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कनागत

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वन्दना पुणतांबेकर
(इंदौर)

आज राम चरण अपनी उम्र को दरकिनार करते हुए।अकेले ही बनारस के घाट तक पहुंचे। बनारस के पास ही गांव में रहते थे। घर में कोई नहीं था। जो उनकी कद्र करें! सभी अपनी-अपनी भागा दौड़ी में लगे हुए थे। किसी को फुर्सत ही नहीं। यही सोच अकेले ७९ वर्ष की उम्र में हिम्मत धरकर निकल पड़े। घाट पर जाकर देखा तो जेब से रुपए कहीं नदारद हो चुके थे। कुर्ते की जेब में सिर्फ कुछ चिल्लर ही खनक रही थी। वह परेशान होकर इधर-उधर देखने लगे।तभी वहां एक भिखारन आई बोली- “बाबा श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं, कुछ दान पुण्य कर दो! रामचरण बोले-
“बेटा मैं भी यही सोच कर आया था।कि अपने माता-पिता का श्राद्ध कर लू,घर में किसी को फुर्सत ही नहीं, मगर मेरे रुपए गिर गए हैं!,समझ नहीं आ रहा क्या करूं घबराई हुई सी आवाज में वह बोले,”कोई बात नहीं बाबा मुझे तो रोज मिलता रहता है। आप यहीं बैठो मैं आती हूं। करते हुए वह गली से लौटकर आई और उसने उनके हाथों में ५०० का नोट रख चरण स्पर्श कर अपनों का कनागत दिया।

लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि :
५.९.१९७०
लेखन विधा :
लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा :
एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:-
बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद, 
कविताएं :-
वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन :
भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान :
“भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा


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