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चाय की दूकान पर

ओम प्रकाश त्रिपाठी
गोरखपुर

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सुबह उठा मंजन किया धोया मुह और हाथ,
थोड़ी दूर घर से चला मिला मित्र का साथ।
मिला मित्र का साथ, बात कुछ ऐसी छिड गई,
टीम हमारी जा करके दूकान पहुंच गई।।

पहले से दूकान पर बैठे थे कुछ लोग,
चना जलेबी चाय की लगा रहे थे भोग।
लगा रहे थे भोग भाव दिखलाते अपना,
कहा गया रे छोटुआ ला गिलास दे अपना।।

अंकल थोडा ठहरिए आता हूं मै पास
बाल दिवस पर टीवी मे आ रहा है कुछ खास।
आ रहा है कुछ खास बच्चे चहक रहे हैं
कुछ है बैठे झूले पर कुछ सरक रहे हैं।।

तभी जोर से मालिक ने चिल्ला कर बोला
कहा है रे छोटुआ साला टीवी क्यों खोला?
डरा, सहमा, कापता छोटुआ गिलास ले भागा।
हाय धरा पर कैसा है कुछ बचपन आभागा।।
सत्तर सालों से हम हैं यह दिवस मनाते।
पर इस गंदी सोच को मिल क्यों नहीं मिटाते।।

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लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर


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