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चाहे जैसी यार देख लो

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच

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चाहे जैसी यार देख लो ,
नई पुरानी कलम मिलेगी।
जूते सीती रेदासी या,
चंवर ढुलाती कलम मिलेगी।।

पेबंदों से इज्जत ढकती,
ममतामयी लिए दो आंखें।
बच्चों के भूखे पेटों में,
लुकमें देती कलम मिलेगी।।

सीमाओं की रखवाली में,
रत कलमो के साथसाथ ही।
कभी प्यारमें कभी भक्तिमें,
डूब दीवानी कलम मिलेगी।।

कामुकताके कीचड़ में गुम,
किए हुए श्रंगार कीमती।
कोठों की गौरव गाथाएं,
तुमको गाती कलम मिलेगी।।

जूते सजते शोकेसों में,
ये दस्तूरे दुनिया है अब।
फुटपाथों पर राह देखती,
मेडल वाली कलम मिलेगी।।

कुछ आवाज बनी जनताकी,
झोपड़ियों से बाहर आकर।
कुछ बंगलोंमें मक्खन खाती,
नौकरशाही कलम मिलेगी।।

कागज पर चलने वाली तो,
“अनंत” बिखरी देखोगे तुम।
मगर दिलों पर चलने वाली,
कम ही दानी कलम मिलेगी।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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