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धुरी

रचयिता : माधुरी शुक्ला

अरे, पूजा जल्दी करो, देर हो रही है डॉक्टर साहब निकल जायेंगे। अजय का यह स्वर कई बार गूंज चुका है। आई बस, कुछ देर और यह कहती पूजा बेटे चिंटू और सास के लिए खानपान का पूरा इंतजाम करने में जुटी है। उसे लग रहा है कि बुखार तो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा ऐसा ना हो डाॅक्टर अस्पताल में एडमिट होने को कह दे। ऐसा सोचती है तभी इस बार अजय कड़क आवाज़ में पुकारता है कितनी देर, छोड़ो यह सब बाद में देख लेना। पसीना पोंछती वह किचन से निकलती है और अजय के साथ डाॅक्टर के पास जाती है। डाॅक्टर उसकी हालत देख तुरंत एडमिट होने को कह देता है। अब अजय का चेहरा देखने लायक हो जाता है। वह डाॅक्टर से पूछता है शाम तक छुट्टी हो जाएगी ना। वह हंसते हुए कहते हैं इलाज तो शुरू होने दो पहले। अजय के सामने बूढ़ी मां और चार साल के बेटे का चेहरा घूमने लगता है। सोचता है अगर  यह एक-दो दिन अस्पताल में रह गयी तो घर की व्यवस्थाओं का क्या होगा जो इसके इर्द-गिर्द घूमती है।
लेखीका परिचय :- 
नाम – माधुरी शुक्ला
पति – योगेश शुक्ला
शिक्षा – एम .एस .सी.( गणित) बी .एड.
कार्य – शिक्षक
निवास – कोटा (राजस्थान)

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