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बैंक एफडी

आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश

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                       राजमोहन गांव के बड़े जमींदार थे। गांव वालों की नजर में उनकी छवि सदा ही एक सम्मानित एवं साफ सुथरी व्यक्ति की रही। राजमोहन हमेशा ही दीन, हीन, भिक्षु, विकलांग वा आमजन के प्रति उदार भावना रखते थे। खुशियां सबसे बांट लेते लेकिन दुख दर्द अकेले ही झेल जाते थे। इसके पीछे उनका निजी दृष्टिकोण था। राजमोहन का बड़ा बेटा राधे घर में रहकर घर के काम खेती, किसानी में हाथ बंटाता था। एक दिन राजमोहन अपने बड़े बेटे के साथ घर में बैठे कुछ विषयों पर बात ही कर रहे थे, कि गांव के ही एक व्यक्ति राजबली अचानक आ पहुंचे। राजबली के चेहरे और हाव भाव को देखकर ही राजमोहन समझ गये कि हो ना हो इनको किसी तरह की मदद की जरूरत है। इसलिए अचानक ये हमारे पास आये….। राजमोहन बिल्कुल भी देरी ना करते हुए राजबली को बैठने को कहते हुए बोले- कहिए कैसे आना हुआ?? राजबली परेशानी भरे स्वर में बोले- कि एक लाख रुपए के बिना छोटे बेटे की डाक्टरी की पढ़ाई रुक जाएगी। उसके भविष्य का सवाल है यदि एक लाख रुपए की तत्काल में मदद आप कर दें तो बड़ी कृपा होगी। शीघ्र ही वापस कर दूंगा। राजमोहन मना नहीं कर सके और बोले कि, ठीक है। राजबली आप आज शाम को आकर पैसे ले जाना। राजमोहन अपने बड़े बेटे राधे से बोले कि गाड़ी निकालो मुझे साथ लेकर बैंक चलो। बैंक में जो पैसे एफडी कर रखे हैं। बेटी की शादी के लिए, उनमें से एक लाख रुपए एफडी तोड़ कर राजबली को देना है। राधे पिता के इस फैसले से नाराज़ हुआ। लेकिन कुछ बोल नहीं पाया। राधे के मन में यही चल रहा था कि आखिर बहन की शादी के लिए जो पैसे बैंक एफडी में है उसको तोड़कर किसी की मदद करना सही नहीं है। फिर भी पिता के निर्णय के सामने राधे कुछ नहीं कर सका। पिता-पुत्र बैंक जाकर एफडी तोड़ कर पैसे ले आए, और शाम को राजबली को वह पैसे उनके बेटे की फीस भरने के लिए दे दिए। ठीक एक हफ्ते में राजबली वह पैसा वापस लौटाने के लिए राजमोहन के घर आए, और एक लाख रुपए पास खड़े राजमोहन के बेटे राधे के हाथ में देते हुए बोले- कि बहुत-बहुत आभार राजमोहन जी आपने बड़े समय में यह पैसे मुझे दिए मेरी मदद की आपने‌। वरना इतने से पैसे के लिए मुझे अपनी बैंक एफडी तुड़वानी पड़ती जो कि मुझे उचित नहीं लग रहा था और आपकी मदद ली मैं ने। इतना सुनते ही राजमोहन और उनका बेटा राधे आवाक रह गए। पिता पुत्र एक दूसरे की तरफ देखते हुए खुद को ठगा सा महसूस कर रहे।

परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन-आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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