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बसंत पंचमी

माया मालवेन्द्र बदेका
उज्जैन (म.प्र.)

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बसंत पंचमी, माघी पंचमी, श्री पंचमी…..
मां वागेश्वरी, सरस्वती अवतरण दिवस। बसंत पंचमी का पर्व अपने आप में एक सुखद अनुभूति है।
बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती अवतरित हुई, इसलिए यह बहुत पावन दिन माना जाता है, क्योकि ज्ञान की देवी शारदे को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उन पर प्रसन्न होकर वरदान दिया था की, बसंती पंचमी के दिन तुम्हारी पूजा की जायेगी। श्रीहरि की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीव-जंतु, मनुष्य योनि की रचना की पर उन्हें पूर्णतः संतुष्टि नहीं थी। फिर से श्रीहरि की अनुमति से ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल की बूंद धरती में समाहित होते ही कम्पन हुआ और वृक्षो के बीच से एक स्त्री शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। यह मां वीणा पाणी थी और दिन माघ शुक्ल पंचमी थी, जो हम बसंत पंचमी के रुप में मनाते है।

भारत वर्ष के अलावा नेपाल और बांग्लादेश के हिन्दू समुदाय में यह त्यौहार बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पीत रंगी प्रीत बसंती बसंत ऋतु का आगमन ही मन को प्रसन्नता देता है। छः ऋतुओं में बसंत ऋतु का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार दंडकारण्य वन में भगवान श्रीराम ने शबरी के जूठे बसंत पंचमी के दिन ही खाये थे। वाद्ययंत्र और पुस्तक पूजन का इस दिन बहुत महत्व है। इस दिन बच्चों को सर्वप्रथम अक्षर ज्ञान भी करवाया जाता है। आम में बौर, गेहूं की बालियां, पीली पीली सरसों सब मिलकर बसंत ऋतु का जोर-शोर से स्वागत करते हैं। इस दिन पीले वस्त्र पहनना और पीला भोजन बहुत महत्व रखता है। हमारे सभी पर्व कुछ विशेष संदेश देते हैं।
बसंत का आगमन प्रकृति में नवचेतना नवसंचार करता है। पलाश, अंबुआ की डालियां, सुसज्जित होकर झूमते है। हम भी स्वागत करे, ऋतुओं के ऋतुराज का जो हमारे जीवन में हर्षोल्लास भर दे। हमें प्रेम से सरोबार कर दे। सभी विद्वानों ने, सभी श्रेष्ठजन ने अपने अपने विचार बसंत पंचमी पर लिखे हैं।

पौराणिक, धार्मिक परम्पराओं अनुसार बसंत पंचमी का बहुत महत्व बताया गया है।
हमारे यहां शुभकार्यो हेतु शुभ मुहूर्त देखकर विवाह आदि सम्पन्न किये जाते हैं, पर बसंत पंचमी के मुहूर्त को सर्व मान्यता दी गई है। विशेष दिन में, यह जरूर विशेष है कि यदि हम इस दिन को माता सरस्वती का अवतरण दिवस मानकर पूजन करते हैं, और उन्हें हम शब्द, सुर, ज्ञान की देवी मानते हैं तो हमें अपनी संस्कृति को सभ्यता को मान देते हुए हमेशा मां शारदे की स्तुति करना चाहिए, जिससे हमें कभी किसी के भाव को ठेस लगने वाले शब्दों का प्रयोग न करना पड़े। हम शुद्ध और सात्त्विक विचारों से सरोबार रहे। अवगुण तो हमारे अंदर बहुत होते हैं पर मां शारदे के वरदान से जिव्हा संयम का गुण आ जाये तो बहुत समस्याओं का समाधान हो जाये। संगीत की देवी सरस्वती सदा हमारे सभी के जीवन में हर्षोल्लास के रंग भरती रहे।

परिचय :-
नाम – माया मालवेन्द्र बदेका
पिता – डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय
माता – श्रीमती चंद्रावली पान्डेय
पति – मालवेन्द्र बदेका
जन्म – ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश
शिक्षा – एम• ए• अर्थशास्त्र
शौक – संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति
लेखन – चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजराती लेखन
प्रकाशन – पत्र पत्रिका मे हिन्दी, मालवी में प्रकाशन।
पुस्तक प्रकाशन – १ मौन शबद भी मुखर वे कदी (मालवी) २ – संजा बई का गीत
साझा संकलन – काव्य गंगा, सखी साहित्य, कवितायन, अंतरा शब्द शक्ति, साहित्य अनुसंधान
लघुकथा – लघुत्तम महत्तम, सहोदरी
माळवी – मालवी चौपाल (मालवी)
विधा – हिंदी गीत, भजन, छल्ला, मालवी गीत, लघुकथा हिन्दी, मालवी व्यंग, सजल, नवगीत, चित्र चिंतन, पिरामिड, हायकू, अन्य विधा मे रचना!
सम्मान – झलक निगम संस्कृति सम्मान, श्रीकृष्ण सरल शोध संस्थान गुना द्वारा सम्मान, संस्कृत महाविधालय थाईलैंड द्वारा सम्मान, शब्द प्रवाह सम्मान, हल्ला गुल्ला मंच सम्मान रतलाम, मालवी मिठास मंच द्वारा, नारी शक्ति मंच जावरा, औदिच्य ब्राह्मण समाज,गुरूव ब्राह्मण समाज द्वारा सम्मानित, प्रतिकल्पा सम्मान जमुनाबाई लोकसंस्थान उज्जैन, द्वारा मालवी लेखन के लिए पांडुलिपी पुरस्कार, दैनिक अग्निपथ कवि साहित्यकार सम्मान, शुभसंकल्प संस्था इंदौर, शुजालपुर मालवी न्यास से सम्मानित, संवाद मालवी चौपाल, संजा और मांडना के लिए पुरस्कार
मुख्य ध्येय – हिंदी के साथ आंचलिक भाषा और लोककृति विशेष संजा को जीवंत रखना, बेटी बचाओ मुहिम मे मालवी हिन्दी मे पंक्तिया, संजा, मांडना संरक्षण पच्चीस वर्ष से अधिक भारत से बाहर रहकर हिंदी लेखन का प्रसार, आंचलिक बोली मालवी का प्रसार, मारिशस, थाईलैंड, हिंदी सम्मेलन में उपस्थिति व थाईलैंड में हिंदी गोष्ठी समूह में सहभागिता की।
संरक्षक – झलक निगम संस्कृति, संरक्षक शब्द प्रवाह
संस्थापक – यो माया को मालवो, या मालवा की माया।
अध्यक्ष – संस्कृति सरंक्षण
पुरस्कार प्रदत – “मालवा के गांधी” डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय “मालवा रत्न” स्मृति पुरस्कार!
निवासी – उज्जैन (म.प्र.)


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