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लघुकथा

संस्कार
लघुकथा

संस्कार

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** सम्पूर्ण समर्पण से अपने पति को प्यार करती थी दयावती। उसे तो उसके पति में ईश्वर नजर आता था। पति जब तक घर परिवार में रहा उसके साथ ठीक रहा, क्योंकि बड़े परिवार में अक्सर पति-पत्नी रात्रि विश्राम पर ही मिल सकते हैं।दो कमरे का घर और दस लोग। हर समय चहल-पहल शुरू रहती थी। एक बेटी हुई, वह भी सासू माँ के सपनों को तोड़कर, क्योंकि पोता होता फिर उसका पड़पोता होता वह सोने की निशनी चढ़ती। दयावती के पति की नौकरी बदली, बाहर नौकरी के लिए गया तब पत्नी को घर परिवार में रखा फिर ले गया फिर छोड़ गया। पारिवारिक कामकाज चलते रहते थे। बाहर रहते पड़ोसी की शादीशुदा लड़की से मन लगा बैठा। पड़ोसी की बेटी आगे की पढ़ाई के लिए मायके में रहती थी। वह साथ रहकर भी साथ नहीं थी, हर समय वह लड़की प्रताड़ना पर उतर आई थी। दयावती ने उस लड़की को समझाने की बहुत कोशिश की, पर...
भीष्म प्रतिज्ञा
लघुकथा

भीष्म प्रतिज्ञा

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** सुंदर सलोनी सरल सुशीला धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। बचपन से उसके मन में देशभक्ति, देशप्रेम कूट-कूट भरा था। उसने हमेशा अपने बुजुर्गो से वीरों और वीरांगनाओं की गाथाएं सुनी थी जो उसके मन में रच बस गई थी। उम्र के साथ उसने अपने सपने में जोड़ लिया था, विवाह तो देश के सैनिक के साथ ही करेगी और वह ऐसी संतान को जन्म देगी जिससे देश का मान बढ़े। माता-पिता अपनी इकलौती बेटी को ऐसे घर में ब्याहना चाहते थे जहां बस बिटिया को सुख ही सुख हो। सुशीला सुशील थी, जानती थी कि माता पिता नहीं चाहते हैं लेकिन हर माता-पिता और लड़की इस तरह सोच रखेंगे तो देश के सैनिक की उम्मीद और फिर देश रक्षा के लिए सैनिक कैसे। बहुत कोशिश के बाद सैनिक परिवार में ही सुशीला का विवाह हुआ। तीन महीने की छुट्टी के बाद पति पुनः सीमा पर प्रस्थान कर रहा था ....... मिलकर प्रतिज्ञा हुई ...
पड़ाव
लघुकथा

पड़ाव

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सरला बुआ आ रही है। बच्चों ने सारा घर सिर पर उठा रखा था। बच्चें हमेशा बुआ का इंतजार भगवान की तरह करते थे। करें भी क्यों ना? बुआ जब भी आती, बच्चों के लिए बहुत सा सामान लेकर आती। खिलौने, कपड़े, किताबें-कापी, पेंसिलें और कलर बॉक्स के डिब्बे। बुआ को हमारे घर की स्थिति का पूरा ज्ञान था। पापा मजदूरी करते थे। वह बड़े दब्बू-किस्म के इंसान थे। अगर उन्हें कोई थोड़ा सा भी झिड़क देता तो घर बैठ जाते थे काम छोड़कर। घर की कमजोर स्थिति भी उनसे छिपी ना थी। पूरा परिवार दया का पात्र था। पर पापा का दब्बूपन किसी से छुपा नहीं था। वह ढीले थे, काम इतना धीरे करते थे कि कोई भी मालिक उनसे खुश नहीं था। माँ उनके बिल्कुल विपरीत थी चुस्त-दुरुस्त। वह घर-घर जाकर सिलाई के कपड़े ले आती थी। बढ़िया सिलाई करती थी। नए-नए डिजाइन बनाती थी। आस पड़ोस के लोग उनके द्वारा सिले कपड़े...
पीढी का अंतर
लघुकथा

पीढी का अंतर

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** बेटी- माँ ! आज मैं ताऊजी को बुला रही हूँ, शाम को बैठकर सारा झगड़ा निपटा लेना। माँ- तुम अभी छोटी हो, इन बातों में दखल न ही दो तो अच्छा। बेटी- नहीं माँ ! अब बेटियाँ भी पढलिख कर इस लायक हो गई हैं कि अपनी राय दे। मैं एक बात कह रही हूँ आपसी, मारपीट से भी बुरी होती है शब्दों की लड़ाई, जो अंतहीन होती है, और वैमनस्य रखने वाले दोनों पक्षों की गरिमा को ठेस पहुँचाती है। दुर्भावना में कहे शब्द मनुष्य का कलेजा चीर देते हैं। बेटा- हाँ माँ दीदी ठीक कह रही है। जिनके लिये आप मकान के स्वामित्व की लड़ाई लड़ रही हैं, उसमें रहेगा कौन? हम दोनों ही पढने अमेरिका जा रहे हैं, पता नही बाद में वहीं बस जाऐ। बेटी- माँ, हम दोनों चाहते हैं कि आप और चाची मन को मलीन करने वाली शब्दों की लड़ाई बंद कर दे। हमें नहीं चाहिये ऐसा घर जो परिवार में दरार पैदा करें। और एक बात ब...
अबला नहीं सबला
लघुकथा

अबला नहीं सबला

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सोनी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। वह जोर-जोर से रोए जा रही थी। सभी इसका कारण जानना चाहते थे। पर वह चुपचाप आँसू बहा रही थी। रुखसाना इस दुनिया में होती तो अपनी लाडली को खुद ही संभाल लेती। पर जो चले जाते हैं वह देखने थोड़े ही आते हैं।सब जीते जी का झगड़ा है। मरने वाले का नाता इस संसार से तभी तक रहता है, जब तक तन में प्राण होता है। उसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं। मरने वाले की अंतिम यात्रा शुरू हो जाती है। यह सब बातें ग्रन्थों में लिखी है। और संत महात्मा भी ऐसा ही बताते हैं। कल ही एक प्रचारक कह रहा था कि मरने के बाद आत्मा अपनी दूसरी राह पर निकल जाती हैं। यह यात्रा हजारों वर्षों तक चलती रहती हैं। फिर आत्मा का हिसाब-किताब होता है। फिर दोबारा जन्म होता है। मैं भी क्या लेकर बैठ गई? यह धर्म- कर्म की बातें हैं। यह कोई समय है इन बातों को क...
वीराने में बहार
लघुकथा

वीराने में बहार

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                 नंदिता एक श्रेष्ठ शिक्षक का पर्याय बन चुकी थी। वह संस्कृत और हिंदी पढ़ाती थी। केवल उसके विषय के छात्र ही नहीं, अपितु पूरे विद्यालय के छात्र उसे पसंद करते थे और उसका सम्मान भी करते थे। स्टाफ का भी शायद ही कोई कर्मचारी ऐसा हो, जो उससे द्वेष रखता हो। विगत अठ्ठाईस वर्षों से नंदिता शिक्षक कर्म का निर्वहन पूर्ण समर्पण से कर रही थी। उसके चेहरे पर दिन की उजाले की हुकूमत थी, तो हृदय में मिठास का अखूट सोता प्रवहित रहता था। शायद इन्हीं विशेषताओं के फल स्वरूप उसने घर-बाहर अनगिनत लोगों को अपने व्यहवार का कायल बना लिया था। कई पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी नंदिता का नाम २६ जनवरी को महामहीम राष्ट्रपति के करकमलों से सम्मानित किये जाने वाले शिक्षकों की सूची में शामिल था। नंदिता ने दिवाल घड़ी की ओर ताँका, साढ़े चार बज रहे थे। वह विश्...
यारी दोस्ती…
लघुकथा

यारी दोस्ती…

अलका जैन (इंदौर) ******************** हलो दीपिका कैसी है तू? अरे वही रोने बुढ़ापे के, तबीयत खराब है, ओहो तबियत ठीक नहीं है। हां बोल तबियत ठीक नहीं है तो रहने दें आराम कर। में तो तेरे घर की तरफ आई थी, डॉक्टर को दिखा ने। मेरी भी तबियत ठीक नहीं है। मगर डॉक्टर के घर मोत हो गई तो वो चला गया। अरे तो तिलक नगर में ही है तो आ जाओ। तेरे तबियत ठीक नहीं है ना जैसे तेरी ठीक है। चल आ जा। मैं दरवाजा खोल देती हूं। ताले डाल रखे हैं। दिन में अरे हां, इतने कैसे सुनने को मिल रहे हैं, शहर में बुड्ढे बुढ़िया को मार। फिर मेरे पास तो बुड्ढा भी नहीं रहा। तीन लड़कियों है सो तीनों अमेरिका में है। यहां होती तो भी कहा मेरे पास होती अपनी अपनी ससुराल में होती। चल मैं आ गई तेरे घर, अरे दिपिका तेरा हाथ तो बहुत हिल रहा है... हां क्या करे बुढ़ापे में जो हो जाते वहीं कम कारण नहीं पूछा डॉक्टर से वहीं टेंशन तेरे जिजाजी को कै...
अजर-अमर
लघुकथा

अजर-अमर

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** साधु राम नहीं रहे। सोनू का फोन सुबह ही आया था। मैं हैरान रह गया था। क्या बीमार थे, साधु राम जी? मैंने सोनू से पूछा। नहीं ऐसी कोई खास बात तो नहीं थी। आप तो जानते ही हो, सत्तर की उम्र में भी कितने फिट रहते थे? सुबह चार बजे ही सैर के लिए निकल जाते थे। पूरे दो घंटे बाद लौटते थे। इतनी लंबी सैर वही कर सकते थे। तभी तो उनकी रंगत गुलाब सी खिली रहती थी। एक दिन मुझें भी ले गए थे अपने साथ। मैंने तो कान पकड़ लिए थे। इतनी लंबी सैर भी कोई करता है। कहीं रुकने का नाम ही नहीं लेते थे। रुकते भी थे तो नीम की दातुन तोड़ने के लिए। नीम के पत्ते तो ऐसे चबाते थे जैसे बेर खा रहे हो। खूब चबा-चबा कर खाते थे। कड़वाहट का तो नामो निशान भी नहीं था, उनके गुलाबी चेहरे पर। मुझें भी दो-चार पत्ते पकड़ा दिए करते थे चबाने के लिए। ना चाहते हुए भी चबाने पड़ते थे। मेरा मुँह इत...
लापरवाही
लघुकथा

लापरवाही

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** रमा आज बहुत परेशान है। भारत वर्ष ही नहीं विश्व के कई देश कोरोना के शिकार हैं। जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इस समस्या से पीड़ित है। इसको दूर करने के अनेक प्रयास किये जा रहे हैं परन्तु अभी कोरोना समाप्त करने में सफलता नहीं प्राप्त हो पाई है, फिर भी उसके बच्चे उसकी चिंता करने पर खूब हँसी उड़ा रहे हैं। आखिर वह झल्ला कर बोल पड़ी, "बच्चों तुम समझते क्यों नहीं? अत्यंत आवश्यक कार्य के अतिरिक्त बाहर न जाने की अपील प्रधानमंत्री, डॉक्टर एवं प्रशासन सभी कर रहे हैं जिससे सड़कों पर भीड़ कम हो और इसके कीटाणु फैलने न पायें। मस्ती, घूमने-फिरने से कभी रोका तो नहीं मैंने, ये सब तो कुछ दिनों बाद फिर हो सकता है किन्तु लापरवाही में अपनी प्राण संकट में डालना कहाँ की समझदारी या बहादुरी है। दोस्तों से फोन पर बात कर लो। कुछ दिन नहीं मिलोगे तो क्या बिगड़ जाएगा?" कुछ देर सँभल क...
शोर
लघुकथा

शोर

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   बाहर हर तरफ सन्नाटे का राज था और बुजुर्ग दद्दा के मन के अंदर बहुत शोर तथा कोलाहल था। "राज ...बे ..टा। जरा ...इधर आना, जरुरी काम है।" खाँसते-खाँसते दद्दा ने वाक्य पूरा किया। दद्दा ने पास आए पोते राज के कान में कुछ कहा। उनके झुर्रियों भरे चेहरे पर जड़ी वीरान आँखें राज को याचना की दृष्टि से देखने लगी। शशीन्द्र रोज आफिस जाने से पहले और आने के बाद अपने अठ्ठानवे वर्षीय बीमार पिता को कमरे में देखने आता था। बीच-बीच में उन्हें जरुरत की चीजें मुहैया कराने का काम बीवी और बच्चों के जिम्मे कर रखा था। आज शाम जब शशीन्द्र दद्दा से मिलने आया, उसे बीड़ी की दुर्गंध का भान हुआ। उसने पलंग के सिरहाने जाकर लठकते तकिये को ठीक किया। कोई वस्तु नीचे गिरी, ऐसा लगा उसे। "राज। ओ... रा..ज। कहाँ हो तुम? एक मिनिट के अंदर दद्दू के कमरे में आ ज...
वही दर्द
लघुकथा

वही दर्द

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                            मोना को आज ट्यूशन से घर आने में देर हो गई, जैसे-तैसे वह जल्दी जल्दी चलने लगी तो तेज आंधी शुरू हो गई। उसकी किताबें बिखर गई और तेज बारिश के कारण लाइट भी चली गई। वह बहुत डर गई। अंधेरा हो गया था कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, जैसे तैसे वह एक ऑटो आकर रुका, उसने कुछ कहा नहीं और ऑटो में बैठ गई। भैया तिलक नगर जाना है, जी मैडम वह सोच रही थी कि, अच्छा हुआ ऑटो मिल गया वर्ना आज तो मुश्किल हो जाती। कुछ दूर जाने के बाद ऑटो वाला सुनसान रास्ते पर ले जाने लगा। भैया आटो रोको, आप मुझे कहां ले जा रहे हो? ऑटो वाले ने शांति से कहा कि, मैडम मेन रोड से ले जाऊंगा, तो पुलिसवाले रोकेंगे और प्रश्न पूछेंगे। आपको और देर हो जाएगी।इसलिए मैं दूसरे रास्ते से ले जा रहा हूं। आप निश्चिंत रहिए मैं आपको घर तक छोड़ द...
आश्रम
लघुकथा

आश्रम

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** पति के गुजर जाने के बाद राधादेवी की जिंदगी बस दोनों बेटो के घर के इर्द गिर्द गुजर रही थी। दोनों बेटो के एक शहर में रहने से जिसे जरूरत लगती माँ को बुला लेता। वो परेशान सी हो गई थी। एक दिन छोटी बहू ने जरा सी चाय गिरने पर बहुत बुरा भला कहा दुखी हो राधादेवी घर से निकल कर मंदिर मै जा कर बैठ गई। वही उन्हे एक बुजुर्ग दम्पति मिले वह दोनों आश्रम मै रह रहे थे। उनसे मिलकर राधादेवी ने एक निर्णय लिया। घर आई और अपना सामान पैक करने लगी और बोली आज से मै आश्रम में रहूँगी। बेटे आश्चर्य से बोले क्यों? माँ ने बड़े ही गंभीर स्वर में बोला बाकी दिन मै अपने सुकून और आनन्द से बिताना चाहती हूँ। तुम लोग मेरी चिंता ना करो। तुम्हारे पिताजी की पेंशन से गुजारा हो जायेगा और ऐसे भी तुम लोगों को मेरी जरूरत होती हैं तभी याद आती हूँ। और वह चली गई दोनों बेटे मुँह ताकते रह गय...
मानव माँस
लघुकथा

मानव माँस

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** गिद्ध के बच्चे जिद कर रहे थे कि उन्हें मानव माँस ही खाना है । वे बच्चे मानव माँस का स्वाद चख चुके थे। गिद्ध परेशान! कहां से लाऊँ? संयोगवश गिद्ध को मानव माँस मिल गया, एक आदमी को फांसी की सज़ा दी गई थी। गिद्ध खुश था कि अब उसके बच्चे मानव मांस खाकर, प्रसन्न हो जाएंगे। यह क्या? बच्चों ने पहला निवाला खाते ही...थू.. कहते हुए बुरा सा मुंह बना लिया। यह मानव मांस नहीं, यह तो किसी कुत्ते का मांस है। गिद्ध अवाक! उन मुंह देखता रह गया। वह उन्हें कैसे बताता वह सामूहिक बलात्कार के अपराध में सज़ा पाए मानव का माँस था। परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशि...
कर्ज
लघुकथा

कर्ज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                         आज रामू काका की बेटी संध्या का आईआईटी में प्रवेश का परिणाम आया। सब बहुत खुश थे कि एक गरीब की बेटी तमाम आर्थिक झंझावातों के बीच सफलता की सीढियां चल रही थी, खुद रामू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। उनके लिए तो ये सब सपना जैसा था।क्योंकि बेटी को उँचाई पर देखने का सपना देखने वाले रामू काका अथक प्रयासों के बाद भी उसे वो सुविधा नहीं दे पा रहे थे जिसकी उसे दरकार थी। अचानक सारी खुशियों को ग्रहण लग गया, रामू काका पक्षाघात का शिकार हो गये। घर में इतने पैसे नहीं थे कि ढंग से इलाज हो सके। तभी अचानक क्षेत्रीय विधायक रामू काका के दरवाजे पर आ गये। सन्नाटे का माहौल देख वे अचंभित से हुए तभी संध्या बाहर आई और विधायक जी को देखकर रोने लगी। विधायक जी ने उसे ढांढस बँधाया, पूरी जानकारी ली और तुरंत ही अपनी गाड़...
अंतिम निर्णय
लघुकथा

अंतिम निर्णय

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आज सपना के पापा की पहली बरसी थी मम्मी के कहने पर सपना वृध्दाश्रम में भोजन की व्यवस्था कराने पहुंची थी, प्रवेश करते समय सामने आफिस मे बैठे कबीर अंकल कीओर सपना की नजर पड़ी। सपना ने कहा अरे ! कबीर अंकल आप यहाँ? अंकल कहने लगे बिटिया अब तो यही अपना घर है बेटा मैं अब यहीं रहने लगा हूँ कहकर तेजी से उठकर चल दिए जैसे अपना दर्द छुपा रहे हो। सपना भी अपने काम में व्यस्त हो गयी। यहाँ की व्यस्तता के बीच सपना की नजरें लगातर कबीर अंकल पर थी जो लगातार सपना से छुपने की कोशिश में थे। वृध्दाश्रम के सभी सदस्यों के भोजन का कार्य अच्छे से सम्पन्न कराकर सपना समान गाड़ी में रखवाकर घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में उन्हें कबीर अंकल की बात याद आ गयी अब तो यही अपना घर है। सपना ने सोचना शुरू किया कि कबीर अंकल के घर पर दो बेटे और एक बेटी का हँसता खेलता प...
भीख
लघुकथा

भीख

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                          कहते हैं लाचारी इंसान को कितना बेबस बना देती है। कुछ ऐसा ही मि.शर्मा को अब महसूस हो रहा है। कहने को तो चार बेटे बहुएं नाती पोतों से भरा पूरा परिवार है। मगर सब अपने अपने में मस्त हैं। महल जैसे घर में मि.शर्मा अकेले तन्हाई में सिर्फ मौत की दुआ करते रहते हैं। शरीर कमजोर है, आँखों से कम दिखाई देता है। कानों से भी कम ही सुनाई देता है। भोजन पड़ोसी दीपक के यहां से आता है। दीपक एक बेटे की तरह ही उनका ध्यान रखते हैं। उनके बच्चे भी समयानुसार देखभाल कर ही देते हैं। पति-पत्नी तीज त्योहार पर आकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं। ये सब किसी लालच में नहीं करते बल्कि अपने मां बाप की कमी के अहसास को महसूस कर मि.शर्मा में उनका अक्स दिखने और बुजुर्ग के आशीर्वाद की आकांक्षाओं के कारण करते हैं। आखिरकार मि.शर्मा...
सच्चा साथी
लघुकथा

सच्चा साथी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** "छोड़ेंगे ना हम तेरा साथ, ओ साथी मरते दम तक। रेडियो पर यह गीत सुनकर उमेश एकदम चौक गया। साथी मरते दम तक, खुद भी गुनगुनाने लगा। रीटा की आवाज सुनकर, वह थोड़ा हिचक गया और चुप हो गया। नहीं-नहीं गा लो गीत अच्छा है। आखिर मुझें आज भरोसा तो हुआ कि तुम मरते दम तक मेरा साथ नहीं छोड़ोगे, पर वह चुप था। ऑफिस पहुँचते ही, नमस्ते करने वालों की होड़ सी लग गई। लगती भी क्यूँ ना, वह अपने ऑफिस में उच्च पद पर आसीन जो था? वह अपनी कुर्सी पर लगभग पसर सा गया। उसे ऐसा लग रहा था, कुछ गीत हमारी जिंदगी में कितना ऊँचा स्थान रखते हैं। कुछ गीत हमारे लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं, कुछ सिर्फ सुख-दुख व्यक्त करने का जरिया मात्र। रीटा आज मन ही मन चहक रही थी कि उमेश ने उसका महत्व समझा तो सही, चाहे उसने अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए एक गीत का ही सहारा लिया हो। पर क्या फर्क पड...
नई पहल
लघुकथा

नई पहल

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आशा : माँ जी- आपको और पिताजी को तो मेरे काम में कोई ना कोई कमी हमेशा नजर आती है। आखिर क्या गलती है मेरी, जो आप हमेशा नाराज रहते हो? कभी तो मेरा उत्साह बढ़ाया करो। आपसे तो किसी तरह की उम्मीद रखना अपने आप को धोखा देने जैसा है।रोज-रोज की कहासुनी से, राजेश भी बहुत परेशान था। पत्नी की सुनता तो, जोरू का गुलाम कहलाता और माँ की सुनता तो, पत्नी कहती माँ के पल्लू से बंधे रहना जीवन भर। कभी मन में आता छोड़कर भाग जाऊं सब कुछ। ये खुद ही काम-धाम संभाल लेंगे। शादी से पहले सब कुछ ठीक चल रहा था। माँ कहती थी मेरी बहूँ आएगी तो मैं उसे बहूँ नहीं बेटी की तरह रखूंगी। सास को बहूँ को बेटी ही मानना चाहिए। उस समय मैं सोचा करता था, मेरे घर में आने वाली लड़की बड़ी ही भाग्यवान होगी। जो उसे ऐसा परिवार मिलेंगा।आशा का स्वभाव थोड़ा सा तुनक-मिजाज था। वह छोटी-छोटी बातों प...
हिंदी है हम
लघुकथा

हिंदी है हम

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** रानी किसी काम के लिए पोस्ट ऑफ़िस गई। उसने देखा एक महिला वहां की कर्मचारी से इंग्लिश में बात कर रही थी। दूसरी तरफ रानी सोच रही थी। अपने ही देश भारत में रहकर भी कुछ लोगों को हिंदी बोलने में शर्म आती है। उस महिला को कोई फॉर्म भरना था लेकिन वह भर नहीं पा रही थी। वह रानी के पास आई और इंग्लिश में बोली, कैन यू फील माय फॉर्म...? रानी को भी अच्छी इंग्लिश आती थी लेकिन वह विनम्रता से बोली, जी जरूर भर दूंगी लेकिन मैं हिंदी में भरना पसंद करूंगी। वह महिला बोली जैसा आप चाहें। रानी ने लोग क्या कहेंगे इस बात की परवाह नहीं करते हुए गर्व से अपनी मातृभाषा में फार्म भरकर उस महिला को थमा दिया। परिचय :- हिमानी भट्ट ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता अभियान, इंदौर निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय...
गणित मां पापा का
लघुकथा

गणित मां पापा का

नीलम तोलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (रात दस बजे का वक्त सोने की तैयारी) नवल अपनी पत्नी सोनिया का हाथ पकड़कर.. नवल : सोनू तुम बहुत अच्छी हो, तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गया। आज तुम ना होती, तो ना मैं बीमार मां को गांव से ला पाता ना वो इतनी जल्दी स्वस्थ हो पाती। घर, नौकरी, मां, सब कुछ कितनी अच्छी तरह संभालती हो तुम। सोनिया : वह मेरी भी तो मां है नवल, क्यों ऐसा बोल रहे हो? नवल : थैंक यू सोनिया!! सोनिया : सुनो एक बात कहनी थी, नवल : बोलो ना प्लीज.. सोनिया : तुम तो जानते हो, मैं अपने मम्मी पापा की इकलौती संतान हूं, पापा के जाने के बाद मम्मी बहुत अकेली हो गई है। फिर उम्र का भी तकाजा है। क्यों ना हम उन्हें यहां ले आए, उनका भी मन लग जाएगा। नवल : सोनू यार! कैसी बात कर रही हो? दामाद के घर जाकर भी कोई रहता है क्या? फिर हमारा रूटीन भी डिस्टर्ब होगा... उन्हें कहना कभी-कभी यहां आ जाया ...
गूढ़ रहस्य
लघुकथा

गूढ़ रहस्य

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** पापा आप हर बात में अपनी सलाह क्यों देते रहते हैं? आपका अपना ही अलाप बजता रहता है। तभी दूसरा बेटा भी आ गया। पापा हर मामले में अपनी टाँग अड़ाना जरूरी है। शर्मा जी, चुपचाप दोनों बेटों की बातें सुन रहे थे, जो उन्हें किसी शूल की भाँति चुभ गई थी। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा था। अब तो हर रोज का यही काम था। सुबह से ही घर में कलह शुरू हो जाता था। शर्मा जी ने बड़े जतन से घर की एक-एक चीज जोड़ी थी। वह किस तरह उन्हें बर्बाद होते देख सकते थे। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उन्होंने अपनी सारी जमा-पूँजी खर्च कर दी थी। पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह समय पर पूरा किया था। पर उनसे कहीं ना कहीं भारी चूक हो गई थी। जो आज अपने ही परिवार में उन्हें उपेक्षा झेलनी पड़ रही थी। रोज की तरह, वह सुबह पार्क की तरफ चल पड़े। गेट पर ह...
अनमोल तोहफा
लघुकथा

अनमोल तोहफा

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ५ सितंबर यानि शिक्षक दिवस आज पूरा दिन स्कूल में बच्चों की शुभकामनाएं और ढेर सारी टाफीया उपहार गुल्दस्ते ग्रिटींग कार्ड। इसके अलावा शाला प्रबंधन की ओर से विषेश कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें उत्कृष्ट शिक्षा नवाचार के लिए सुषमा को विषेश पुरस्कार प्रदान किया गया। सुषमा जब घर लौटी तो उसके बैग बच्चों द्वारा दिये गये उपहार से भरे हुए थे और हाथ में शाला प्रबंधन की ओर से दिया गया स्मृति चिन्ह ।घर पहुँच कर सुषमा पूरी तरह थक कर चूर हो चुकी थी। पीछे से आवाज आई मैडम जी...मैडम जी... सुषमा निन्नी को देख कर अतीत में खो गयी। उसके लिए ये जगह नयी थी अभी अभी उसने शिक्षाकर्मी वर्ग एक के लिए पोस्टिंग कोंडागाँव में हुआ था । घर के सामने सड़क के उस पार झोंपड़ी नजर आती थी। स्कूल जाते समय रास्ते में निन्नी दिख जाया करती थी उसकी उम्र कोई आठ ...
श्राद्ध या दिखावा
लघुकथा

श्राद्ध या दिखावा

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मीनू ने रानू से कहा, रानू चलो बाजार चलते हैं। "क्यों? अरे! तुम्हें नहीं मालूम क्या? श्राद्ध पक्ष चल रहा है। ढेर सारी सब्जियां, मिठाइयां, फल, सूखे मेवे लाना है। और उपहार में देने के लिये कपड़ें बर्तन तथा सोने व चांदी के आभूषण भी तो लेना हो। भाई हम तो अपने सास-ससुर का श्राद्ध उत्सव के जैसा मनाते हैं। दो ढाई सौ लोगों को खाना खिलाते हैं, गरीबों को दान करते हैं। मंदिर में चढ़ावा देते हैं, तभी तो हमारे पूर्वज खुश होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। क्यों रानू हमने तो तुम्हें कभी सास-ससुर का श्राद्ध करते नहीं देखा? अरे भाई इतनी भी क्या कंजूसी है? अरे भाई इतना जो कुछ है आखिर उन्हीं का तो दिया हुआ है। रानू के मुंह से तपाक से निकल गया। भाभी मैंने अपने सास- ससुर को जीवित में ही तृप्त कर दिया था। इसलिए उनका आशीष तो सदा मेरे साथ है। रानू ने मन म...
यादों की गठरी
लघुकथा

यादों की गठरी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************                मां, बेटे को मिल रही सफलता पर फूली नही समा रही थी। उसका मन बेटे को दुआएँ दे रहा था। वह बेटे को चूम लेना चाहती थी। पर सम्भव नही था। वह माँ से कोसो दूर बैठा था। कितने साल हो गए थे। उसे गाँव से गए। माँ के चेहरे की झुर्रियाँ लगातार बढ़ती ही जा रही थीं। आँखों की ज्योति भी धीमी पड़ रही थी। पर माँ का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था। वह जब भी उदास होती। अतीत की यादों में खो जाती।उसे आज भी याद हैं जब गाँव के स्कूल मास्टर ने साफ कह दिया था। तेरा लला पढ़ नही सकता, इसका दिमाग बहुत कम है। क्यों अपने पैसे खराब कर रही हो? तुमने क्या सोच कर इसका नाम ज्ञान रखा है। ये तो पूरी तरह अज्ञानी है। कितना मन दुःखा था उस दिन। उसने बहुत मिन्नतें की थी, मास्टर सहाब से। आपका ही बच्चा है, दया कीजिए। शुरू-शुरू में तो वह बिल्कुल नहीं माने थे। ज्ञान स...
रिश्ते का लिहाज़
लघुकथा

रिश्ते का लिहाज़

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                   लंबे समयांतराल बाद जिला कलेक्टर के आदेशानुसार लाकडाउन में थोड़ी छूट दी गई। ज्यादातर लोग घरों से निकल कर बाजार की तरफ चल पड़े थे, दैनिक जीवन से जुड़ी आवश्यक सामग्री की खरीदी करने के लिए। बालकनी में बैठे-बैठे मैं लोगों को बाजार आते-जाते देख रहा था, इच्छा हुई कि बाजार घूम आता हूँ। मैं भी घर से निकल पड़ा बाजार की तरफ। बाजार पहुंचकर मैं समैय्या के होटल में एक कप चाय बोलकर चाय आने का इंतजार कर रहा था, तभी मेरी नज़र पड़ी होटल में एक कोने में बैठे तीन लोगों पर, जो कि एक ही स्टूल पर बैठे थे, जिनमें एक व्यक्ति ठीक बीच में बैठे थे, और शराब की बोतल से शराब गिलास में डालकर क्रमश: पहले और फिर दूसरे व्यक्ति को बारी-बारी से दे रहे थे।जब पहले व्यक्ति शराब पी रहे होते तो दूसरे सज्जन दूसरी तरफ नज़र घुमा लेते थे और जब दूसरे सज्जन शर...