्दा बाप
कहानी

जिंदा मुर्दा बाप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। हर ओर तर्पण श्राद्ध की गूँज है। अचानक मेरे मन में एक सत्य घटना घूम गई। रमन (काल्पनिक नाम) ने कुछ समय पहले मुझसे एक सत्य घटना का जिक्र किया था। रमन के घर से थोड़ी ही दूर एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था। बाप रिटायर हो चुका था। दो बेटे एक ही मकान के अलग अलग हिस्सों में अपने परिवार के साथ रहते थे। पिता छोटे बेटे के साथ रहते थे। क्योंकि बड़ा बेटा शराबी था। देखने में सब कुछ सामान्य दिखता था। दोनों भाईयों में बोलचाल तक बंद थी। अचानक एक दिन पिताजी मोहल्ले में अपने पड़ोसी से अपनी करूण कहानी कहने लगे। हुआ यूँ कि दोनों बेटों ने उनके जीवित रहते हुए ही उनका फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर एक दूसरा मकान, जो पिताजी ने नौकरी के दौरान लिया था, उसे अपने नाम कराने की साजिश लेखपाल से मिलकर रच डाली। संयोग ही था क...
लिविंग रिलेशनशिप
आलेख

लिविंग रिलेशनशिप

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ******************                           मराठी नाटकों की अपनी एक अहमियत होती हैं और उनमें व्यवसायिकता भी भरपूर पायी जाती हैं। मुझे भी मराठी नाटक देखने का बहुत शौक हैं और इसी कड़ी में कुछ दिनों पूर्व एक मराठी नाटक देखने का अवसर प्राप्त हुआ। नाटक का नाम था 'झालं गेलं विसरुन जा' अर्थात जो भी हुआ उसे भूल जाओं। वैसे हिंदी में कहावत भी हैं, 'बीती ताही बिसार दे।' नाटक की समीक्षा करने का कोई विचार मेरे मन में नहीं हैं, परंतु नाटक के विषय की ओर सबका ध्यान जरुर आकर्षित करना चाहूंगा। नाटक का विषय था स्त्री-पुरुषों के अनैतिक शारीरिक संबंध। इससे भी महत्त्वपूर्ण यह कि विवाह संस्था हेतु स्थापित सामाजिक नैतिक परम्पराओं और मूल्यों को ध्वस्त करते हुए पत्नी के मित्र के साथ स्थापित अनैतिक शारीरिक संबंधों को पति द्वारा बडी सहजता और सरलता से मान्यता देते हुए स्वीकार करना। यहाँ...
गणित मां पापा का
लघुकथा

गणित मां पापा का

नीलम तोलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (रात दस बजे का वक्त सोने की तैयारी) नवल अपनी पत्नी सोनिया का हाथ पकड़कर.. नवल : सोनू तुम बहुत अच्छी हो, तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गया। आज तुम ना होती, तो ना मैं बीमार मां को गांव से ला पाता ना वो इतनी जल्दी स्वस्थ हो पाती। घर, नौकरी, मां, सब कुछ कितनी अच्छी तरह संभालती हो तुम। सोनिया : वह मेरी भी तो मां है नवल, क्यों ऐसा बोल रहे हो? नवल : थैंक यू सोनिया!! सोनिया : सुनो एक बात कहनी थी, नवल : बोलो ना प्लीज.. सोनिया : तुम तो जानते हो, मैं अपने मम्मी पापा की इकलौती संतान हूं, पापा के जाने के बाद मम्मी बहुत अकेली हो गई है। फिर उम्र का भी तकाजा है। क्यों ना हम उन्हें यहां ले आए, उनका भी मन लग जाएगा। नवल : सोनू यार! कैसी बात कर रही हो? दामाद के घर जाकर भी कोई रहता है क्या? फिर हमारा रूटीन भी डिस्टर्ब होगा... उन्हें कहना कभी-कभी यहां आ जाया ...
गूढ़ रहस्य
लघुकथा

गूढ़ रहस्य

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** पापा आप हर बात में अपनी सलाह क्यों देते रहते हैं? आपका अपना ही अलाप बजता रहता है। तभी दूसरा बेटा भी आ गया। पापा हर मामले में अपनी टाँग अड़ाना जरूरी है। शर्मा जी, चुपचाप दोनों बेटों की बातें सुन रहे थे, जो उन्हें किसी शूल की भाँति चुभ गई थी। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा था। अब तो हर रोज का यही काम था। सुबह से ही घर में कलह शुरू हो जाता था। शर्मा जी ने बड़े जतन से घर की एक-एक चीज जोड़ी थी। वह किस तरह उन्हें बर्बाद होते देख सकते थे। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उन्होंने अपनी सारी जमा-पूँजी खर्च कर दी थी। पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह समय पर पूरा किया था। पर उनसे कहीं ना कहीं भारी चूक हो गई थी। जो आज अपने ही परिवार में उन्हें उपेक्षा झेलनी पड़ रही थी। रोज की तरह, वह सुबह पार्क की तरफ चल पड़े। गेट पर ह...
गुरू कृपा
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गुरू कृपा

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** सब मंचन्ह ते मंचू एक, सुंदर बिसद विशाल। मुनि समेत दोउ बंधु तँह बैठारे महिपाल।। श्रीरामचरितमानस       सब मंचों से एक मंच अधिक सुंदर, उज्जवल और विशाल था। स्वयं राजा ने मुनि सहित दोनों भाइयों को उस पर बैठाया। प्रसंग है कि श्री राम लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र जी के साथ सीता स्वयंवर देखने जनकपुर पधारें ।यज्ञशाला में दूर-दूर के देशों के बड़े प्रतापी एवं तेजस्वी राजा पधारे थे। राजा जनक जी ने अपने सेवकों को बुलाकर आदेश दिया कि तुम लोग सब राजाओं को यथा योग्य स्थान पर बिठाओंं और सेवकों ने जाकर सभी राजाओं को यथा योग्य स्थान पर बिठाया। वही जब अपने गुरू श्री विश्वामित्र जी के साथ दो नवयुवक राजकुमार राम और लक्ष्मण पधारें तो उठकर राजा जनक स्वयं गए एवं उन्हें सबसे सुंदर, उज्जवल और विशाल मंच पर उत्तम आसन पर बैठाया, जबकि उस सभा में कई प्रतापी श...
अनमोल तोहफा
लघुकथा

अनमोल तोहफा

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ५ सितंबर यानि शिक्षक दिवस आज पूरा दिन स्कूल में बच्चों की शुभकामनाएं और ढेर सारी टाफीया उपहार गुल्दस्ते ग्रिटींग कार्ड। इसके अलावा शाला प्रबंधन की ओर से विषेश कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें उत्कृष्ट शिक्षा नवाचार के लिए सुषमा को विषेश पुरस्कार प्रदान किया गया। सुषमा जब घर लौटी तो उसके बैग बच्चों द्वारा दिये गये उपहार से भरे हुए थे और हाथ में शाला प्रबंधन की ओर से दिया गया स्मृति चिन्ह ।घर पहुँच कर सुषमा पूरी तरह थक कर चूर हो चुकी थी। पीछे से आवाज आई मैडम जी...मैडम जी... सुषमा निन्नी को देख कर अतीत में खो गयी। उसके लिए ये जगह नयी थी अभी अभी उसने शिक्षाकर्मी वर्ग एक के लिए पोस्टिंग कोंडागाँव में हुआ था । घर के सामने सड़क के उस पार झोंपड़ी नजर आती थी। स्कूल जाते समय रास्ते में निन्नी दिख जाया करती थी उसकी उम्र कोई आठ ...
सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व
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सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                     प्रख्यात दर्शन शास्त्री, महान हिंदू विचारक, चिंतक, शिक्षक सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन का जन्म ०५ सितम्बर १८८८ में मद्रास (अब चेन्नई) से करीब २०० किमी. दूर तिरूमती गांव में गरीब ब्राह्मण (हिंदू) परिवार में हुआ था। राधाकृष्णन चार भाई व एक बहन थी। इनके पिता सर्वपल्ली विरास्वामी बहुत विद्वान थे। इनकी माता का नाम सिताम्मा था। इनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही हुई। गरीबी के कारण इनके पिता इन्हें पढ़ाने के बजाय मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे। आगे की शिक्षा के लिए इन्हें क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल तिरूपति में प्रवेश दिलाया गया। जहाँ ये सन् १८९६ से १९०० तक चार साल रहे। सन् १९०० में बेल्लूर के शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत मद्रास क्रिश्चियन कालेज, मद्रास में अपनी स्नातक शिक्षा प्रथम श्रेणी के साथ इ...
धूप-छाँव
कहानी

धूप-छाँव

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************              घड़ी में शाम के चार बजे थे। रमेश अपने कॉर्पोरेट के आलिशान ऑफिस में बैठा था। तभी चपरासी चाय लेकर उसकी मेज पर रख गया। चाय के प्याले को हाथ में लिये रमेश अपने सम्पूर्ण कार्यकाल को याद करने लगा। उसका बहुराष्ट्रीय कंपनी का वो पहला दिन जहाँ सारे विदेशी कर्मचारी थे और वो अकेला हिंदुस्तानी। उसे हर दिन एक नई तकलीफ का सामना करना पड़ता था। वो विदेशी इसके साथ कार्यस्थल पर राजनीति खेलते थे। जब सारे साथ जाते तो उसे हीन नजरों से देखते थे ये सोचकर कि उसे उनकी भाषा समझ में आ भी रही है या नहीं? खाने की मेज पर बैठते तो उसको टकटकी लगाकर देखते कि वो चाकू, छुरी से खा पायेगा कि नहीं? इत्यादि इत्यादि। इन सारी तकलीफों के कारण रमेश को असंख्य बार हिंदुस्तानी कंपनी में काम करने की इच्छा हुई। उसके एक वरिष्ठ पदाधिकारी को उसकी तकलीफों का अंदाजा था। उसने...
बदलता हुआ पहनावा और उसका समाज पर प्रभाव
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बदलता हुआ पहनावा और उसका समाज पर प्रभाव

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** परिवर्तन प्रकृति का नियम है। संसकृति और सभ्यता भी इस प्रभाव से नहीं बच सकते। संसकृति का संबंध मानव हृदय से होता है।अत: इस पर परिवर्तन का प्रभाव अत्यंत धीमी गति से होता है। दूसरी और सभ्यता अर्थात मानव परिवेश के अ़तर्गत आनेवाली भौतिक वस्तुएं जैसे खाध पान, पक्षनावा, भवन चल सम्पति आदि।इन पर परिवर्तन का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है। आज के विमर्श का विषय "बदलता हुआ पहनावा और समाज पर उसका प्रभाव" पर चर्चा करना है। ऐसा बदलाव या परिवर्तन सभ्यता के बदलाव से संबद्ध है। पहनावा सभ्यता का अभिन्न अंग है।विचारणीय है कि कर्मेन्द्रियो़ द्वारा हम जो भी काम करते हैं वही सभ्यता है। पहनावा हमारी चक्षुओं को आकर्षित करता है। हम जहाँ नए फैशन के परिधान कहीं भी चाहे सिनेमा में ही क्यों न हों, तुरन्त उन परिथानों में स्वत: को काल्पनिक रूप से देखने लगते हैं।...
श्राद्ध या दिखावा
लघुकथा

श्राद्ध या दिखावा

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मीनू ने रानू से कहा, रानू चलो बाजार चलते हैं। "क्यों? अरे! तुम्हें नहीं मालूम क्या? श्राद्ध पक्ष चल रहा है। ढेर सारी सब्जियां, मिठाइयां, फल, सूखे मेवे लाना है। और उपहार में देने के लिये कपड़ें बर्तन तथा सोने व चांदी के आभूषण भी तो लेना हो। भाई हम तो अपने सास-ससुर का श्राद्ध उत्सव के जैसा मनाते हैं। दो ढाई सौ लोगों को खाना खिलाते हैं, गरीबों को दान करते हैं। मंदिर में चढ़ावा देते हैं, तभी तो हमारे पूर्वज खुश होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। क्यों रानू हमने तो तुम्हें कभी सास-ससुर का श्राद्ध करते नहीं देखा? अरे भाई इतनी भी क्या कंजूसी है? अरे भाई इतना जो कुछ है आखिर उन्हीं का तो दिया हुआ है। रानू के मुंह से तपाक से निकल गया। भाभी मैंने अपने सास- ससुर को जीवित में ही तृप्त कर दिया था। इसलिए उनका आशीष तो सदा मेरे साथ है। रानू ने मन म...
शिक्षक दिवस : गुरु श्रद्धा एवं सम्मान का उत्सव
आलेख

शिक्षक दिवस : गुरु श्रद्धा एवं सम्मान का उत्सव

अशोक शर्मा प्रताप नगर, जयपुर ******************** गुरु शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है, ‘गु यानी अँधेरे से ‘रु यानी प्रकाश की ओर ले जाने वाला। प्राचीन काल की बात करें तो आरुणी से लेकर वरदराज और अर्जुन से लेकर कर्ण तक सबने गुरु की महिमा को समझा और उनका गुणगान किया है। गुरु शरण में जाकर ही भगवान राम भी पुरुषोत्तम कहलाए।एक बार अपने स्वागत भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन कैनेडी ने कहा था, "अमेरिका की धरती पर एक भारतीय पगड़ीधारी स्वामी विवेकानंद तथा दूसरी बार डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा अपने उदबोधन से भारतीयता की अमिट छाप जो अमेरिकावासियों के हृदयों पर अंकित हुई है, जो सदैव अमिट रहेगी।" निःसंदेह यह प्रत्येक भारतीय के लिये अपनी संस्कृति एवं महापुरुषों के प्रति गौरान्वित भाव-विह्वलता से परिपूर्ण श्रद्धा के भावों को अभिव्यक्त करने वाले क्षणों के रूप में रहे होंगे एवं अनंत काल तक रहेंगें ह...
मिस सीमा
कहानी

मिस सीमा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************                                          प्रदीप, तुम क्या समझते हो? मैं सीमा की चाल नहीं समझ रही हूँ। आखिर बात क्या हैं नीना दीदी? खुलकर कहो जो कहना चाहती हो।पहेलियाँ क्यों बुझा रही हो? नहीं प्रदीप ये कोई पहेली नहीं है। ये पूरी तरह सत्य हैं। तुम्हारी मिस सीमा, आजकल मेरे लाड़ले अवि पर डोरे डाल रही हैं। ये आप क्या कह रहीं हो दीदी? क्या सबूत हैं तुम्हारे पास? तुम्हें भी सबूत चाहिए, जबकि तुम मिस सीमा के व्यक्तित्व के बारे में अच्छी तरह जानते हो। हाँ, जानता हूँ वह एक स्मार्ट औरत हैं, बेहद चालाक। वह अपनी नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देती। पर आजकल उसकी हालात ठीक नहीं है। वह कर्ज में डूबी हुई हैं। यही तो मैं तुम्हें बताने का प्रयास कर रही हूँ। वह हमारे अवि,पर अपने रूप का जादू बिखेर रही हैं। वह अच्छी तरह जानती है कि वह करोड़ो का मालिक है। वह इसी क...
१००८ कोरोनानंद जी महाराज
व्यंग्य

१००८ कोरोनानंद जी महाराज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** नमस्कार दोस्तों, सबसे पहले शुभकामनाओं की एक खेप स्वीकार कर लीजिए। ज्यादा उलझने की जरूरत नहीं है कि शुभकामनाऔं का ये झोंका आखिर किस पुण्य प्रताप के फलस्वरूप आप को दुर्भाग्यवश अरे नहीं-नहीं भाई सौभाग्य का पारितोषिक प्रसाद स्वरूप आपको सुशोभित हो रहा है। कुछ समझ में आया हो तो बता ही डालिए, ताकि शुभकामनाओं का एक और गुच्छा मैं आपकी ओर अबिलम्ब उछाल दूँ। नहीं समझ में आया तो भी कोई बात नहीं है, निराश होने की जरूरत नहीं है आपको फ्री में एक शुभकामना दे ही देता हूँ। हाँ तो बात शुभकामनाओं की चल रही थी। सबसे पहले मैं आपको शुभकामनाओं के साथ बता दूँ कि मेरी शुभकामनाएं एकदम नये किस्म की हैं जिसमें दिल का कोई कनेक्शन ही नहीं है। आजकल शुभकामनाओं का रोग बेहिसाब बढ़ गया है, इतना बढ़ गया है बेचारा कोरोना भी खौफ में है। यही नहीं गुस्से में भ...
यादों की गठरी
लघुकथा

यादों की गठरी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************                मां, बेटे को मिल रही सफलता पर फूली नही समा रही थी। उसका मन बेटे को दुआएँ दे रहा था। वह बेटे को चूम लेना चाहती थी। पर सम्भव नही था। वह माँ से कोसो दूर बैठा था। कितने साल हो गए थे। उसे गाँव से गए। माँ के चेहरे की झुर्रियाँ लगातार बढ़ती ही जा रही थीं। आँखों की ज्योति भी धीमी पड़ रही थी। पर माँ का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था। वह जब भी उदास होती। अतीत की यादों में खो जाती।उसे आज भी याद हैं जब गाँव के स्कूल मास्टर ने साफ कह दिया था। तेरा लला पढ़ नही सकता, इसका दिमाग बहुत कम है। क्यों अपने पैसे खराब कर रही हो? तुमने क्या सोच कर इसका नाम ज्ञान रखा है। ये तो पूरी तरह अज्ञानी है। कितना मन दुःखा था उस दिन। उसने बहुत मिन्नतें की थी, मास्टर सहाब से। आपका ही बच्चा है, दया कीजिए। शुरू-शुरू में तो वह बिल्कुल नहीं माने थे। ज्ञान स...
अनोखा बंधन
कहानी

अनोखा बंधन

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** प्रस्तावना:- व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन में कई लोगों से मिलता है, जुुुड़ता है, बिछड़ता है, लेकिन इस भीड़ मेे कुछ लोगों से ऐसे मिलता है और जुुुड़ता है, जैसे जनम-जनम का साथ हो। सामने वाला कब, कहाँ और कैसे उसके इतने निकट आ जाता है कि कुछ पता ही नहीं चलता। कोई कहता है, कि यह पूर्व जन्म का अधूरा कर्ज है, जो मनुष्य इस जनम में पूरा करता है और कोई कहता है कि कुछ रिश्ते और कुछ फर्ज पूर्वजन्म मे अधूरे रह जाते हैं, उन रिश्तो का प्रभाव इतना गहरा होता है, कि मानव को उन रिश्तो की पूर्णता एवं उस फर्ज की प्रतिपूर्ति हेतु इस जन्म में आना पड़ता है। प्रकृति उन्हें मिलाती है, वे उन रिश्तो से भागने की कितनी भी कोशिश क्यों न करे, पर प्रकृति किसी न किसी बहाने उन्हें बार-बार सामने खड़ा कर देती है। हालांकि व्यक्ति इन रिश्तो को कभी परिभाषित नहीं कर पाता है लेक...
विकृती को मान्यता
आलेख

विकृती को मान्यता

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बीते अनेक वर्षों मे, फिल्मों में दुर्जन खलनायकों को महिमामंडित करते बाजारवाद का योजनाबद्द षड्यंत्र हम देखते आ रहें हैं। इसमें सद्गुणी, सज्जन नायक कहीं तो भी पीछे पड़ता गया। आगे चल कर नायक में ही खलनायक की विशिष्टता (दुर्गुण) की भी बाजार को जरुरत महसूस होने लगी। इसी तरह आज वर्तमान में समाज में भी नायक और खलनायक में अंतर करना कठिन हो गया हैं। अच्छाई और बुराई में आज इतना साम्य हो गया हैं कि उनमें भेद करना कोई जरुरी नहीं समझता। नैतिकता और अनैतिकता के सारे मापदंड ही ध्वस्त हो चुके हैं। समाज के लिए भी अहितकर बातें समाज के ध्यान में ही नहीं आती। उसका एक महत्वपूर्ण कारण यह हैं कि समाज ने विकृती को जीवन का अभिन्न अंग समझ लिया हैं और उसे स्वीकार भी कर लिया हैंI यह भले हीं विडम्बना लगे परन्तु आज का कटु सत्य यहीं हैंI ‘सब चलता हैं,’ हमें क्या करना?’,’ह...
रिश्ते का लिहाज़
लघुकथा

रिश्ते का लिहाज़

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                   लंबे समयांतराल बाद जिला कलेक्टर के आदेशानुसार लाकडाउन में थोड़ी छूट दी गई। ज्यादातर लोग घरों से निकल कर बाजार की तरफ चल पड़े थे, दैनिक जीवन से जुड़ी आवश्यक सामग्री की खरीदी करने के लिए। बालकनी में बैठे-बैठे मैं लोगों को बाजार आते-जाते देख रहा था, इच्छा हुई कि बाजार घूम आता हूँ। मैं भी घर से निकल पड़ा बाजार की तरफ। बाजार पहुंचकर मैं समैय्या के होटल में एक कप चाय बोलकर चाय आने का इंतजार कर रहा था, तभी मेरी नज़र पड़ी होटल में एक कोने में बैठे तीन लोगों पर, जो कि एक ही स्टूल पर बैठे थे, जिनमें एक व्यक्ति ठीक बीच में बैठे थे, और शराब की बोतल से शराब गिलास में डालकर क्रमश: पहले और फिर दूसरे व्यक्ति को बारी-बारी से दे रहे थे।जब पहले व्यक्ति शराब पी रहे होते तो दूसरे सज्जन दूसरी तरफ नज़र घुमा लेते थे और जब दूसरे सज्जन शर...
सास का स्नेह
लघुकथा

सास का स्नेह

सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' इन्दौर (मध्यप्रदेश) ********************                      डाक्टर श्वेता जच्चा वार्ड में राउण्ड पर थी। वहाँ पर एक ऐसी ग्रामीण महिला को बच्ची हुई थी, जिसे बच्चे नहीं होने के कारण उसके पति ने दूसरी शादी कर ली थी। पति की दूसरी शादी के नौ महिने के अन्दर ही उस महिला को बच्ची हो गई। डाक्टर श्वेता जब वहाँ पहुँची तब दादी बच्ची को गोद में लेकर कह रही थी "पगली पहले ही आ जाती तो तेरी दूसरी माँ न आती"। परिचय :- सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' जन्म तिथि : ०३/०४/१९६४ शिक्षा : बी. एस. सी; एम.ए.(अँग्रेजी साहित्य), बी. एड. सम्प्रति : शास. शाला में शिक्षिका ! साहित्यिक गतिविधि : गद्य एवं पद्म लेखन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में १०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित, विभिन्न मंचो से २० से अधिक सम्मान, १२ से अधिक आनलाइन काव्य पाठ घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
मैं यमराज हू्ँ
कहानी

मैं यमराज हू्ँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                      देर रात तक पढ़ने के कारण बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई। पढ़ाई के लिए मैनें शहर में एक कमरा किराए पर ले रखा था। मकान मालिक, उनकी पत्नी और मैं कुल जमा तीन प्राणी ही उस मकान में थे। मकान मालिक पापा के परिचित थे, इसलिए मुझे रहने को कमरा दे दिया वरना इतना बड़ा मकान और रहने को मात्र दो प्राणी, मगर शायद किसी अनहोनी के डर से किसी को किराए पर रखने के बारे में नहीं सोचते रहे होंगे। खैर.........। मैं कब बिस्तर पर आया और कब सो गया, कुछ पता ही न चला। तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी। मुझे लग भी रहा था पर मुझे लगा कि शायद ये मेरा भ्रम है। लेकिन जब रूक रूक कर लगातार दस्तक होती रही तो न चाहते हुए भी मै उठा और दरवाजा खोला तो सामने जिस व्यक्ति को देखा, उसे मैं जानता नहीं था। मैनें उससे पूछा कि आप कौन है? उसनें शालीनता स...
गंगासागर
कहानी

गंगासागर

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                          मैं ऑफिस से अपना काम खतम कर निकली वैसे ही रामसिंग जो हमारा प्यून था दौड़ कर आया और बोला कि आपको साहब बुला रहें हैं। बॉस के केबिन में जाते ही बॉस ने मेरे हाथ में कोलकता का हवाई टिकट पकड़ाया और कहा कि "आपको कोलकता ऑफिस में दो दिन के असाइनमेंट पर जाना है। कम्प्यूटर्स सारे ख़राब है तो प्रेज़ेंटेशन के लिये आपको वहाँ जाकर कैसे भी कर मेन प्रोग्राम को ठीक करना है।" मेरा तो जी जल गया क्यूंकि दो दिन के बाद उत्तरायण जो था। बहोत सारे प्रोग्राम बनाये थे कि तिल के लड्डू बनाउंगी, पतंग उड़ाएंगे और मौज करेंगे। और आज बॉस ने ये हवाई टिकट पकड़ाकर सारे प्रोगाम पर पानी फेर दिया। अब मैंने दूसरे दिन कोलकता पहुँच कर दिन भर काम किया और घड़ी में देखा तो शाम के सात बजे थे। फिर दिल बोल उठा कि काश मैं गुजरात में होती। केबिन से बाहर आई तो देखा कि...
सावित्री महल
कहानी

सावित्री महल

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सात साल से वह उसकी बाट जोह रही थी। अब तो उसकी आँखो से आँसू भी आने बन्द हो गए थे। बस उदासी ही उसके साथ रह गई थी। वह आस-पड़ोस में भी बहुत कम जाती थी। उसकी हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी। अपने गुजारे लायक थोड़ा बहुत कमा लेती थी। घर में नाममात्र का सामान रह गया था। सब कुछ धीरे-धीरे बिक चुका था। पर पति महेश का कुछ भी पता नहीं चल सका था। घर पूरी तरह खँडहर में बदलता जा रहा था। यह वही घर था जिसमें वह हजारों सपनें लेकर आई थी। महेश ने भी उसका साथ निभाने की कसमें खाई थी।कितने खुश थे वो दोनों अपनी छोटी सी गृहस्थी में? उसके अधिक सपनें नहीं थे। वह तो सिर्फ पति का साथ चाहती थी। वह आज भी उस मनहूस दिन को कोसती थी। जब उसने मजाक ही महेश से महल बनवाने की बात कह दी थी। उसने यही कहा था कि तुम मुझें कितना प्यार करते हों? बहुत प्यार, तुम बताओ। तुम्हें म...
विद्वता वाग्मिता एवं विनम्रता की त्रिवेणी : साहित्यकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री
आलेख

विद्वता वाग्मिता एवं विनम्रता की त्रिवेणी : साहित्यकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विद्या ददाति विनयम् की साक्षात् साकार प्रतिमा, सर्जक मेधा एवं साहित्य- साधना के प्रतीक! हिंदी, संस्कृत एवं मगही के अधीती विद्वान, अप्रतिम ज्ञानगर्भित-शिष्यवत्सल प्राध्यापक, काव्यशास्त्र के प्रकांड विद्वान, गंभीर चिंतक, प्रखर वक्ता, सिद्धहस्त लेखक, उत्कृष्ट कवि, लघुकथा के पुरोधा तथा जरूरतमंदों के सहारा, एक सच्चे समाजसेवी एवं प्रगतिशील व्यक्तित्व के धनी मानवता के पैरोकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री अपने कर्म-वाणी-लेखनी और आचार-विचार-व्यवहार से स्वयं को आजीवन मांँ सरस्वती के सच्चे उपासक पुत्र सिद्ध करते रहे। अपने जीवन के अंतिम दिन (यानी प्रयाण-दिवस २५ अगस्त, २००४) तक इस सरस्वती-साधक ने १२ घंटों के प्रतिदिन के स्वाध्याय एवं लेखन के अकाट्य नियम में कोई परिवर्तन नहीं किया!! किशोरावस्था तक ही किशोर वय श्यामनंदन के स्वाध्याय का यह आलम था कि इनके पिता...