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आलेख

महामानव
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महामानव

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** शान्तमय वातावरण भी कितना भयावह लगने लगता है, जब किसी के पास बोलने को कुछ भी ना बचे, सोचने समझने की शक्ति जैसे जड़ हो जायें, क्या ऐसा भी जीवन में कुछ घटित हो सकता हैं, निःशब्दता वास्तव में इतना भयावह माहौल क्यूँ बना देती हैं, की बस उठो और ज़ाओ कहीं बाहर। पूरे दिन के कोलाहल के बाद कुछ घंटों का मौन खलने लगता हैं, ना ख़ुशी ख़ुशी ही रहती हैं, ना ग़म ग़मगीन ही करता हैं, सिर्फ़ टकटकी लगा के एक शून्य हुए को शून्य होकर निर्बाधता से देखे जाना कहाँ तक सही हैं। दूसरे के अंतर्मन की पीड़ा का अनुमान चंद लम्हे उसके साथ बैठकर नहीं लगाया जा सकता, जब तक आप स्वयं उसी पीड़ा से ना गुजरे हों। पीड़ा के भी रूप अनेकानेक हैं, मैं ये कह ही नहीं सकती की किसको कितना अधिक सहना पड़ा होगा, ना ही कोई बराबरी हैं किसी के दर्द की, बस एक आर्तनाद हैं ज़ो निरंतर प्रवाहमान हैं, स...
पलायन
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पलायन

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** गांव की आबादी आज घटती जा रही है। गांव के लोग शहरों की तरफ रुख़ कर रहे हैं । इसका कारण सबका अपना-अपना मत होगा। परंतु बेरोजगारी और सुविधाओं की कमी से गांव वाले ना चाहते हुए भी अपना घर छोड़ कर शहर के छोटे-छोटे कमरों में रहने को मजबूर हैं। क्योंकि हमारे गांव में बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार नहीं है। मैं सभी गांव की बात नहीं कर रही। परंतु बहुत गांवों में यह समस्या आज भी मौजूद है। शहरों का विकास तेजी से हो रहा है और गांव में जाकर देखो शिक्षा के नाम पर एक प्राइमरी या हाई स्कूल। वह भी सभी गांव में नहीं है। आगे बेचारे गरीब बच्चे पढ़ने कहां जाए? गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए बहुत सारी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। यातायात- गांव में यातायात की सुविधा नहीं होती कैसे जाए पढ़ने के लिए बाहर। उनके पास दो विकल्प होते हैं या तो पढ़ाई छोड़ दे...
जीना इसी का नाम है
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जीना इसी का नाम है

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** (भाव-पल्लवन) ज़िन्दगी बड़ी ख़ूबसूरत है, हर पल को खुशी से जियो! जाने आनेवाला कल कैसा होगा? उसकी चिंता में इस पल को बेकार न करो! जिंदगी को खूबसूरत बनाना है कैसे? इस पर विचार करो ! हर समस्याओं का समाधान तुम्हारे पास है, माना कि आज के दौर में रहन-सहन, खान-पान बदला है, ऐसे में अपने आप को समाज में स्थापित करना चुनौती का सामना करने जैसा है और इन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते हैं तो निराशा, उदासी, आदि से घिरे हुए होते हैं, क्षण-प्रतिक्षण मस्तिष्क में अनेकों सवाल लहरों की भांँति आते- जाते रहते हैं, अशांत मन बेचैन रहता है, जब कोई तूफान आनेवाला होता है तो सागर शांत हो जाता है, ऐसे क्षण में व्यक्ति को एकांत में आत्म-चिंतन मनन, ध्यान अवश्य करना चाहिए। समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास आय का स्रोत नहीं है, लेकिन उनके प...
भारतीय गणतन्त्र के सात दशक
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भारतीय गणतन्त्र के सात दशक

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** परिवर्तन का जोश भरा था, कुर्बानी के तेवर में। उसने केवल कीमत देखी, मंगलसूत्री जेवर में।। हम खुशनसीब हैं कि इस वर्ष २६ जनवरी को ७४वाँ गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। १५ अगस्त सन् १९४७ को पायी हुई आजादी कानूनी रूप से इसी दिन पूर्णता को प्राप्त हुई थी। अपना राष्ट्रगान, अपनी परिसीमा, अपना राष्ट्रध्वज और अपनी सम्प्रभुता के साथ हमारा देश भारत वर्ष के नवीन रूप में आया था। हालाँकि इस खुशी में कश्मीर और सिक्किम जैसे कुछ सीमावर्ती या अधर में लटके राज्य कसक बनकर उभरे थे। देश को एक संविधान की जरूरत थी। संविधान इसलिए कि किसी भी स्थापित व्यवस्था को इसी के द्वारा सुचारु किया जाता है। संविधान को सामान्य अर्थों में अनुशासन कह सकते हैं। संविधान अनुशासन है, यह कला सिखाता जीने की। घट में अमृत या कि जहर है, सोच समझकर पीने की।। २ वर्ष...
प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण
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प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** जीत तू जरूर छू ऊंचाइयों को, कर मेहनत जरूर, सपने कर पूरे बस तू , कर मेहनत आज के आधुनिक दौर में आगे निकलने की दौड़ में सभी अपना वजूद ही खोते जा रहे हैं ।जो है उनके पास स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं ।माता-पिता प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने बच्चे को ही प्रथम लाना चाहते हैं। अच्छी बात है, पर दूसरों के साथ तुलना करके क्यों? सभी बच्चों में कौशल होता। हालांकि ये अलग बात है कि प्रतिभा अलग-अलग है। जैसे कोई चित्रकारी में, कोई नृत्य में, कोई गाने में, कोई पढ़ने में, कोई खेल में, कोई अपने घर के कार्यों में, पर अभिभावक चाहते हैं की हमारा बच्चा ही हर काम में प्रथम आए। हमें सिर्फ अपने बच्चे की प्रतिभा को देखना है। वह किस क्षेत्र में अच्छा है, उसकी प्रशंसा करना, ना की उस पर इतना दबाव बनाना की वह अवसाद में चला जाए। आज के दौर की सबसे बड़ी...
भारतीय परिधान साड़ी
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भारतीय परिधान साड़ी

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** आज साड़ी दिवस पर आप सभी के समक्ष अपने विचार रखना चाहूंगी। साड़ी के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है। साड़ी ही एक ऐसा परिधान है, जो देश विदेशों में भी सम्मानित रूप से देखा जाता है और इसी आदर के साथ धारण करना हर भारतीय के लिए गर्व की बात है, इस विशेष परिधान को हमारे राजा-महाराजाओं के जमाने से भी पूर्व से स्त्रियां सम्मान पूर्वक धारक कर रही है। "ऐसा नहीं है कि, किसी परिधान में कोई खराबी है या कोई परिधान छोटा या बड़ा है, परंतु साड़ी की विशेषता (बात) ही अलग है! अलग-अलग प्रांत में साड़ी को अलग-अलग तरीके से पहना जाता है परंतु फिर भी साड़ी हमेशा ट्रेंडी बनी रहती है इसे आजकल नव युवतियां, और भी क्रिएटिव तरीके से पहनती हैं कभी ब्लाउज के साथ कभी शर्ट के साथ तो कभी कुर्ती के साथ और तो और आजकल स्कर्ट के साथ भी साड़ी को देखा जा सक...
सूर्य का संदेश
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सूर्य का संदेश

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** संक्रान्ति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य का बल ही इस दिन को पर्व बना देता है। भौतिकवैज्ञानिकों ने सूर्य के भौतिक स्वरूप को प्रतिपादित किया है, धर्मप्रवर्तकों ने उसको सूर्यदेव कहकर पुकारा। इनके अतिरिक्त सूर्य के दर्शन होने पर एक प्रकार की नैतिक एवं आध्यात्मिक अनुभूति भी होती है। प्रतीत होता है मानो सूर्य हम मानवों को कुछ संदेश देना चाहता है। संक्रान्ति के पावन पर्व पर सूर्य का यह संदेश सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचे, इस लेख का आशय यही है। सूर्य प्रबलतम् एवं बलवान है किंतु अहंकारहीन एवं विनम्र। अहंकार संस्कारहीनता है, विनम्रता मानवधर्म, जीवनधर्म है। जितना बलवान उतना ही विनम्र, जितना समर्थ उतना ही सम्यक् दृष्टि युक्त। हमें सूर्य से शिक्षा लेनी चाहिए- सर्वशक्तिमान किंतु विनम्र, बलवान किंतु संस्कारयुक्त, निष्ठा...
स्त्री संवेदना संदर्भ छुटकारा कहानी
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स्त्री संवेदना संदर्भ छुटकारा कहानी

काजल कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** ममता कालिया की कहानियों में स्त्री पात्र अस्तित्वहीन होकर अपने अस्तित्व की तलाश में संघर्ष कर रहे हैं। वर्तमान युग की स्त्रियां पुरुषों के समक्ष ही नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान और अपने वजूद को कायम करने के लिए संघर्षरत हैं। सदियों से प्रताडित नारी एक अघोषित युद्ध के के खिलाफ संघर्ष कर रही है। समाज से लेकर परिवार कर तक वे संघर्ष कर रही हैं। और इसी संघर्ष ने उन्हें अपने अंदर एक अभूतपूर्व आत्मविश्वास को जगाया है। नारी जहां इस प्रतिसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष कर रही है, वहीं वे मेहनत तथा अदम जिजीविसा के बल पर समाज एवं परिवार में अपने धूमिल पड़े अस्तित्व को एक निखारने के साथ दी साथ एक अलग पहचान दी है। •स्त्रियों के संदर्भ में स्त्री लेखिकाओं का नजरिया बहुत ही महत्वपूर्ण है। * सिमोन दा बोउबार - "स्त्रियां ...
श्राद्ध से श्रद्धा तक
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श्राद्ध से श्रद्धा तक

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब तक जीवित हैं...हम प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन मनाते हैं। हाँ, मनाने के तरीके भले प्रथक हो। किन्तु हम यह एहसास नहीं भूलते कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया। यह हमारी भारतीय परंपरा है कि मृत्योपरांत भी हम अपने परिजनों को भुला नहीं पाते। उनकी स्मृति बनी रहे... इस हेतु श्राद्ध करते हैं। कहने को यह एक धार्मिक अनुष्ठान है किंतु इसके साथ भावनाएँ भी जुड़ी हैं। अनन्त चतुर्दशी पर गजानन की विदाई के पश्चात पूर्णिमा से श्राद्ध आरम्भ हो जाते हैं। इन्हें सौलह श्राद्ध भी कहते हैं। मृत्युतिथि अनुसार श्राद्ध करते हैं। स्वच्छता व विधिविधान से किसी ब्राह्मण को भोजन हेतु न्यौता जाता है। किंतु पण्डित लोगों को भी कुछ विशेष अवसरों पर ही पूछा जाता है। सही है कि दक्षिणा के लालच में कइयों का आग्रह मान लेते हैं। थोड़ा बहुत ग्रहण कर अगले यजमान के यहाँ पहुँच जाते हैं।...
परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण
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परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** आज के भागदौड़ भरे इस आधुनिक जीवन में किसी के पास वक्त ही नहीं है। एक घर में रहकर भी घर के सदस्य एक-दूसरे के साथ बैठकर खाना नहीं खा पाते, बात नहीं कर पाते हैं। ऐसा नहीं है बात नहीं करना चाहते। सभी करना चाहते पर घर-परिवार की जिम्मेदारियां और फिर कमाने की जद्दोजहद में सब व्यस्त रहते हैं। सोचते हैं इस वर्ष की बात है अगले वर्ष सब ठीक हो जाएगा परंतु अगले वर्ष करते-करते कब बुढ़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता? एक आदमी को सिर्फ कमाना ही नहीं होता बल्कि बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य, घरवालों के ख्याल के साथ-साथ बहुत से खर्चों का ध्यान रखना पड़ता है। उसे हमेशा एक ही चिंता रहती है कहीं घरवालों की जरूरतें पूरी ना हो, या कहीं कोई क़िस्त समय पर ना जाएं या फिर बच्चे की स्कूल फीस, ट्यूशन फीस लेट ना हो जाए। त्योहारों पर बच्चों की जरूरतों का सामान...
स्वर्ण मृग आज भी सत्य
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स्वर्ण मृग आज भी सत्य

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** स्वर्ण मृग वस्तुतः एक छलावा ही तो हैं, जो की आज भी प्रासंगिक हैं, वास्तविकता की आज कोई दरकार ही नहीं हैं, सब कुछ बाहरी आकर्षण ही हैं ओर आकर्षण भी ऐसा की इससे अछूता कोई रह ही नहीं सकता। सुबह से शाम तक कोई ना कोई किसी ना किसी को छल ही रहा हैं बातों में मिश्री घोल सुंदर सा लबादा ओढ़कर सिर्फ़ ठगा ही जा रहा हैं। यूँही ज़िंदगी कई बार बेवजह के इम्तिहान लेती हें। टूटे हुए शाख़, दरख़्त भी कई बार मिलकर एक मुकम्मल जहां बना लेते हें। ज़िंदगी की राहों में ऐसे मुक़ाम आना भी लाज़मी हें वरना अपनी रूह से मुलाक़ात ही कहाँ हो पाती हें। कई बार आदतन या कई बार मजबूरी से हमें अपना माँझी दिख नहीं पाता ओर नतीजन हम रास्ता भटक ही जाते हैं। यह भटकाव ज़रूरी नहीं कि हमें गर्त की ओर ही ले जाए कई बार इसके नतीजे क्रांतिकारी भी होते हैं। जैसे कि महात्मा बुद्ध को ही ले ...
घर एक मंदिर
आलेख, कविता

घर एक मंदिर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "घर" शब्द में जितनी मिठास भरी है, वह "मकान" में कहाँ। लोगों को अक्सर कहते सुना है, "अरे, बस अब घर पहुँच ही रहे हैं। आराम से घर पर ही सब सुकून से करेंगे।" जहाँ तक घर के संदर्भ में मेरे संस्मरण हैं, कुछ हट कर हैं। बचपन बीता हवेली में। पढ़ाई हेतु देवास में दो कमरों का किराए का मकान। रहने वाले माँ और हम पाँच भाई बहन। ऊपर से आने वाले मेहमान अलग से। पढ़ाई के साथ सबका खाना व घर के अन्य काम। बड़ी बहन तो होती ही है जिम्मेदार। सामान बहुत कम, पंखा भी नहीं। सजावट के नाम को सबकी किताबें। ब्याह के पश्चात सरकारी क्वार्टर्स मिलते रहे। एक ईमानदार पुलिसवाले के यहाँ सोफ़ा वगैरह के लिए सामान पैक करने के खोखों का उपयोग होता। उन्हें कपड़ो के कव्हर से सजा दिया जाता। एक दो साल हुए नहीं कि स्थानान्तर झेलो। बंजारों के माफ़िक़ सामान बाँध एक डेरे से दूसरे डेरे...
रिश्ते की डोर
आलेख

रिश्ते की डोर

पियुष कुमार रोहतास (बिहार) ******************** मानव जीवन में रिश्तों का निर्माण प्राचीन काल में ही प्रारंभ हो गया था। रिश्तों का विकास ही समाज निर्माण का परिणाम है। यद्यपि यह मानव निर्मित विचारधारा अथवा भावना है, फिर भी ये परमात्मा या ईश्वर का उद्देश्य ही प्रतीत होता है। प्राचीन काल में जब मानव विकास के पथ पर यात्रा करना प्रारंभ किए तो सबसे पहला कार्य उनका समूह में रहना ही है। मानव को समूह में रहने की आवश्यकता उनके भोजन को इक्कठा करने या बहुत बड़ी मात्रा में भोजन संग्रहण को लेकर हुई। क्योंकि भोजन कभी कभी ज्यादा मात्रा या बड़े जानवरों को मारने से प्राप्त हो जाती तो कभी-कभी बहुत दिनों तक भोजन के बिना ही रहना पड़ता था। इसलिए भोजन को संग्रह करना प्रारंभ किए जिसके लिए एक से अधिक लोगों की आवश्यकता हुई। धीरे-धीरे कुछ लोग समूहन करना प्रारंभ किए जिसमे एक भावना उत्पन्न होने लगी और वो भि...
श्रीकृष्ण एक… रुप अनेक…
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श्रीकृष्ण एक… रुप अनेक…

राजकिशोर वाजपेयी "अभय" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** भादों मास के कृष्ण-पक्ष की अष्टमी तिथि को कंस के कारागार (मथुरा) में जन्मे देवकी और वसुदेव के आँठवे पुत्र कृष्ण सनातनी परम्परा में बिष्णु के अवतार हैं, जो अपनी गीता में की गई घोषणा अनुसार संभवानि युगे-युगे के अनुरुप द्वापर युग के अंतिम काल में दुष्टों के संहार और धर्म की स्थापना हेतु अवतरित होते हैं। जन्म लेते ही कंस से उनकी प्राण-रक्षा हेतु पिता वसुदेव मूसलाधार बरसात के बीच बाढ-ग्रस्त यमुना नदी में होकर अर्ध-रात्रि में ही उन्हें गोकुल में अपने मित्र नंद के पास पहुँचा देते हैं, जहां उनका पालन-पोषण नंद और यशोदा के द्वारा किया जाता है। कृष्ण ही है जो भारतीय समाज की उत्सव-धर्मिता को वखूबी प्रकट कर, कहीं बाल रुप में लड्डू गोपाल है, कहीं विठ्ठल,कहीं रंगनाथ,कहीं जगन्नाथ, और कहीं बद्री विशाल और कहीं द्वारकाधीश स...
उपेक्षा का मलाल
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उपेक्षा का मलाल

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सामान्य विद्यार्थियों के संदर्भ में शिक्षक कैसे हो ? विषय के संदर्भ में मेरी कहानी सरला के दिल से... एक दशक पश्चात विद्यालय की एक बेच का मिलन समारोह चल रहा है। देश विदेश से शिरकत करने आए हैं... नामी गिरामी डॉ. पत्रकार इंजीनियर्स, प्रोफेसर्स, व्यापारी आदि-आदि। सारे सहपाठी आए हैं अपने परिवारों के साथ। मिलने मिलाने का दौर चल रहा है। पहचान नहीं पा रहे हैं अपने संगी साथियों को। मज़े की बात यह कि कइयों को बच्चों में उनके माँ-पापा की झलक मिल रही है। शिक्षकों के साथ भी सब भूली-बिसरी यादें साँझा कर रहे हैं। कहाँ हैं ? कैसे है ? क्या चल रहा है ? सभी की उत्सुकताएँ बढ़ रही थी जानने के लिए। सब बड़े आदर से अपनी पसंदीदा शिक्षिका मिसेस घोष से मिल रहे हैं। वे बहुत प्रसन्न नज़र आ रही हैं अपने पढ़ाए हुए बच्चों की प्रगति जान कर। मिसेस घोष का कौन ...
गोकुलाष्टमी
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गोकुलाष्टमी

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** आज गोकुलाष्टमी... गोकुलाष्टमी भगवान श्रीकृष्ण ने श्रावण मास में जन्म लेकर श्रावण मास को सिद्धि/पूर्णता प्रदान की है। श्री कृष्ण अवतार का मूल सूत्र भक्ति है। श्रीकृष्ण का जन्म ऐसे स्थान पर हुआ था कि उन्होंने भक्ति के साथ शुरुआत की। वे गोपियों के संपर्क में आए। दर्शन और अध्ययन बाद में आए। कोई नहीं जानता कि भगवान के जलक्रीड़ा उनके बचपन की थी। श्री राम के अवतार में भगवान को जानने वाले सभी ऋषियों ने मोक्ष की इच्छा के साथ उन्हें गले लगाने की इच्छा व्यक्त की। बाद में जब श्रीकृष्ण अवतार में यहां आए तो पिछले जन्मों के सभी ऋषि गोपाकन्या के रूप में पैदा हुए, बचपन तक उनके साथ खेल खेले और उन्हें गले लगाया। उसके बाद, जब भगवान मथुरा गए, तो वे केवल साढ़े ग्यारह वर्ष के थे। भगवान कृष्ण के आदर्श को आंखों के सामने रखना चाहिए। जब वे गोकुल में...
ईमानदारी व्यर्थ नहीं जाती
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ईमानदारी व्यर्थ नहीं जाती

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यकायक एक अनजाना सा, गुमनाम सा नाम द्रोपदी मुर्मू जी का चर्चा में आ गया है। एन डी ए से राष्ट्र के सर्वोच्च पद के लिए एक आदिवासी महिला का नाम घोषित होता है। सभी उत्सुक हैं जानने के लिए आखिर ये मोहतरमा हैं कौन ? सचमुच द्रोपदी मुर्मू जी एक साधारण महिला ही है। जैसे कभी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद या लालबहादुर शास्त्री देहात परिवेश से आकर अपनी योग्यताओं के कारण देश के उच्च पदों पर आसीन हो गए थे। द्रोपदी मुर्मू जी का जन्म २० जून १९५८ को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी ग्राम में एक सांथाल परिवार में हुआ था। पिता ने इन्हें गाँव में ही प्राथमिक शिक्षा दिलवाई थी। वे खूब पढ़ना चाहती थी ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर सके। घर में गरीबी इतनी थी परिवार को शौच के लिए जंगल जाना पड़ता था। उन्होंने स्नातक की शिक्षा भुवनेश्वर में रह कर अर्जित की। ...
पर्यावरण दिवस
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पर्यावरण दिवस

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** हम चारों तरफ से आवरण से घिरे रहते हैं उस प्राकृतिक तत्व को पर्यावरण कहा जाता है। यह प्राकृति तत्व ही जीवन की संभावना का निर्माण करता है। इसमें हवा, पानी, धरती, आकाश, प्रकाश, पेड़, पशु, पक्षी सभी सम्मिलित हो जाते हैं। पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन की संभावना है और इसी जीवन के अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण अति आवश्यक हो जाता है। प्रत्येक वर्ष ५ जून को पूरा विश्व पर्यावरण दिवस मनाता है। यह पर्यावरण के संरक्षण हेतु एक अभियान है। पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले तत्वों को रोकने का संकल्प लिया जाता है। पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत इस उद्देश्य के साथ की गई थी कि वातावरण की स्थितियों पर इस दौरान ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा और भविष्य में भी पृथ्वी पर सुरक्षित जीवन की सुनिश्चित किया जा सकेगा...
अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो… वाद-विवाद
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अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो… वाद-विवाद

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वाद-विवाद आदरणीय निर्णायक गण, विपक्ष के प्रतिभागी एवं उपस्थित मेरे प्रिय साथियों !!! मैं सरला मेहता प्रदत्त विषय के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ। पूर्व जन्म में मैं क्या थी, मुझे नहीं पता। किन्तु अगले जन्म में भी मुझे बिटिया बनने की ही चाह है। हाँ, सुना है मैंने 'नारी सर्वत्र पूजयते'। मैं पूजित होने के लिए नहीं वरन परिवर्तन की प्रणेता बनने के लिए बेटी के रूप में पुनः आना चाहूँगी। अभी तक मैं अनुभव ही बटोरती रही। अब मैं चाहती हूँ कि उनका सदुपयोग कर सकूँ। बेटी- जन्म के प्रति सामान्यजन की सोच बदलना चाहती हूँ। अभी वह इस संसार में आई ही नहीं है। जन्म पूर्व ही उसका पोस्टमार्टम कर दिया जाता है। मैं चाहती हूँ कि मेरा स्वागत भी एक बेटे जैसा ही हो। अरे! सुने होंगे ना पारम्परिक गीत। जन्मे बच्चे के लिए गाया जाता है, "अवधपुरी...
औषधीय गुणों से युक्त “काफल”
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औषधीय गुणों से युक्त “काफल”

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** फलों में पोटेशियम की अधिक मात्रा होने से उच्च रक्तचाप और गुर्दे में पथरी होने से बचा जा सकता है। साथी हड्डियों के क्षय को भी रोका जा सकता है। फलों के तुल्य कोई भी अन्य भोज्य पदार्थ नहीं हो सकता है फलों में कई ऐसे जादुई सूक्ष्मात्रिकतत्वोंऔर एंटी-आक्सीडेंट्स का मिश्रण पाया जाता है जिनकी पूर्ण खोज वह ज्ञान अभी भी अज्ञात है। जिन फलों के सेवन से स्वास्थ्य को अच्छा लाभ बनाए रखने में मदद मिलती है उनमें- सेव, अमरुद, अंगूर, संतरा, केला, पपीता, विशेष रूप से प्रयोग किया जा सकता है। उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल उत्तराखंड और नेपाल में पाया जाने वाला सदैव हरा भरा रहने वाला "काफल' का वृक्ष प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। जिसके फल को "बेबेरी" नाम से भी जाना जाता है का- फल खाने में अत्यधिक स्वादिष्ट, हरा, लाल, व काले रंग में पाए जाते ...
माँ तू बहोत याद आती
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माँ तू बहोत याद आती

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होले से चपत लगाकर के सूरज संग मुझे जगा देती जो मेरे सपने सजाती थी वो सपनों में क्यूँ समा गई माँ ! तू बहोत याद आती माथा मेरा सहला करकर बालों को तू सुलझाती थी लाल रेशमी रिबन बांधके भालपे मीठी मुहर लगाती माँ ! तू बहोत याद आती नाज़ुक महकते हाथों से गरम नाश्ता रोज़ कराती बस में मुझे चढ़ा कर के भारी  बस्ता थमा जाती माँ ! तू बहोत याद आती जन्मदिन की तैयारियों में कई रातें माँ तू नहीं सोती मुश्किलें जो आती मुझपे हर मर्ज़ की दवा बताती माँ ! तू बहोत याद आती अब तेरी नातिन मुझको दिनभर  नाच नचाती है झुंझलाती थकके मैं बैठूँ तस्वीर से तू है मुस्काती माँ ! तू बहोत याद आती परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सीखना व्यर्थ नहीं जाता
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सीखना व्यर्थ नहीं जाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन भी एक पहेली है। जो सोचते हैं वह कब कहाँ छूट जाता है कह नहीं सकते है। मैं अंग्रेजी साहित्य में स्नाकोत्तर हूँ। किन्तु जब नौकरी का सोचा तो शुरुआत सहकारी बैंक से की। शब्दों को छोड़ अंकों का दामन थामा। सहकारी प्रशिक्षण में म.प्र. में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाया। किन्तु एक माँ व पत्नी को छुट्टियों वाली नौकरी ज़्यादा सुविधाजनक होती है। दस वर्ष पश्चात शिक्षण के क्षेत्र में कदम रखने के लिए बी एड किया। एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश हुआ। यहॉं भी चुनौतियाँ थी। अंग्रेजी की ज्ञाता तो थी पर अंग्रेजी अच्छे से बोलने में झिझक थी। एक गाँव की लड़की व सरकारी विद्यालय की छात्रा जो थी मैं। बस लगी रही मुन्नाभाई की तरह। एक शिक्षिका होकर घर पर विद्यार्थी बन जाती। एक प्रशिक्षक के साथ कॉन्वेंट वाली अंग्रेजी बोलने का अभ्यास करने लगी। और गटर-पटर करते मेरी गाड़ी चल ...
पुस्तकों का जीवन में महत्व
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पुस्तकों का जीवन में महत्व

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज में रहता है, जिसमें रहने के लिए बहुत सी बातों का ज्ञान होना चाहिए। मनुष्य का समाज में सामाजिक और मानसिक विकास भी होता है। पुराने मंदिर और इतिहास की चीजें नष्ट हो जाती है, लेकिन किताबों में सब कुछ सुरक्षित रहता है, जिसके द्वारा हम इतिहास के विषय में जान सकते हैं। अगर पुस्तक ना हो तो हम बहुत सी बातें हैं बातों से अनजान रह जाएंगे। जिस प्रकार तन को स्वस्थ रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन को स्वस्थ रखने के लिए साहित्य की आवश्यकता होती है। जीवन की वास्विकता का अनुभव करने के लिए पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुस्तकें ही हमारे ज्ञानकोष का भंडार है। पुस्तक इंसान की सबसे अच्छी मित्र है, हमेशा पास रहती है, वह बिना बोले ही सब कुछ कह जाती हैं। पुस्तक...
क्षमा- एक दिव्य गुण
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क्षमा- एक दिव्य गुण

सुनीता चौधरी 'सरस' अबोहर फाजिल्का (पंजाब) ******************** एक सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ कई दिव्य गुणों से अभिभूत है। यह दिव्यता परमात्मा ने उसे हर क्षेत्र में प्रदान की है। चाहे हम भौतिक गुणों की बात करें या आध्यात्मिक गुणों की। इन गुणों से सरोबार मनुष्य है दिन प्रतिदिन विकास की ऊंचाइयों को छूता हुआ अपने किस्मत का सितारा आसमान में चमक आ रहा है। इन सितारों को चमकाते-चमकाते वह क्या सही और क्या गलत कर रहा है उसे कुछ भी ध्यान नहीं है। माना कि जब भी मानव गलती करता है तो हर बार परमात्मा उसे किसी न किसी रूप में क्षमा कर देता है। लेकिन बुलंदियों को छूता हुआ मनुष्य अन्य लोगों को रुलाता हुआ इस प्रकार आगे बढ़ता है कि उसे अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता लेकिन अगर हम पुराने समय की बात करें तो समाज में जियो और जीने दो की भावना पूरे समाज को सरोबार वह तरोताजा रखती थी। लेकिन आज का मनुष्य क्...
होलिका और भक्त प्रहलाद
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होलिका और भक्त प्रहलाद

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** राक्षस राज हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु प्रहलाद के जन्म से बहुत खुश थे। परन्तु प्रहलाद की भक्ति देख हिरण्यकश्यप बहुत परेशान रहने लगा। भक्त पहलाद के जन्म लेते ही वह भक्ति के सागर में गोते लगाने लगा और जब यह बात उसके पिता राक्षस राज हिरणयकश्यप को पता लगी। तो उसने अपने पुत्र को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया। कि वह भगवान विष्णु की भक्ति करना छोड़ दें, क्योंकि हिरण कश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। और बदले की भावना में जलता रहता था।क्योंकि भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। लाख प्रयास करने के बाद भी भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की उपासना करना नहीं छोड़ा। अंततः हिरण्यकश्यप ने हार मान कर भक्त पहलाद को मारने का निश्चय कर लिया। और उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली।ज्ञहिरणयकश्यप की बहन होलिका एक दुष्...