Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

आते जाते खू़बसूरत

राजेश गुप्ता
तिबड़ी रोड, गुरदासपुर

********************

               दिल्ली एक उस शरारती बच्चे-सी है जो कभी चैन से न बैठता है और न ही किसी को बैठने देता है। दिल्ली अपने वेग से ही चलती है और अपने वेग से ही उठती है, बैठती है, न कोई इसे थाम सका है और न ही कोई शायद इसे थाम सकेगा। यह विचित्र-बहाव से बहने वाली नदी की तरह है जिस तरह एक चँचल बच्चा जिस के पास ऊर्जा का असीम भंडार होता है जिस से वह उत्प्रेरक होता है। उसी प्रकार दिल्ली भी असीम ऊर्जावान है उसके पास भी असीम कार्य करने की, दौड़ने-भागने की क्षमता है। वहां के दिन-रात एक ही जैसे हैं, हालाँकि रात को वह कुछ शांत होती है परन्तु रुकती याँ थमती वह तब भी नहीं है, यह उसकी विशेषता है। मैं अपनी पत्‍‌नी के साथ लगभग रात दस बजे के आस-पास घर से निकला क्योंकि मुझे ग्यारह बजे की गाड़ी पकड़नी थी। मैं और मेरी पत्‍‌नी कैब में आपस में आनन्दपूर्वक बातें करते हुये लगभग आधे घंटे में ही सराय-रोहिल्ला रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। वहां काफी गहमा-गहमी थी। ट्रेनें आ-जा रही थीं और यात्री भी आ जा रहे थे। कुछ देर में हम भी अपने प्लेटफार्म का पता लगा कर वहां पहुंच गए। दस-बीस मिनट में हमारी गाड़ी प्लेटफार्म पर आ गई। गाड़ी में बैठने के बाद एक और समस्या थी कि हमारी दो वेटिंग सीटों के बदले हमें आधी-आधी सीट ही अलाट की गई थी। टी.टी. से बात करने पर भी कुछ नहीं हुआ। रेल का डिब्बा खचाखच भरा हुआ था। कोई और बर्थ खाली न थी। सब लोग अपना-अपना सामान सेट करने में लगे थे। सभी को अपनी-अपनी पड़ी थी। किसी के पास किसी की बात सुनने का समय नहीं था। हर कोई अपना-आप समझने में लगा था। हमारे पास ज्यादा सामान न था इस लिये हमें ज्यादा समय नहीं लगा। हमारे इर्द-गिर्द की सीटों पर कुछ नौजवान और खू़बसूरत लड़कियाँ अपनी सीटें और सामान व्यवस्थित करने में लगी थीं। मैं और मेरी पत्‍‌नी उनको अपनी सीट पर बैठे-बैठे निहार रहे थे और अनुमान लगा रहे थे कि शायद ये किसी कॉलेज की ओर से टूर पर जा रही हैं। उनके आने से संपूर्ण डिब्बे में हलचल शुरु हो गई थी। साफ लग रहा था कि वे दिल्ली के ही किसी कॉलेज की छात्रायें थीं। कुछ देर में गाड़ी चल पड़ी लेकिन वे लड़कियां इधर से उधर और फिर उधर से इधर आ जा रही थीं। मैं और मेरी पत्‍‌नी लगातार उन्हें ही निहार रहे थे। वे लगातार अदल-बदल कर अपने मोबाइल फोन से सेल्फियाँ ले रही थीं। उनमें से कुछ ऊपर कुछ नीचे की बर्थ पर बैठी थीं। कुछ चंचल और खू़बसूरत लड़कियाँ बैठने को राजी न थी। वे लगातार इधर से उधर और उधर से इधर आ जा रही थीं। उनके लिये यह खेल था। मुझे उनका चुलबुलापन और व्यस्त-सा वातावरण अच्छा लग रहा था। मैं और मेरी बीवी एक ही बर्थ पर बैठे थे। टी .टी. से एक बार अनुरोध करने के बाद कि वह हमें हमारी एक और सीट दे दे की बात करना ही भूल गए। लड़कियों की गहमा-गहमी ने डिब्बे के भीतर एक अलग सा वातावरण निर्मित कर दिया था।
कुछ देर में हमने उनसे बातचीत की। वे दिल्ली की किसी कॉलेज की छात्रायें थीं। वे अपना ही एक ग्रुप बना कर ट्रैकिंग के लिये धर्मशाला जा रही थीं। इस बातचीत के बाद वे हमारे साथ घुलमिल गई। मुझे उनका चुलबुलापन अच्छा लग रहा था। मुझे वे अपनी बेटियों-सी लग रही थीं। उनको देख कर मैं सोच रहा था कि यदि हमारे घर कोई बेटी होती तो इनके जैसी होती जिसमें चुलबुलापन होता जोकि नाराज़गी को खु़शी में और बासीपन को ताजगी में बदलने की क्षमता रखती। वे अपने स्वभाव अनुसार सारे डिब्बे में एक लहरनुमा मौज की तरह आ जा रही थीं।मैं उन्हें पूर्ण समर्थन दिये हुए था। मेरी ओर जब भी वे देखती मैं भी एक प्यार और सत्कार-युक्त अंदाज से उनको देखता, इस पर वे ख़ुश हो जाती और उनका चुलबुलापन और भी निखर आता। मैं लगातार उनको देख रहा था। घर में बेटी न होने का अफसोस हुआ। मैं अभी भी उनको प्यार से निहार रहा था।
अचानक उनमें से कुछ लड़कियों ने साथ वाले केबिन में ऊंचे स्वर में संगीत बजाना शुरु कर दिया और फिर सब वहां मौजूद लड़कियां नाचने लगीं। उनमें से कुछ आपस में सेल्फियाँ लेने लगी। संगीत की आवाज़ सुन कर दूसरे केबिन से कुछ और भी उनकी साथी लड़कियाँ वहां आने लगीं। कुछ देर तक यह सब चलता रहा, मैं उन्हें देख रहा था, वे सब बहुत ख़ुश थीं। मुझे अब वे उन पक्षियों-सी लगी जो ख़ुले आसमान में उड़ रही थीं, तैर रही थीं। लहरा-लहरा कर नाच रही थीं। वे गाने बदल-बदल कर नाच रही थीं। मैंने उन्हें प्रोत्साहित करने के लिये कहा ”अपना टाईम आएगा” पर नाचो, वे मेरे इस कथन से और भी प्रोत्साहित हो गई और अच्छे से नाचने लगीं। अभी इस गाने का संगीत चल ही रहा था कि एक अधेड़-उम्र का आदमी जोकि उनके बगल वाले केबिन में बैठा था उनको आकर डांटने लगा ”बड़ी बदतमीज़ लड़कियाँ हैं आप, सारी की सारी गाड़ी सिर पर उठा रखी है, क्या आपके मां–बाप ने आपको अक्ल नहीं सिखाई, बंद करो यह सब, हमें सोने दो, बदतमीज़ लड़कियाँ, अपने मां-बाप का नाम खराब कर रही हैं ”सबकी सब लड़कियाँ सहम कर एकदम खामोश हो गई। सब कुछ थोड़ी देर के लिये थम-सा गया। वह क्रोध-भरी-आवाज़ भी अब शांत थी। मैंने उठ कर उधर देखा, तब तक वह व्यक्ति वहां से जा चुका था। उनमें से कुछ लड़कियों ने मेरी ओर देखा, मैंने मुस्कुराते हुए उन्हें देखा। कुछ ही क्षणों में फिर से संगीत की धुन ‘अपना टाईम आएगा‘ बजने लगी और वे सब फिर से नाचने-गाने लगीं। फिर लगभग आधे-एक घण्टे बाद वे शांत हो गई। लेकिन उनके चुलबुलेपन से सारा डिब्बा अभी भी महक रहा था। फिर उनमें से कुछ लड़कियाँ हमारे केबिन में हमारे सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई और बातें करने लगीं। इसी बीच मेरी पत्‍‌नी ने उन्हें बता दिया कि आज आपके अंकल का जन्म-दिन है, फिर क्या था। हमारे केबिन में बैठी लड़कियों ने सब साथी लड़कियों को आवाज़ लगा कर वहीं बुला लिया। समय रात के ग्यारह पचास [११.५०] का था।
“अरे, सब इधर आओ, अंकल का आज जन्म-दिन है“
“अरे हां, यह तो बहुत अच्छा है, हम सब मिल कर मनाते हैं न अंकल का जन्मदिन “एक और लड़की ने कहा ।
“अरे हां, क्यों नहीं, इन्होंने हमें बहुत सुपोर्ट किया है “एक और लड़की ने कहा।
इतने में वे पता नहीं कहां से फ्रूट-केक और साथ में एक प्लास्टिक का चम्मच भी ले आई और फिर काऊंट-डाऊन शुरु हो गया।दस, नौ, आठ ————बारह बजते ही फिर से सब लड़कियों ने सारे का सारा डिब्बा सिर पर उठा लिया। रेल के डिब्बे में घर जैसा वातावरण निर्मित हो गया। इन बच्चियों को देख घर में बेटी न होने का अफसोस हुआ परन्तु अभी एक आस बाकी थी कि इनके जैसी बच्चियाँ ही तो हमारे घर में बहूँए बन कर आयेंगी। इसी खु़शी के ख्याल ने मन को फिर से पुलकित कर दिया। मैं अभी भी उनको प्यार से निहार रहा था। सकारात्मकता ने जैसे हमें चारों ओर से घेर लिया जिस की आज हर किसी को जरूरत है। वे बच्चियाँ मुझे जीवन भर याद आती रहेंगी। बेटियों का आसपास चहकना रूह को कितना सुकून देता है, आज मैंने अच्छे से महसूस किया। यह मेरे जीवन की अद्‌भुत और अविस्मरणीय यात्रा थी।

.

परिचय :-  राजेश गुप्ता  तिबड़ी रोड, गुरदासपुर


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻  hindi rakshak manch 👈🏻 … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *