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अन्नदाता किसान

रमेश चौधरी
पाली (राजस्थान)

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में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया,
मैने पसीने की बूंदों से
मिट्टी को सीचा है।

में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया,
मैने स्वयं को भूखा रक कर
छत्तीस कौम के वासियों की
जठराग्नि को शांत किया है।

में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया,
मैने ठाकुरों की सितियासी (८७) प्रकार की
लाग-बागो को सहन करके
मोती रूपी अन्न को उपजाया है।

में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया,
मैने लौह पिघलती हुई धूप में
बंजर भूमि को स्वर्ग बनाया है।

में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया,
मैने सूरज के जगने से पहले
खुद को जगाया है।
अपने लिए नहीं
अपने देश वासियों के लिए
अपने देश वासियों के लिए…..।

परिचय :- रमेश चौधरी
निवासी : पाली (राजस्थान)
शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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