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दो जून की रोटी

दीपक कानोड़िया
इंदौर मध्य प्रदेश

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दो जून की रोटी खाने को
बेबस बैठी है मानवता
भांति-भांति के लोग यहां
जाने कब आएगी समता

कुछ लोलुप सत्ता के लोभी
कुछ राजनीति रचते धोबी
कुछ है विद्वान प्रकांड यहां
कुछ निर्धन से धनवान यहां
कितना भी धैर्य रखें जनता
जाने कब आएगी समता

कुछ को चाहिए आज़ादी
रुकती नहीं अब आबादी
दर दर पे घूमते हैं गांधी
फिर भी नहीं थमती आंधी
कर्तव्य निभाने से पहले
हक मांगने निकली जनता
जाने कब आएगी समता

जिस तरह कीट पतंगे भी
वृक्षों को काट के खा जाते
दीमक बनकर दीवारों पर
कण-कण को चाट के खा जाते
बस वैसे ही अब मानव है
या कह दो सच्चे दानव है
ख़ुद को ही काट रही जनता
जाने कब आएगी समता

दो जून की रोटी खाने को
बेबस बैठी है मानवता
भांति भांति के लोग यहां
जाने कब आएगी समता

परिचय :- दीपक कानोड़िया
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश


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