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लघुकथा

मासूमियत
लघुकथा

मासूमियत

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   'वक्त की कैद में जिंदगियाँ हैं, मगर चंद घड़ियाँ हम सब सब्र करें, प्राण वायु की आपूर्ति के लिए तो कम से कम।' संपूर्ण विश्व की त्रासदी से हम सब वाकिफ हैं। एक अनाहत भय से हर शख्स परेशान सा है। बच्चें, बूढ़े एवं युवा सब-के-सब आज की स्थिति का गुनहगार स्वयं को मान रहे हैं। स्वार्थांध होकर मानव ने प्रकृति के साथ की हुई ज्यादतियां या खिलवाड़ का नतीजा वर्तमान स्थिति में कैसा भारी पड़ रहा है, सब देख रहे हैं, मान भी रहे हैं। 'वनराजी, वृक्षबेलियाँ हमारे सगे-संबंधियों जैसी है', यह हमारे देश की परंपरा युगों-युगों से चली आ रही है। ऐसे में एक घर की बुजुर्ग महिला सुबह-सुबह उठकर, नहा-धोकर, पुजा की थाल हाथ में लेकर जंगल की ओर निकल पड़ती है। दरवाजे की आहट सुनकर उसका छोटा पोता उठकर, "दादी माँ, रुको। मैं भी आपके साथ जंगल की और आता हूँ," कहकर जल्दी से ह...
तेजू की धुन
लघुकथा

तेजू की धुन

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** लंबे इंतजार के बाद वातावरण बदलने लगा था। महामारी और लाॅकडाउन से लोगों को निजात मिलने लगी थी। रामबाबू भी अपने रूकें कामों को पूरा करने में जुट गये थे। स्कूल के पट खुलने लगे थे। सबके कारोबार गति पकड़ ही रही थी, तो कोरोना की दूसरी लहर बेभान हो उछाले मारने लगी। तेजू अपनी झोपड़ी के बाहर टूटी सी खटिया पर बैठे कभी मुस्कुराता तो कभी गंभीर चेहरा बनाये टेढ़े बांके हाथ किये कुछ बड़बड़ाता था।आते जाते लोग कहते विक्षिप्त है। बच्चे उसकी पीठ पर मारते तो कोई खाने की चीज उसके सामने डाल देते थे। उसे महामारी से कोई सरोकार नहीं था, लेकिन चौकस रहता था। लोगों की भेंट की चीजें लेते समय कहता 'जागते रहो, अरे! पगले भला हो कहते हैं। राम बाबू हमेशा उसे टोकते किन्तु तेजू ने अपनी चाल नहीं बदली। राम बाबू की समाज सेवा में तेजू और उसकी माँ को प्राथमिकता थी। उन्हें तेजू से प्...
महादान
लघुकथा

महादान

कु.चन्दा देवी स्वर्णकार जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** ज्योत्सना अपनी पति जगदीश के साथ हॉस्पिटल में ३ दिन से एक ही बेंच पर बैठी टकटकी लगाए उस कमरे की ओर देख रही है जहां उसका बेटा भर्ती है डॉ. उसे मिलने नहीं दे रहे हैं सड़क दुर्घटना में वह इस तरह से घायल हो गया है की उसे डॉ. किसी भी तरह से नहीं बचा पा रहे हैं। इन ३ दिनों में पति ने अनेकों बार उसे कुछ खा पी लेने के लिए कहा किंतु वह टस से मस न हुई और मन ही मन अनेक देवता देवी देवताओं को मनाती रही कि मेरे पुत्र को जैसे भी बने वैसे ठीक कर दो। अन्दर से डाक्टरों का समूह जैसे ही बाहर निकला उनमें से एक ने जगदीश को अपने पास बुलाकर जो कुछ समझाया उसे सुन कर जगदीश के हाथ पैर ढीले पड़ गये वे एकदम से गिरते-गिरते बचे। पत्नी ने पति के काँधे पर हाथ रखा और कहा- "मुझे बताते की जरूरत नहीं मैंने सब कुछ सुन लिया है। मेरा चिराग कुछ ही पल में जाने वा...
एक पल
लघुकथा

एक पल

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कुछ पल की चहलकदमी के बाद एक जगह ठहर गई 'पिया' उसका पोर पोर दर्द की वेदना से भरा था! कितने हाथ पैर मारे थे! पर उसकी कौन सुनता 'जब भौकाल चरम पर होता है तो सबकी मानसिकता ही बदल जाती है! पर अब क्या 'निपट अकेली रह गईं थी! पिया' निरीह वो सारे वादे बिना निभाये जा चुका था! खुद को ठगा महसूस कर रही थी! पर वो न भूली थी 'उसकी भरी आंखें' चंद बूँदे अश्रु की जो उसने भरसक छुपाने की कोशिश की थी! नही वो भटकाव न था! वो उसका प्रेम ही तो था! जिसे पाने की खतिर खैर उसनें एक लम्बी सांस ली उसे पता था! अब वो कभी वापस नहीं आऐगा' बुखार से तन तप रहा था उसका 'कुछ तो समझ न आ रहा था! उसे'तो 'सच मे चला गया हमेशा के लिऐ वेदांत'.... एक सिसकी और एक और लुढक गई पिया की गरदन 'उसकी निस्तेज आंखों मे लिपटा काली तिरपाल मे वेदांत का शरीर और अब न रही: 'एक पल की प्रतिक्षा..... !! ...
बेबस
लघुकथा

बेबस

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आज, मेरा चिंटू नज़र नहीं आ रहा हैं, पापा ने ऑफिस से आते ही दीपा से पूछा? दीपा बिना कुछ कहें ही किचन में चलीं गई। वह बड़ा हैरान रह गया! उसे लगाआज जरूर "दाल में कुछ काला है"। दीपा, हाथ में चाय का कप लिए उसके सामने खड़ी हो गई। लो चाय, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। क्या हुआ, दीपा, कुछ कहोगी या नहीं? क्या कहूँ, आप पर तो किसी बात का कोई असर नहीं होता? वह चुपचाप सब सुन रहा था। अच्छा, छोड़ो क्या तुम मेरे साथ पार्क में चल रहीं हो? क्यों, क्या अब मेरी भी नाक कटवानी बाकी हैं? दीपा, क्यों छोटी सी बात को इतना बड़ा बनानें पर तुली हो? छोटी सी बात, सुबह चिंटू को रमेश जी, ने खूब खरी-खोटी सुनाई। तो क्या हुआ, वो हमारे पड़ोसी हैं, अगर बच्चे गलती करेंगे तो... वह इतना ही कह पाया था। दीपा, का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसका चेहरा लाल हो गया, वह चिल्ला...
बड़ा भिखारी
लघुकथा

बड़ा भिखारी

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************   नवरात्रि का समय था, सभी देवी मंदिरों में काफी भीड़ लगी हुई थी। आज मंदिर में सभी वर्गों के लोग देवी को प्रसन्न करने में लगे थे।एक सेठ भी अपने परिवार सहित दर्शन करने आए थे। सेठजी पूजा करके अपनी कार की तरफ जाने लगे, तभी एक भिखारी उनसे टकरा गया। सेठजी गुस्सा होकर चिल्लाने लगे, इस पवित्र जगह पर इन मैले-कुचले कपड़ों में घूमते भिखारियों का क्या काम है, पता नहीं ये लोग यहां कहां से आ जाते हैं। "भिखारी बहुत दुखी हुआ। पास में ही भिखारी का अपाहिज बेटा बैठा था, उसने हाथ जोड़कर सेठ से कहा-" सेठजी ये देवी का मंदिर है यहां छोटा बड़ा कोई नहीं होता, फिर भी आप ऐसा सोचते है तो आप ही बताइए कि यहां आप जैसे लखपति लोग देवी के सामने करोड़पति होने की भीख मांगते हैं, वे बड़े भिखारी हुए या हम जैसे अपाहिज, जो सिर्फ दो वक्त की रोटी ही यहां मांगने आते हैं वे बड़े भिखा...
पागल
लघुकथा

पागल

शुचि 'भवि' भिलाई नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कैसी हो? फोन पर प्रश्न पूछते ही मानो भूकंप आया हो। सरिता स्तब्ध हो गयी थी कि अचानक रेणुका को ये हो क्या गया है। कितना अनाप-शनाप बोल रही थी वो और उसका ये रूप तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। इससे पहले कि सरिता कुछ बोल पाती, रेणुका ने फोन काट दिया था। सुदूर विदेश से सरिता चाह कर भी आ भी तो नहीं सकती थी अपनी बचपन की सहेली से मिलने। उसने कई बार दोबारा फोन लगाने की कोशिश की मगर नाकाम रही। सरिता ने रेणुका के भाई को फोन लगाया और रेणुका के संबंध में पूछा कि वो कैसी है। सरिता की चीख़ निकल गयी ये सुन कर कि एक सप्ताह पहले जो खिलखिलाती रेणुका थी वो आँसुओं के सैलाब में इस क़दर डूबी कि अपना अस्तित्व ही भूल गयी है। पति, देवर और पुत्र तीनों कोरोना की भेंट चढ़ गए थे। १५ दिन पहले ही घर में जश्न था, देवर की सगाई का। सरिता ने समझाया भी था कि...
नीना
लघुकथा

नीना

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन रात बढ़ते संक्रमण पर काबू पाते और मरीजों की सेवा करते डाॅक्टर नीना निढाल हो टेबल पर गर्दन रखते ही नींद के साथ अतीत के आगोश में चली गई थी। अरे! सुन, बेटीके लिए इतना अच्छा घर मिला है। देर सबेर नीना के हाथ पीले करने ही है। लेकिन पता नहीं उसके दिमाग में कोई कालेज का लड़का छाया हुआ है। जाति भी कुछ अलग है। साफ मना करती है शादी के लिए। देख शिबू नीना की सहेली कह रही थी। लड़के ने अपने परिवार की पसंद की लड़की से शादी भी कर ली है।एक साल होने आया है। फिर भी तेरी बिटिया मानती नहीं। प्रेम में पूरी दिवानी हो गई है। ध्यान रखना शिबू प्यार से समझाना नहीं तो उल्टा गलत काम कर लेगी तो समाज में नाक कट जायेगी। माँ आप इतनी चिन्ता मत करो। मुझे समाज की चिंता नहीं बेटी के भविष्य की चिंता है। पढ़ी लिखी जवान लड़की उसे बहुत सारे बड़े काम करने हैं यह कौन समझाए। मां आज...
असली रंग
लघुकथा

असली रंग

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आज सोमेश जैसे ही ऑफिस से घर पहुँचा सीमा ने कहा चाय रेडी है पहले आप फ्रेश हो जाओ फिर बुलबुल को आज रंग गुलाल दिला लाना कब से यही रट लगाये बैठी है सोमेश ने कहा ठीक है बुलबुल से कहो रेडी होने मैं ले चलता हूं उसे। बुलबुल झट से तैयार हो कर आ गयी और बहुत खुश नजर आ रही थी। सोमेश बुलबुल के साथ मार्केट गये। वहाँ उसने बुलबुल की पसंद का सारा सामान खरीदा पर सोमेश ने एक बात नोटिस किया कि बुलबुल जो भी सामान लेती पापा एक और प्लीज कहकर सारा सामान का एक और सेट खरीद लिया और अलग-अलग कैरी बेग में रख लिया। लौटते वक्त पापा ने देखा कि आज बुलबुल बहुत खुश लग रही थी और उसे खुश देखकर पापा भी खुश थे। घर पहुँच कर सोमेश ने सीमा से कहा- पता है आज हमारी बुलबुल बहुत खुश है उसने सारा रंग गुलाल पिचकारी मास्क और भोपू के दो-दो सेट खरीदे हैं। इसी बीच बुलबु...
वो नीलपक्षी
लघुकथा

वो नीलपक्षी

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ********************                               गर्मीं की रातों में नींद तो सुबह ही आती है। ओर उसमें भी रात को बिजली चली गईं हो। सुबह नींद लग ही रही थी कि नीम के झाड पर असंख्य चिड़ियों का मेला लगा था। वे चहचहा रहीं थीं मानों अपना दिनभर की योजना के बारे में चर्चा कर रहीं हों। मुझे उठना ही पड़ा। चाय लेकर बरामदे मैं बैठी तो एक नीले पंख की चिड़िया बरामदे में लगे शीशे पर बैठ शीशे में अपनी ही छवि को देख लगातार अपनी चोंच मार रही थी कि ये मेरे जैसी दूसरी चिड़िया कौन? देख मैं मुस्कुरा दी और सोचने लगी कि कितनी नादान है ये? आखिर थककर वह मुंडेर पर जा बैठी। यह उसका रोज का ही कार्यक्रम बन गया था। सूरज अपना साम्राज्य खोले उसके पहले ही इसकी हरकतें शुरू हो जातीं। मेरे बरामदे की बेल से नीम्बू के पेड़ से गुलाब के गमले में फुदकती पर पास लगे अशोका के पेड़ पर कभी न जाती। वह आँगन में ...
डायरी का वो पन्ना
लघुकथा

डायरी का वो पन्ना

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** अक्सर ये कहा जाता है कि मतलब या काम निकलने के बाद लोग सब भूल जाते हैं। शाम का समय था, दिनेश अपने घर के हाल में अकेले बैठा था कि डोर बेल बजी। दरवाजा खोल कर देखा तो सामने चाचा जी खड़े थे। जय श्रीकृष्णा चाचाजी, आइए पधारिए की ओपचारिकता के बाद दोनों सोफे पर बैठ गए। चाचाजी मुझे फोन कर दिया होता तो मैं ही बस स्टैंड पर लेने आ जाता। थोड़ी देर की बातचीत के बाद चाचाजी मै आपके लिए चाय बना के लाता हूं। चाय की चुस्कियां लेते हुए चाचा जी बात किए जा रहे थे कि अचानक से नाराजगी वाले अंदाज से बोले कि बेटा आज कल कौन किसको याद करता है। ये दुनिया बड़ी मतलबी है। काम या वक्त निकलने के बाद सब भूल जाते हैं। चाचाजी की बात दिनेश को समझ आ रही थी कि आखिर चाचाजी ऐसा क्यों कह रहे, कहीं मुझे ही लक्ष्य करके तो नहीं बोल रहे हैं। दिनेश चाचाजी से ऐसी बात नहीं ह...
ज्ञान
लघुकथा

ज्ञान

सेवा सदन प्रसाद नवी मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कश्मीर की घाटी और सरहदी इलाका। दो आतंकी एक घर में घुसे। पंडित जी और उनकी पत्नी घबरा गये। आतंकी ने बंदूक तानते हुए पूछा- "तुम हिंदू हो या मुस्लिम?" पंडित जी ने बहुत साहस कर बोला- ये दाढ़ी नहीं देख रहे, मैं भी तुम जैसा ही मुसलमान हूं। "अगर मुसलमान हो तो कुरान की आयत सुनाओ।" आतंकी ने कहा। पंडित जी तब पेशोपेश में पङा गये। मन ही मन भगवान को याद कर गीता का श्लोक सुना दिया। आतंकवादी वापस चले गये। पंडिताईन तब घबराती हुई बोली- "एक तो आपने इतना बड़ा झूठ बोला, ऊपर से कुरान के आयत के बदले गीता का श्लोक सुना दिया। अगर वो जान से मार देते तो?" "पंडित जी ने तब हंसते हुए कहा- "भाग्यवान, अगर उन्हें इतना ही ज्ञान होता तो आतंकवादी क्यों बनते।" परिचय : सेवा सदन प्रसाद निवासी - नवी मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
पेड़ की पीड़ा
लघुकथा

पेड़ की पीड़ा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर ८ दिन बाद मेरा जीप द्वारा उधर से निकलना होता था। सड़क कच्ची और पथरीली थी सड़क की दूसरी ओर घना जंगल था वहां हमेशा सन्नाटा पसरा रहता था। एक बार मै उधर से गुजर रही थी तो कुछ टकराने की आवाज सुनाई दी मैंने वाहन चालक से पूछा तुम्हें भी कुछ सुनाई दे रहा है, वह बोला हां कुछ ठोकने की आवाज आ रही है दूर से देखा कोई एक पेड़ को काट रहा था, पेड़ पर पड़ते आघात मेरे मन को आहत कर रहे थे। आंसू बहाता आकाश पत्नी धरती से कह रहा था... देख रही हो तुम्हारे द्वारा भेजा गया संदेश लेकर वह मेरे पास आ रहा था ऊपर उठ रहा था। की वह मुझे संदेश सुना सके, देखो कैसे उसे ऊपर चढ़ते चढ़ते नीचे गिरा दिया फिर से तुम्हारी गोद में सारे पत्ते झर गए कभी ना लगने के लिए वह अडीग छाया देने के लिए फल देने के लिए और वर्ष वर्षा करने में सहायक था, पर अब ऐसा नहीं होगा। अगर बदली बरस जा...
सच्ची समाज-सेवा
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सच्ची समाज-सेवा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** संध्या देवी सुबह से समारोह की तैयारी में जुटी थी। आज उनके अनाथालय में वार्षिक सामरोह का आयोजन हो रहा था। हर साल की तरह इस बार भी उनके काम को सराहा जा रहा था। वह अनाथालय को अपना दूसरा घर समझती थी। सारी जिम्मेदारी उन्हीं की थी। उनकी मर्जी के बिना यहाँ पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनके प्रयासों से ही अनाथालय तरक्की कर रहा था।यहां पर हर तरह का प्रबंध था। चाहे महिलाओं की शिक्षा का सवाल हो या उनके स्वालम्बन का ही। संध्या देवी एक-एक काम पर बारीकी से नजर रखती थी। उन्हें अब भी याद है, जब इस अनाथालय की शुरुआत हुई थी। उस समय यहां छोटी सी जगह थी, दो कच्चे कमरे थे।गाँव के बाहर ही उन्हें छोटी सी जगह दी गई थी। गाँव वाले उनके विरुद्ध थे। क्योंकि अनाथालय को लेकर बाजार काफी गर्म था कि अनाथालय में सेवा के नाम पर गलत काम होते हैं। कुछ लोगों का मानना था कि ...
हिचक
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हिचक

सेवा सदन प्रसाद नवी मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** "काका कोरोना का टीका आ गया है। वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाएगी। अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।" गोमू ने काका को समझाते हुए कहा। "नहीं, मैं यह टीका नहीं लूंगा- पता नहीं क्या हो जाय?" काका के स्वर में भय एवं हिचकिचाहट का मिला जुला भाव था। "काका कुछ नहीं होगा- बीमारी से लङने की क्षमता बढेगी।" "अब कौन सा मैं मुंबई शहर में हूं। पैदल ही सही पर अपना गांव तो आ गया। यहां कुछ खतरा नहीं है। नहीं लेना है टीका-वीका।" "काका आपको मुंबई से गांव आने में कितनी मुसीबतें झेलनी पङी और आने में लगभग दस दिन लग गये। पर कोरोना को पुनः शहर से गांव आने में चंद मिनट ही लगेंगे।" भतीजे की बात सुनकर काका पुनः सहम गया और हिचक गायब हो गई..... परिचय : सेवा सदन प्रसाद निवासी - नवी मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
नारी शक्ति
लघुकथा

नारी शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह सुबह सवेरे बड़ा सा झोला लेकर निकल पड़ती है, बिना सन्देह के एक लक्ष्य लेकर कि आज दो-तीन किलो प्लास्टिक का कचरा मिल जावेगा तो पीहर आई बेटी को भरपेट खाना खिला सकूंगी। इसी उधेड़बुन में वह इस प्लाट से उस प्लाट तक कचरा खोजती हुई आगे बढ़ गई विचार मन में चालू थी कि अचानक पीछे से आवाज आई... इधर आओ वह घबरा गई पीछे मुड़कर देखा एक व्यक्ति खड़ा उसे आवाज लगा रहा था वह धीरे-धीरे पास गई वह बोला मैं सफाई कर्मचारी का अधिकारी हूं क्या तुम रोज कचरे के ढेर से पन्नी अलग छांटने का काम करोगी.... ४ घंटे काम करना होगा और तुम्हें ६० रु. मिलेंगे मंजूर हो तो मेरे साथ ऑफिस में चलकर नाम लिखवा दो। उसने मन में सोचा इतने पैसे से तो मैं अपने शराबी पति का इलाज भी अच्छी तरह से करा सकूंगी और बेटी को पेट भर खाना भी नसीब होगा यह सोच वह उस व्यक्ति के साथ आफीस गई और अपना न...
विडंबना
लघुकथा

विडंबना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिसंबर की कड़ाके की ठंड में वह अपने फटे कंबल से शरीर को ढकने की कोशिश करता हुआ सड़क के किनारे बैठा था। सड़क की दूसरी ओर एक चाय की गुमटी पर बहुत सारे लोग अपने शरीर को गरम करने के लिए चाय की चुस्कियां ले रहे थे, उसे लगा कोई उसे भी एक प्याला चाय पिला दे इस आशा से वह गुमटी पर खड़े लोगों की ओर तथा चाय की पत्ती ली से निकलती भाप की ओर अपलक देख रहा था कि कोई उसकी और देखें परंतु सब अपने मैं व्यस्त थे। किसी की नजर उस पर नहीं पढ़ रही थी, वह इसी आशा से बार-बार उधर देख रहा था की कोई तो देखें उसे परंतु किसी को उसकी ओर देखने की फुर्सत नहीं थी, सब अपने मैं मस्त हो चाय की चुस्की ले रहे थे, यह कैसी मानव की विडंबना है या उसकी नियति यह सब समझ से परे है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप...
नाईट लैम्प
लघुकथा

नाईट लैम्प

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जमाना प्राचीन काल और इस वर्तमान युग में अगर अंतर देखा जाए तो बहुत सुविधाएँ और इंसान को चीजो से.... जैसे जो हाथ से चीजें...बनाई जातीं थीं वर्तमान में ज्यादा तर खत्म हो चुकीं हैं। रानी अपनी सास से कहते-कहते काम कर रहीं थीं। लेकिन बीच रतनलाल.... रानी की बातें सुन कर कहने लगे..... तुम बहुत सही कह रही हो और कड़वी बात भी कह रही हो। जो हाथ की कलाकारी करते थे... दिखाते थे वो ही घाटे में जा रहे हैं क्योंकि कारीगर कम हैं तथा कीमत समान, साड़ियों, चित्रकला की जरूरत से ज्यादा है। आम आदमी खरीदे कैसे मन मार कर रह जाते हैं क्योंकि घर चलाना होता है, बच्चों की पढ़ाई के खर्च इत्यादि के कारण पीछे रह जाता है। आजकल हाथ की चीजें सिर्फ अमीरों के शौक हो कर रह गए हैं। अपने से ही रानी तुम देख लो.... तुम्हें ये सूती साड़ी तैयार करनी है दिन में तुम्हें वक्त नह...
सासु मां …
लघुकथा

सासु मां …

कुमारी सोनी गुप्ता जोगेश्वरी ईस्ट, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** पूर्वा की कल ही शादी हुई थी, और आज ससुराल में पहला दिन था। आँखों में ढेर सारे सपने, हृदय में बहुत सी नए जीवन की आशाए संजोये थी लेकिन मन में एक डर भी छुपा था कहीं। हर सुबह माँ-माँ पुकार के होती थी पूर्वा की, आज वो माँ को बहोत याद कर रही थी। सास के बारे में सुना था बहुत ही अनुशासन प्रिय थी और न जाने बाकि घर वालो का स्वभाव कैसा हो। तो थोडा डर लग रहा था। सुबह तैयार हो कर जब बैठक में गयी तो शादी में आई सब बुजुर्ग महिलाओ ने सास से पूर्वा की माँ के घर से आई चीजे देखने की इच्छा जताई। सास ने पूर्वा को बुलाके सारा सामान सबको दिखाया देखके अन्दर-अन्दर खुसुर-फुसुर शुरू हो गई, फिर उनमें से एक बुजुर्ग महिला जो की ससुर की बुआ थी वो मुंह बनाके बोलने लगी ये क्या दिया हे लड़की को ना कार, न बाइक, न फ्रीज, नाही पलंग... बस थोड़े से कपड़े...
प्रायश्चित
लघुकथा

प्रायश्चित

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** दीदी! आपकी तबियत कैसी है? "सवेरे सवेरे मेरी देवरानी ने मेरेपैर छूते हुऐ पूछा।" मैंने अपने पैर सिकोड़ लिये। आज के समय में पैर छूना। उम्र में दोवर्ष ही तो बड़ीहूँ। जब पैर छूती, तो लगता बुजुर्ग हूँ। खैर बेमन से जवाब दिया ठीक ही हूँ। उसने मेरे माथे को हाथ लगाया और चिंतित स्वर में बोली- आपको तेज बुखार है, हिलना भी नही । पूरा दिन वह मेरे आसपास बनी रही और उसके स्वर मेरे कानो में पड़ते रहे- दीदी! दूध पीलो, दीदी! जूस पी लो, दीदी! बच्चो, की चिंता न करो। मैंने उनकी पंसद का खाना खिला दिया। पूरे सात दिन से वह मेरी सेवा में जुटी है और मैं पश्चाताप की आग में दहक रही हूँ। सोच रही हूँ लाकडाऊन में बिना मेड के मेरा और बच्चो का क्या होता। साधारण रंगरूप और कम पढी-लिखी होने से मैं उसे पंसद नही करती थी। लाक डाउन ने उसके आंतरिक सौन्दर्य के दर्शन करा दिये।...
बस एक चाहत
लघुकथा

बस एक चाहत

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************     चित्रा, दीदी मुझें जीजू बड़े अच्छे लगते हैं। अच्छा जी, मुझें तुम्हारे इरादे से ठीक नहीं लग रहे। रीता ने हँसते हुए कहा, दीदी सावधान हो जाओ। मैं जीजू को आप से चुरा लूँगी एक दिन। क्या तुम सच कह रही हो? कमल, तुम्हें इतने पसंद है। दीदी, उनकी हँसी बिल्कुल बच्चों जैसी हैं। कितने शर्मीले है, बोलना तो जैसे उन्हें आता ही नहीं है। रंग-रूप तो सभी को लुभाता है, पर मुझें तो उनका स्वभाव बहुत अच्छा लगता हैं। क्या बात जीजू का बड़ा बारीक अध्ययन हो रहा है? चित्रा बोलती जा रही थी। मैं मूक-दर्शक बनी उसे देख रही थी। वैसे भी दीदी बड़ी शान्त स्वभाव की है। हमेशा हम दोनों एक ही चीज की जिदद करती थी बचपन में, हम दोनों को एक तरह के कपड़े और खिलौने चाहिए थे। वह मुझसे दो साल छोटी थी। मम्मी बताती थी, जब मेरा स्कूल में एडमिशन करवाया गया था, तो उसमें रो-रो कर बुरा...
बैंक एफडी
लघुकथा

बैंक एफडी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                        राजमोहन गांव के बड़े जमींदार थे। गांव वालों की नजर में उनकी छवि सदा ही एक सम्मानित एवं साफ सुथरी व्यक्ति की रही। राजमोहन हमेशा ही दीन, हीन, भिक्षु, विकलांग वा आमजन के प्रति उदार भावना रखते थे। खुशियां सबसे बांट लेते लेकिन दुख दर्द अकेले ही झेल जाते थे। इसके पीछे उनका निजी दृष्टिकोण था। राजमोहन का बड़ा बेटा राधे घर में रहकर घर के काम खेती, किसानी में हाथ बंटाता था। एक दिन राजमोहन अपने बड़े बेटे के साथ घर में बैठे कुछ विषयों पर बात ही कर रहे थे, कि गांव के ही एक व्यक्ति राजबली अचानक आ पहुंचे। राजबली के चेहरे और हाव भाव को देखकर ही राजमोहन समझ गये कि हो ना हो इनको किसी तरह की मदद की जरूरत है। इसलिए अचानक ये हमारे पास आये....। राजमोहन बिल्कुल भी देरी ना करते हुए राजबली को बैठने को कहते हुए बोले- कहिए कैसे आना ह...
मोक्ष का मार्ग
लघुकथा

मोक्ष का मार्ग

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** आज मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के साथ आदरणीय अटलबिहारी बाजपेई जी की जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरी क्रिसमस कहने पर बहुत से लोग तपाक से ये रिप्लाई सोशल मीडिया पर कर रहे थे। ये बात २५ वर्ष के पोते ने दादा को बड़ी बेचैनी से बताई। बोला दादू ये तीन पर्व तो हर साल ही तिथि से मनाए जाते है ना! हाँ बेटा पर कभी इस प्रकार मनाते नहीं देखा। अटलजी जब तक जीवित थे तो उनके जन्मोत्सव की शुभकामना का आदान प्रदान नहीं हुआ। पोता बोला- ये वही लोग हैं जो साम्प्रदायिक वैमनस्य से ऐसा करते हैं। हाँ बेटा पहले तो गुड़ी पडवां पर नया साल मनाते थे। ये क्रिसमस और न्यू ईयर ज्यादा लोगों को नहीं मालूम था। इन पर्वों को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सब मनाने लगे ऐसे बहुत से पर्वो की शुभकामना का आदान प्रदान सालभर होता है पर आज एकादशी और गीताजयन्ती सौभाग्य से अटलजी की जनमदिन ...
भाई की डांट
लघुकथा

भाई की डांट

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** आनंद तब से अपने बड़े भाई राजीव को जोर-जोर से डांटे जा रहा था। आनंद का कहना था- कि तुम घर से बाहर मत जाया करो। आसपास मुहल्ले के लोगों से बोलचाल मत रखो। तुम्हारी सहजता, सरलता, मृदुभाषिता के चलते लोग तुम्हारी कोई इज्जत नहीं करते। तुम सबसे प्रणाम, दुआ, सलाम करते रहते हो तो लोग तुम को हल्के से लेते हैं। हर किसी से हंसकर मुस्करा कर बात मत किया करो। लोगों की नजरों में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं है। कोई कुछ भी काम कह दे तो फौरन कर देते हो। लोगों को समय देते हो यह सब पूरी तरह बंद करो। गंभीर बनो, लोगों से बातचीत नहीं करो। घमंडी दिखो, स्वभाव से स़ख्त रहो तब लोग इज्जत देंगे सम्मान देंगे तुम्हारी अहमियत समझेंगे। राजीव जो इतनी देर से सब ख़ामोश होकर सुन रहा था अचानक उसने ख़ामोशी तोड़ते हुए कहा कि तुम मेरे छोटे भाई होकर जब मुझे सम्मान नहीं देते। म...
बेटी
लघुकथा

बेटी

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** आज बाबूजी बहुत ही उदास और अनमने से थे। उन्हें अपनी पत्नि सुमित्रा की बहुत याद आ रहा थी। उनके जन्मदिन पर वह उनकी पसंद के तरह तरह के व्यंजन बनाती थी। सुबह से शाम होने आयी किसी ने भी उन्हें जन्मदिन की बधाई नहीं दी। यही सोच रहे थे तभी उनकी बेटी स्मिता का फोन आया। जन्मदिन की बधाई बाबूजी, बाबूजी खुश हो कर बोले अरे बेटा तुझे याद था मेरा जन्मदिन तभी बहू ने आकर सुना और कहने लगी उम्र हो गयी है और इन्हे इस बुढ़ापे में भी जन्मदिन मनाना है। बाबूजी सोचने लगे बेटी दूर होकर भी कितने पास है। यह वही बेटी है जिसे हम जन्म से पहले मार देना चाहते थे। बाबूजी की पलकों से आँसू छलक उठे। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...