**********
रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी
पृथ्वी का सबसे अमूल्य संसाधन हूँ मैं,
केवल जल नहीं, जीवन का रसायन हूँ मैं।
सूक्ष्म जीव हो या हो स्थूल शरीर,
रक्त के रूप में होता हूँ, मैं ही नीर।
हिम बनकर पर्वत पर छा जाता हूँ,
गहरे भूतल में, सागर मैं बन जाता हूँ।
झरने से बहता हूँ, मिलता हूँ नदियों से,
जीवन बनकर बह रहा हूँ, पृथ्वी पर सदियों से।
बहता हूँ मैं, क्योंकि बहना है प्रकृति मेरी,
लेकिन मुझको व्यर्थ बहाना, ये मानव है विकृति तेरी।
पृथ्वी की हरियाली ही मेरे प्राणों का आधार है,
लेकिन मेरे प्राणों पर ही मनुष्य, किया तूने प्रहार है।
केवल जल नहीं, रक्त हूँ मैं पृथ्वी का,
जब रक्त ही बह जाएगा, तो शरीर रहेगा किस अर्थ का?
समय रहते अपनी भूल को सुधार लो,
मुझको बचाकर, जीवन आने वाली पीढ़ियों का संवार लो।
.
लेखिका परिचय – श्रीमती पिंकी तिवारी
शिक्षा :- एम् ए (अंग्रेजी साहित्य), मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन एडिटर
सदस्य :- इंदौर लेखिका संघ
मौलिक रचनाकार
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…