अनुराधा बक्शी “अनु”
दुर्ग, छत्तीसगढ़
********************
मैं अक्सर पुस्तक लेकर जाम के पेड़ पर बने वाय आकार पर चढ़कर पढ़ाई करती। इस बार दो-तीन दिन बाद जाना हुआ। इस बात से अनजान की जाम के पेड़ पर मधुमक्खी ने घर बना लिया है। मेरी चीज निकलते ही पापा दौड़े-दौड़े आए माजरा समझते देर न लगी। लकड़ी में रूई लपेटकर मिट्टी तेल में डूबा कर धुआं से मधुमक्खियों को यह कहते हुए भगा दिया कि- “तुमने मेरी टुकटुक को काटा” और मैं हंस दी। मेरे चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए कितनी जादूगरी दिखाते। हर प्रकार की छोटी बड़ी बात व्यावहारिकता से चरितार्थ करके मुझ में स्वाभाविक तौर पर भर देते। मित्रवत व्यवहार करके जीवन के हर पहलू से अवगत कराते मुझे परिपक्व बनाने प्रयासरत रहते।
वह दिन भी आ गया जब मेरी विदाई को दूर किसी कोने से खड़े हुए देख रहे थे। हम दोनों ही एक दूसरे की आंखों में आसूं नहीं देख सकते थे। शायद पापा ऐसे ही होते हैं। अपने आंसू, दर्द, तकलीफ हमेशा छुपाते हैं। हमारी छोटी सी तकलीफ में तड़प उठते हैं। हमसे पहले हमारी जरूरतों का उनको पता होता है। कहां से, कैसे, लाते क्या करते कभी चेहरे पर शिकवा ना शिकायत न शिकन। सुबह से शाम तक इतनी मेहनत सिर्फ परिवार और बच्चों के लिए। अपने लिए कभी कुछ भी नहीं खरीदते। परिवार के लिए पूरी तरह समर्पित। ससुराल जाकर लेंड लाइन पर बात करते समय यह तुम यदि चुप रही तो मैं समझ जाऊंगा तुम परेशान हो और तुम यदि बात करती रही तो मैं समझ जाऊंगा कि तुम खुश हो, यह भी पापा ने सिखाया।
आज मैं छह माह की बच्चे की मां बन चुकी पर पापा का स्नेह भरा हाथ बहुत याद आता। बच्चे को सर्दी हो जाने पर मैं डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने उसे एक कफ सिरप दिया जो कि गुलाबी रंग का था। उन्हीं दिनों मेरे देवर को भी पूरे शरीर में खुजली हो गई थी। उन्हें भी डॉक्टर ने एक मरहम दिया जो कि कफ सिरप की ही तरह गुलाबी रंग का था। मेरी अनुपस्थिति में मेरे देवर ने मेरे कमरे में आकर अपने शरीर पर वह दवा लगाई और धोखे में कफ सिरप उठाकर ले गए और वह मलहम वहीं छोड़ दी। रात जब मैं कमरे में आई तो इस बात से अनजान मैंने बच्चे को वो दवा पिला दी। उसकी स्मेल अजीब लगी तो मैंने तुरंत उस दवा का नाम पड़ा। नाम पढ़ते ही मैं घबरा गई। वह एक्सटर्नल उपयोग की दवा थी जो की खुजली में उपयोग होती है जो कि एक प्रकार का पाइजन था। मैंने यह बात अपने पति को बताई पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। मेरी नजर बच्चे की सांसों के तरफ थी। तभी अचानक बच्चे के मुंह से दर्द भरी तीखी चीख निकली। मैंने बच्चों बच्चे को गोद में उठाया और हॉस्पिटल की तरफ दौड़ लगा दी। कुछ ही समय में बच्चे के शरीर से जहर निकालने के लिए कई जगह पाइप लगे हुए थे। बच्चे की हालत बहुत दयनीय थी। मैं आत्म ग्लानि से भर उठी कि मैं तुरंत डॉक्टर के पास क्यों नहीं आई? मैंने तुरंत उसको उल्टी क्यों नहीं कराई? मैं इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हूं?
मैं बच्चे के चेहरे को एकटक देखे जा रही थी। इस बात से बेखबर कि मेरे पीछे देवर को बचाने के लिए चाल चली जा रही है। मुझे कहा गया कि पति और पत्नी के झगड़े में मैंने बच्चे को जहर दे दिया। मुझे समझाया गया कि पुलिस बयान देने आएगी तो यह बोल देना वह बोल देना पर इन सब बातों से बेखबर मेरा ध्यान सिर्फ बच्चे की तरफ था। डॉक्टर्स, नर्स और पुलिस के द्वारा पूछे जाने पर जो बात जैसी थी मैंने उनके सामने रख दी। वह काफी अनुभवी और समझदार थे। वो हकीकत समझ मुझे आश्वासन देकरचले गए। परिवार में अपनी गलती छुपाने मुझे बदनाम किया जाने लगा। इसी बीच पापा का आना हुआ। पापा घर आए तो सास-ससुर और परिवार के बाकी लोगों से पहले मिले। परिवार वालों ने पापा को अनेक कहानियां सुनायी। मैं मन ही मन इस बात से घबरा रही थी कि कहीं पापा का भरोसा ना खो दूं। पूरा दिन परिवार वालों के साथ रहते पापा को मुझसे अकेले बात करने का मौका नहीं मिला। पापा जाने लगे तो बच्चे को गोद में खिलाने के बहाने मेरे पास आए मेरी आंखें में संकोच, शर्म और बेचारगी के भाव तैर रहे थे। पापा ने सीने से लगाते हुए मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते विश्वास के साथ कहा- “ये लोग जो बोल रहे हैं, वह सच नहीं है, मैं जानता हूं। अपने मन में किसी तरह की गिलानी मत लाना। ये लोग जो बोल रहे हैं वह तुम नहीं हो। उनको जो बोलना है वह बोलने दो। तुम क्या हो वह मैं जानता हूं। तुम अपना ध्यान रखो और मैं हर समय तुम्हारे साथ हूं। इन सभी की बातों में ध्यान ना देते हुए अपने ऊपर भरोसा रखो।”
कहते हुए वह बाहर निकल गए। हर बार की तरह इस बार भी वह अपने आंसू छुपाना चाह रहे थे। मेरे पिता का मेरे ऊपर विश्वास ने मेरे अंदर आत्मविश्वास भर दिया।
.
परिचय :- अनुराधा बक्शी “अनु”
निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़
सम्प्रति : अभिभाषक
मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak manch 👈🏻 हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…