प्रीति चित्रण
भारमल गर्ग "विलक्षण"
जालोर (राजस्थान)
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मौन धारण कर वचन मेरे,
लज्जा आए प्रीत मेरे।
मगन प्रेम सांसे सत्य ही है,
शब्द अनुराग है मेरे।।
दुखद: प्रेम सदियों से चला आया।
माया, लोभ ने विवश बनाया।।
कामुक कल्पनाएं प्रेम सजाए,
विनम्र प्रेम जगत सौंदर्य दिखाएं।
प्रीति, प्यार अनोखा चित्रण
मन को भाता यह बोध विधान।।
बजता प्रेम का है यह
अलौकिक संदर्भ जगत में।
देखो सजना सजे हैं हम
प्रेम इन जीवन अब हाट पे।।
स्वर का विश्वास नहीं,
देखो माया संसार में।
वाणी के बाजे भी अब तो,
टूट गए हैं आस में।।
प्याला मदिरा का मनमोहक
दृश्य लगे जीवन आधार में।
बिखरे हैं यह सज्जन देखो,
टुकड़े-टुकड़े कांच जैसे कांच के।।
कलयुग में सजती है
स्वर्ण कि यह लंका।
ताम्र भाती प्रेम बना है,
प्रेम यह संसार में।।
मैं चला हूं उस पथ पर
अग्रसर कटु सत्य वचन से।
मिथ्य वाणी ना बो...