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करके तन्हा मुझे

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे।
मुड़के देखोगे जो पीछे तो मुझे पाओगे।
क्या मेरा साथ तुझे नापसन्द आया था।
तू तो कहती थी कि मैं तेरा ही साया था। २
क्या तुम्हें गैर की बातों ने मुझसे दूर किया,
कसूर इसमें भी तुम मेरा ही बताओगे…

करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे।

तुम्हारे अपने ही मुझे तुमसे दूर करते थे।
हमतो इस बात को भी कहने से डरते थे।
मैं तुम्हे कहीं खो ना दूं ये फिकर सताती थी।
तुम्हारा हाल तुम्हारी ही सहेलियां बताती थी। २
हुए बदनाम हम कई बार तुझको बचाने में,
नाम इसमें भी तुम मेरा ही लगाओगे…

करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे।

बिगड़ता कुछ नही बस तुम मुझे समझ जाती।
जाने से पहले एक बार कुछ तो बता जाती।
वजह क्या थी मुझे इस तरह छोड़ जाने की।
क्या तुम्हें चाह थी… कुछ और पाने की। २
जानता हूँ तुम नही छोड़ोगे ज़िद अपनी,
भला मुझे नही तो किसे बताओगे…

करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे।

परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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