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कहानी

स्त्री का अस्तित्व
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स्त्री का अस्तित्व

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** रूपा तीन विद्यालय की संचालिका है। इतनी कर्मठ महिला अपने आप सम्मान की पात्रा हो जाती है। कितनों को ही रोजगार देने में सक्षम। एक समय ऐसा भी था जब वह अपनी जिंदगी से निराश हो चुकी थी। जीवन का चक्र तो अनवरत चलता है जिसमें दिवस के उजाले के साथ रात्रि की कालिमा का भी आवागमन होता है। मैं जिस रूपा को जानती थी महाविद्यालय के दिनों में वो अपने आप में ही सिमटी रहती थी, और मैं भी अंतर्मुखी, स्वाभाविक था दोनों इक दूजे के ज्यादा करीब नहीं थे। पर अरसे बाद जब रेल में यात्रा के दौरान हम दोनों आमने सामने की सीट पर मिले तो हर्षातिरेक से भर आलिंगनबद्ध हो गए। दोनों का ही व्यक्तित्व परिवर्तित मैं उम्र के इस पड़ाव पर अंतर्मुखी से बहिर्मुखी और रूपा भी व्यावसायिक महिला के अनुसार मिलनसार। थोड़ी देर इक दूजे की पारिवारिक जानकारी ली हम दोनों ने, पर मैंने महसूस किया अतीत ...
अपने-पराये
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अपने-पराये

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ********************   खुशीनगर में मोहन काका रहते थे। वे शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी, सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले और खुशमिज़ाज व्यक्ति थे। इसी गाँव में मनसुख बाबा का आश्रम था, बाबा हमेशा प्रसन्नचित्त रहते थे। बाबा के मुखमण्डल का तेज व मुस्कराहट को देख हर किसी व्यक्ति का चेहरा इस कदर खिल उठता मानो सूर्य-किरण पड़ते ही कमलिनी खिल उठती हैं। प्रसन्नता महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सद्गुण माना जाता है। बाबा ने क्रोध व अहं पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनमें लोगों को खुश करने की कला थीं गर गाँव में कोई भी व्यक्ति नाखुश मिल जाता तो वे उनके रहस्य जान कर उसके मुखमण्डल पर प्रसन्नता की लकीरें खींच देते। बाबा की मान्यता थी कि, दरअसल भगवान मंदिर, मस्जिद व गिरजाघरों में न होकर दीन-दु:खियो व पीड़ितों के दर्द भरी आह के पीछे की मुस्कान में वास करते हैं।...
राजा की तीन रानी
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राजा की तीन रानी

*********** विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर बरसो पुरानी बात है, बहिरामपुर रियासत में एक तेजस्वी राजा हुए। आसमान से पाताल लोक तक उनका डंका बजता था। उनकी तीन रानियां थी जो क्रमशः आकाश लोक की भाग्यसुंदरी,पाताललोक की घटोत्कपाली व मृत्युलोक की तेजस्विनी। तीनों बड़े प्रेम से रहती और राजा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राज कार्य मे हाथ बंटाती। राज्य में अमन-चैन तो था ही, राज्य तीव्र प्रगति पथ पर था। हर क्षेत्र में उसकी धाक जम गई थी। आसपास के राजाओं से वह अति बलशाली बन गया था। व्यक्ति जब प्रत्येक कार्य मे हर क्षेत्र में प्रगति करता है तो उसमें दम्भ नही आना चाहिए बल्कि अपनत्व और कर्तव्य की बढ़ोतरी होना चाहिए। राजा अब बदमिजाज से होने लगे थे। बात-बात पर गुस्सा व अभिमान प्रदर्शित करने लगते। एक रात स्वर्गलोक की अप्सरा भाग्यसुंदरी कुछ परेशान सी लग रही थी। राजा ने परेशानी को नज़र अंदाज़ कर महल की छत पर चन्द्र...
संकल्प
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संकल्प

********** रचयिता : कुमुद दुबे श्रेया, पति शुभम के साथ कुछ दिन पहले ही सुरभी के पडौस में रहने आयी थी। सुरभी के मिलनसार स्वभाव के कारण उसे श्रेया के साथ घुलने -मिलने में समय नहीं लगा। सुरभी के पति राकेश रिटायर पुलिस ऑफिसर थे। ड्रायवर की सुविधा समाप्त होने के बाद सुरभी और राकेश घर से बाहर आना-जाना आँटो से ही करते थे। श्रेया कार चलाना जानती थी, अतःउसकी सहायता से सुरभी के भी बाहर के काम और आसान होने लगे थे। श्रेया के ससुर जी के अचानक बीमार होने से शुभम उन्हें माँ माला के साथ गाँव से इलाज के लिये लेकर आया। डाॅक्टर की सलाह पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पडा। ससुर जी को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई परन्तु कुछ दिन फाॅलोअप के लिये शहर में ही रुकने की सलाह दी गई। औपचारिकता के नाते सुरभी उनके स्वास्थ के हाल लेने श्रेया के घर गई। बातचीत बीच में ही रोककर श्रेया सुरभी से कहने लगी आँ...
काना
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काना

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" (बहुत साल पहले की घटना पर आधारित) इंदौर। कालानी नगर से चंदन नगर होते हुए फूटी कोठी, हवा बंगला, केट, राजेन्द्र नगर के लिए रास्ते निकलते है। बहुत दिनों पहले हमें अक्सर ये जानकारियां मिलती रहती कि अमुक बुजुर्ग ने दर्दनाक हादसे के बाद दिव्यांग हो जाने पर भी भीख मांगने की बजाय कमाई करके पेट भरने को महत्व दिया। मातेश्वरी देवी ने तूफान में घरपरिवार उजड़ जाने के बाद भी हिम्मत नही हारी, वो आज भी जिंदा है और दान-धर्म करके अपना जीवन यापन कर रही है। धन बहुत है पर परिवार में सिर्फ और सिर्फ वो अकेली है। सुरेश बंजरिया की लघु फ़िल्म-"सच्ची सहायता शनि साधक की" में एक दिव्यांग ने आर्थिक मदद लेने से इनकार कर दिया। नेवरी गांव में तो जैसे महिला पर पहाड़ टूट पड़ा। पूरे परिवार को आसमानी बिजली ने लील लिया। ऐसी ही एक दुखियारी की कहानी को ला रहा हूँ....शीर...
बेटा लौट आया सुमित्रा का
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बेटा लौट आया सुमित्रा का

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" मैने ये कहानी सुन रखी थी कि कोई भी छोटी सी दुकान लगाकर बैठा है तो बड़े दुकानदारों से सामान लेने की बजाय नाम मात्र का सामान, सब्जी या फल बेचने वाले से खरीदना चाहिए, क्योंकि छोटी सी दुकान वाले के पेट भरने का साधन ही कुछ सामान, फल या सब्जी बेचना होता है। एक बुढ़िया की यही स्थिति देख एक सज्जन पुरुष रोज उस महिला से फल खरीदता था और फल का एक फल उस बुढ़िया को खाने को देते हुए कहता देखो फल ज्यादा मीठा तो है नही ? बुढ़िया को इसलिए खिलाता था कि ये तो बेचकर पेट की आग बुझाएगी पर इसमे से ये एक भी फल नही खाएगी। जबकि इसके जर्जर शरीर को इस बहाने फल का एक टुकड़ा कुछ तो असर करेगा। वहीं बुढ़िया फल खाकर कहती बाबू शाय ये तो मीठा है ! तो वह नित्य का ग्राहक कहता हां, मीठा ! अरे बहुत ही मीठा है माता राम। रोज इस प्रकार वह बुढ़िया को फल खिलाता, वहीं बुढ़िया भी उक...
मखोल्या की खीर भाग 2
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मखोल्या की खीर भाग 2

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" उको सरीर दुबलो ने दो असाढ़ जैसो थो। सरीर गठिलो करने सारू उ सेर में पड़ने गयो थो। अय गांव में तगड़ी बारिस होने लगी गय ने ४-५ पावणा अय गया। घर मे समान भी कम थो ने इतरा सारा लोग ! हिम्मत वाली थी पटलन, दाल चडई दी चू ला पे ने सोचने लागि के मीठा में तो कय बनाने सारू हेज नी। चावल भी खुटी गया। कय करू। मेहमान पटेल का इन्तजार कर रहे थे। चाय पिलाने का बाद पटलन ने जल्दी-जल्दी दाल-रोटी, खीर ने अचार परस्यो। मेहमान ने भरपेट भोजन करी ने पटलन से खीर का बारा में पूछ्यो तो वा बोली नी। बड़ा लोग ना का सामने वा आवाज भी नि निकालती। सो मेहमान राते रुक्यया ने हवेरे-हवेरे वापस जाता रया। रास्ता में पटेल हरिसिंह अपनी लाडी का साथे पैदल पैदल चल्या अय रया था। आमनो-सामनो होने पे पटेल से सबी जना प्रेम से मिल्या ने मेहमान नवाजी की बात बतय के खीर की त...
चुहिया और बुढ़िया
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चुहिया और बुढ़िया

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" एक बुढ़िया कचरा जलाकर खाना बना रही थी, एक चुहिया उधर से गुजरी, देखकर बुढ़िया से बोली-का हम लकड़ी लाय दे तुमको। बुढ़िया ने कहा-लाय दो । चुहिया दौड़ी-दौड़ी गई और लकड़ी लाकर बुढ़िया को दे दी। बुढ़िया रोटी उतार रही थी, ठीक उसी वक्त चुहिया रोटी पर उछलकूद करने लगी । बुढ़िया बोली--ए चुहिया ये का कर रही। चुहिया बोली--मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लई, लकड़ी मैंने तोए दय। का एक चंदिया भी नय देगी? बुढ़िया --ले जा । चुहिया चंदिया लेकर जा रही थी, उसकी निगाह एक कुम्हार पर पड़ी जी बच्चे को मिट्टी की गोली दे रहा था। चुहिया --ए भाई तेरे को चंदिया दूँ। वह तुरन्त बोल उठा--हाँ-हाँ.. चुहिया ने चंदिया कुम्हार को दी और उसकी मटकियों पर उछलकूद करने लगी। कुम्हार बोला--ए चुहिया! ये का कर रही? चुहिया --मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लई, लकड़ी मैंने...
पागल – कहानी
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पागल – कहानी

रचयिता : जितेंद्र शिवहरे =============================== पागल स्मिता और उसकी सहेली निशा आज हाॅस्पीटल की ड्यूटी पूरी कर शहर के मेघदूत उपवन में कुछ पल सुस्ताने आई थी। सायं चार-पांच बजे का वक्त हो रहा था। दोनों सहेलियां शहर के भण्डारी हाॅस्पीटल में नर्सिंग का कोर्स कर रही है और अन्य शहर से होकर इसी हाॅस्पीटल के हाॅस्टल में रहती है। उवपन में बैठने के लिए समुचित स्थान तलाशती उनकी आंखे एक कोने में रखी छायादार बेंच पर पड़ी। बेंच पर पुर्व से ही एक युवक बैठा था। उसके हाथों में एक किताब थी। वह उसे ही पढ़ रहा था। बेंच पर अभी दो व्यक्ति और बैठ सकते थे। धुप की तपन के बीच स्मिता और निशा ने बिना वक्त गंवाये उस बेंच की ओर पैदल ही दौड़ लगा दी। मई का महिना चल रहा था। चारों ओर तपन ही तपन थी। गार्डन में छायादार पेड़ शीतल हवा बरसा रहे थे। गार्डन की जमीन पर माली द्वारा अभी-अभी छिड़काव किये गये पानी की ठण्...
पल दो पल की खुशियां
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पल दो पल की खुशियां

पल दो पल की खुशियां रचयिता : जितेंद्र शिवहरे संध्या आज पहली बार प्रभात के साथ सफ़र कर रही थी। त्यौहार के सीज़न के कारण बस वाले छोटी यात्रा करने वाले पेसेन्जर को बस में बैठा नहीं रहे थे। उस पर जो बस वाले बैठा भी लेते तो बैठने की सीट मिलना मुश्किल थी। संध्या की समस्या अभी खत्म नहीं हुयी थी। उसने देखा सड़क पर चक्काजाम की स्थिति निर्मित हो गयी है जो इस सड़क पर एक आम समस्या थी। संध्या ने विचार किया की आज स्कूल पहुंचने में वह निश्चित ही विलंब से पहुंचेगी। स्कूल के हेडमास्टर की डांट से वह भली-भांति परिचित थी। उसका विलंब से स्कूल पहुंचने का कारण अधिकतर सड़क जाम होना ही होता था। सड़क पर वाहनों के जाम की स्थिति का हवाला देते-देते वो थक गई थी। क्योंकि हेडमास्टर चिरपरिचित इस समस्या का हल संध्या को पुर्व में बहुत बार सुझा चूके थे। या तो संध्या मोपेट से स्कूल आया करे क्योंकि मोपेट से आने-जाने में सड़क...