डॉ. सुरेखा भारती
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दरवाजे के बरामदे में अपने जूते निकालकर, वह बैठक वाले कमरे में ही सौफे पर दोनों पैर पसार कर लेट गया। लेटे-लेटे ही उसने अपने टाॅय को खोलकर एक तरफ पटक दिया। आँखें बंद की और आवाज दी।
नीत….नीता ऽ जरा पानी लाना….
नीता हाथ में ग्लास थामे उसी और आ रही थी लो…… मुझे पता था आप आ गए है, मैंने पैरों की आहट जो सुन ली थी। यह कह कर उसने ग्लास रोहित के हाथों में थमा दिया। रोहित उस की ओर देख कर बोला – ‘आज मैें इतना थक गया हूँ,…… दिल्ली वाले बाॅस जो आए थे, उन्हें शहर में शापिंग करवानी थी और किसी अच्छे रेस्टारेंट में जाकर लंच करवाना था। हाँ बिल की पेमन्ट तो मिल जाएगी, पर उनकी बातें सुनते-सुनते मैं बहुत उब गया हूँ….।, रितेश को कहा था की तुम बाॅस के साथ चले जाओ…। तो सुना.. उसने भी बहाना बना दिया – ‘मेरी तबीयत ठीक नहीं हेै, वैसे भी तुम्हे करना क्या है, उनके साथ कार में ही तो बैठना है।’ बस फिर क्या मुझे ही जाना पड़ा। तुम भी स्कूल से अभी आई हो क्या? हाँ आज दिशा छुट्टी पर थी, तो उसकी क्लास भी लेनी पड़ी और उसका थोड़ा काम भी करना पड़ा, इसलिए देर हो गई।
अच्छा …। कहते हुए पानी का ग्लास नीता के हाथों में रखते हुए उसने कहा – सुनो, .. अब एक कप चाय पिलादो, हा ऽ ओर उसके साथ कुछ गरमा-गरम नाश्ता भी हो जाए, कुछ खाने को मन कर रहा है।
हाँ …हाँ भजिए बना देती हूँ …, वो क्या हेै की, आज दीदी का फोन आया था, कह रही थी, ‘भाभी! हम परिवार सहित शापिंग के लिए मार्केट आ रहे हैं। आप तो जानती है मार्केट में बहुत थक जाएंगे। घर जाने में देर भी हो जाएगी, तो आपके यही खाना खा लेंगे। बहुत दिनों से भैया भी नहीं मिलें हैं, उनसे भी मिलना हो जाएगा। तो खाना बनाने की तैयारी कर रही हूँ,’ कहते हूए नीता किचन की ओर चल दी।
दीदी आ रही है…, सुन कर रोहित की भौएं चढ गई। लो, अब शांति से लेट भी नहीं सकता। वो जीजाजी के फोकट के किस्से सुनना ही पडेंगे, पिछलीे बार राजनीति की चर्चा करते-करते कितनी बहस कर बैठे थे मुझसे। यह नेता ऐसा और वह नेता ऐसा, अरे होगा वह ऐसा, पर यहाँ तो हमें हमारा ही कमा कर खाना है न, कोई देने नहीं आता है। फिर भी बहस…., एक बार तो लगा कि बोल ही दूँ ,‘की आप मत आया करें’। … और वह दीदी, जीजाजी का ही पक्ष लेती है। अपने ससुराल वालों की तारीफ के पुल बांधा करती है। बड़े देवर ने शिमला से स्वेटर लाया पांच हजार का तो होगा ही। छोटे देवर ने अभी बच्चो को ड्रेस दिलवाएं सारे एकदम ब्रांडेड….. और तुम हो की राखी और दीवाली पर हजार दो हजार पकडा देते हो बस छुट्टी। अरे .. भाभी भी तो कमाती है….। कमाती है तो क्या उसे मिलता ही कितना है, दोनों को घर चलाना मुश्किल हो जाता है, ये दीदी के समझ में नहीं आता। तुम्हारे पास पैसा है।
रोहित के मस्तिष्क में जैसे-जैसे विचार चलते जा रहे थे, वैसे-वैसे संबंधों में उसकी कडवाडहट बढ़ती ही जा रही थी। अचानक मोबाइल की घन्टी ने उसके विचारों को विराम लगा दिया। मोबाइल नीता के बेग में था जो सौफे के एक तरफ पडा था। अरे…. नीताऽऽ ….तुम्हारा मोबाइल बज रहा है….।
तो उठालो नऽ.. , सुनलो किसका है.. नीता ने किचन से ही कहा…।
रोहित ने बेग उठाया और मोबाइल बाहर निकालने के लिए। बेग में हाथ डाला, उस कप्पे से उसके हाथ में कंघी, छोटासा कांच और फिर देखा तो पाउडर की डिबिया हाथ लगी। मोबाइल की बेल बज ही रही थी। उसने दूसरे कप्पे में हाथ डाला तो हाथ में चाॅकलेट, बिस्किीट का एक छोटा पेकेट हाथ लगा और कुछ टेबलेटस्। मोबाइल की घन्टी अब भी बज ही रही थी। उसने तीसरे कप्पे में हाथ डाला तो उसमें से एक रुमाल, डायरी, पेन और वही पर अन्दर के छोटे पर्स में कुछ छोटी-छोटी घडी किए हुए नोट हाथों में लगे। बेग में इतना सारा सामान। उसने अपनी जेब टटोली उसमें से अपना पर्स निकाला कुछ नोटों के अलावा उसके पर्स में कुछ भी नहीं था।
मोबाइल की घन्टी अब भी बज ही रही थी, आखिर नीता को ही आना पड़ा। उसने अपनी बेग से मोबाइल लिया और बात करने लग गई – हाँ दिशा बोलो, ,,,,,,,, ‘तुम स्कूल में आने की जल्दी मत करो, पहले अपने स्वास्थ्य देखो, अपने खाली समय में मैं तुम्हारी क्लास तो ले ही रही हूँ और हाँ तुम्हारी डायरी भी कम्प्लीट कर रही हूँ …। तुम अपना ध्यान रखना बात करते करते नीता किचन की ओर चल दी।
रोहित उसे देख रहा था, मन में विचारों का फिर से आना शुरू हो गया – कैसे सब मेैनेज कर लेती है ये, महिलाएं ? अपने रिश्तों को, अपने संबंधियों को और मित्रता को, एक साथ निभाना और चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं आने देना, कोई इन्ही से सीखे।
इस में बेग में हर समय, कांच, कंघी, पाउडर इसलिए की हमेशा तरोताजा दिखना चाहिए। बेग में रखे चाॅकलेट, बिस्क्टिस् अपने बच्चों खुश करने के लिए लाना नहीं भूलती वह। टेबलेटस् इसलिए हेै की कभी तबीयत नरम-गरम होतो तुरंत लेकर अपने काम पर लग जाए। अपने सिर दुखने का रोना लेकर नहीं बैठे। नौकरी और घर दोनों ही उसे चलाना है। दोहरी मानसिकता के साथ भी कितना बड़ा संतुलन। यह संतुलन एक महिला ही रख सकती हेै। डायरी इसलिए की घर में, कोई सामान लाना भूल न जाए उसे नोट कर लेना ही अच्छा। दिन भर काम में लगी रहने वाली, यह अपना बेग बाहर ले जाना कभी नहीं भूलती, और न इसे अपनीे आँखों से ओझल होने देती है।
शादी में जाएंगी तो भी कंधे पर बेग लटका हुआ मिलेगा। पैदल चल रही होंगी तो भी बेग को अपने हाथों से पकड रखेगी। किसी पार्टी में खाना खा रही होगी, तो भी बेग को अपने कंधे पर टांग कर रखेगी। मैं हमेशा कहता था – ‘अरे नीता तुम अपने बेग की इतनी क्यो चिंता करती हो…..।, और क्या भर कर रखती हो इसमें……….,। कितना अटाला इस में ….। ये बेग है या भानुमति का कुनबा…… ऐसा कई बार मैंने उससे कहा होगा, नाराज भी हुआ होगा। पर आज उसके बेग में हाथ डालकर उसकी विशाल मानसिकता परिचय हुआ। यह महिलाएं कैसे हँसते हुए सारे संबंधों का निर्वाह कर लेती है, और साथ ही घर के हर सदस्य का भी ध्यान रखती है। इनके मन की विशालता हम समझ नहीं पाते। बस अपनी संकुचित मानसिकता के आगे इन पर अपना अधिकार जमा लेते है, और उनकी यह भी विशालता है की वह उस अधिकार में भी प्रसन्न रहने का पूर्ण प्रयत्न करती है।
परिचय :- डॉ. सुरेखा भारती
कवियत्री, लेखिका एवं योग, ध्यान प्रशिक्षक इंदौर
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