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अश्क

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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दिल मे जो बसा है वो,
आँखों मे दिखने लगा,
पोरो पे आ छुप जाता,
क्यू मुझमे बसने लगा..?

कब तक सहेज रखूंगा?
अब ज्वार सा उठने लगा,
साहिल को आतुर मौजे,
बन भवँर,हैं घुमड़ने लगा…

समंदर दबा रखा था,
बरबस छलकने लगा,
ये आब था रुका-सा,
तुझे देख,फ़फ़कने लगा…

हैं खता क्या जो उसकी?
हो खफा दुर जाने लगा,
था मर्ज चंद हर्फो का,
हकीम आज़माने लगा…

परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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