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गद्य

प्यार की नौटंकी
व्यंग्य

प्यार की नौटंकी

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ज़िंदगी में सब कुछ तेजी से बदल रहा है। इतनी तेजी से तो मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में मूवी भी नहीं बदल रही है। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है, तो वह है प्यार! जी हां, प्यार जिसे आप प्रेम, अनुराग, आसक्ति, मोह, स्नेह, रति, प्रीति, अनुरंजन, लगाव, अनुरक्त, इश्क़, मोहब्बत, स्नेहसिक्त, प्रेमभाव, राग, नेह, उल्फ़त, चाहत, वफ़ा, रफ़ाक़त और दिल्लगी जैसे साहित्यिक नामों से या हालात-ए-सूरत की असली शब्दावली से निकले शब्द जैसे प्रेम का पेंडेमिक, मोहब्बत का मीज़ल्स, प्यार का पीलिया, चाहत का चिकनगुनिया, आकर्षण का ऐंठन, रूमानी रूबेला, स्नेह का स्वाइन फ्लू, दिल का डेंगू, मोह का मलेरिया, दिल्लगी का दस्त, प्रीत की पथरी, मजनूं का मस्तिष्क ज्वर, माशूका का मतिभ्रम, लगाव का लूज मोशन, चाहत का चेचक, इश्क़ का बुखार, साजन ...
मैं देश नही बेचता
लघुकथा

मैं देश नही बेचता

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ********************  बनारसी दास जी सताधारी पार्टी के बहुत बड़े नेता था। बहुत ही तिकड़मी और प्रभाव शाली थे। वे जब भी गाड़ी से अपने ऑफिस जाते थे तो एक ट्रैफिक सिग्नल पर उनकी मुलाकात एक बच्चे से होती थी वह बच्चा कभी गुब्बारे बेचता कभी फल बेचता था।सीजन के हिसाब से कुछ न कुछ बेचता रहता था। आज भी जब बनारसी जी की गाड़ी सिग्नल पर रुकी। तो बच्चा छाता लेकर के बनारसी दास के पास आया और उनसे खरीदने के लिए बिनती करने लगा। बनारसी दास जी ने इस बच्चे से पूछा- तुम रोज नई-नई चीजें बेचते हो? ऐसी कौन सी चीज है जो तुम नहीं बेचते हो? साहब मैं देश नही बेचता हूं। यह कहकर बालक चुप हो गया परन्तु उस वक्त बनारसी दास जी के चेहरे से रंगत उड़ रही थी। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता ...
भेड़ियों का आतंक
आलेख

भेड़ियों का आतंक

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर का पुलिस थाना, समय दिन का ही कोई.., वैसे भी पुलिस थाने तो २४ घंटे खुले रहते हैं, आखिर अपराध कोई समय देखकर थोड़े ही किए जाते हैं। पहले अपराध रात को होते थे और थाने दिन में खुलते थे, तो बड़ी परेशानी थी। पुलिस वालों को अपनी नींद हराम करनी पड़ती थी। वैसे भी हरामखोरी पुलिस की कार्यप्रणाली में रहे तो ठीक है, अब ये ये नींद में भी आ गई तो पुलिस वालों ने बगावत कर दी। इसलिए उनकी सुविधा के लिए अपराध दिन में ही होने लगे, पुलिस वालों के ऑफिस टाइम से मैच करते हुए। तो हाँ, पुलिस थाने का सीन वैसा ही, जैसा देश के हर कोने में किसी भी पुलिस स्टेशन का हो सकता है। ऑफिस के बरामदे में चार पांच कुर्सियाँ डली हुईं, उनके आगे एक कॉमन राउंड टेबल बिछी हुई। कुछ राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का सा सीन है जी..। थाने की ...
आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता
आलेख

आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ********************  अच्छा शिक्षक उत्साही, मिलनसार, सहज, शिक्षार्थियों के साथ तालमेल विकसित करने में सक्षम, अपने छात्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध, मिलनसार, शिक्षार्थियों में लोकप्रिय और आदर्श प्रतिमान के रूप में अपनी स्थिति के प्रति हमेशा सचेत होता है। एक अच्छे शिक्षक में कई तरह के हार्ड और सॉफ्ट स्किल्स भी होते हैं जिन्हें प्रभावी शिक्षकों को निखारना चाहिए, जैसे कि कक्षा प्रबंधन से लेकर भावनात्मक बुद्धिमत्ता तक। अपने सबसे अच्छे शिक्षक के बारे में सोचें। जब शिक्षकों के पास आवश्यक ज्ञान और कौशल होगा, तभी वे इतना बड़ा कार्य करने की स्थिति में होंगे। एक सफल या आदर्श शिक्षक वह शिक्षक होता है जिसे छात्र प्रसन्नता से याद करते हैं, अच्छी तरह से पढ़ाना जानते हैं कि प्रत्येक छात्र समझता है। यह वह शिक्षक है जो स्पष्ट रूप से, संक्षेप में और विषय पर ...
हिंदी माता
व्यंग्य

हिंदी माता

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ओपीडी में बैठा था कि एक मक्कार मानस नुमा, झूठ-प्रपंच शिरोमणि, मेरे दूर के रिश्तेदार और एक फ्रॉड संस्था में उच्च पद पर काबिज एक महाशय चैंबर में आ धमके। सुबह-सुबह आयी इस पनौती से आज दिन भर का ओपीडी प्रभावित होने की आशंका से ही मन खिन्न सा हो गया। क्या करें? दूर के रिश्तेदार से वैसे मैं दूरी बनाकर चलता हूँ, दूर के रिश्तेदार और सड़क पर सांड कब पटखनी दे दे, कह नहीं सकते। कई बार अपनी पटखनी दिला भी चुका हूँ। खैर, आशा के विपरीत आज तो महाशय एक आमंत्रण कार्ड साथ में लेकर आये। आमंत्रण था ‘चौदह सितम्बर’ को ‘हिंदी दिवस’ पर वो भी मुख्य अतिथि के रूप में। न जाने कैसे उन्हें पता लग गया था कि मैं आजकल हिंदी में लिखने लग गया हूँ। लेकिन हिंदी में लिखने मात्र से ही मैं हिंदी का खेवनहार तो नहीं बन गया। मुझे ...
जामुन का पेड़
कहानी

जामुन का पेड़

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** उज्ज्वल अपनी मां से बोला, मां मैं कल शहर चला जाऊंगा तो फिर एक महिने बाद ही आना होगा। इसलिए में अपने दोस्त केशव से मिलकर आता हूं, वो भी परसों अपनी नौकरी पर चला जायगा। फिर ना जाने कब मिलना होगा। अभी आता हूं। हां, चला तो जा पर शाम को थोड़ा जल्दी आ जाना, तेरी बुआ आयेगी तुझसे मिलने, हां ठीक है। उज्ज्वल अभी घर से निकला ही था कि बरसात होने लगी एक बार तो सोचा वापस घर जाकर छाता ले आता हूं। तभी विद्यालय की ओर से आती हुई घंटी की आवाज उज्ज्वल के कानों में पड़ी, उसने सोचा क्यों ना स्कूल की दीवार के पास खड़ा हो जाता हूं। जिससे बरसात में भीगने से बच जाऊंगा। बच्चों के शोरगुल की आवाज ने उसके मन में भी स्कूल के दिनों की याद ताजा कर दी थी। बरसात कुछ देर रुक गई। पर पेड़ो के पत्तो पर ठहरा पानी अभी भी धीरे-धीरे करके टपक रहा था। उज्ज्वल अब चल पड़ा...
अनासक्ति भाव
आलेख

अनासक्ति भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** द्वारिकाधीश स्वयं अनासक्ति के प्रतीक हैं। प्रेमघट भरा रहा, किंतु त्यागा वृंदावन तो पीछे मुड़ कर न देखा। अंदर तक भर गया था प्रेम तो बाहर क्या देखते। हम सांसारिक प्राणी अलग हैं। माया, मोह, धन सम्पत्ति, परिवार, यश सभी ओर लोलुप दृष्टि है। जब तक सब अपने पास न हो, मन में शांति नहीं। हम सब भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं येन केन प्रकारेण भौतिक सम्पन्नता पाने को। कोई अंतिम लक्ष्य नहीं। एक इच्छा पूर्ण हुई नहीं कि दूसरी तैयार आसक्त करने को। क्या करें, कैसे करें??? ईश्वर ने समस्या दी तो समाधान भी दिया। प्रेम व कर्म जीवन का अभिन्न अंग हैं अन्यथा सृष्टि चले कैसे। जीवन की राह में परिवार, भौतिक साधनों, धन सम्पत्ति,मित्र, समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। संगति का प्रभाव बलवान है, वह चाहेपरिवार, मित्र या पुस्तकों का हो। जैसे लोगों के बी...
टेंशन नहीं होने की टेंशन
व्यंग्य

टेंशन नहीं होने की टेंशन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज का दिन भाई ऐसा तो कभी सोचा नहीं, दिन भर सब कुछ बढ़िया चल रहा है- घर भी, बाहर भी, बच्चे सेटल्ड, कोई अनुचित डिमांड कहीं से नहीं। लाइफ स्मूथ जैसे हाईवे पर चल रही सौ की स्पीड में कार। क्या हुआ आज मेरे दिन को, इतना बढ़िया दिन ! आज बीवी से भी कोई खटपट नहीं, घर पे काम वाली भी समय पर आ गई, वरना उसका गुस्सा मुझ पर ही निकलता। बेटे का भी कोई फोन नहीं आया। बेटे के फोन का मतलब, जैसे एटीएम मशीन में कार्ड लगाना होता है। मरीज भी बिना कोई उलझन भरे प्रश्न किए, चुपचाप मेरे बताए निर्देशों का पालन करते नजर आ रहे हैं। क्या बात है, आज स्टाफ भी समय पर आ गया। स्वीपर ने सफाई भी बढ़िया कर दी है। ओपीडी भी फुल है। शाम तक मेरे को थोड़ी सी घबराहट होने लगी। ये क्या हो रहा है आज? टेंशन क्यूँ नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता...
ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४
आलेख

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** (चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती, श्री व जी शब्द नहीं है) संकलनकर्ता - भीष्म कुकरेती ठंठोली मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण गाँव है। कंडवाल जाति किमसार या कांड से कर्मकांड व वैदकी हेतु बसाये गए थे। बडोला जाति ढुंगा, उदयपुर से बसे। शिल्पकार प्राचीन निवासी है। ठंठोली की सीमाओं में पूरव में रनेथ, बाड्यों, छतिंडा व दक्षिण पश्चिम में ठंठोली गदन (जो बाद में कठूड़ गदन बनता है), दक्षिण पश्चिम में कठूड़ की सारी, उत्तर में पाली गाँव हैं। ठंठोली की लोक कलाओं के बारे में निम्न सूचना मिली है - लोक गायन व नृत्य - आम लोग, स्त्रियां गाती हैं, गीत भी रचे जाते थे। सामूहिक व सामुदायक नाच गान सामन्य गढ़वाल की भाँती। घड़ेलों में जागर नृत्य भी होता है। बादी बादण नाच गान व स्वांग करते थे। बिजनी के हीरा बादी पारम्परिक वादी थे। कुछ लोग स्वयं स्फूर्ति...
माखन लीला
व्यंग्य

माखन लीला

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** जन्माष्टमी पर कान्हा और उनकी माखन लीला बड़ी याद आती है। यूँ तो कृष्ण भगवान् का तो पूरा जीवन ही लीलामय है, लेकिन मुझे हमेशा सबसे ज्यादा आकर्षित किया है तो उनकी माखन लीला ने। “मुख माखन लिपटा दिखे, कान्हा पकड़े कान। बाल रूप में सज रहे, कैसे श्री भगवान।“ यूं तो बचपन में माताजी हमें भी कान्हा बना के ही रखती थीं। सुबह सुबह ही यसुदा मैया की तरह माथे पर चौड़ा सा कला टीका लगा देती थी। हम दिन भर मोहल्ले की गलियन की धुल फांकते शाम को घर पहुँचते तो माताजी को अपना लगाया काला टीका कहीं नजर नहीं आता था। नख से शिख तक कृष्ण वर्ण के बन कर माताजी के सामने उपस्थित होते थे। गाय चराने तो नहीं जाते थे, हां दिन भर रेंदा-पेंदा धनसुख मनसुख की टोलियां हमारी भी थी जो गली के कुत्तों को चराते डोलते थे। मक्खन हमें भी ...
बाढ़ पर्यटन
व्यंग्य

बाढ़ पर्यटन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर की एक पॉश कॉलोनी, दिन का समय, एक बहुमंजिली ईमारत के बहु कक्षीय फ्लैट में वातानुकूलित वातावरण में एक पार्टी चल रही है। ये बहुत कुछ नाईट पार्टियों की तरह ही है बस दिन में इनका नाम किट्टी पार्टी हो जाता है। कुछ किटटीयाँ मेरा मतलब संभ्रांत महिलाएं सजी धजी काया के साथ और टॉपिंग के रूप लिपस्टिक क्रीम पाउडर धारण कर, अपने वॉलेट में पति के क्रेडिट कार्ड और पति की जेब से सेंध लगाकर निकाली हुई धनराशी के साथ एकत्रित होती हैं। हंसी-ठिठोली के माहौल में, एक किट्टी जो उस दिन पार्टी में नहीं आयी, उसकी टीन टप्पड उखाड़ने का काम रहता है। उन्हीं में एक महिला जिनके हाव-भाव से और जिस तरह से उन्हें भाव दिया जा रहा था, साफ नजर आ रहा था कि यह कोई बहुत ही शक्तिशाली महिला है, किट्टी पार्टी की सदस्य नहीं लेकिन जिसके घर पार्टी है...
थम के बरस ओ जरा जम के बरस
व्यंग्य

थम के बरस ओ जरा जम के बरस

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जब मौसम विज्ञान इतना अपडेट नहीं था तब बारिश भी इतनी चतुर सुजान नहीं थी और सुनिश्चित समय पर आरंभ हो जाती थी। आज मौसम विभाग के तरक्की का दौर है बारिश को लेकर जितने भी अटकलें मौसम विभाग लगाता है करीब-करीब सभी अटकलें केवल अटकलें ही रह जाती हैं। आज बारिश के ये हालात हो चलें कि मौसम विभाग जहां अतिबारिश बताता है वहां सूखा पड़ जाता है। और जहां सूखे की आशंकाएं जताई जाती हैं वहां बाढ़ आ जाती है। अब बारिश बहुत होशियार और चालाक हो चुकी है पूरी तरह भारतीय नेताओं के जैसे जब आप घर से बाहर हों तभी बारिश होती है जब आपके पास छाता न हो जब आपके पास रेनकोट न हो तभी बारिश होती है। आदमी को भिगोकर अपने होने का सबूत देती है। इस वर्ष बारिश किसी घोटाले की तरह आई और किसी जांच दल की तरह चुपचाप जा रही है। बचपन में जब रात को तेज बारिश हो रही होती थी त...
अनाथों की मोक्षदात्री
लघुकथा

अनाथों की मोक्षदात्री

माधवी तारे लंदन ******************** बंद कमरे की खिड़की की मद्धम रोशनी में बैठकर मैं उस ठंडी शाम को ऊर्जा और प्रेरणा से ओतप्रोत थी। विश्वमांगल्य नाम की एक पत्रिका मेरे हाथ में थी और उसमें मैं एक अतिविलक्षण महिला डॉ. भाग्यश्री के बारे में पढ़ रही थी जिसने एक अलग ही तरीके से अपने जीवन को सार्थक किया है। वैसे तो स्त्री शक्ति ने अपनी ताकत का और सफलता का परचम आज चूल्हे-चौके का दायरे सहित आसमान तक फहराया है। तभी तो घर ही क्या सारी दुनिया कहती है कि तुलसी बिना आंगन सूना वैसे स्त्री बिना घर सूना। आज तक एक ही क्षेत्र स्त्री के लिये कोमलांगी, भावनाशील, समझकर अछूता रखा गया था वह स्थान है श्मशान। वैसे आज वहां भी स्त्रियां जाती हैं। लेकिन इंदौर की इस प्रतिभाशाली महिला ने तो अपना कार्यक्षेत्र ऐसी जगह को बनाया है जहां सामान्य लोग जाने का विचार भी नहीं करते. इस प्रेरणास्पद नायिका का विवाह एक चतुर्थ श...
मानवीय संवेदना व प्रकृति के बेहद करीब है काव्य कृति ‘साक्षी’
पुस्तक समीक्षा

मानवीय संवेदना व प्रकृति के बेहद करीब है काव्य कृति ‘साक्षी’

पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम - साक्षी (मेरी लेखनी से) समीक्षक - आशीष तिवारी निर्मल रचनाकार - साक्षी जैन संस्करण - प्रथम पुस्तक कीमत - १९९ रुपए प्रकाशक - जे.एस.एम पब्लिकेशन आगरा।) पिछले दिनों भोपाल में आयोजित एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में जाना हुआ काव्य पाठ व सम्मान के अतिरिक्त कालापीपल जिला शाजापुर मध्य प्रदेश निवासी कवयित्री व शिक्षिका श्रीमती साक्षी जैन द्वारा काव्य संग्रह साक्षी (मेरी लेखनी से) प्राप्त हुई। काव्य संग्रह का कवर बेहद आकर्षक है जिसमें कवयित्री के आराध्य देव कान्हा जी की तस्वीर व उनके चरणों की सेविका स्वयं साक्षी जैन की तस्वीर लगी है। काव्य संग्रह में कुल ६३ रचनाएं प्रकाशित हैं। सुघड़ साहित्यकार साक्षी जैन द्वारा विरचित कविताओं में संवेदनशीलता का विस्तार है कवयित्री ने अपने लेखन के माध्यम से मानव समाज व प्रकृति के हर पहलू पर बखूबी लिखा है। जिसमें कान्हा के प्रति भ...
देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय – चंदन माटी मातृभूमि की
पुस्तक समीक्षा

देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय – चंदन माटी मातृभूमि की

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक- सुधीर श्रीवास्तव वरिष्ठ कवि डॉ. रवीन्द्र वर्मा जी की पुस्तक "चंदन माटी मातृभूमि की" कुछ माह पूर्व ही मुझे प्राप्त हो गई थी। लेकिन स्वास्थ्य कारणों से कुछ लिखने का विचार आगे बढ़ता रहा। अब जब नवोदय परिवार ने यह अवसर उपलब्ध कराया, तो थोड़ा विवश हो गया। जो अच्छा ही है कि एक विचार को अब साकार करने का समय आ ही गया। देशप्रेम और देशभक्ति रचनाओं का १७७ पृष्ठीय १०८ रचनाओं वाले काव्य संग्रह "चंदन माटी मातृभूमि की" को रचनाकार ने "अपने भारत राष्ट्र को समर्पित सभी बलिदानियों, देशधर्म व स्वतंत्रता को लड़े वीर क्रांतिकारियों, इस देश की अखंडता व स्वाभिमान के लिए जीवन समर्पित करने वाले सभी महान पुरुषों को श्रद्धावनत नमन करते हुए समर्पित किया है। विद्या वाचस्पति मानद उपाधि प्राप्त रवीन्द्र वर्मा के इस पुस्तक की भूमिका म...
पेपर लीक : शिक्षा और राजनीति का नया धंधा
व्यंग्य

पेपर लीक : शिक्षा और राजनीति का नया धंधा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** अखबारों और टीवी न्यूज़ में आजकल एक खबर बहुत ज्यादा लीक कर रही है - पेपर लीक का मामला। यूं तो आए दिन कोई न कोई परीक्षा का पेपर लीक होता रहती है। जब लोकतंत्र की गाडी के पहियों पर चढ़े टायर ही लीक हो रहे हैं तो पेपर लीक होना कोई बड़ी बात तो है नहीं । अब ये लीक के मामले ही हैं जो अखवारो की हैडलाइन बनती है, सरकार को भी दो-चार जांच आयोग बिठाने का अवसर मिलता है, सत्ता पार्टी और विपक्ष पार्टियों को एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने का अवसर मिलता है, विरोधी पार्टियों पर दो चार सी बी आई के छापे और इ डी के छापे पडवाकर उन्हें हड्काने का मौका मिलता है, कुल मिलकर आने वाले चुनावों के लिए मुद्दों की फसल बुआई हो जाती है। नेता लोग कहते हैं, लोकतंत्र की चुनरी में ये लीक के दाग अच्छे हैं, इन्हें छुडाना नहीं है, लीक के दागों क...
आखरी साड़ी
लघुकथा

आखरी साड़ी

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ********************  रेनू एक मध्यम परिवार की बहु थी। उसको कपड़ो का बहुत शौक था। दिन में दो बार कपड़े बदलना उसकी आदत में शुमार था। उसकी अलमारी में कभी खत्म न होने वाले कपड़ो का भंडार था। इसके बाद उसका मन आज एक और साड़ी खरीदने के लिये ललियात था। रक्षा बंधन आने वाला था और उसने सोचा कि यह नई साड़ी मैं रक्षा बंधन को पहनूगी। शाम को उसका पति राजेश जब घर आया। पति को नाश्ता देकर रेनू ने कहा बाजार चलिए आज एक साड़ी लेनी है। राजेश थका हुआ घर आया था इसके बाद भी उसने ना न की और फटाफट रेनू के साथ बाजार को निकल पड़ा। राजेश और रेनू शहर के एक सबसे बड़े शो रूम पर पहुंचे। रेनू ने ढेर सारी साड़ियां देखी। उनमे से एक साड़ी रेनू को पसंद आ रही थी परन्तु रेनू का मन पास वाले एक शो रूम में साड़ियां देखने का था। सेल्समेन को यह अनुभव हो गया कि रेनू को यह साड़ी पस...
भावों की पोटली है : पोटली …एहसासों की
पुस्तक समीक्षा

भावों की पोटली है : पोटली …एहसासों की

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव पिछले दिनों जब अनुजा भारती यादव 'मेधा' का एकल कविता संग्रह "पोटली ...एहसासों की" स्नेह स्वरुप प्राप्त हुई थी, तो बतौर कलमकार से अधिक अग्रज के तौर पर मुझे अतीव प्रसन्नता का बोध हुआ था, तब मन के कोने में यह जिज्ञासा, उत्सुकता अब तक बनी रही कि मुझे कुछ तो अपने विचार व्यक्त करने ही चाहिए। वैसे भी काफी समय से भारती से आभासी संवाद और आभासी मंचों, पत्र पत्रिकाओं में पढ़ने सुनने का अवसर जब-तब मिल ही जाता है। सबसे अधिक प्रसन्नता तब हुई, जबसे यह ज्ञात हुआ कि मेधा के पिता (श्री राम मणि यादव जी) स्वयं एक वरिष्ठ कवि साहित्यकार हैं। तब से लेकर अब तक उनका स्नेह आशीर्वाद मिलता रहने के साथ संवाद भी जब तब हो ही जाता है। गद्य, पद्य दोनों विधाओं में सतत् सृजनशील संवेदनशील मेधा पारिवारिक दायित्...
गहरा गड़ा खूंटा
आलेख

गहरा गड़ा खूंटा

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जेंडर समानता की बात बहुत हो रही है, समान काम का वेतन अलग होना बहुत शर्म की बात इसलिए है कि मुर्मू जी राष्ट्रपति हो, सीतारामन सबसे बड़े लोकतंत्र में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था का बजेट पेश करे, हलवा भी बने, तीखे प्रश्नों के जवाब भी आत्मविश्वास से देवे। पायलेट हो, वायुसेना में विशेष भूमिका में हो, सेना के ट्रूप का पुरुषों की टुकड़ी का गणतंत्र दिवस पर नेतृत्व करते देख सारी नारियां उछलने लगे, तब ऊंचे ओहदों डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर तक मे अंतर हो तो कुछ सोचने वाली बात है। कल एक बिल्डिंग का सिक्योरिटी ठेकेदार से बात हुईं कहने लगा, मैडम इस बिल्डिंग में चालीस प्रतिशत महिला कर्मचारी है, सुरक्षा की दृष्टि से छत आदि पर ताला लगवाना बहुत जरूती है, एक हादसा होने पर मेरी एजेंसी खतरे में पड़ जाएगी। माना एक की कमाई से घर नही चलता है। आज नर्सिंग घोटाले स...
कृष्ण जी की १६ हजार रानियों का सत्य
आलेख

कृष्ण जी की १६ हजार रानियों का सत्य

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ‌‌ कृष्ण जी के जीवनकाल में एक घटना घटी। नरकासुर नामक राक्षस ने १६ हजार स्त्रियों का अपहरण करके अपने महल में बंदी बनाकर रखा था। उसे कृष्ण जी ने नरकासुर को मार कर उन स्त्रियों को मुक्त कर दिया। इतने वर्षों तक राक्षस के यहां रहने के बाद उन्हें कौन स्वीकार करेगा, यह सोचकर सभी नदी में डूबकर जीवन समाप्त करने के लिए चल पड़ी। कृष्ण जी के पूछने पर उन्होंने अपने मन‌ की बात उन्हें बताई। इसपर भगवान श्रीकृष्ण जी ने उन्हें जीवन त्याग करने से रोका तथा कहा कि आप सबको मैं आश्रय दूंगा, आप मेरे साथ रहेंगी। कृष्ण जी तो बहुत सक्षम थे, उन सबके रहने के लिए महल बनवाकर उन्हें सुरक्षा प्रदान की। कृष्ण जी उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली राजा थे, उनकी सुरक्षा के घेरे में आने का किसी में साहस नहीं था। इस प्रकार वो भगवान की आश्रिता थीं, संरक्षण में थीं...
एक चेहरे पर कई चेहरे
आलेख

एक चेहरे पर कई चेहरे

माधवी तारे लंदन ******************** जब भी भारतीयों की प्रगति की बात होती है, विदेशों में बसे भारतीयों के गुणगान गाने को तत्पर रहते हैं और विदेशी लोगों को आमंत्रित करने का मौका हम ढूंढते रहते हैं। वहां रहने वाले भारतीय इस अवसर को संपन्न करवाने में हम जी जान से मदद करते हैं। लेकिन विदेशी समाज में रहकर खुद को साबित करना, अच्छे पद कर काम करना आसान नहीं होता. गलतियां ढूंढने को तैयार लोगों की घाघ नज़रों के बीच हर दिन अपने आप को प्रमाणित करना पड़ता है। कई देशों में भारतीय नर्सें काम करती हैं और उनके काम को काफी सराहा जाता है। लेकिन कई बार ऐसा भी सुनने में आता है कि आप्रवासी नर्से सारी तैयारी करके रखती हैं लेकिन उसका सारा श्रेय स्थानीय नर्सें ले जाती है, डॉक्टरों को जानबूझकर दिखाया जाता है कि स्थानीय कर्मचारी ही बेहतर हैं। अक्सर आयोजन में देखा जाता है कि आज भी हमारी गुलामगिरी की मानसिकता गई न...
अतीतजीवी
आलेख

अतीतजीवी

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम हिंदुस्तानी स्वभाव से अतीतजीवी हैं। विश्वगुरु सोने की चिड़िया तरह-तरह की शब्दो की अफीम चाट के उसी में मगन। बदलाव के लिए और भविष्य के लिए कभी तैयार नही। हाँ, अगला जन्म सुधारने को बेहद तत्पर आसान रास्तों में चलने को हमेशा तैयार गंगाजी में डुबकी लगा के स्वर्गारोहण, वाह! चरखे और अहिंसा से आज़ादी, वाह भाई वाह! हमारे सपने टूटते ही नही, नींद है कि उड़ती ही नही। अच्छे दिन आएंगे पर लाएगा कौन मोदी जी !!! आप कुछ करेंगे? नहीं वोट दिया है ना ! १५ लाख आये की नही खाते में? सरकारी नोकरी ही क्यों चाहिए !!! प्राइवेट नोकरी में काम करना पड़ता है ये तकलीफ है। हमारे यहाँ करोड़पतियों और हर तरह से सामर्थ्यवान लोगो ने भी कोविड के टीके मुफ्त सरकारी केंद्रों में ही लाइन में लग के ही लगवाए हैं। और बाते समय की कीमत की ही करेंगे ! कथनी और करनी में सर्वाधिक फर्...
ममता
लघुकथा

ममता

कुमुद दुबे इंदौर म.प्र. ********************  रश्मि आज ऑफिस से जल्दी घर आ गई थी राकेश अभी लौटे नहीं थे। राकेश के इन्तजार में वह गलियारे मे टहल रही थी। चहलकदमी करते हुये रश्मि का ध्यान अपने बेटे प्रवीण की ओर चला गया जो जाॅब के सिलसिले मे ५ वर्ष पहले आस्ट्रेलिया गया था ओर वहीं बस गया था। रश्मि विचारों में डूब गई, प्रवीण को देखो पत्नी बच्चे का हो कर रह गया पूरा सप्ताह निकल गया आ नहीं सकता तो क्या फोन पर मां-बाप की खैर खबर लेने के लिये भी वक्त नहीं निकाल सकता। जब बेचलर था रोजाना ऑफिस से लौटने के बाद फोन पर मां बाप के हाल जाने बगैर सोता ही नहीं था। अब पूरा सप्ताह बीत जाता है, आना तो दूर की बात एक फोन करने का वक्त भी नहीं निकाल पाता। रश्मि के मन में इसी तरह के विचार उबाल ले रहे थे, कि फोन की घंटी बजी, भीतर जाकर रिसीवर उठाया ओर बातों मे तल्लीन हो गई। रश्मि के चेहरे पर उभरी मुस्कु...
संघर्ष
लघुकथा

संघर्ष

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य के अभाव में उपजी परिस्थितियों के चलते लीला को अपनी बच्ची के लिए घर छोड़कर निकलना पड़ा। बच्ची को साथ लेकर वह अपनी एक सहेली रमा के घर पहुंची, और अपनी पीड़ा कहते हुए रो पड़ी। रमा ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि जब तक उसके रहने का प्रबंध नहीं हो जाता तब तक वह यहीं रहे। उसने पति से कहा कि लीला के लिए काम का प्रयास करें। कई दिनों के प्रयासों के बाद रमा के पति के माध्यम से लीला को काम तो मिल गया। पति से बात करके रमा ने लीला को अपने ही घर में एक कमरा रहने के लिए दे दिया। लीला की बच्ची छोटी थी, इसलिए उसने ना नुकूर भी नहीं किया। वैसे भी अभी उसके हाथ में इतने पैसे भी नहीं है कि वो कहीं अलग कमरा लेकर रह सके। शुरुआती संघर्ष के बाद पढ़ी लिखी लीला के काम से उसके मालिक इतना प्रसन्न थे कि उसकी...
जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां
आलेख

जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  ५/६ वर्ष से लेकर १२ वर्ष तक के बालक कृष्ण की रासलीला को कुतर्कों से लोगों को भ्रमित किया गया। १२/१३ वर्ष तक तो वे मथुरा चले गये, फिर कभी न लौटे। गोपियां तो गृहणियां थी, जो कृष्ण जी की मोहक मुरली के स्वर सुनकर दौड़ी आती थीं। संगीत प्रेमी वो भी‌ नन्हे बालक‌ के मुख‌ से, कौन न आतुर होगा सुनने को। एक को बीच में खड़ा करके आसपास नाचने गाने की परंपरा आज भी होली के दिनों में उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में दिखाई देती है। भारतीय शास्त्रों में गहरे दर्शन को केवल प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया गया‌ है। चैत्र की फसल आए या सावन का महिना हो, संगीत तो फूट ही पड़ता है व नर्तन गायन शुरू हो जाता है। बालक रुपी परमेश्वर धर्म संस्थापना के निमित्त धरती पर आए, तत्कालीन दिग्भ्रमित जनता के साथ खेलकूद करके, नृत्य गायन वादन करके सबको एकत्रित करते थे, ...