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खूबसूरती बसी है तुझमें

अंजना झा
फरीदाबाद हरियाणा

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जिंदगी कितनी खूबसूरती बसी है तुझमें
आलिंगनबद्ध हैं तुझसे तेरे हर स्वरूप में
सत्य से परे बंधे हैं मोह के अटूट बंधन में
आशा और आकांक्षा के भ्रमित संसार में।

हमें लुभाती रहती है तू सदा हर रूप में
कभी पूजा की पवित्र सजी हुई थाली में
कभी मद से भरे उस गर्मागर्म प्याली में
डूबते रहते हैं सदा झूठ की खुशहाली में

कभी सराबोर होली के रंगबिरंगे रंगों में
कभी दीपावली के प्रज्ज्वलित दीप में
कभी रमज़ान के पश्चात ईद के चांद में
कभी ईश के झिलमिलाते क्रिसमस में।

कभी बसंत के मदमस्त पुरवाईयों में
कभी पतझड़ के सूखे हुए उन पत्तों में
कभी गर्मी की उमसपूर्ण उन थपेड़ों में
कभी शीत की कंपकंपाती हवाओं में ।

क्यों ऐ जिंदगी हम डूब गए हैं तुझमें
बंधी हो तुम सांसों की कच्ची डोर में
झूठ और सच के क्षीण से आवरण मे
बेगाना कर देता जो तुझसे इक पल में।

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परिचय :-  नाम : अंजना झा
माता : श्रीमती फूल झा
पिता : डाक्टर बद्री नारायण झा
जन्म तिथि : ६ अगस्त १९६९
जन्म स्थान : पटना
अंजना झा मूलतः बिहार की निवासी हैं। आपने मनोविज्ञान में एम.ए. किया है। पूर्व में आर्मी पब्लिक स्कूल में शिक्षिका रही हैं। आप कुछ समय आनलाइन पत्रिका साहित्य लाइव में संपादिका पद पर भी रह चुकी हैं। आपकी रुचि लघुकथा और काव्य लेखन में है। आपकी रचनाएँ हिंदी रक्षक मंच
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