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प्रदूषण मुक्त सांसें : पर्यावरण की महत्ता बताती जरूरी किताब

योगेश कुमार गोयल
नजफगढ़ (नई दिल्ली)

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                लोकमित्र

पुस्तक : प्रदूषण मुक्त सांसें
लेखक : योगेश कुमार गोयल
पृष्ठ संख्या : १९०
प्रकाशक : मीडिया केयर नेटवर्क, ११४, गली नं. ६, एमडी मार्ग, नजफगढ़, नई दिल्ली-११००४३
मूल्य : २६० रुपये
समीक्षक : लोकमित्र
हाल के सालों में यह पहला ऐसा मौका है, जब पिछले कुछ महीनों में दुनिया के बिगड़ते पर्यावरण और प्रदूषण की किसी गहराती समस्या ने हमारा ध्यान नहीं खींचा। शायद इसकी वजह यह है कि दुनिया पिछले कुछ महीनों से कोरोना संक्रमण के चक्रव्यूह में फंसी हुई है, नहीं तो कोई ऐसा महीना नहीं गुजरता, जब बिगड़ते पर्यावरण की बेहद चिंताजनक और ध्यान खींचने वाली कोई खबर दुनिया के किसी कोने से न आती हो। वास्तव में २१वीं सदी की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी या आतंकवाद नहीं है। इनसे भी बड़ी समस्या हर तरह का बढ़ता प्रदूषण है, जिसके कारण धरती पर लगातार विनाश का खतरा मंडरा रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार और सम-सामयिक राजनीतिक विषयों के प्रिंट मीडिया में लोकप्रिय विश्लेषक योगेश कुमार गोयल की हाल में आयी बहुचर्चित किताब ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ वास्तव में धरती की इसी विराट समस्या को संबोधित है। वास्तव में पर्यावरण किसी एक देश, एक समाज या एक इलाके की समस्या नहीं है। इसकी जद में पूरी दुनिया है। इसीलिए श्री गोयल की इस किताब का नजरिया वैश्विक है। किताब में १९ अध्याय हैं। ये सभी अध्याय वास्तव में दुनिया की विराट प्रदूषण जनित समस्या को एक नजर में देखने का उपक्रम हैं। इस तरह देखा जाए तो हिन्दी अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित उनकी १९० पेज की इस किताब में धरती की समस्त पर्यावरणीय समस्याएं एक क्रम में मौजूद हैं। इसलिए अगर विषय वस्तु को ध्यान में रखते हुए इसे गागर में सागर कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।


किताब में मौजूद हर अध्याय वास्तव में प्रदूषण की किसी समस्या या उससे पैदा हुई स्थिति का चित्रण है। किताब के पहले अध्याय ‘प्रकृति की मूक भाषा को समझें’ में दुनिया का ध्यान इस तरफ खींचा गया है कि धरती में रह-रहकर जो उथल-पुथल की कुदरती घटनाएं घट रही हैं, उनके पीछे छिपे संकेतों को समझें। ये धरती में इंसान की ज्यादती का नतीजा हैं। किताब का यह अध्याय बताता है कि आधुनिकरण और औद्योगिकीकरण में कहां हमने कुदरत की नैतिक सरहद का उल्लंघन किया है, जिसके नतीजे हमारे सामने हैं। किताब का दूसरा अध्याय वायु प्रदूषण को समर्पित है, जो वास्तव में मौजूदा दौर का सबसे बड़ा प्रदूषण संकट है। हर साल दुनियाभर में २० लाख से ज्यादा लोग जहरीले वायु प्रदूषण के कारण मौत के घाट उतर जाते हैं। वायु प्रदूषण हाल के सालों में सामने आयी प्रदूषण की सबसे बड़ी समस्या है, जिसके चलते सिर्फ इंसान ही नहीं, हरी-भरी प्रकृति की भी सांसें थम सी रही हैं।
किताब में जल प्रदूषण, खासकर जल-स्रोतों पर गहराते प्रदूषण की समस्या को भी बारीक निगाहों से देखा गया है। इसी क्रम में ध्वनि प्रदूषण पर भी किताब में बहुत ही सरस सामग्री है। बेलगाम उपभोग के चलते संकट का सबब बने प्लास्टिक की विनाशकारी भूमिका को भी लेखक ने बड़े विस्तार और गंभीरता से अपनी किताब में समेटा है। इस मायने में भी यह किताब खास है क्योंकि इसमें अकादमिक रूखाई नहीं है। चूंकि लेखक बहुत सारे विषयों का जानकार है, इसलिए भी किताब में जबरदस्त जानकारियों के साथ-साथ एक रोचक पठनीयता है।
किसी पत्रकार की गंभीरता से लिखी गई किताब इसलिए भी दूसरे लेखकों से ज्यादा उपयोगी होती है क्योंकि इसे न केवल सहजता से पढ़ा जा सकता है बल्कि आसानी से गहराती प्रदूषण की समस्या को बिना किसी बौद्धिक आतंक के समझा जा सकता है। जबकि बड़े-बड़े अकादमिक विशेषज्ञों की लिखी गई किताबें इस पैमाने पर खरी नहीं उतरतीं। योगेश कुमार गोयल एक सक्रिय लेखक हैं और देशभर के विभिन्न समाचारपत्रों में करीब-करीब उनके हर दिन महत्वपूर्ण लेख छपते हैं, उन्हें लेखन का लंबा अनुभव है। इसलिए उनकी किताब में लंबे-लंबे अनावश्यक और उबाऊ विवरण कतई नहीं हैं, जो आमतौर पर पाठकों के लिए किसी किताब को पढ़ने की सबसे बड़ी बाधा होते हैं।
‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ इतनी रोचक और सरल जुबान में लिखी गई है कि इसे कोई भी सामान्य पाठक पढ़कर अच्छे पर्यावरण का महत्व और प्रदूषण की गहराती समस्या को समझ सकता है। प्रस्तुत किताब पिछले कुछ महीनों से मीडिया में काफी चर्चा में है। ‘मीडिया केयर नेटवर्क’, नजफगढ़, नई दिल्ली-११००४३ से प्रकाशित इस किताब को अमेजन डॉट इन से खरीदा जा सकता है।
(लोकमित्र विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान ‘इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर’ में वरिष्ठ सम्पादक हैं)

परिचय :- नजफगढ़ नई दिल्ली निवासी योेगेश कुमार गोयल वर्ष १९९० से पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय हैं और ३० वर्षों के पत्रकारिता कैरियर में करीब १८ वर्षों तक तीन समाचार-फीचर एजेंसियों का सम्पादन कर चुके हैं। समसामयिक विषयों तथा सामाजिक विषयों पर अब तक १३ हजार से अधिक लेख लिख चुके हैं। फिलहाल काफी समय से नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, सामना, पांचजन्य इत्यादि कई प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादकीय पृष्ठ के लिए नियमित लिख रहे हैं। अभी तक उनकी छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंतिम पुस्तक पर्यावरण संरक्षण पर मार्च २०२० में हिन्दी अकादमी दिल्ली के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हुई है।


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