डॉ. विनोद वर्मा “आज़ाद”
देपालपुर
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आज उसके घर के बाहर भीड़ लगी थी, लोग तरह -तरह की बातें कर रहे थे।
७० साल के भगवानदास कह रहे थे, लालची है ये लोग, बेचारी को पति सुख की चाह थी पर इन लोगों के लिए तो वह सोने की मुर्गी थी, हर माह मोटी रकम उसे मिलती थी, बेचारी की इच्छाओं की किसी को भी परवाह नही थी। रोज-रोज फरमाइश, पर उसके विवाह की किसी को चिंता नही थी। पहले पति की प्रताड़ना का शिकार हो वह अपने वालों के बहकावे मे आकर तलाक ले चुकी थी। १० वर्ष हो चुके थे। दोबारा शादी के लिए इतने फजिते होंगे ये वो जानती तो शायद तलाक ही न लेती !
किराने वाली सुशीला मां कहने लगी, वो भी मुवा ठीक नही था री। किसी की बेटी को ले गया और छोड़ दी केवल काम करनेवाली व “सोने का अंडा देने वाली” बाई बनाकर।
उसकी बचपन की सहेली जिसने ज्योत्स्ना के साथ अंतिम क्लास तक पढ़ाई की थी, बबली जो उसी की उम्र की थी कहने लगी, बड़ी मां ज्योत्स्ना के बचपन से ही बहुत सारे अरमान थे, वह अपनी प्रत्येक इच्छाओं को पूरा करना चाहती थी। इसीलिए वह लगातार पढ़ाई करती रही। शिक्षिका का पद प्राप्त कर वह पीएससी.की परीक्षा देकर डिप्टी कलेक्टर बनना चाहती थी, किंतु विधाता को कुछ और मंजूर था सो सामाजिक परिस्थितियों की वजह से उसकी जल्दी शादी कर उसके अरमानों पर पानी फेर दिया। वह खुली आँखों से सपने देखती थी। हमारे बीच मस्ती करना तो जैसे उसका नियमित काम था। सबसे प्यार भी करती थी। छोटों को स्नेह, हम उम्र को प्रेम और बड़े-बुजुर्गों को सम्मान देना उसके सिद्धांतो में शुमार था। स्कूल की प्रत्येक गतिविधियों में भाग लेती थी और सफलता भी पा लेती थी। उसे प्रतिदिन की डायरी लिखने का शौक था। उसकी हर एक बात मुझे शेयर करती थी। अपने घर वालों से ज्यादा मुझ पर विश्वास करती थी उसने इनके घर मे पुरस्कारों का ढेर लगा दिया था। इन लोगों ने ऐसे परिवार में उसको ब्याह दिया जहां पूरा परिवार ही व्यसनों से ग्रस्त था।
शराब, तम्बाकू, धूम्रपान, पान, सब का इस्तेमाल करते थे। बड़ा सा मकान देखकर होटल से लाये गए खाने से प्रभावित हो और घर के बाहर खड़ी किसी ओर की फोरव्हीलर दिखा दी। घर वाले उन लोगों की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गए और तुरत-फुरत रिश्ता तय कर उस बेचारी को लाल चियों के घर मे ब्याह दिया।
बड़े अरमान लेकर ससुराल की दहलीज में कदम रखा था।
सुहाग सेज पर बैठी-बैठी कल्पना की उड़ान भर रही थी। वो आएंगे, कुछ देर खड़े रहकर मुझे निहारेंगे, कहेंगे.”मेरी जान मेरी जिन्दगी में खुशियां ही खुशियां लेकर आई हो, ईश्वर ने तुम्हे मेरे लिए और मुझे तुम्हारे लिए ही बनाया है। आज दो दिलों की दूरियां हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी मैं तुझमे समा जाऊंगा और तुम मेरी जिंदगी में। तुम तो लक्ष्मीरूपा हो तुम्हे बहुत प्यार मिलेगा और सम्मान भी। जीवन मे सुख ही सुख पाओगी। घर-परिवार पर राज करोगी, ज्योत्स्ना कल्पना की उड़ान भरते हुए बार-बार दरवाजे की ओर टकटकी लगाए देख रही थी। जब देखा रात्रि के १:०० बज रहे है और पतिदेव का कहीं से कही तक पता नही था। की अचानक घर से बाहर किसी वाहन के आने की आवाज हुई।
मैं सहमी सी बैठी रही। दरवाज़ा खुला और शराब की गन्ध के साथ हवा का झौका कमरे में फैल गया मेरी कल्पना की उड़ान जैसे औंधे मुंह गिर गई। उन्होंने हल्की लड़ खड़ाहट के साथ बेड पर ओंधे मुंह लौट लगा दी।
मेरी तो जिंदगी ही तबाह हो गई। एक शराबी से मुझे ब्याह दी गई। हर एक लड़की के लिए सुहागरात बहुत मायने रखती है। पहली रात जीवन की हंसीन रात होती है। वह भी आंसुओं में बह जाए तो शादी शुदा जिंदगी नर्क से भी बदतर ही मानी जायेगी।
अपनी डायरी में ज्योत्सना ने एक – एक बातें लिखी बड़ी मां !
फिर भी बेचारी ससुराल में एक सुसंस्कारित बेटी, बहूं की भूमिका निभाने में इस सोच के साथ लग गई की हो सकता है शुरुआत में दु:ख लिखा हो और बाद में सुख ही सुख मिले। भारत भूमि पर इस प्रकार के संस्कार हर मां अपनी बेटी को देती है। इसी सोच के साथ पति में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से वह कई प्रकार के जतन करती रही। बात करती, पति उसकी बातें सुनकर दिलासा दे देता कि हां में अब जल्दी नशा करना छोड़ दूंगा लेकिन वह अपने को वैसा ही बनाये रहा। अपने मे परिवर्तन नही कर रहा था। चूंकि वह जॉब में लगी थी तब विदिशा के शासकीय स्कूल में अध्यापिका थी जब राजधानी भोपाल के पास गुनगा में ब्याही तब उसका ट्रांसफर भोपाल के पास ही करवा लिया था। शराब के पैसे प्रतिदिन देना जैसे एक आदत बन गई। नही दो तो उसे मां के संस्कार का हवाला देकर धमकियां देना, गलियों की बौछार मिलती। सास भी चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगती-“तू जोरू है वां की, उससे काम नही होत है, तो खर्च तो तेने देनो ही चइये। “जैसे ही महीने की एक तारीख होती तो घर के सामान की फेहरिस्त बनना शुरू हो जाती, सबकी फरमाइशों को पूरी करो, नही तो बस! धमकियां। महीना पूरा होते-होते पर्स ही खाली रहने लगता। वह स्वयम के लिए खर्चा भी नही कर पाती थी। पश्चाताप करती -रहती। उसे भूख लगती तो भी खर्च नही कर पाती थी। कारण पहले पहल मेरा पीछा करते थे घर के लोग। पता नही कैसी मानसिकता थी उन लोगों की? इसलिए मैं कभी भी रास्ते मे कुछ भी खरीदी करने या नाश्ता करने के लिए नही रुकती थी। ऐसी सहज-सरल और गम्भीर सोच रखने वाली गौरवर्ण ज्योत्स्ना का व्यक्तित्व काफी मस्त था। 5फिट 4इंच की लंबाई के साथ आकर्षक नैन नख्श थे। हिरनी जैसी गोल-गोल भूरी-भूरी आंखें,चाल तो जैसे हिरनी जैसी मस्त देखते रह जाओ। कमर के झटके, हर किसी की आंखों में खटके। मद-मदाति चाल उसके आकर्षण और उसके व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करती थी।
वह जब कॉलेज में पढ़ती थी तब कॉलेज पहुंचने पर लड़कों के कमेंट्स चालू हो जाते थे। क्या चाल है ? क्या ढाल है? क्या तीखी नाक है? कलर हल्का फेड जरूर है पर है दिलवाली।
प्रतिदिन कमेंट्स सुनना उसकी आदत सी हो गई थी। वैसे भी लड़कियों के साथ हर जगह ये हरकते लड़के क्या, लड़कियां भी करती रहती है। एक बार तो गली के ही एक लड़के ने हरकत कर दी तो उसने दो चांटे जड़ दिए थे।
इसके बाद तो जैसे वह शेरनी बन गई थी। उसको देखकर कोई भी कमेंट्स नही करता था। स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ज्योत्सना साहित्यिक-सांस्कृतिक, खेलकूद गतिविधियों में भाग लेती रहती थी। काफी पुरस्कार भी वह जीतती रही। भाषणबाजी तो जैसे उसकी मूल विधा थी। पढ़ने में भी अव्वल रहती थी। इसीलिए वह स्कूल-कॉलेज के टीचर्स स्टाफ की चहेती भी बनी रहती थी। बड़ी मां बबली से बोली-“तुझे इतनी सारी बातें मालूम थी तो तूने उसके घर वालों को इसके मन की बात तो करना थी” !
अरे…बड़ी मां-कोई सुने तब तो !
क्यों ? किसने नी सुनी ? मैं उससे मिलने जाती घर वालों से उसकी दूसरी शादी की बात करती तो घर वालों के चेहरे आड़े-तिरछे होते थे। दो एक बार मैंने भैयाजी से बोला तो वो कहने लगे – ‘तू क्यों चिंता करती है, वो यहां रह रही है तो अच्छा है ना ! तेरी सहेली को तू क्यों भगाना चाहती है? और….और…. अब ये बातें मत किया कर। मध्यम परिवार होने के कारण और काम धंधा मंदा चलने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नही है ना भैयाजी की ! उनके इस प्रकार से बोलने पर मैं तो बिल्कुल ही चुप हो गई। ज्योत्स्ना को एक दरोगा ने एक कंम्पाउण्डर ने इस दौरान प्रपोज भी किया था, मुझे उसने उनके बारे में बताया भी था पर उम्र में थोड़ा ज्यादा अंतर था। वह तो फिर भी तैयार हो गई थी, क्योंकि वो अपने राम बरन चाचा की लड़की श्यामली जो विधवा हो गई थी उसके बारे में बता रही थी की वह बहुत सुंदर और पोस्ट ग्रेजुएट थी अंग्रेजी फर्राटे से बोलती थी, उसके माँ-बाप ने भी उसकी पसन्द ना चलने दी कुछ ज्यादा उमर के टेलीफोन ऑपरेटर को छोड़ के एक हम उम्र किराना दुकान दार के यहां ब्याह कर दिया था। वो उसके घर वालों को कोसती है। वो बताती है- टेलीफोन बाबू ने दूसरी शादी की तो उनकी घर वाली तो मेरी उमर से भी छोटी है वो आज रानी बन के रह रही है। घर परिवार के लोग सब पढ़े-लिखे और संस्कारों वाले है। वो जब भी मिलते है तो अदब से नमस्ते करते है, हालचाल पूछते है। पर क्या करूँ ? घर वालों ने मेरी एक न चलने दी। मेरी चलती तो टेलीफोन वाली बाई कहलाती और आज सुखी जीवन जीती। वहां तो गली-मोहल्ले में ढेर सारी दुकान हो गई तो दाल -रोटी भी ढंग से नसीब नही होती। ये बात पिछली बार जब राखी पे आई थी तो ज्योत्स्ना के साथ मुझसे से मिली थी तब रो-रो के बता रही थी। उनके पास पैसा तो बहुत है पर है वो लोग कंजूस। कोई मेहमान आते है तो दाल में पानी ज्यादा डलवा देते है पर दाल की मात्रा नही बढ़ाते। ऐसे घर में देकर मेरे तो किस्मत ही फोड़ कर रख दिये। ज्योत्स्ना से साफ-साफ बोल गई की मां-बाप पहली शादी तो अच्छे से कर देते है लेकिन जब दूसरी शादी करना हो तो मान सिक रूप से त्रस्त रहते हुए कुछ उदाहरणों को ध्यान में रख सोच-विचार शुरू कर देते है यथा- कही कोई कुछ गलत हो जाये या तलाक जैसी बात आ जाये तब माँ-बाप अच्छा घर तो चाहते है पर समाज के लोग क्या कहेंगे?, लोग क्या सोचेंगे? कहीं कोई उल्टा-सीधा ना हो जाये कि समाज मे मुंह दिखाने लायक न रहे। यह भय भी घर वालों में घर कर जाता है। कभी-कभी ये बातें भी होती है कि इसके किस्मत में दुःख ही लिखा था तो हम भी क्या करें? ऐसा कह इतिश्री कर लेते है फिर रिश्तेदारों को भी दोष देना शुरू कर देते है की – हमे हमारे वालों ने ही नही बताया की लोग अच्छे नही है, लालची है, शराबी है। (पर यहां यह बताना आवश्यक है की जब सम्बन्ध की बात करते है तो लोग गुपचुप सम्बन्ध कर लेते है इस डर से की कही कोई बाधा न डालदे। विवाह उपरांत अगर घर-परिवार में खूब आनन्द और उल्लास का जीवन व्यतीत करते है तब फुले न समाते है व अपने किये सम्बन्ध पर गर्वित होते है और अगर परिवार ठीक न मिले व परेशानियों का सबब बनी शादी तो लोगों को दोष देना कहाँ से न्याय संगत है?) श्यामली ने इतनी सारी बातें और बोली की मैं बताने बैठू तो शाम हो जायेगी बड़ी मां। बड़ी मां ने बबली से कहा-“श्यामली ने ज्योत्स्ना से साफ-साफ क्या बोला था? “वो तो कह गई थी, दूसरे मोड़ पर अपनी जिंदगी के बारे में खुद ही सोचना, किस व्यक्ति के साथ या किस परिवार में सही निबाह हो सकता है ? फिर फाइनल डिसीजन तूने ही लेना, नही तो देख ले मैंरे पास आज पछताने के अलावा कोई चारा नही है।अब तो तीसरा किया ही नही जा सकता। यही तो हमारे संस्कार है। तो बड़ी मां मैंने भी ज्योत्स्ना को कहा था – “ज्योत समझ लेना तेरी पहली शादी और तलाक के बाद कितने साल से घर बैठी है। शादी के बाद महिला तलाक ले-ले या विधवा हो जाये तो दूसरी शादी के लिए दर-दर भटकने व रिश्ता ढूंढने में चप्पलें घिस जाती है। विधवा के लिए दूसरा सम्बन्ध करने के लिए लोग बहुत सारी बाते पूछते और करते है ! “की- “क्या हो गया था, कैसे शांत हो गए तुम्हारे पहले पति, क्या बीमार थे या एक्सीडेंट हो गया …आदि-आदि?”
एक तो उस बेचारी पर दु:खों का पहाड़ टूटा है और दूसरा यह कि उसके जख्मों को कुरेद-कुरेद कर हरा भी कर देते है। पर सामान्य तया ऐसी बातें तो होती ही है। फिर कोई पूछता है दोनों में से किसी को मंगल तो नही था? कोई और भी बातें होती है। बावजूद इसके सम्बन्ध तय हो ही जायेगा इसकी भी कोई ग्यारंटी नही होती
ऐसे ही विधवा महिला की दूसरी शादी के लिए सम्बन्धों का सिलसिला चलता ही रहता है कई महीनों बल्कि वर्षो तक। फिर भी कुछ प्रतिशत को ही दूसरी शादी के लिए सफलता मिलती है।
हां ! तलाक शुदा लड़की को भी कम परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। बल्कि निकट सम्बन्धी या रिश्तेदार ही तलाक शुदा लड़की के लिए परेशानी का सबब बन जाते है। दूसरा कुछ बोले उसके पहले ही वो बोलना और बताना शुरू कर देते है की अरे! वो तो बहुत घमंडी है, किसी से ज़्यादा बात नही करती, झगडालू भी है, पहले वाला तो अच्छा था इसको ही वहां रहने नही आया बहुत बड़ा घर का मकान था। चार पहिया गाड़ी के साथ महंगी दो पहियाँ गाड़ियां भी थी। इन लोगों के संस्कार ही ठीक नही है। मां से ही तो बेटी को संस्कार मिलते है। “जैसी मां वैसी बेटी”। कहीं किसी को अपनी कसम देकर कहते की-मैं एक बात बोलू तो किसी से बोलोगे तो नही? नही तो हमारे सम्बन्ध खराब हो जाएंगे। कसम व आश्वासन लेकर कहने लगते अरे – इसके तो नाज-नखरे ही बहुत है। छोटे-बड़े का इसके सामने कोई मतलब नही, मुंह फट बोल देती है। इसकी आदत तो ऐसी है की- “बाप को बाप नी तो पड़ोसी को काका क्यों बोलू” ? जबान की तेज है आदि-आदि बातें करते है । वे उसकी बुराइयों को हाईलाइट करते है उसकी अच्छाइयों को नही।
श्यामली ने अपनी जिंदगी से सबक ले बहुत सारे उदाहरण हमारे बीच रखे जो बहुत सटीक तो थे ही पर इससे श्यामली के अनु भवों को दाद देनी पड़ेगी।
उसने हमारे राज्य के एक राज नेता का उदाहरण दिया की उम्र के बंधन को लेकर हम और हमारे छोटे तबके के लोग गलत फैसला ले लेते है जबकि अपने से २५ साल कम उम्र की महिला से उन्होंने शादी की। उनकी उम्र उस समय ६५ वर्ष थी। नाथू दादा ने मेडम से प्रेम विवाह विवाह किया जबकि मेडम तो उनके लड़के से भी कम उम्र की ही थी। गुरु और मैडम के बीच लगभग आधा अंतर उम्र का। गायक किशोर कुमार ने अपने से बहुत कम उम्र की हिरोइन लीना चंदावरकर से शादी की थी। एक ६० साल के सन्त ने तो १८ साल वाली लड़की से शादी की।
आशाराम बापू, राम रहीम, के बारे में तो सबको मालूम है फिर हमारे जीवन मे इस प्रकार की सोच का क्या मतलब ? इसलिए ज्योत्स्ना तू सोच समझ कर अपनी जिंदगी का फैसला लेना। मैं तो ससुराल जा रही हूं तुझे तो अपनी इस बबली से ही सलाह और सहारा मिलेगा। सोच लेना।
क्यों बड़ी मां तलाक शुदा लड़की को एक तो इंतज़ार बहुत करना होता है और उससे जो प्रश्न पूछे जाते है वे उसे शूल की तरह चुभते भी है कि क्या? हां, चुभते तो है-
१.तुम्हारे तलाक का क्या कारण था ?
२.तुमने तलाक लेने के पहले सोचना था अपने मे परिवर्तन करना था।
३.लड़कियां तो लड़के की या लड़के लड़कियों की ही गलती बताते है।
४.तुम तो लड़की थी। तुम्हारी जिम्मेदारी बनती थी पति को सुधारने की। लेकिन यह नही सोचते कि “झोली का बिगड़ा” सुधर सकता है क्या ?
५.अब अगर दूसरी शादी करोगी तो उसके लिए क्या सोचा है ?
६.अपने मे परिवर्तन कर पाओगी ?, क्योंकि इस दूसरे विवाह के बाद तो जीवन मे आगे कोई चांस नही रहता इसलिए आगे की सोच कैसी रहेगी बताइये? आदि-आदि।
तब बड़ी मां ने बबली की बातें सुनकर उससे से कहा – “देख छोरी तलाक लेना कोई आसान बात नही होती।अति से अति हो जाने के बाद ही तलाक की नौबतआती है। लड़के-लड़की की समझ पर पत्थर पड़ जाने के बाद तलाक के सिवा कोई चारा नही रहता। इस बारे में किसी एक को दोष देना ठीक नही होता। ताली कभी एक हाथ से नही बजती। परिवार चलता है आपसी समझबूझ और तालमेल से। कभी लड़की गर्म तो लड़का नरम, कभी लड़का गुस्सा तो कभी लड़की नरम। गाड़ी के दोनों पहिये के बीच तालमेल हो तो ही गाड़ी रूपी परिवार चलता है। एक पहियाँ आड़ा-तिरछा और दूसरा छोटा तो किसी उबड़-खाबड़ रोड पर सीधी-सीधी गाड़ी चलेगी क्या?
नही चलती बड़ी मां। उसके लिए तो दोनों को मिलकर ही गृहस्ती चलाना पड़ती है। पर बड़ी मां ! बिचारी ज्योत्स्ना के साथ तो अन्याय ही हुआ और आज देखो!
अब भैया जी के मुंह से निकल रहा है मैं इसके मन को पढ़ लेता या मन की बात समझ लेता तो आज ये नौबत नही आती। मैने उसकी एक न सुनी। अगर मैं उसकी बात पर एक बार भी कान देता तो आज यह सब देखने को नही मिलता। बड़ी मांज्योत्स्ना की डायरी का आखरी पेज मुझे ही लिखना पड़ेगा। ज्योत्स्ना घर वालों से छिपकर लिखती थी अपनी डायरी। और मुझे रोज रात्रि में दे देती थी पढ़ने व रखने के लिए।
बड़ी मां बोली – बबली इसकी तो अभी कही सम्बन्ध की बात हो रही थी,फिर क्या हुआ ?
बबली बोली – इंदौर-उज्जैन, देवास रतलाम में से कहीं भी एक जगह शादी करने की मंशा ज्योत्स्ना ने जाहिर की थी। उसके ससुराल के पास ही एक बड़ा परिवार रहता है। उनकी मुखिया पुष्पाबाई का मायका इंदौर में ही है। वे अपने परिवार व रिश्तेदारों के विषय मे बताती रहती थी। एक बेटे का ससुराल रतलाम, एक का बड़वाह और एक बहूं भोपाल की ही है। सबके बारे में बताती रहती थी। कि कैसे सभी लोग प्रेम से रहते है। बहुओं को बेटियों की तरह रखते है। घर पर ही रहना, केवल घर की साफ-सफाई, झाड़ू – पौछा, खाना बनाना खाना और खिलाना के अलावा कोई काम नही। मांगलिक आयोजनों में पूरे परिवार का आना-जाना रहता है। सब प्रेम से मिलते है। खूब आव भगत की जाती है। अपनी हर पसन्द का खाना, घूमना-फिरना। खूब मजा आता है जब हम कहीं जाते है तो। मालवा अंचल का ह्र्दयस्थल इंदौर को माना जाता है और धार्मिक नगरी अवंतिका यानी उज्जयिनी के साथ रतलाम जिलों में हमारी रिश्तेदारी बहुत ज्यादा है। वहां दर्शनीय स्थलों की भरमार है। इंदौर जिले में ही विश्व प्रसिद्ध देश का पांचवां धाम “देपालपुर धाम” भी दर्शनीय स्थलों में से एक है। त्याग-तपस्या, अमन-चैन, प्रेम-मुहब्बत, मान-सम्मान, आव-भगत सब कुछ मिलता है इन स्थानों पर। जब जाते है तो अपनी मर्जी से लेकिन वापसी सबकी मर्जी से ही हो पाती है। तो उनकी बातों और उनके व्यवहार से काफी प्रभावित थी ज्योत्स्ना। पुष्पा बाई ने भी बहुत प्रयास किया था इस सम्बंध को टूटने से बचाने के लिये पर वो भी सफल नही हो पाई।
उनकी एक-एक बात लाखों की होती है इसीलिए ज्योत्स्ना पर उनकी बातों का गहरा प्रभाव था। उनकी बातों के अनुसार ही उसने भी इंदौर या उज्जैन में सेकंड मैरेज करने की सोची थी और वो कहती थी जहां बड़ा परिवार होगा वहां शादी करना मेरीप्राथमिकता में रहेगा, क्योंकि वहां खूब मस्ती के साथ आराम और घूमना फिरना भी आसानी से हो जाता है। बड़े परिवार में घर पर ताला लगाने की नौबत नही आती। खाना बनाने खाने-खिलाने में कभी दिक्कत नही आती क्योंकि महिलाएं एक से अधिक होने पर ये समस्या नही आती।
उसे एक अच्छा पढा-लिखा व प्रायवेट कम्पनी में सर्विस करने वाले व्यक्ति से सोशल मीडिया पर जुड़ने व एक ही समाज के होने के कारण उनसे चेट चलती रही। दोनो सामान्य रूप से अपने पारिवारिक जीवन की बातें शेयर करते रहे। ज्योत्स्ना की उम्र लग भग ३८-४० हो चुकी थी जबकि सामने वाले कि उम्र ५० से ऊपर थी। उनकी पत्नी का निधन हो गया था। दोनो के बीच कब प्यार पनप गया, कुछ पता ही नही चल पाया। पर हां एक बात मैने मार्क की ५० पार वाले अपनी पत्नी को दिलो जान से प्यार करते है और पूर्ण रूप से संतुष्ट भी रखते है।ज्योत को तो कोई बच्चे नही थे पर सामने वाला बेटे-बहूं वाला था। जब उसे यह मालूम पड़ा तो उसने मुझे आगे रहकर ही कहा- “बबली तू बता ५० पार वाला कुंवारा मिल सकता है क्या ?
३९-४० साल वाली मैं कुंआरी नही तो फिर वो कैसे कुंआरे मिल सकते है। मान भी लो मैं कुंआरी होती तो भी क्या इस उम्र में मुझे कोई कुंआरा व्यक्ति मिल सकता है क्या ? मेरी ज्यादा उम्र होने और कुंआरी रहने को लोग भी प्रतिक्रिया करने लगते की इतनी उम्र तक शादी क्यों नही की ? अनावश्यक प्रश्न खड़े करते। सामान्यतया इस उम्र तक मैं भी दादी नानी बन जाती फिर भला वो अगर दादा-नाना बन गए तो यह आश्चर्य करने वाली बात नही। जो होता ही है। मुझे एक बात तो बहुत अच्छी लगी उनका कहना है की तुम सर्विस करने जाओगी तो तुम्हे समय पर टिफिन,नाश्ता व चाय प्रति दिवस तैयार मिलेगा। बहुओं की सेवा भी मिलेगी। खाना बनाने की चिंता भी नही रहेगी। आते ही सास व नानी-दादी भी बन जाओगी। यह वाकई सत्य है हम सत्य को कैसे नकार सकते है? मैं मां नही बनी क्योंकि मुझे भी तलाक लिए वर्षों बीत गए। एक आस लगाए रही कि अब कोई आएगा-अब कोई आएगा। पर मेरा यह भ्रम तो टूट गया कि अब कोई आएगा ही ! बल्कि हमे ही प्रयास करना होगा तो ही जीवन जीने की सार्थकता सिद्ध कर पाएंगे नही तो जीवन ऐसे ही निकल जायेगा व तलाक को लोग सही मानने लग जाएंगे। जबकि मुझे जिंदगी अच्छे से जीने व जीवन के प्रत्येक कर्म को मैं पूर्ण कर सकूं यह मंशा तो है ही साथ ही दूसरी शादी कर अपने पर जो तलाक रूपी धब्बा लगा उस पर एक अच्छी बहूं के रूप में कार्य कर सकारात्मक जीवन के साथ धोकर सार्थक कर सकूं। मैं अपना जीवन ऐसे ही निकाल देती पर नही, मुझमे कुछ कर सकने का ज़ज़्बा अभी भी मौजूद है इसलिए चाहती हूं। बहुत अच्छा नही तो अच्छा तो कर ही सकूं। इसलिए मैंने तो निश्चय कर लिया है उनके कहे मुताबिक मैं अपने परिवार में मधुर व सकारात्मक व्यवहार से सबको अपना बनाकर वहां राज करूँगी और समाज मे आदर्श की स्थापना भी। अब मुझसे रहा नही जाता। उनसे बात करने व एक बार मिलने के पश्चात तो बस ! मैं उनकी रानी बनना चाहती हूं। एक बात और बबली मैं गुलाम की पत्नी नही बल्कि एक राजा की रानी के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने का प्रयास करूंगी।
इतने अरमान थे बेचारी ज्योत्स्ना के और आज देख लो उसकी एक न चली और वह इस दुनियां को कह गई “अलविदा”…..।
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परिचय :- डॉ. विनोद वर्मा “आज़ाद” सहायक शिक्षक (शासकीय)
शिक्षा – एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी.
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – आदर्श संस्कार शाला मथुरा (उ.प्र.) द्वारा “शिक्षा रत्न अवार्ड”
२ – स्वर्ण भारत परिवार नई दिल्ली-शिक्षा मार्तंड सम्मान
३ – विद्या लक्ष्य फाउंडेशन धनौरा (सिवनी) म.प्र. से राष्ट्रीय शिक्षक संगोष्ठी के तहत (शिक्षक सम्मान)
४ – मंथन एक नूतन प्रयास राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान-शुक्रताल,मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
५ – राज्य शिक्षा केन्द्र के अंतर्गत श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान,पीटीएस.इंदौर
६ – भाषा गौरव सम्मान-राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना म.प्र. इकाई।
७ – विश्व शिक्षक दिवस पर सम्मान-शिक्षक सन्दर्भ समूह-नेमावर म.प्र.
८ – टीचर्स इनोवेटिव अवार्ड (राष्ट्रीय अवार्ड) ZIIEI
९ – नेशनल बिल्डर अवार्ड (हरियाणा)
१० – हिंदी साहित्य लेखन पर अम्बेडकर फेलोशिप (सम्मान) नई दिल्ली
११ – हिंदी रक्षक २०२० सम्मान (राष्ट्रीय सम्मान), इंदौर
१२ – जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान।
१३ – पत्रिका-समाचार पत्र टीचर्स एक्सीलेंस अवार्ड
१४ – जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान।
१५ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान इंदौर द्वारा सम्मान।
१६ – भारत स्काउट गाइड जिला संघ द्वारा सम्मान
१७ – लॉयन्स क्लब द्वारा सम्मान
१८ – दैनिक विनय उजाला समाचार पत्र का राज्य स्तरीय सम्मान
१९ – राज्य कर्मचारी संघ, म.प्र.द्वारा सम्मानित
२० – शासकीय अधिकारी, कर्मचारी संघ द्वारा सम्मान।
२१ – रजक मशाल पत्रिका परिषद द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान
२२ – देपालपुर प्रशासन, एसडीएम.द्वारा १५ अगस्त २०१८ को सम्मान।
२३ – मालव रत्न अवार्ड,इंदौर
२४ – दृष्टिबाधित शासकीय शिक्षक संघ द्वारा सम्मान।
२५ – श्री गौरीशंकर रामायण मंडल द्वारा सम्मान।
२६ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान्
२७ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
२८ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मान।
२९ – युवा जनजागृति मंच सम्मान।
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