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अमिट वीर बलिदानी हो

अर्चना अनुपम
जबलपुर मध्यप्रदेश

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समर्पित- महान क्रांतिकारी वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के अमर बलिदान को समर्पित श्रद्धांजली।
रस- वीर, रौद्र।

धार तेज बरछी की करली थी ऐंसे परिवेश में।
चूड़ी पहन छुपे बैठे जब, कुछ रजवाड़े देश में।।

ललकारी थी झलकारी, रघुनाथ नीति भी बड़ी कुशल।
गौस खान का लहु तेज, सुंदर मुंदर भी बहुत सबल।।

पेंशन का एहसान रखो, अधिकार हमारा झांसी है।
अपनी भूमि तुमको दें यह, बिना मौत की फांसी है।।

प्रथम युद्ध वो आजादी का, रोम-रोम में जागी थी।
क्रांति जनित हृदय ज्वालायें, लंदन तक ने भांपि थीं।।

कमजन-कमधन कम से कैसे रानी युद्ध अटल होगा?
लड़ने का साहस जानो पर विजयी भला महल होगा?

नारी है सृजना जीवन को जनती, पीर बड़ी सहके।
लड़े हमारे बांके घर पर क्यों बैठें हम चुप रहके?

सुन रानी की बातें तब नारी शक्ति भी जागी थी।
भारत की लक्ष्मी से डरकर विक्टोरिया भी कांपी थी।।

अद्भुत साहस वीराओं का कान फटे झंकारों से।
अंग्रेजों के मुण्ड गिरे जब रानी की तलवारों से।।

पीठ पे दत्तक पुत्र हस्त बरछी चक्षु में अंगारे।
लड़ने की हिम्मत किसकी चितवन से ही शत्रु हारे।।

साक्षात् जिम सिंह वाहिनी अश्व श्वेत वो सारंगी।
देख रूप रानी का भागें चीटी जैसे फिरंगी।।

दस बारह का हो समूह, सम्मुख का साहस कर पाएं।
एक अकेली रणचंडी से कपें पनपने, घबराएं।।

राव दुल्हाजो की गद्दारी, बहुत वीर का रक्त पिया।
फांद चली जब दुर्ग से दुर्गा, वीराना तब महल हुआ।।

तात्या के संग मिली बहादुर, कालपी में धूल चटाई फिर।
देशविरोधी गद्दारों को देशभक्ति सिखलाई फिर।।

घर के ही भेदी बनकर अंग्रेजों का था साथ दिया।
बता भेद हर एक क्षेत्र का फिर रानी पर घात किया।।

अब कम थे जब घुड़सवार तब भी वो बिलकुल नहीं डिगी।
स्वाभिमान से जीने वाली निज निष्ठा पर रही टिकी।।

छोड़ दिया था साथ भाग्य ने सारंगी भी रही नहीं।
तब भी सिंहनी मुंह लगाम ले दोनों हाथों खूब लड़ी।।

खड़ी रही वो युद्ध भूमि पर जीत भला अब कैसे हो?
सीधे लड़कर विजय ना मिले पुनः रानी को धोखा दो।।

एक रानी कुछ घुड़सवार, चारों ओर ही घेरा था।
गोली लगती तभी आंख में बिफरा घना अंधेरा था।।

इतने पर भी चकमा देकर, एक मंदिर तक पहुंच गई।
अपनी चिता स्वयं बनवाई दिव्य तेज में अमर हुई।।

रक्त देख अवनि पर अबलाओं का यूं वैरक्त हुआ।
गर्दन जिसकी लेने आया आज उसी का भक्त हुआ।।

निश्चित ही मैं जीत गया जीवन की अमिट कहानी थी।
इस पूरे ही भारत में वो बस एक ही मर्दानी थी।।

नारी का गौरव हो रानी अमर वीर बलिदानी हो।
शत्रु कांपे कर विचार गद्दारों हेतु सुनामी हो।।

है ईश्वर से विनय सदा भारत की बेटी नहीं डरे।
चित्त रखे निज स्वाभिमान, चिंतन में भारत प्रेम वरे।।

पूर्व में प्रकाशित

परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम
साहित्यिक उपनाम – अर्चना अनुपम
जन्म – २१/१०/१९८७
मूल निवासी – जिला कटनी, मध्य प्रदेश
वर्तमान निवास – जबलपुर मध्यप्रदेश
पद – स.उ.नि.(अ),
पदस्थ – पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश
शिक्षा – समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर
सम्मान – जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मान, विश्व हिन्दी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना की आवाज, श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान, लक्ष्मी बाई मेमोरियल अवार्ड, एक्सीलेंट लेडी अवार्ड, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा – अटल काव्य स्मृति सम्मान, शहीद रत्न सम्मान, मोमसप्रेस्सो हिन्दी लेखक सम्मान २०१९..
विधा – गद्य पद्य दोनों..
भाषा – संस्कृत, हिन्दी भाषा की बुन्देली, बघेली, बृज, अवधि, भोजपुरी में समस्त रस-छंद अलंकार, नज़्म एवं ग़ज़ल हेतु उर्दू फ़ारसी भाषा के शब्द संयोजन
विशेष – स्वरचित रचना विचारों हेतु विभाग उत्तरदायी नहीँ है.. इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है


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