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अभिमान के कारण

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मान अभिमान के कारण में,
उजड़ गए न जाने कितने घर।
हँसते खिल खिलाते परिवार,
चढ़ गये इसकी भेंट।
फिर न मान मिला,
न ही सम्मान मिला।
पर आ गया अभिमान,
जिसके कारण रूठ गये परिवार।।

हमें न मान चाहिए,
न सम्मान चाहिए।
बस आपस का,
प्रेम भाव चाहिए।
मतभेद हो सकते है,
फिर भी साथ चाहिए।
क्योंकि अकेला इंसान,
कुछ नहीं कर सकता।
इसलिए आप सभी का,
हमें साथ चाहिए।।

यदि आप सभी आओगें,
एक साथ एक मंच पर।
तो मंच पर चार चाँद,
निश्चित ही लग जायेंगे।
भिन्न भाषाओं और क्षैत्र
जाती, होने के बाद भी।
जब एक साथ मिलेंगे,
तभी हम हिंदुस्तानी कहलायेंगे।।

छोड़ दे जो तू अभिमान तो
तेरी ये काया बदल जायेगी।
मन प्रसन्न और दिल खिला हुआ
होने से नया स्वरूप दिखेगा।
तब तेरी जीवन शैली सच में
तुझसे कुछ नया करवाएगी।
जिसके कारण ही तुझे
समाज में मान सम्मान मिलेगा।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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