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रूठी हुई महफ़िल

कीर्ति सिंह गौड़
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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एक महफ़िल में तेरा इन्तज़ार
करते-करते सुबह हो गई,
जो नूर मेरे चेहरे पर था उस नूर से
मेरे चेहरे की कलह हो गई।

सितारों वाला दुपट्टा ओढ़ा
था मैंने तुम्हारे लिए,
वो दुपट्टा तुमसे रूठ गया और
उसके सितारों की चमक
भी बेज़ार हो गई।

दिल में अरमान लिए तेरी ख़ातिर
सज कर महफ़िल में आए थे हम,
रूठ गईं मेरी चूड़ियाँ भी तुमसे
और उनकी खनक कम हो गई।

मैंने वही पायल पहनी थी
जो तुमने मुझे तोहफ़े में दी थी,
छम-छम करना भूल गईं
वो भी और उदास हो गईं।

आँखों में काजल डाल बिंदिया
सजाई थी मैंने माथे पर,
काजल मेरा आँसुओं में धुल गया
और बिंदिया भी तुमसे नाराज़ हो गई।

क्यूँ मेरी मोहब्बत को महफ़िल में
रुसवा किया तुमने इस तरह,
कि वो सजी हुई महफ़िल तेरे
इंतज़ार में तबाह हो गई।

उस महफ़िल में तेरा इंतज़ार
करते-करते …..।

परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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