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भगोरिया का रंग है

डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर  मालवा म.प्र.
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नाक सुआसी शोभती, खिलते लाल कपोल।
आंखन अंजन आंझके, नैना बने अमोल।।
हंस उड़ा बागन चला, ले मोतिन की आस।
नगनथ देखो नाकको, मन मे होत उदास।।
नदी नाव संजोग से, बहती पानी धार।
नाविक नदिया एकसे, म्यान फँसी तलवार।।
तोता मैना बोलते, चिड़ियां करती चींव।
कोयल मीठा गा रही, सखी संग है पीव।।
कामदेव सेना चली, करती चुनचुन वार।
भगोरिया का रंग है, करता है इजहार।।
मदन धनुष को धारके, तकतक मारे बाण।
फूलकली बरषा करे, घायल होते प्राण।
केरी रस से भर गई, मिठू मारे चोंच।
रस बरसे रस आत है, मैना कर संकोच।।
कमल पांखुड़ी खिलगई, भंवरों की ले आस।
चम्पा चटकी पीतसी, सरिता सरवर पास।।
कपोत कसके रातभर, मुरगा बोले भोर।
मोर मोरनी छुप गये, नैना होते चोर।।
पलाश भी अब दहकते, बिछुड़ी करें तलाश।
चूड़ियां भी खनक उठी, मंगल मोती आस।।
क्वारों की टोली चली, ले कंगन सिंदूर।
हाट बाट में घूमते, ले मस्ती भरपूर।।
सखियां पान चबारहीं, मीठा खायें धार।
संग सखी शरमागई, सौदा भया बजार।।
जीवन संगी को चुना, छोड़े लाख हजार।
साजन सजनी मिलगये, नैना करें शिकार।

परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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