Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

व्यंग्य

ईश्वर के नाम पत्र
व्यंग्य

ईश्वर के नाम पत्र

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवीय मूल्यों का पूर्णतया अनुसरण करते हुए यह पत्र लिखने बैठा तो सोचा कि सच्चाई भी लिखता चलूं। उससे भी पहले अपने स्वभाव की औपचारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरी तरह स्वार्थवश आपके चरणों में दिखावटी शीष भी झुका रहा हूँ, ताकि आप कुपित होकर भी मेरा अनिष्ट करने की सोचो भी मत। क्योंकि आप मानव तो हो नहीं, ये अलग बात है कि प्रभु जी आज भी पुरानी विचारधारा में मस्त हो।अरे अपने कथित महल/कुटिया/धाम से बाहर निकलिए, तब देखि कि दुनियां और हम मानव कहाँ तक पहुंच गये हैं, कितना विकास कर लिया है। मगर सबसे पहले एक मुफ्त की सलाह है कि बस अब लगे हाथ एक एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लीजिए, बैठे सारी दुनियां का समाचार लीजिए, कुछ चैट शैट कीजिये, अपनी एक यूट्यब चैनल बनाइए, पलक क्षपकते ही किसी से बातें करिए। कारण कि अब पत्र लिखना भी छूट...
कबाड़ी किंग
व्यंग्य

कबाड़ी किंग

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कबाड़ी वाला और व्यंग। सुनने में बड़ा अटपटा लगता है। कबाड़ में तो कचरे की भरमार रहती है। कचरे से व्यंग का उत्पादन सचमुच बड़ा ही विस्मयकारी है। इधर कबाड़ी वालों की देश में भरमार है। सोचता हूं यदि हिंदुस्तान में कबाड़ वाले नहीं होते तो अटालों का क्या होता है? पूरे देश का अटाला सड़कों पर जमा हो जाता। कुछ लोग जो अटाले को घरों में बड़े करीने से सजाकर रखते हैं। कबाड़ हमेशा कबाड़ नहीं रहता। यदि किस्मत बल्लियों मचले तो कबाड़ भी एंटीक की कैटेगरी में आ जाता है। कबाड़ने कितने ही कावड़ियों की लाइफ बना दी। मतलब जो सड़क छाप थे आज राजमार्ग पर फराटे दार अंग्रेजी में बतिया रहे हैं। हमारे शहर का एक कबाड़ी तो रातों रात लखपति की श्रेणी में आ गये। कावड़ची चाची बेगम के दिन इतनी जल्दी बदल गए। पूरे शहर के कबाड़ी उससे जलने लगे। शायद घूड़े के दिन भी इतनी ज...
लेखक की आत्मा
व्यंग्य

लेखक की आत्मा

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पसीने से तर-बतर, लस्त पस्त से यमराज भगवान विष्णु को प्रणाम कर नतमुख खड़े हो गए। "वत्स यम, आज इतने थके और उदास क्यों लग रहे हो?" "भगवान, इस सेवक को अब आप सेवामुक्त करें। बहुत दौड़ लिया। अब नहीं दौड़ा जाता"- कहते कहते यमराज का कंठ अवरुद्ध हो गया। "ऐसी भी क्या बात है यम? जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तुम अपना काम पूरी निष्ठा और लगन से कर रहे हो। अब क्या हो गया?इतने घबराए और निराश क्यो हो? सेवा समाप्त करने से समस्या का हल नहीं निकल पाएगा।" पांव पकड़ लिए यमराज ने। "निश्चिंत होकर कहो क्या कष्ट है? संकोच मत करो।" यमराज ने हिम्मत जुटाई। करबद्ध हो बोले- "भगवन्, आपने मुझे एक वृद्ध लेखक की आत्मा लेने भेजा था।" "हां हमें याद है। परिवार वाले उससे तंग आ चुके हैं। उम्र भी पिचानवें साल है। बहू बेटे रोज मंदिर में दीपक जलाकर प्रार्थना करते है...
सोच हमारी संस्कृति पर भारी
व्यंग्य

सोच हमारी संस्कृति पर भारी

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** हमारा देश बहुत कमाल का देश है। हमारी एक ख़ासियत है कि जो कुछ स्वदेशी है हमने उससे हमेशा नफरत की है और जो कुछ विदेशी है उसे बेइन्तहां प्यार करते हैं। हमें तो बेहूदगी और बेशर्मी भी प्यारी है, बस शर्त यह है कि वे विदेशी हों। अपने देश की तो सादगी भी वाहियात लगती है। हमारे यहाँ महान ऋषि-मुनि हुए, हमें वे फूटी आँख नहीं सुहाते, हम उनसे नफ़रत करते हैं। नैतिकता, भाईचारा, अपनापन, बड़ों का आदर, नारियों का सम्मान ये सारी सीख हमारे पूर्वजों की देन है। लेकिन हम इन सारी अच्छाइयों को दकियानूसी समझकर नफ़रत करते हैं और पूरा ध्यान रखते हैं कि कहीं हमारे बच्चे ये बहियात बातें सीख न जाएँ? हम कितनी उच्चकोटि की निम्न मानसिकता से ग्रस्त हैं कि 'लिव इन रिलेशन' और 'समलैंगिकता' जैसी वाहियात विचारधारा को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन करते हैं। संस्कृत और हिंदी भा...
पौष्टिक आहार पर कोरोना की मार
व्यंग्य

पौष्टिक आहार पर कोरोना की मार

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** कोरोना क्या आया दुनिया की सूरत बदल गई। प्राणवान तो इस महामारी से त्रस्त हैं ही लेकिन प्राणहीन भी कम त्रस्त नहीं हैं। मेरे घर में अनवरत रूप से एक अखबार आता है। कोरोना से पहले बड़ा हृष्ट-पुष्ट था। किसी अच्छे खाते-पीते घर का लगता था। काफ़ी वजनी होता था। पेजों की भरमार होती थी। हालांकि उनमें वजन ही होता था पढ़ने लायक समाचार तो एक-आध पेज पर ही होते थे। बलात्कार की चटपटी खबर, हत्याओं की सनसनीखेज खबरों को देखकर ऐसा अनुभव होता था जैसे ये सारी बारदातें इसी अखबार ने की हैं? इतना बारीक विश्लेषण तो खुद बलात्कारी और हत्यारा भी नहीं कर पाता जितना बारीक़ विश्लेषण अखबार करता है। कोरोना से पहले अख़बार बहुत ऊर्जावान लगता था। विज्ञापनों की पौष्टिक ख़ुराक़ जमकर मिलती थी। कभी-कभी तो ख़ुराक़ इतनी अधिक होती थी कि पढनेवालों को अपच के कारण दस्त लग जाते थे लेकिन अखबार की ...
कवि और चप्पल
व्यंग्य

कवि और चप्पल

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   एक कवि मित्र ने स्व प्रयासों से जैसे-तैसे कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मैं भी निमंत्रित था। मंचीय स्टेज पर चढ़ने से पूर्व चरण पादुकाएं नीचे एक ओर व्यवस्थित रख दी थी। सम्मेलन निपटाकर ज्यों ही चप्पलें ढूंठी, नहीं मिली। सारा पांडाल खगांल मारा। किन्तु चप्पलों का नामों निशान तक न था। हडकंप मच गया कि चोरल वाले कवि महोदय की चप्पलें चोरी चली गयीं। मेरे लिए बिना चप्पलों के एक पग चलना भी दूभर हो रहा था। नंगे पैर घर कैसे जाता? कवि मित्र से प्रार्थना की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करें। उन्होंने बहुत देर तक विचार किया परन्तु कोई युक्ती नहीं निकली। रात्री के तीन बजे चप्पलों की दुकान कहां खोजते? अन्य कवि मित्रों ने आयोजक कवि मित्र पर दबाव बनाया की मानदेय भले न दें, लेकिन कवि महोदय की चप्पलों की व्यवस्था तो करें। आयोजक कवि मित्र मान...
बाय-बाय ट्रम्प
व्यंग्य

बाय-बाय ट्रम्प

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ! एक दम सही पढ़ा आपने दुनिया के सर्व शक्तिशाली शख्स का तमगा अपनी छाती पर लादकर बाइडेन अब व्हाइट हाउस की गद्दी में बैठने जा रहे हैं। सर्वशक्तिशाली देशों की सूची में ओहदा रखने वाले अमेरिका को नया राष्ट्रपति बाइडेन के रूप में मिल गया है। वैसे अमेरिका के नये राष्ट्रपति के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं होंगी जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और इसका सबसे ज्यादा शिकार अमेरिका ही हुआ है, अमेरिका जैसे देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, लाखों लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में देखना यह भी होगा कि इन सभी हालातों से बाइडेन कैसे निबटते हैं। बहरहाल उगते सूरज को सलाम करने की हमारी सनातनी परम्परा रही है और आगे भी रहेगी। हमारे हिन्दुस्तान में उगते सूरज को सलाम करने के लिए इस समय देश की महनीय कुर्सी पर दो गुजराती भाऊ बैठे हैं और गुजराती भाऊ बिजनेस औ...
गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ
व्यंग्य

गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   भारत ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर गोपियों का महत्व और वर्चस्व सदा से कायम रहा है और आगे भी रहेगा! सतयुग, त्रेता, द्वापरयुग से लेकर आज तक गोपियों के महत्व में कोई परिवर्तन नहीं है! पहले गोपियाँ पनघट में पानी भरते पायी जाती थीं, सावन में झूले झूलती पायी जाती थीं! बाग बगीचों में आपस में हास, परिहास, इठलाती, बलखाती पायी जाती थीं, तब नटखट नंदलाला इनको छेंड़ा करता था और ये हंसी खुशी छिंड़ जाया करती थीं! नंदलाला से छिड़ंकर ये इठलाया करती थीं! कहते हैं समय बड़ा ही परिवर्तनशील और परिवर्तन भरे दौर में इन गोपियों में भी भयंकर परिवर्तन आया है, अब गोपियों के हाथ में एंड्रायड मोबाइल है और ये गोपियाँ फेसबुक पर पायी जा रही हैं! स्वयं छिड़ने के बजाय अब तो फेसबुक पर खुलेआम, नंदलाला...
१००८ कोरोनानंद जी महाराज
व्यंग्य

१००८ कोरोनानंद जी महाराज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** नमस्कार दोस्तों, सबसे पहले शुभकामनाओं की एक खेप स्वीकार कर लीजिए। ज्यादा उलझने की जरूरत नहीं है कि शुभकामनाऔं का ये झोंका आखिर किस पुण्य प्रताप के फलस्वरूप आप को दुर्भाग्यवश अरे नहीं-नहीं भाई सौभाग्य का पारितोषिक प्रसाद स्वरूप आपको सुशोभित हो रहा है। कुछ समझ में आया हो तो बता ही डालिए, ताकि शुभकामनाओं का एक और गुच्छा मैं आपकी ओर अबिलम्ब उछाल दूँ। नहीं समझ में आया तो भी कोई बात नहीं है, निराश होने की जरूरत नहीं है आपको फ्री में एक शुभकामना दे ही देता हूँ। हाँ तो बात शुभकामनाओं की चल रही थी। सबसे पहले मैं आपको शुभकामनाओं के साथ बता दूँ कि मेरी शुभकामनाएं एकदम नये किस्म की हैं जिसमें दिल का कोई कनेक्शन ही नहीं है। आजकल शुभकामनाओं का रोग बेहिसाब बढ़ गया है, इतना बढ़ गया है बेचारा कोरोना भी खौफ में है। यही नहीं गुस्से में भ...
मख्खनबाजी और बेईमानी आवश्यक है भाई!
व्यंग्य

मख्खनबाजी और बेईमानी आवश्यक है भाई!

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ ! बिलकुल सही पढ़ा है आपने! खुद के द्वारा किए गए एक शोध से यह कहने में मुझे कोई गुरेज नही कि यह दुनिया सिर्फ और सिर्फ मख्खनबाजी और बेईमानी की बुनियाद पर टिकी हुई है! दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति में मख्खनबाजी और बेईमानी का गुण विद्यमान है चाहे वह नर हो या नारी! मैं तो यह बात भी दावे के साथ कह रहा हूँ कि यदि मख्खनबाजी और बेईमानी का रास्ता छोड़ दिया जाए तो दुनिया जैसी चल रही है वैसे चल ही नहीं पाएगी! मख्खनबाजी और बेईमानी की राह छोड़ देने से सब तहस-नहस हो जाएगा! रिश्ते नाते खत्म हो जाएंगे! मख्खनबाजी और बेईमानी छोड़ देने से आपसी प्रेम और भाईचारा खत्म हो जाएगा! आपने कभी सोचा है कि एक औरत अपने पति के बारे में जो सोचती है वह कह ही नहीं सकती या एक पति अपने पत्नी के बारे में जो सोचता है वह कहता ही नहीं जीवन पर्यन्त क्यों ? क...
जान है तो जहान है
व्यंग्य

जान है तो जहान है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************  वर्तमान फेसबुक, वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम ने टीवी, वीडियो गेम्स, रेडियो आदि को लॉकडाउन में चाहने लगे। कहने का मतलब है की दिन औऱ रात इसमे ही लगे रहते है। यदि घर पर मेहमान आते और वो आपसे कुछ कह रहे। मगर लोगो का ध्यान बस फेसबुक, वाट्सअप पर जवाब देने में और उनकी समझाइश में ही बीत जाता। मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते है। घर के काम तो पिछड़ ही रहे।फेसबुक, वाट्सअप का चस्का ऐसा की यदि रोजाना सुबह शाम आपने राम-राम या गुड़ मोर्निंग नही की तो नाराजगी। इसका भ्रम हर एक को ऐसा महसूस होता कि-मैं ही ज्यादा होशियार हूँ। अत्याधिक ज्ञान हो जाने का भ्रम चाहे वो फेंक खबर हो। उसका प्रचार भले ही खाना समय पर ना खाएं किन्तु खबर एक दूसरे को पहुंचाना परम कर्तव्य समझते है। पड़ोसी औऱ रिश्तेदार अनजाने हो जाते। मगर क्या कहे भाई इन्हें तो बस दूर के ...
स्वर्ग से सुंदर भोले का मोहल्ला
व्यंग्य

स्वर्ग से सुंदर भोले का मोहल्ला

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** देश ही नहीं अपितु विदेशों तक प्रसिद्ध भोले के मोहल्ले के सुंदरीकरण और विकास की गाथा अपरंपार है आइए आपको भोले के मोहल्ले से अवगत कराते हैं, टूटी फूटी गड्ढों से परिपूर्ण ज्यादातर गलियां और, थर्ड क्लास के मेटेरियल का प्रयोग, भोले की मोहल्ले की विशेषताएं है। गलियां और सड़कें इतने मजबूत है कि आप चाहे तो विमान भी यहां उतार सकते हैं, बारिश से उत्पन्न कीचड़ गंदी छींटे कभी लोगों का तो कभी बाइक और कारों की शोभा बढ़ाती हैं, यहां के गडर और सीवर ,पानी की पाइप लाइन में प्रयोग की गई सामग्री इतनी मजबूत है की, अंतरराष्ट्रीय लेवल के इंजीनियर यह देखने आते हैं कि इतना मजबूत और टिकाऊ मटेरियल कहां से और कैसे प्राप्त हुआ जो कि पूरी जिंदगी भर खराब नहीं होगी। भिन्न-भिन्न पार्को का निर्माण जो आज तक नहीं हुआ उसे देख कर मन इतना प्रसन्न होता है कि व्याख्य...
पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती
कविता, व्यंग्य

पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती

डाॅ. हीरा इन्दौरी इंदौर म.प्र. ******************** ।।हजल।। करी पत्नी से भी यूँ बेतकल्लुफ दोस्ती मैंने। कहा उसने गधा मुझको कहा उसको गधी मैंने।। बहुत बेले हैं पापङ तेरी खातिर जिंदगी मैंने। कभी लेने गया तेल और कभी बेचा है घी मैने।। सरे बाजार चप्पल लात जूते से हुआ स्वागत। समझकर हिजँङा महिला की सारी खेंच ली मैंने।। तेरे गम में बढाकर मूँछ दाढी कुछ ही दिन पहले। बना रक्खा था अपने आपको सरदारजी मैने।। कभी खाना पकाता हूँ कभी बच्चे खिलाता हूँ। क्लर्की उसने पाई घर में कर ली नौकरी मैने।। मेरा पैसा तुम्हारा रूप अक्सर काम आया है। रकीबों को जलाया है कभी तुमने कभी मैंने।। रफीकों की तरह पेश आता है अपने रकीबों से। नहीं देखा कहीं "हीरा" के जैसा आदमी मैने।। . परिचय :-  डाॅ. राधेश्याम गोयल, प्रचलित नाम डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद...
ज़िन्दगी की हकीकत
व्यंग्य

ज़िन्दगी की हकीकत

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** असमंजस में कट रही है जिंदगी खुदपे करूं यकीन या दुनिया को गलत समझूं। बड़ी बेरहम है दुनिया समझ नही आता मैं खुदको बचाऊँ या गैरो का साथ दूं। हर दिन हो रहा है गुनाह हाथों से मेरे में खुदको आजकल बड़ा समझने लगा हूँ। क्या हक है मुझे किसी का दिल दुखाने का क्या मेरे अंदर इंसानियत नही है। अकेला था तो खुश था शामिल हुए कुछ और तो ज़िम्मेदारी का सफर शुरू हुआ। जितनी भी ली सुविधा उतनी हुई दुविधा क्या इरादे मेरे नेक नही थे या में काबिल नही था। बड़े यकीन के साथ निकलता हूँ घर से की आऊंगा लेकर सबका सामान। उम्मीदों और ख्वाइशों से भरा पड़ा है मेरा मकान नही देखना उनको मेरी थकान। आजमाने चला हूँ मै उनको आजकल जो पीठ पीछे मुझे कुछ मानते ही नही। और तारीफें कर रहे है वो मेरी जमाने भर में जो मुझे कभी जानते ही नही। क्या दुनिया है ये जिसको देखो वो अपन...
शुकुलाईन का फेसबुकिया साहित्य प्रेम
व्यंग्य

शुकुलाईन का फेसबुकिया साहित्य प्रेम

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यूँ तो शुकुलाईन अपने शहर की जानी पहचानी फेसबुक यूजर हैं, शुकुलाईन के शहर के बिगड़े नवाब, लफंगे लुच्चे, टुच्चे, पनवाड़ीे से लेकर धोबी तक सभी शुकुलाईन की फेसबुक मित्र सूची में हैं, शुकुलाईन की हर फेसबुक पोस्ट पर यह सभी लोग लव रियेक्ट कर खुद का जीवन सफल मानते हैं। वहीं शुकुलाईन भी इतनी संख्या में फेसबुक पोस्ट पर लव रिएक्ट पाकर खुद को गौरान्वित महसूस करती हैं, ना जाने कितने ही फेसबुक समूहों में अपनी द्विअर्थी संवाद से परिपूर्ण टिप्पणी एवं पोस्ट को लेकर निकम्मे, निठल्ले और "फुरसतिए टाइप" के लड़कों के मध्य शुकुलाईन कौतूहल का विषय बनी हुई हैं। फेसबुक का इतिहास इस बात की गवाही देने से साफ मुकर गया है कि आज दिनांक तक शुकुलाईन ने कोई तरीके की या यूँ कहें कि सार्थक (पढ़ने योग्य) एकाध पंक्ति भी फेसबुक पर लिखी हो!! बवाल और भसड़ मचाने वाली फेस...
धन तेरस… हो मन तेरस…
कविता, व्यंग्य

धन तेरस… हो मन तेरस…

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** धनतेरस धनवान बने, धन बरसे, ना मन तरसे। सभी भुभेच्छा यही आज, देता सारा सकल समाज।। किंतु ...! मेरे कवि ह्रदय ने नया पर्व का नाम दिया .... मनतेरस। धन तेरस .. हो..जन तेरस ..हो मन तेरस ..।। मनतेरस का पर्व मनायें हम सब। दुखिया के घर खुशियां लायें हम सब।।.... जिनकी आंखों में सागर तैर रहे। हाय वेदना उनकी हर जायें हम सब।।... जिनके घर दीपक घी के जार रहे, भूखे तक कुछ तेल पहुंचायें हम सब।।... जिन्हें दरिद्रता ने अभिषापित कर डाला, गहरे घावो तक मरहम दे आयें हम सब।।... त्योहारों को जो सीमा पर मना रहे, उनकी यश गाथा को गायें, हम सब।।... धनतेरस का मतलब शायद जान चुके, आओ मिल अभियान चलायें हम सब .... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यका...
चिंतक नियरे राखिए
व्यंग्य

चिंतक नियरे राखिए

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** चिंता सदा से चिता के समान रही है। ऐसा हमारे बुजुर्गों ने कहा, भगवान ही जाने बुजुर्गों ने कहा भी है या लोगों ने खुद ही सब कुछ कह सुन कर बुजुर्गों का नाम लगाकर पल्ला झाड़ लिया। समाज और देश को आगे बढ़ाने के लिए या मुख्य धारा में लाने के लिए चिंता नहीं चिंतन करने की जरूरत है। वैसे आज के इस दौर में चिंतक ढूढ़े नहीं मिल रहे हैं । जिसे देखो वही चिंताग्रस्त है। जब हम छोटे थे तब सुबह-सुबह सड़क के किनारे, और रेल्वे ट्रैक के आसपास लोटा सामने रखकर गूढ़ चिंतन में खोए लोग दिख जाते थे। उनकी भावभंगिमा देखकर लगता था कि राष्ट्र हित में कोई बड़ा चिंतन कर रहे हैं।लेकिन समय-समय पर सरकार ने चिंतकों के प्रति चिंतन करने के पश्चात घर-घर में आत्म चिंतन केंद्र खुलवा दिए। सरकार के इस कठोर निर्णय से ऐसे चिंतक डायनासोर की भांति विलुप्त होने की कगार पर जा चुके...
अफसोस
व्यंग्य

अफसोस

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** नेताजी गहन वार्तालाप मेँ व्यस्त थे, तभी उन के व्यक्तिगत सहायक ने उन्हे याद दिलाया कि उन्हे एक  सार्वजनिक कार्यक्रम मेँ  वनो की मह्त्ता व उनके समग्र विकास पर एक परिचर्या के लिये जाना है नेताजी परिचर्या मेँ पहुंचे व उनकी बारी आने पर, वनोँ  के विनाश, वन महोत्सव की उपयोगिता पर अपने विचार रखे। भारत मेँ लगातार हो रहे औद्योगिक विकास की भेँट चढ रहे वनो के विनाश, आदिवासियोँ के पलायन, दुर्दशा पर उनका भाषण इतना ओजस्वी एवँ भावना पूर्ण था कि लग रहा था कि वे अब रोये कि तब रोये उनका दावा था कि यदि उचित माध्यम से तथा सभी के सहयोग से अगर वनोँ  के विनाश को रोकने, वनो मेँ अनवरत पौधा रोपण करने, उनकी निरँतर देखभाल करने, तथा वनोँ की सुरक्षा के बारे मेँ समग्र प्रयास कि जायेँ तो वनोँ की घटती सँख्या पर काबू पाया जा सकता है उनहोंने जनता से अपील की अपने घर क...
सड़क का गढ्ढा
व्यंग्य

सड़क का गढ्ढा

********** जितेंद्र शिवहरे महू (इंदौर) मुख्य बाजार की सड़क से गुजरना हुआ। वहीं कुछ दूरी पर लोगों की भीड़ जमा थी। सड़क के इर्द-गिर्द बहुत से लोग खड़े थे। सभी की आखें नीचे सड़क पर थी। मुझे भी उत्सुकता हुई। मैंने वहां भीड़ के नजदीक जाकर देखा। सड़क के बीचों-बीच एक गहरा गढ्ढा हो गया था। राहगीर जैसे-तैसे बचते बचाते निकल रहे थे। दो पहिया वाहन तो गढ्ढे के आसपास से निकल जाते मगर चार पहिया वाहन युं ही सड़क की दोनों ओर पंक्ति बध्द खड़े थे। चार पहिया वाहन स्वामियों को अमिट विश्वास था कि कोई न कोई उस गढ्ढे को भरने अवश्य आयेगा। तब वे आराम से निकल जायेंगे। इसलिए वे निश्चिंत होकर अपनी-अपनी कार में बैठे थे। कुछ लोग गाड़ी से नीचे उतर कर सड़क किनारे भुट्टें की दुकानों पर टूट पड़े थे। मैंने साहस कर कहा- "अरे भाई कोई म्यूनिसिपल ऑफिस को फोन करो। वहां से कोई आयेगा तब ही पेंच वर्क शुरू होगा।" मेरी बात वहां सुन...
हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य
कविता, व्यंग्य

हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य

********* रचयिता : विवेक सावरीकर मृदुल अगवानी में लगे देश के मंच सारे उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे . परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी निज घर आती  सहमती औ बौराती पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की मुखर हो बात कभी न ये कह पाती . राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता यूं विश्वमंच पर ध्वज फहरा आते और सालों उस भाषण के गुन गाते . लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . .लेखिका परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दु...
मोहब्बत बड़ी ‘फालतू’ चीज है
व्यंग्य

मोहब्बत बड़ी ‘फालतू’ चीज है

======================= रचयिता : आशीष तिवारी "निर्मल" सन् १९७८ में फिल्म आई थी 'त्रिशूल' जिस पर साहिर लुधियानवी साब द्वारा लिखा हुआ एवं लता जी किशोर कुमार जी के युगल स्वर में गाया हुआ एक गीत 'मोहब्बत बड़े काम की चीज है' काफी लोकप्रिय हुआ था। शायद...!ऐसा संभव रहा होगा कि उन दशकों में मोहब्बत बड़े काम की चीज रही होगी तभी तो यह गीत लिखा गया था। मोहब्बत करके लैला-मजनूं,शीरी-फरहाद बिना सोशल मीडिया में वायरल हुए ही लोकप्रिय हो गए और उनकी मोहब्बत 'ट्रेंड' पर रही। उनके किस्से कहानियों को सुनते-सुनते मोहब्बत करने की सनातनी परम्परा तभी से चली आ रही है। एक दौर ऐसा भी आया जब मोहब्बत करना मतलब पीएचडी करने जैसा होता था भोली भाली सूरत जिस पर मन ही मन मर मिटे होते थे उसका नाम और पता,पता करते-करते उसकी शादी का कार्ड घर आ जाता था, और आशिक को तभी पता चलता था कि उसकी लैला का नाम 'लक्ष्मीरनिया' था जो अब किसी...