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कोरा कागज

विकास शर्मा
जयपुर (राजस्थान)

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मन में भरे अनगिनत विचार,
लिखो तुम इन्हें कोरे कागज पर।
मन भी हल्का हो जाए,
जितने शब्दों के तुम समानार्थी ढूँढों।

उतना ही कागज का अर्थ बढ़ जाये
जितने तुमने छंद-अलंकार लगाये।
शब्दों में प्रत्यय का भाव जगाओ,
तो कहीं उपसर्ग से नए शब्द बनाओ।

हिंदी और उसकी बिंदिया से ।
अपने मनोभावों को सजाओ,
बने शुद्ध भाव कहीं अर्धविराम लगाने से
देखों इन शब्दों की ताकत को।

कागज की बनी भाषा में,
उल्लास से निकले भाव मन में।
भुल जाओ तुम दुख दर्द को,
कागज पर पढ़ोगे जब
अपने मन की लिखी भाषा को।

परिचय :- विकास शर्मा
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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