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मन में है विश्वास

श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)
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किसी दिन, किसी क्षण,
किसी पल तो ये
कोरोना जाएगा ही।
गम के बादलों को चीर कल
विहँसता सूरज आएगा ही।

अभी गहरा तिमिर है,
पर रात का भी अंतिम प्रहर है।
कल फिर नूतन प्रभा के संग,
रवि मुस्कुराएगा ही।

बड़ा मुश्किल ये पल है।
मन में अब बचा न बल है।
दृश्य विचलित कर रहे अब,
ईश्वर ही एकमात्र संबल है।
कब तक सहेगा वो
अपने बच्चों के आँसू।
जल्दी ही पिघलकर वो
नेह बरसाएगा ही।

किसी माँ के बच्चों को छीना
किसी का ले लिया नगीना।
बड़ा दरिंदा ये निकला कोरोना,
मुश्किल किया सबका जीना।
मगर एक आस जिंदा है,
प्रभु पर सबका विश्वास जिंदा है।
न घबराओ मेरे साथियों
सबकी व्याकुलता देख
अब वो चक्र चलाएगा ही।

परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी
निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र)
विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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