Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गद्य

संस्कार
लघुकथा

संस्कार

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** सम्पूर्ण समर्पण से अपने पति को प्यार करती थी दयावती। उसे तो उसके पति में ईश्वर नजर आता था। पति जब तक घर परिवार में रहा उसके साथ ठीक रहा, क्योंकि बड़े परिवार में अक्सर पति-पत्नी रात्रि विश्राम पर ही मिल सकते हैं।दो कमरे का घर और दस लोग। हर समय चहल-पहल शुरू रहती थी। एक बेटी हुई, वह भी सासू माँ के सपनों को तोड़कर, क्योंकि पोता होता फिर उसका पड़पोता होता वह सोने की निशनी चढ़ती। दयावती के पति की नौकरी बदली, बाहर नौकरी के लिए गया तब पत्नी को घर परिवार में रखा फिर ले गया फिर छोड़ गया। पारिवारिक कामकाज चलते रहते थे। बाहर रहते पड़ोसी की शादीशुदा लड़की से मन लगा बैठा। पड़ोसी की बेटी आगे की पढ़ाई के लिए मायके में रहती थी। वह साथ रहकर भी साथ नहीं थी, हर समय वह लड़की प्रताड़ना पर उतर आई थी। दयावती ने उस लड़की को समझाने की बहुत कोशिश की, पर...
२४ दिसम्बर : मोहम्मद रफ़ी की जयंती पर
आलेख

२४ दिसम्बर : मोहम्मद रफ़ी की जयंती पर

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** अपनी शख्सियत की खुशबू फैलाकर इस दुनिया से चला गया वो अपनी आवाज का जादू बिखेर कर हमारे दिलों में रह गया वो अपनी मधुर आवाज से अपनी अलग पहचान बनाने वाले भारतीय संगीत परंपरा एवं हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय एवं श्रेष्ठ पार्श्व गायकों में से एक थे मोहम्मद रफ़ी। आपका जन्म २४ दिसंबर १९२४ में पंजाब के अमृतसर जिले में सुल्तान कोटला सिंह गांव में हुआ था। जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा हुई थी। उनके परिवार का संगीत से कोई संबंध नहीं था। संगीत की ओर मोहम्मद रफ़ी का रुझान ७ वर्ष की उम्र में अपने गांव के एक फकीर के गाने को सुनकर हुआ था! रफी के संगीत उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवनलाल मट्टू एवं फिरोज निजामी थे। संगीतकार श्याम सुंदर के निर्देशन में १९४४ ईस्वी में रफ़ी ने पहली बार पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए गाया था। सन् १९४६ में वे मुंबई आ गए और संगीतका...
भीष्म प्रतिज्ञा
लघुकथा

भीष्म प्रतिज्ञा

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** सुंदर सलोनी सरल सुशीला धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। बचपन से उसके मन में देशभक्ति, देशप्रेम कूट-कूट भरा था। उसने हमेशा अपने बुजुर्गो से वीरों और वीरांगनाओं की गाथाएं सुनी थी जो उसके मन में रच बस गई थी। उम्र के साथ उसने अपने सपने में जोड़ लिया था, विवाह तो देश के सैनिक के साथ ही करेगी और वह ऐसी संतान को जन्म देगी जिससे देश का मान बढ़े। माता-पिता अपनी इकलौती बेटी को ऐसे घर में ब्याहना चाहते थे जहां बस बिटिया को सुख ही सुख हो। सुशीला सुशील थी, जानती थी कि माता पिता नहीं चाहते हैं लेकिन हर माता-पिता और लड़की इस तरह सोच रखेंगे तो देश के सैनिक की उम्मीद और फिर देश रक्षा के लिए सैनिक कैसे। बहुत कोशिश के बाद सैनिक परिवार में ही सुशीला का विवाह हुआ। तीन महीने की छुट्टी के बाद पति पुनः सीमा पर प्रस्थान कर रहा था ....... मिलकर प्रतिज्ञा हुई ...
संकल्प
कथा

संकल्प

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                               वीणा शहर के नामी विद्यालय की अध्यापिका थी। उसे अपने विद्यार्थियों को शहर के वृद्धाश्रम में ले जाना था। विद्यालय की महानिर्देशिका ने उसे बच्चों को लेके जाने से पहले वृद्धाश्रम जाकर मुआयना कर आने का निर्देश दिया। वहाँ पहुँच कर वीणा वृद्धाश्रम की मैनेजर श्रीमती सुशीला जी से मिली। सुशीला जी से विद्यार्थियों को लाने की बात कर ही रही थी तभी दरवाजे पर लाल रंग की ब्रीजा में से एक स्त्री की आवाज सुनाई दी जो चौकीदार से जल्दी दरवाजा खोलने को कह रही थी। देखते ही देखते वह गाड़ी उन दोनों के सामने आ खड़ी हुई। उसमें से एक दंपत्ति और एक बूढ़ी स्त्री उतरी। वो जरूर उस लड़के की माँ थी। उन्हें देख सुशीला ने वीणा से कहा ये एक आम नजारा है यहाँ का। अपने ही अपनों को छोड़ जाते हैं। आप यहीं रुकिए में थोड़ी देर में आई। वीणा ने देखा कि ल...
स्वाभिमान
कहानी

स्वाभिमान

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                           सीमा एक पढ़ी-लिखी बेटी थी, वह एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती थी। स्कूल के बच्चों की चहेती टीचर थी। बच्चे उसे बहुत प्यार करते थे। माता-पिता ने बहुत अच्छा लड़का देखकर उसकी शादी कर दी। माता-पिता को अपने बेटी पर पूर्ण विश्वास था, कि वह अपने ससुराल में सबका दिल जीत लेगी, और कुछ ऐसा काम नहीं करेगी, जिससे उसके स्वाभिमानको चोट पहुंचे। वह बहुत जल्दी अपने ससुराल में घुल मिल गयी। सब उसे प्यार करते थे, केवल छोटी नंनद को छोड़कर। नंनद रानी हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती, और ऐसा कार्य करती जिसेसे उसके अहम को ठेंस लगता, लेकिन वह परिवार में एका बना रहे, इसलिए रानी की बातों का बुरा नहीं मानती, हंसकर टाल देती थी। सीमा समझदार थी, वह जानती थी कि परिवार में रिश्तों को बनाए रखने के...
खुशी की चाहत
आलेख

खुशी की चाहत

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                                हर समय खुश रहना कौन नहीं चाहता! खुशी हमारी चाहत है! खुशी हमारी चाहना है पर सिर्फ चाहने से क्या होता है? खुशी को अपना नैसर्गिक स्वभाव बनाना होगा, यह कहना जितना आसान है, इस पर अमल करना उतना ही अधिक मुश्किल! जब बरसों से सँजोई अपेक्षायें कुछ ही समय में टूट जाये, अपनों से ही उपेक्षा, तिरस्कार मिले, बहुत मेहनत करने के बाद अपेक्षित सफलता न मिले या किसी स्वजन का साथ एकाएक छूट जाये तो ख़ुशी बरकरार रखने के लिये स्वयँ को अन्दर से मज़बूत कर इसे प्रभु की मर्ज़ी स्वीकार कर अपने अन्दर की खिलखिलाहट को फिर से बाहर लाना होगा। खुशी तो हमारे मन का एहसास है, भावनाओं की अभिव्यक्ति है। अपने ही सामर्थ्य के प्रति भ्रामक धारणा ववास्तविकता को स्वीकार न करने की प्रवर्ति खुशी की राह में सबसे बड़ी बाधा है कोई कभी ...
पड़ाव
लघुकथा

पड़ाव

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सरला बुआ आ रही है। बच्चों ने सारा घर सिर पर उठा रखा था। बच्चें हमेशा बुआ का इंतजार भगवान की तरह करते थे। करें भी क्यों ना? बुआ जब भी आती, बच्चों के लिए बहुत सा सामान लेकर आती। खिलौने, कपड़े, किताबें-कापी, पेंसिलें और कलर बॉक्स के डिब्बे। बुआ को हमारे घर की स्थिति का पूरा ज्ञान था। पापा मजदूरी करते थे। वह बड़े दब्बू-किस्म के इंसान थे। अगर उन्हें कोई थोड़ा सा भी झिड़क देता तो घर बैठ जाते थे काम छोड़कर। घर की कमजोर स्थिति भी उनसे छिपी ना थी। पूरा परिवार दया का पात्र था। पर पापा का दब्बूपन किसी से छुपा नहीं था। वह ढीले थे, काम इतना धीरे करते थे कि कोई भी मालिक उनसे खुश नहीं था। माँ उनके बिल्कुल विपरीत थी चुस्त-दुरुस्त। वह घर-घर जाकर सिलाई के कपड़े ले आती थी। बढ़िया सिलाई करती थी। नए-नए डिजाइन बनाती थी। आस पड़ोस के लोग उनके द्वारा सिले कपड़े...
पीढी का अंतर
लघुकथा

पीढी का अंतर

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** बेटी- माँ ! आज मैं ताऊजी को बुला रही हूँ, शाम को बैठकर सारा झगड़ा निपटा लेना। माँ- तुम अभी छोटी हो, इन बातों में दखल न ही दो तो अच्छा। बेटी- नहीं माँ ! अब बेटियाँ भी पढलिख कर इस लायक हो गई हैं कि अपनी राय दे। मैं एक बात कह रही हूँ आपसी, मारपीट से भी बुरी होती है शब्दों की लड़ाई, जो अंतहीन होती है, और वैमनस्य रखने वाले दोनों पक्षों की गरिमा को ठेस पहुँचाती है। दुर्भावना में कहे शब्द मनुष्य का कलेजा चीर देते हैं। बेटा- हाँ माँ दीदी ठीक कह रही है। जिनके लिये आप मकान के स्वामित्व की लड़ाई लड़ रही हैं, उसमें रहेगा कौन? हम दोनों ही पढने अमेरिका जा रहे हैं, पता नही बाद में वहीं बस जाऐ। बेटी- माँ, हम दोनों चाहते हैं कि आप और चाची मन को मलीन करने वाली शब्दों की लड़ाई बंद कर दे। हमें नहीं चाहिये ऐसा घर जो परिवार में दरार पैदा करें। और एक बात ब...
जीवन : एक यात्रा
आलेख

जीवन : एक यात्रा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मानव जीवन जिंदगी के विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए अपनी अंतिम यात्रा तक पहुंच कर खत्म होती है। परंतु यह विडंबना ही है कि इस यात्रा के किसी। भी पड़ाव पर आपको ठहरने की आजादी नहीं है। जीवन के हर पल में आपको अपनी सतत यात्रा जारी रखनी होती है। आपके हालात, परिस्थिति और समय कैसे भी हों, आपकी यात्रा जारी ही रहती है। आप खुश हैं, दुखी हैं, सुख में हैं या किसी परेशानी में है। आपकी अन्य गतिविधियां, क्रियाकलाप ठहर सकते हैं, मगर कभी ऐसा नहीं देखा गया कि जीवन यात्रा ग्रहों की तरह ही चलायमान है। संभवत ऐसा इसलिए भी है कि यह हमें प्रेरित करने, चलते रहने का सूत्र दे रहा है और हम उसे नजरअंदाज करने की कोशिश में भ्रम का शिकार बने बैठे हैं। यदि हमें अपनी जीवनयात्रा को सरल, सुगम और निर्विरोध बनाना है तो हमें बुराइयों से बचना होगा। ईर्ष्या, ...
क्या हम क्या हमारा
आलेख

क्या हम क्या हमारा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   यह विचारणीय तथ्य है मित्रों कि जब हमारा जन्म होता है तब हम वस्त्र विहीन होते हैं और जब आखिरी समय पर लाश चिता पर लिटाई जाती है तब भी जिस कफ़न से शरीर ढका जाता है वह कफ़न आग की लपटों में पहले ही जल जाता है और इंसान का शरीर फिर वस्त्र विहीन हो जाता है। अर्थात दुनिया में बिना लिबास के आए और बिना लिबास चलते बने फिर समझ नहीं आता कि सारी उम्र इंसान ये तमाशाई दुसाले ओढ़ कर आखिर किसको भरमाने की कोशिश करता है खुद को या औरों को ? ये गाड़ी, बंगला, धन, दौलत, गुरुर, घमंड, सोना, जवाहरात, जमीन, परिवार? जब तन को ढँके कपड़े भी पहले जले, धर्म-अधर्म, नीति-अनीति धन दौलत जतन-जतन कर पाई-पाई जोड़ी लड़ाई-झगड़ा भी किया। कोर्ट कचहरी थाना तहसीली दुनिया भर के स्वांग रचे इस धरती पर आकर तुम ने। पर क...
अबला नहीं सबला
लघुकथा

अबला नहीं सबला

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सोनी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। वह जोर-जोर से रोए जा रही थी। सभी इसका कारण जानना चाहते थे। पर वह चुपचाप आँसू बहा रही थी। रुखसाना इस दुनिया में होती तो अपनी लाडली को खुद ही संभाल लेती। पर जो चले जाते हैं वह देखने थोड़े ही आते हैं।सब जीते जी का झगड़ा है। मरने वाले का नाता इस संसार से तभी तक रहता है, जब तक तन में प्राण होता है। उसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं। मरने वाले की अंतिम यात्रा शुरू हो जाती है। यह सब बातें ग्रन्थों में लिखी है। और संत महात्मा भी ऐसा ही बताते हैं। कल ही एक प्रचारक कह रहा था कि मरने के बाद आत्मा अपनी दूसरी राह पर निकल जाती हैं। यह यात्रा हजारों वर्षों तक चलती रहती हैं। फिर आत्मा का हिसाब-किताब होता है। फिर दोबारा जन्म होता है। मैं भी क्या लेकर बैठ गई? यह धर्म- कर्म की बातें हैं। यह कोई समय है इन बातों को क...
वीराने में बहार
लघुकथा

वीराने में बहार

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                 नंदिता एक श्रेष्ठ शिक्षक का पर्याय बन चुकी थी। वह संस्कृत और हिंदी पढ़ाती थी। केवल उसके विषय के छात्र ही नहीं, अपितु पूरे विद्यालय के छात्र उसे पसंद करते थे और उसका सम्मान भी करते थे। स्टाफ का भी शायद ही कोई कर्मचारी ऐसा हो, जो उससे द्वेष रखता हो। विगत अठ्ठाईस वर्षों से नंदिता शिक्षक कर्म का निर्वहन पूर्ण समर्पण से कर रही थी। उसके चेहरे पर दिन की उजाले की हुकूमत थी, तो हृदय में मिठास का अखूट सोता प्रवहित रहता था। शायद इन्हीं विशेषताओं के फल स्वरूप उसने घर-बाहर अनगिनत लोगों को अपने व्यहवार का कायल बना लिया था। कई पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी नंदिता का नाम २६ जनवरी को महामहीम राष्ट्रपति के करकमलों से सम्मानित किये जाने वाले शिक्षकों की सूची में शामिल था। नंदिता ने दिवाल घड़ी की ओर ताँका, साढ़े चार बज रहे थे। वह विश्...
यारी दोस्ती…
लघुकथा

यारी दोस्ती…

अलका जैन (इंदौर) ******************** हलो दीपिका कैसी है तू? अरे वही रोने बुढ़ापे के, तबीयत खराब है, ओहो तबियत ठीक नहीं है। हां बोल तबियत ठीक नहीं है तो रहने दें आराम कर। में तो तेरे घर की तरफ आई थी, डॉक्टर को दिखा ने। मेरी भी तबियत ठीक नहीं है। मगर डॉक्टर के घर मोत हो गई तो वो चला गया। अरे तो तिलक नगर में ही है तो आ जाओ। तेरे तबियत ठीक नहीं है ना जैसे तेरी ठीक है। चल आ जा। मैं दरवाजा खोल देती हूं। ताले डाल रखे हैं। दिन में अरे हां, इतने कैसे सुनने को मिल रहे हैं, शहर में बुड्ढे बुढ़िया को मार। फिर मेरे पास तो बुड्ढा भी नहीं रहा। तीन लड़कियों है सो तीनों अमेरिका में है। यहां होती तो भी कहा मेरे पास होती अपनी अपनी ससुराल में होती। चल मैं आ गई तेरे घर, अरे दिपिका तेरा हाथ तो बहुत हिल रहा है... हां क्या करे बुढ़ापे में जो हो जाते वहीं कम कारण नहीं पूछा डॉक्टर से वहीं टेंशन तेरे जिजाजी को कै...
खेत-खलिहान : खेती बचाइए, किसान बचाइए, देश को खुशहाल बनाइए
आलेख

खेत-खलिहान : खेती बचाइए, किसान बचाइए, देश को खुशहाल बनाइए

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                    दुनियां में सबसे ज्यादा कीमत तीन चीजों की है- जमीन, कच्चे तेल और हथियारों की। इनमें से एक चीज किसान के पास है फ़िर भी किसान आत्महत्या की दर १०,००० प्रतिवर्ष से अधिक है। एक दुकानदार, व्यापारी या व्यवसायी के पास अगर ५० लाख का माल दुकान में भरा है तो वो महीने का ५० हज़ार तो कम से कम कमा ही लेता है। जबकि भारत में ७-१० बीघा जमीन की कीमत भी इस से ज्यादा होती है और उतनी जमीन में ५० हज़ार महीना मतलब ६ लाख सालाना की बचत नहीं होती। बचत छोड़ो ४-५ बीघा वाले किसान को छोटा किसान समझा जाता है। ४-५ बीघा खेत वाला किसान अपने बच्चे को किसी अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा सकता, बीमार हो जाने पर अच्छा इलाज नहीं करवा सकता है, और न ही अच्छे कपड़े आदि खरीद सकता है। उसका खर्च मुश्किल से चलता है। वह देश की अर्थव्यवस्था के ...
अजर-अमर
लघुकथा

अजर-अमर

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** साधु राम नहीं रहे। सोनू का फोन सुबह ही आया था। मैं हैरान रह गया था। क्या बीमार थे, साधु राम जी? मैंने सोनू से पूछा। नहीं ऐसी कोई खास बात तो नहीं थी। आप तो जानते ही हो, सत्तर की उम्र में भी कितने फिट रहते थे? सुबह चार बजे ही सैर के लिए निकल जाते थे। पूरे दो घंटे बाद लौटते थे। इतनी लंबी सैर वही कर सकते थे। तभी तो उनकी रंगत गुलाब सी खिली रहती थी। एक दिन मुझें भी ले गए थे अपने साथ। मैंने तो कान पकड़ लिए थे। इतनी लंबी सैर भी कोई करता है। कहीं रुकने का नाम ही नहीं लेते थे। रुकते भी थे तो नीम की दातुन तोड़ने के लिए। नीम के पत्ते तो ऐसे चबाते थे जैसे बेर खा रहे हो। खूब चबा-चबा कर खाते थे। कड़वाहट का तो नामो निशान भी नहीं था, उनके गुलाबी चेहरे पर। मुझें भी दो-चार पत्ते पकड़ा दिए करते थे चबाने के लिए। ना चाहते हुए भी चबाने पड़ते थे। मेरा मुँह इत...
राजनीति की गँगा-कितनी मैली और विषैली
आलेख

राजनीति की गँगा-कितनी मैली और विषैली

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                                 आखिर राजनीति में ये सब क्या हो रहा है, राजनीति की गंगा कितनी मैली और विषैली हो गई है। अपने को दूसरों से अलग बताने वाली भाजपा अब अलग नहीं रही, सब दल सत्ता को किसी भी तरह हथियाने के चक्कर में गहरे दलदल का रूप ले चुके हैं, बाहर कोई नहीं निकल पा रहा, हर बार नैतिकता कोसों दूर खड़ी आँसू बहाती रह जाती है। भाजपा व उसके साथी दल जैसे तैसे बिहार में सत्ता में आ तो गए, बड़े सोच विचार के बाद बने १४ सदस्यी मंत्री मंडल में ९ पर तो आपराधिक मामले दर्ज मिले, बेचारे, शिक्षा मंत्री मेवालाल जी सत्ता का मेवा कुछ घँटे ही चख पाये, पुराने घोटाले जो उन्होंने कुलपति रहने के दौरान किये थे, को विपक्षी दलों के उजागर करने पर त्यागपत्र दे बाहर हो गए। देश की राजनीति में अपराधियों का बढ़ता वर्चस्व चिंता का विषय तो ह...
लापरवाही
लघुकथा

लापरवाही

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** रमा आज बहुत परेशान है। भारत वर्ष ही नहीं विश्व के कई देश कोरोना के शिकार हैं। जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इस समस्या से पीड़ित है। इसको दूर करने के अनेक प्रयास किये जा रहे हैं परन्तु अभी कोरोना समाप्त करने में सफलता नहीं प्राप्त हो पाई है, फिर भी उसके बच्चे उसकी चिंता करने पर खूब हँसी उड़ा रहे हैं। आखिर वह झल्ला कर बोल पड़ी, "बच्चों तुम समझते क्यों नहीं? अत्यंत आवश्यक कार्य के अतिरिक्त बाहर न जाने की अपील प्रधानमंत्री, डॉक्टर एवं प्रशासन सभी कर रहे हैं जिससे सड़कों पर भीड़ कम हो और इसके कीटाणु फैलने न पायें। मस्ती, घूमने-फिरने से कभी रोका तो नहीं मैंने, ये सब तो कुछ दिनों बाद फिर हो सकता है किन्तु लापरवाही में अपनी प्राण संकट में डालना कहाँ की समझदारी या बहादुरी है। दोस्तों से फोन पर बात कर लो। कुछ दिन नहीं मिलोगे तो क्या बिगड़ जाएगा?" कुछ देर सँभल क...
नवरात्रि उत्सव
आलेख

नवरात्रि उत्सव

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** हमारे क्षेत्र का नवरात्रि का उत्सव श्रद्धा, आस्था और उपासना के रंग में सरोबार रहता है। मध्यप्रदेश में देवास जिले में एक छोटा सा हमारा गाँव मोखापीपल्या है। वहाँ की कुलदेवी माँ अम्बा है। हम अम्बे माता कहते है। नवरात्रि के नौ दिन वहाँ धूप होती हैं जिसे ज्योत धूप कहते है। नवमी शाम और दशहरा की सुबह धाया पाठ की बैठक होती हैं। धाया पाठ नवरात्रि के नौ दिन होने के बाद भगवान की विदाई को कहते है। इसे संस्कृत में उत्तरार्ध कहते हैं। परिवार में सात पीढ़ी का वरदान है, ईश्वर आप के द्वारे आयेंगे। ऐसी मान्यता है कि ये जोड़ी के रूप में आते हैं, जिन्हे भीलट और कवाजा नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर दो पाटों को पूजा जाता हैं जिन्हें थानक कहते हैं। इनकी सवारी किसी व्यक्ति पर आती है। सभी भक्ति भाव भेंट द्वारा उन्हें संतुष्ट करते हैं। बहुत ही श्रद्धामय वातावरण ह...
गुरु तेगबहादुर, कश्मीर और सेना (२४ नवंबर बलिदान दिवस विशेष)
आलेख

गुरु तेगबहादुर, कश्मीर और सेना (२४ नवंबर बलिदान दिवस विशेष)

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) **********************                                               सनातन धर्म की रक्षा में गुरुओं के बलिदानों का विशेष स्थान है, उनके पराक्रम व बलिदानों से बहुत हद तक सनातन धर्म की रक्षा सुनिश्चित हुई। औरंगजेब का शासन था, उसके दरबार में एक कश्मीरी पंडित प्रतिदिन उसे गीता के श्लोक सुनाता था, एक बार उसकी तबियत खराब थी, उसने अपने पुत्र को दरबार में श्लोक पढ़ने भेजा। किन्तु वह उसे बताना भूल गया था कि कौनसे श्लोक दरबार में नही पढ़ना। पुत्र ने औरंगजेब को गीता के सारे श्लोक अर्थ सहित पढ़कर सुनाए। गीता के श्लोकों को सुनकर औरंगजेब बोखला गया वह इस्लाम को ही सर्वश्रेष्ठ मानता था गीता के श्लोकों से उसका यह भ्रम टूट गया था और उसे यह आभास हो गया था कि सनातन धर्म मैं ऐसे कई ग्रंथ व धार्मिक साहित्य है जो हिंदुओं को अपने धर्म पर अडिग रहने के लिए प्रेरित करता है। यह ज...
जिम्मेदारी
कहानी

जिम्मेदारी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** घर पर खुशियों का माहौल था। सभी ओर से बधाई मिल रही थी। रमेश और सुरेश ने अपनी माँ का नाम रोशन कर दिया था। उनकी सफलता का श्रेय उनकी माँ को जाता था। आरती देवी स्वभाव से बड़ी ही शान्त थी। वह बच्चों की सफलता का श्रेय उनकी मेहनत को ही देती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। बच्चे अपनी सफलता पर बेहद खुश थे। प्रतिदिन माँ के चरण छू कर अपने काम शुरू करते थे। आरती भी खुद को धन्य समझती थी।बिना पिता के बच्चे का पालन-पोषण करना कौन सा आसान काम था?वह अपने मालिक जय सिंह का धन्यवाद करती नहीं थकती थी। जयसिंह बड़े आदमी थे। उनका भरा-पूरा परिवार था। सुंदर पत्नी, बाल-बच्चे। वह कई कारखानों के मालिक थे। वह कमजोर तथा गरीबो की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहते थे। आरती का पति भी इनके कारखाने में काम करता था। उसने कभी पति का सुख नहीं देखा था। अपने घर पर भी घोर गरीबी देखी थी।...
किस्मत से समझोता
कहानी

किस्मत से समझोता

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                               आज सुबह उठते ही नितिशा के हाथों की हरी चूड़ियाँ खनखना गईं। चूड़ियों को देख उसे याद आया कि कल उसकी शादी है। न जाने क्यूँ उसे बार-बार लग रहा था कि मम्मी से कह दे कि उसे शादी नहीं करनी है। नितिशा ने उसकी सहेली शुचि को फोन लगा कर कहा। शुचि ने समझाया कि टेंशन न ले। हर लड़की को शादी से पहले टेंशन होता ही है। नितिशा के पापा न होने से सारा भार उसकी मम्मी के कंधे पर था। शायद नितिशा को टेंशन मम्मी को छोड़ सीधे अमरीका जाना था। और आज नितिशा शादी का जोड़ा पहन अपने ससुराल जाने को भारी मन से तैयार थी। वह अपना सब कुछ छोड़ एक अनजान आदमी के साथ उसके घर में, उसके घर को अपना घर कहने, उसकी माँ को अपनी माँ जैसा आदर देने जा रही थी। जाते जाते उसने माँ की तरफ देखा तो माँ ने समझाया बेटा यही जीवन की रीत है। हर लड़की को शादी कर पराया होन...
महापर्व दीपावली पर सब मिलकर धरा के तिमिर को दूर करें
आलेख

महापर्व दीपावली पर सब मिलकर धरा के तिमिर को दूर करें

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ जहां कहीं एकता अखंडित, जहां प्रेम का स्वर है। देश-देश में वहां खड़ा, भारत जीवित भास्वर है।। कविवर श्रेष्ठ दिनकर जी की पंक्तियां 'एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है।' सम्पूर्ण विश्व में भारत का एक अनुपम और अनूठा स्थान है, तो इसका बहुत सा श्रेय यहां की कालजई सभ्यता व संस्कृति का है, को प्राकृतिक रूप से हम सभी में विद्यमान है। प्रकृति की ही देन सारा विश्व है। भारत प्राकृतिक एवं भौगोलिक सुन्दरता को दृष्टि से विश्व का अनोखा और अद्भुत राष्ट्र है। लोक संस्कृति के सामाजिक पक्ष में त्योहार, रीति-रिवाजों, लोक प्रथाओं, सामाजिक मान्यताओं, मनोविनोद के साधनों की बहुलता व विविधता से हमारा भारतीय समाज ओत प्रोत है। किसी भी समाज या राष्ट्र के परिष्कार की सुदीर्घ परंपरा होती है। उस परंपरा में प्रचलित उन्नत, उदात्त व उत्तम विचारों की श्र...
बाय-बाय ट्रम्प
व्यंग्य

बाय-बाय ट्रम्प

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ! एक दम सही पढ़ा आपने दुनिया के सर्व शक्तिशाली शख्स का तमगा अपनी छाती पर लादकर बाइडेन अब व्हाइट हाउस की गद्दी में बैठने जा रहे हैं। सर्वशक्तिशाली देशों की सूची में ओहदा रखने वाले अमेरिका को नया राष्ट्रपति बाइडेन के रूप में मिल गया है। वैसे अमेरिका के नये राष्ट्रपति के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं होंगी जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और इसका सबसे ज्यादा शिकार अमेरिका ही हुआ है, अमेरिका जैसे देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, लाखों लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में देखना यह भी होगा कि इन सभी हालातों से बाइडेन कैसे निबटते हैं। बहरहाल उगते सूरज को सलाम करने की हमारी सनातनी परम्परा रही है और आगे भी रहेगी। हमारे हिन्दुस्तान में उगते सूरज को सलाम करने के लिए इस समय देश की महनीय कुर्सी पर दो गुजराती भाऊ बैठे हैं और गुजराती भाऊ बिजनेस औ...
नैतिकता-अनैतिकता
आलेख

नैतिकता-अनैतिकता

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** “बना-बना के दुनिया फिर से मिटाई जाती है जरुर हम में ही कोई कमी पाई जाती है!" नैतिकता क्या होती हैं और अनैतिकता क्या होती हैं? यह प्रश्न अक्सर अनेकों को संभ्रमित करता रहता हैं। नैतिकता के मापदंड क्या होते हैं? रोजमर्रा के व्यवहार में उसका क्या महत्व होता हैं? व्यवहार में कहाँ तक हम इन बातों का विचार कर सकते हैं? या इन बातों का कितना महत्व होना चाहियें या नैतिकता को हम कितना सहन कर सकते हैं? या अनैतिकता हमें कितना प्रभावित या परेशान कर सकती हैं? समाज में व्यक्ति की एक दूसरे से नैतिकता की कितनी और क्या अपेक्षाएं रहती हैं? या नैतिकता और अनैतिकता की ओर देखने का हर एक का द्रष्टिकोण कैसा होना चाहियें? धर्म, संस्कार, प्रथा और परम्पराएं इनका नैतिकता से क्या सम्बन्ध हैं? नैतिकता सिर्फ धर्म पालन के लिए ही होती हैं क्या? नैतिकता का मूल्यमापन कैसे हो? औ...
शोर
लघुकथा

शोर

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   बाहर हर तरफ सन्नाटे का राज था और बुजुर्ग दद्दा के मन के अंदर बहुत शोर तथा कोलाहल था। "राज ...बे ..टा। जरा ...इधर आना, जरुरी काम है।" खाँसते-खाँसते दद्दा ने वाक्य पूरा किया। दद्दा ने पास आए पोते राज के कान में कुछ कहा। उनके झुर्रियों भरे चेहरे पर जड़ी वीरान आँखें राज को याचना की दृष्टि से देखने लगी। शशीन्द्र रोज आफिस जाने से पहले और आने के बाद अपने अठ्ठानवे वर्षीय बीमार पिता को कमरे में देखने आता था। बीच-बीच में उन्हें जरुरत की चीजें मुहैया कराने का काम बीवी और बच्चों के जिम्मे कर रखा था। आज शाम जब शशीन्द्र दद्दा से मिलने आया, उसे बीड़ी की दुर्गंध का भान हुआ। उसने पलंग के सिरहाने जाकर लठकते तकिये को ठीक किया। कोई वस्तु नीचे गिरी, ऐसा लगा उसे। "राज। ओ... रा..ज। कहाँ हो तुम? एक मिनिट के अंदर दद्दू के कमरे में आ ज...