भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल मध्य प्रदेश
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भूखा प्यासा, अपने ही घर, रह भइये।
पीर हृदय की, नहीं किसी से, कह भइये।।१
उसका सूरज, वही उगाता, रोज यहाँ,
मान न इसको, झूठ सत्य है, यह भइये।।२
वही रेफरी, और गोल का, कीपर भी,
गेंद तुल्य तू, मार यहाँ पर, सह भइये।।३
तस्वीरें वह, रोज यहाँ की, बदल रहा,
अधिकार उसे, है नेक यहाँ, वह भइये।।४
आसमान से, बहुत बड़ा है, दिल उसका,
पकड़ न पाया, उसकी कोई, तह भइये।।५
धमकाता वह, डरती उससे, यह जनता,
साथ हमेशा, वह रखता बम, छह भइये।।६
ठान न उससे, रार चार दिन, ‘जीवन’ के,
साथ-साथ में, पानी के तू, बह भइये।।७
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
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